अजय सिंह चौहान | माना जाता है कि त्रेतायुग के उस काल में जब भगवान राम ने जन्म लिया था उससे हजारों वर्ष पहले तक कश्मीर मात्र, एक जनपद के रूप में ही हुआ करता था। यदि हम वाल्मीकि रामायण के तथ्यों को आधार माने तो कंबोज, वाल्हीक और वनायु देश के पास स्थित है। और अगर हम आधुनिक इतिहास को आधार माने तो, कश्मीर के राजौरी से लेकर तजाकिस्तान तक का संपूर्ण हिस्सा ही कंबोज हुआ करता था जिसमें आज का पामीर का पठार और बदख्शां भी शामिल हैं।
कंबोज महाजनपद का क्षेत्र कश्मीर से हिन्दूकुश तक फैला हुआ था। जिसमें इसके उस समय के दो नगर राजपुर और नंदीपुर सबसे प्रमुख हुआ करते थे। प्राचीन काल के उस राजपुर को ही आजकल हम राजौरी के नाम से जानते हैं। इसमें पाकिस्तान का हजारा नामक जिला भी कंबोज के अंतर्गत ही आता था।
वर्तमान में भी हमारे पास कश्मीर का प्रामाणिक साहित्यिक एवं सांस्कृतिक इतिहास जानने के दो मुख्य स्रोत मौजुद हैं। जिसमें से पहला 12 वीं शती में कल्हण द्वारा रचित, राजतरंगिणी एवं दूसरा, मज्जिन सेनाचार्य का, नीलमत पुराण हैं। इन दोनों ही पुस्तकों में कश्मीर के वंशचरित एवं भूगोल का विस्तृत वर्णन मिलता है।
कश्मीर के भौगोलिक, सांस्कृतिक तथा राजनीति इतिहास से संबंधित सबसे पुरानी और सबसे प्रमुख पुस्तकों में से एक और उस समय के सुप्रसिद्ध साहित्यकार और इतिहासकार कल्हण द्वारा रचित राजतरंगिणी है।
कश्मीर में छूपा है युगों-युगों का रहस्यमई खजाना | Pre-historyof Kashmir
‘राजतरंगिणी‘ में 1184 ईसा पूर्व के राजा गोनंद से लेकर राजा विजय सिम्हा के काल, यानी 1129 ईसवी तक के कश्मीर के प्राचीन राजवंशों और राजाओं के प्रमाणिक दस्तावेज हैं।
राजतरंगिणी में भी यही बताया गया है कि आज की कश्मीर घाटी, अत्यंत प्राचीन समय में चारों तरफ से विशाल पर्वत श्रखलाओं से घिरी हुई थी, और इसके मध्य में एक बहुत बड़ी झील हुआ करती थी।
कश्यप ऋषि ने उस झील से पानी निकाल दिया और इसे एक अत्यंत मनोरम प्राकृतिक स्थल के रूप में बदल दिया था। उसी के बाद से कश्मीर की घाटी अस्तित्व में आई है।
हालांकि अगर हम भूगर्भशास्त्रियों की माने तो उनके अनुसार आज जिसे हम खदियानयार और बारामूला के नाम से जानते हैं उन क्षेत्रों में पहाड़ों के धंसने से ही उस विशालकाय झील का पानी बहकर निकल गया और उसके बाद यह एक मैदानी क्षेत्र बना था। जिसके बाद से यहां धीरे-धीरे मानव सभ्यता का विकास होने लगा और यह क्षेत्र रहने लायक बन गया।
कश्मीर का रामायण और महाभारतकालीन रहस्यमई इतिहास | History of Kashmir in Hindi
जहां एक ओर जम्मू और कश्मीर का उल्लेख महाभारत जैसे महान ग्रंथ में भी मिलता है। वहीं अखनूर के एक क्षेत्र से प्राप्त हड़प्पा कालीन अवशेषों तथा मौर्य, कुषाण और गुप्त काल की कलाकृतियों से जम्मू के प्राचीन इतिहास का पता चलता है।
यदि हम वाल्मीकि रामायण की माने तो कंबोज वाल्हीक और वनायु देश के पास स्थित है। और अगर हम आधुनिक इतिहास की माने तो कश्मीर के राजौरी से तजाकिस्तान तक का हिस्सा ही कंबोज हुआ करता था जिसमें आज का पामीर का पठार और बदख्शां भी शामिल हैं।
कंबोज महाजनपद का विस्तार कश्मीर से हिन्दूकुश तक हुआ करता था, जिसमें इसके उस समय के दो नगर राजपुर और नंदीपुर सबसे प्रमुख थे। प्राचीन काल के उस राजपुर को ही आजकल हम राजौरी के नाम से जानते हैं। इसमें पाकिस्तान का हजारा नामक जिला भी कंबोज के अंतर्गत ही आता था।
कश्मीर का प्राचीन और पौराणिक इतिहास सर्वप्रथम यहां के मूल निवासी कश्मीरी पंडितों से जुड़ा हुआ है जिसमें इन कश्मीरी पंडितों की संस्कृति लगभग 6,000 साल से भी ज्यादा पुरानी मानी गई है इसीलिए वे ही कश्मीर के मूल निवासी माने जाते हैं।