सनातन धर्म, मूल रूप से वैदिक धर्म है जो अपने वैकल्पिक नाम हिन्दू धर्म के नाम से जाना जाता है। वैदिक काल में भारतीय उपमहाद्वीप के धर्म के लिये ‘सनातन‘ नाम मिलता है।
‘सनातन‘ का अर्थ है – शाश्वत या ‘हमेशा बना रहने वाला‘, अर्थात् जिसका न आदि है न अन्त। चाहे फिर आप इसे धर्म मान लें या फिर एक जीवन पद्धति। सनातन मूलतः भारतीय उपमहाद्वीप से उत्पन्न एक जीवन पद्धति है, जो किसी जमाने में पूरे संसार में व्याप्त था।
सनातन जीवन पद्धति का लक्ष्य होता था प्रकृति से प्रेम, और आज भी वही है। सनातन किसी राष्ट्र या किसी भी देश की सीमाओं तक ही सीमित नहीं रहा और ना ही आज भी है बल्कि यह तो संपूर्ण विश्व और संपूर्ण मानव जीवन के हित के लिए होता है।
मध्य युगिन दौर के बाद से उत्पन्न हुए विभिन्न प्रकार के मत और संप्रदायों के कारण विभिन्न प्रकार से हुए भारी धर्मान्तरणों और रक्तपातों के बाद भी या फिर भौगोलिक और राजनीतिक कारणों के बाद भी विश्व के इस क्षेत्र, और भारतीय उपमहाद्वीप की बहुसंख्यक आबादी इसी धर्म में आस्था रखती है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह आबादी जानती है कि – ‘सनातन‘ का अर्थ है – शाश्वत या ‘हमेशा बना रहने वाला‘, अर्थात् जिसका न आदि है न अन्त।
सनातन प्रेमी यह बात जानता है कि प्रकृति ही ईश्वर है और ईश्वर ही प्रकृति है। और यदि ईश्वर और प्रकृति दोनों ही जीवन के लिए आवश्यक है तो इसका अर्थ है कि यही सत्य है, यही सनातन है। तो फिर किसी अन्य अस्थाई मत या संप्रदाय से वह लाभ कहां मिलने वाला है जो सनातन से मिलता है।
अब सवाल उठता है कि यदि ‘सनातन‘ का अर्थ इतना विस्तारपूर्ण है और संपूर्ण जीवन ही सनातन है तो फिर शाश्वत या ‘हमेशा बना रहने वाला सनातन आज कहां है? सनातन से यह हिन्दू कैसे बन गया?
दरअसल, सनातन आज भी सनातन ही है। लेकिन, भोगौलिक और राजनीतिक कारणों से यह विकृत होकर सनातन से हिंदू बन गया है। और इस नये नाम की उत्पत्ति में मुख्य भूमिका निभाई ईरान ने।
ईरान से आने यात्रियों को यहां के लिए सिन्धु नदी पार करनी पड़ती थी। और क्योंकि उच्चारण में वे ‘स‘ को ‘ह‘ कहते थे और लिखते थे इसी लिए उनकी देखा-देखी अरब की ओर से आने वाले हमलावर भी तत्कालीन भारतवासियों को हिन्दू और यहां के धर्म को हिन्दू धर्म कहने लगे। तभी से भारतवासियों के लिए हिन्दू शब्द का प्रचलन शुरू हो गया।
इसीलिए भारत के अपने साहित्य में भी हिन्दू शब्द अधिक पुराना नहीं है। जबकि हिन्दू शब्द आज से कोई 1,000 वर्ष पहले ही संबोधन में लागया गया मिलता है, उसके पहले नहीं।
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