हमने यह जानने की बिल्कुल भी कोशिश नहीं की है कि जो इतिहास आज हमारे स्कूलों में पढ़ाया जा रहा है या जो हमने पढ़ा, वह कितना असली इतिहास है और उसमें कितनी सच्चाई है। क्यों रानी पद्मावती के जीवनी पर इतना संदेह होता है। इतिहासकार का काम क्या होता है? और आखिर क्यों इरफान हबीब जैसे प्रायोजित इतिहासकार ऐसा कहते हैं कि रानी पद्मावती की कहानी एक काल्पनिक कहानी है। अगर रानी पद्मावती की कहानी एक काल्पनीक कहानी है तो फिर किस आधार पर चित्तोढ़ राज घराने के परिवार के लोग यह कह रहे हैं कि रानी पद्मावती के जीवन पर बनी फिल्म में दिखाये गये अंश रानी पद्मावती के जीवन से मेल नहीं खाते? क्यों जोधा अकबर जैसी फिल्म जो सन 2008 में रिलीज हुई थी उसका विरोध हुआ था? क्यों राम जन्मभूमि और कुतुब मिनार, या लाल किले जैसी इमारतों के इतिहास को वे लोग छुपाना चाहते हैं? आखिर ऐसे क्या कारण हैं कि इतिहास की वास्तविक सच्चाई को आधुनिक इतिहासकार पचा नहीं पा रहे हैं?
अगर किसी भी इतिहासकार से पूछा जाए कि इतिहास होता क्या है? और इतिहासकार का काम क्या होता है? तो उनका जवाब यही होगा कि किसी भी सभ्यता या संस्कृति का बीता हुआ वह समय जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा और संदेश देता है, इतिहास कहलाता है। और उसी इतिहास के बलबुते पर उस सभ्यता या संस्कृति के वर्तमान और उसके भविष्य की नींव भी रखी जाती है। और इतिहासकार का काम होता है कि वह बिना पक्षपात किए बीते हुए समय को क्रमबद्ध तरीके से संजो कर पेश करे।
किसी भी संस्कृति या सभ्यता का बीता हुआ वह समय जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा और संदेश देता है इतिहास कहलाता है, तो फिर हमारा वह इतिहास कहां है, जिसके लिए यह देश जाना जाता है? कहां है वह प्रेरणा देने वाला इतिहास या संस्कृति जो आज से 1300 साल पहले की उस पीढ़ी की प्रेरणा देने वाली वह सीख? और यदि बीते हुए समय को क्रमबद्ध तरीके से संजो कर रखना ही इतिहास है तो फिर कहां हैं वो क्रमबद्ध घटनाएं जो बीते 1300 सालों में घटीत हुईं हैं? आखिर किसने लिखा बीते 1300 सालों के भारत का इतिहास? कहां हैं वे क्रमबद्ध घटनाएं? कौन-कौन हैं वे इतिहासकार जिन्होंने 1300 सालों का इतिहास लिखा? आखिर वे इतिहासकार थे भी या नहीं? या फिर वे प्रायोजित इतिहासकार थो?
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि जब कभी भी किसी अन्य संस्कृति, क्षेत्र या देश पर कोई बाहरी आक्रमण होता है तो सबसे पहले वे आक्रमणकारी वहां के इतिहास को नष्ट करने का काम करते हैं, ताकि वहां की आने वाली पीढ़ी, अपने स्वाभिमान और अपने इतिहास, दोनों ही दूर होते जाएं। इसके लिए दूसरा सबसे महत्वपूर्ण उसके वास्तविक इतिहास का पूनर्लेखन करवाया जाता है, ताकि, वे भूल जाएं अपने आत्मगौरव को और अपने सत्य को। और फिर, उस संस्कृति और क्षेत्र में पूर्ण रूप से घूसपैठ हो जाने के बाद, लिखा जाता है एक नया इतिहास, जिसे कहा जाता है प्रायोजित इतिहास। और उस इतिहास को लिखने वाले, इतिहासकार न होकर रह जाते हैं लेखक, विचारक और शासक।
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यह तो सभी जानते हैं कि, लेखक कभी भी इतिहास नहीं लिख सकता। और विचारक घटनाओं पर अपने विचार देकर तर्कों या कुतर्कों को जन्म देता है। और फिर शासक यदि खुद अपना इतिहास लिखने लगे तो क्या होगा? वह तो अपने पराक्रम का ही गुणगान करेगा। यानी कि वह इतिहास न होकर एक आत्मकथा या गौरवगाथा होकर ही रह जाएगा।
तो इसका अर्थ भी यही हुआ कि, भारत के इतिहास के साथ भी बीते 1300 सालों से इसी तरह से खिलवाड़ होता आ रहा है, और इसी तरह के प्रायोजित इतिहासकारों ने भारतवर्ष के गौरवशाली इतिहास को नष्ट कर दिया। हमारे देश में भी आक्रांताओं ने लूटपाट की। कई घृणित और महाघृणित काम किए, लेकिन, इतिहास में इस प्रकार की घटनाओं को उसमें स्थान क्यों नहीं दिया गया?
क्या चित्तोढ़ की रानी पद्मवती सहित 1600 अन्य महिलाओं के साथ मिलकर अपनी आत्मरक्षा और लाज बचाने के लिए के लिए एक साथ, एक ही समय में जौहर करने या आत्महत्या करने जैसी घटना ऐतिहासिक नहीं है? इतिहास में इस घटना को स्थान क्यों नहीं दिया गया? कौन है वह शासक या प्रायोजित इतिहासकार जिसने इस घटना को इतिहास के पन्नों से ही हटवा दिया?
ठीक यही हुआ भारत के उस गौरवशाली इतिहास और उसके सबूतों के साथ भी। भारत के उस इतिहास को भी पूनर्लेखन के दौर से गुजरना पड़ा, जो कभी दुनिया के लिए प्रेरणाशाली हुआ करता था। भारत का वह इतिहास खुद एक इतिहास बन कर रह गया जिसके आगे दुनिया सर झुकाया करती थी।
हालांकि, भारत के पिछले 1300 सालों के वास्तविक इतिहास के अनेकों ऐसे साक्ष्य और ऐतिहासिक पुस्तकें आज भी मौजूद हैं जो हमारे गौरवशाली इतिहास को दर्शाती हैं। लेकिन उन पुस्तकों को, उन शासकों और शासनों ने समय-समय पर अपने लिए खतरा समझ कर मिटा दिया या फिर बैन करवा दिया था। भारत के इतिहास से जुड़े ऐसे कई वास्तविक दस्तावेजों या पुस्तकों को जला दिया गया। भारतवर्ष के इतिहास में आज भी रानी पद्माावती के अटल सत्य की तरह ही कई घटनाएं या साक्ष्य मौजूद हैं जिन्हें विकृत बताया जाता है।
भारत में इस प्रकार की अनेकों घटनाएं हैं जो अपने आप में अनोखी हैं, लेकिन इरफान हबीब जैसे विचारवादी जो आज अपने आप को इतिहासकार कहते हैं उसके द्वारा पद्मावती की कहानी को एक काल्पनिक घटना कह देने का अर्थ क्या है? क्या इरफान हबीब को माालूम नहीं है कि अलबेरुनी कौन था? अलबेरुनी द्वारा लिखी गई किताबें आज आसानी से क्यों नहीं पढ़ने को मिलती? आखिर किसने गायब करवा दिया अलबेरुनी का वो साहित्य जिसमें उसने गौरवशाली भारत के धर्म, इतिहास, विचार, व्यवहार, परम्परा, विज्ञान, खगोल विज्ञान, मूर्तिकला और कानून का सरल और विस्तृत वर्णन किया था?
आखिर क्यों, ऐतिहासिक घटनाओं का जिक्र आते ही उन पर विवाद खड़ा हो जाता है? मौजूदा इतिहास में उनके साक्ष्य क्यों नहीं हैं? आखिर कौन हैं वे इतिहासकार, जो ऐतिहासिक घटनाओं में भी पक्षपात करते हैं? आखिर उन्हें किसी संस्कृति, सभ्यता या किसी क्षेत्र विशेष का अपना इतिहास मान्य क्यों नहीं होता? क्या भारत का इतिहास वही है जो सिर्फ और सिर्फ स्कूलों में पढ़ाया जाता है?
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क्या हमारा इतिहास वही इतिहास है जो मजबूर करता है कि पास होना है तो इसी को रटना पड़ेगा और इसी को सच मानना पड़ेगा? क्या किसी शासक द्वारा लिखी गई खुद की शौर्यगाधा को इतिहास माना जा सकता है? बच्चों को घूट्टी की तरह पिलाए जाने वाली अकबर-बीरबल की कहानियां क्या वास्तव में घटित भी हुई थीं। आखिर क्यों नहीं तेनालीरमन के किस्सों पर जोर दिया जाता? क्यों अकबर-बीरबल के ही किस्से इतने मशहूर हुए?
यहां सोचने वाली बात है कि, जिन अंग्रेजी और मुगल लुटेरों ने भारत को वर्षों तक गुलाम बनाकर रखा, भारत की संस्कृति और सभ्यता को नष्ट करने की कोशिश की, क्या वे अपने ही दुष्क्रमों को इतिहास के रूप में घटनाक्रम के अनुसार लिखेंगे? जिन्होंने भारत की विभिन्न प्रकार की विरासतों, धरोहरों और अनेकों धार्मिक स्थलों में लूटपाट मचाकर उन्हें नष्ट कर दिया हो, वे लिखेंगे कि हमने ऐसा कब और क्यों किया है? जिनका काम अय्याशियां करना था, क्या वे रचनात्मक भी हो सकते थे? क्या वे अपने पश्चाताप की कहानी लिखेंगे? आज हमें हमारा इतिहास, जिस रूप में पढ़ने को मिल रहा है, आखिर वह कितना सच है?
आखिर क्यों, इरफान हबीब जैसा प्राचीन और मध्ययुगीन भारत का इतिहास लिखने वाला व्यक्ति अपने आप को माक्र्सवादी दृष्टिकोण का इतिहासकार कहता है। आखिर क्यों, वह हिंदू कट्टरपंथियों के खिलाफ अपने रुख के लिए प्रसिद्ध है। उसकी नजर में कट्टरपंथियों का अर्थ क्या है? क्या कारण है कि अकबर ही महान था? महाराजा रणजीत सिंह, पृथ्वीराज चैहान, रानी लक्ष्मीबाई और शिवाजी जैसे ऐतिहासिक पुरूषों को महान क्यों नहीं बताया गया?
इतिहास लिखते समय आखिर क्यों नहीं सहारा लिया गया राजतरंगिणी नामक उस पुस्तक का जो 1150 ईसवी में कश्मीर के इतिहासकार कल्हण द्वारा लिखी गई थी? यह कितना सच है कि बाबा अमरनाथ की गुफा की खोज बूटा मलिक ने ही की थी? क्या 16वीं सदी में लिखी कई एक किताब वंशचरितावली का हवाला नहीं दिया जा सकता था कि अमरनाथ की गुफा तो कभी खोई ही नहीं थी?
कुछ इतिहासकारों के अनुसार हिस्ट्री शब्द का अभिप्राय इतिहास नहीं होता, बल्कि हिस्ट्री से अभिप्राय हीज़ स्टोरी या हर स्टोरी होता है। ऐसे में यदि हमारी आज की हिस्ट्री को राजा-रानी की कहानियां या फिर कुछ लोगों की आत्मकथा कह दें तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है।
भारतीय इतिहास की विडंबना रही कि अंग्रेजों का राज होने के कारण हमारे यहां के साहित्य का अंग्रेजी अनुवाद और विष्लेषण शुरू कर दिया, जिसके कारण इसका भारतीय पक्ष और भारतीयता को निकाल दिया गया। जबकि किसी भी इतिहास के अध्ययन और लेखन से पहले उसके प्रति निःस्वार्थभाव का होना जरूरी होता है। क्योंकि एक इतिहास, धर्म, अर्थ, शास्त्र, काम और मोक्ष को देने वाला एक शास्त्र होता है। हर इतिहास ज्ञान का ऐसा माध्यम और ऐसी विद्या है जो अतीत को वर्तमान में जीवित रखता है।
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आजादी के बाद जिन लोगों पर देश और इसके इतिहास को सजाने-संवाने का जिम्मा आया उन्होंने इसके गौरवशाली इतिहास को हटाकर हिस्ट्री शब्द थोप दिया। यानी शारीरिक तौर पर गुलामी से छुटकारा पाया तो मानसिक तौर पर गुलामी शुरू हो गई। यह अपेक्षा थी कि भारत जब स्वतंत्र होगा तो भारतीय इतिहास ही भारत के लोगों द्वारा भारतीयों को पढ़ने को दिया जायेगा, लेकिन ऐसा नहीं हो सकता।
इतिहास में तमाम तरह से घूसपैठ की गई। योजनाबद्ध तरीकों से इसमें विकृतियां डाली गईं। और जब हिस्ट्री शब्द चलन में आ गया तो इतिहास का मतलब ही बदल गया। अब यहां हिस्ट्री शब्द का अभिप्राय पूर्ण रूप से इतिहास न होकर, हीज़ स्टोरी या हर स्टोरी हो कर रह गया।
मगर फिर भी, आजादी के समय और आजादी के बाद भी, कुछ निष्पक्ष इतिहासकारों ने भारत का गौरवशाली इतिहास लिखने का प्रयास किया। लेकिन उस समय की सरकार का समर्थन उनको नहीं मिला। और यह बहुत बड़ा दूर्भाग्य रहा कि उस समय की सरकार ने माक्र्सवादी विचारधार के लोगों को भारत का इतिहास लिखने को दे दिया। और फिर माक्र्सवादी विचारधार के लोगों द्वारा आजाद भारत में देश का जो इतिहास लिखा गया वह गुलाम मानसिकता का प्रतीक बन कर रह गया।
देश के स्वाभिमान को कुचलने का षड्यंत्र जो सदियों पहले शुरू हुआ था, वह आजादी के बाद भी जारी रहा। यही कारण है कि आज हम आजाद भारत में अपने ही असली अतिहास को जानने से वंचित हैं।
आज हमारे पास अनेकों ऐसे प्रश्न हैं जो इतिहास के तमाम अवशेषों को खंगालने के बावजूद भी अतीत के तहखाने में दफन हैं। आज हमारे लिए यह समझना बहुत ही आसान है कि हमारे अतीत की कहानी लिखने का ढोंग करने वालों ने किस तटस्थ्ता के साथ हमारे इतिहास को लिखा होगा? विजेताओं के द्वारा लिखे गए गौरव गान को इतिहास कहना देश के लिए ही नहीं बल्कि दुनिया के लिए भी खतरनाक साबित हो सकता है। इसीलिए कई इतिहासकारों का कहना है कि भारत का वर्तमान इतिहास कुछ नहीं बस कुछ ऐसे लोगों की जीवन गाथा है, जो कभी इस देश पर राज करते थे।
– गणपत सिंह, खरगौन (मध्य प्रदेश)