Skip to content
15 May 2025
  • Facebook
  • Twitter
  • Youtube
  • Instagram

DHARMWANI.COM

Religion, History & Social Concern in Hindi

Categories

  • Uncategorized
  • अध्यात्म
  • अपराध
  • अवसरवाद
  • आधुनिक इतिहास
  • इतिहास
  • ऐतिहासिक नगर
  • कला-संस्कृति
  • कृषि जगत
  • टेक्नोलॉजी
  • टेलीविज़न
  • तीर्थ यात्रा
  • देश
  • धर्म
  • धर्मस्थल
  • नारी जगत
  • पर्यटन
  • पर्यावरण
  • प्रिंट मीडिया
  • फिल्म जगत
  • भाषा-साहित्य
  • भ्रष्टाचार
  • मन की बात
  • मीडिया
  • राजनीति
  • राजनीतिक दल
  • राजनीतिक व्यक्तित्व
  • लाइफस्टाइल
  • वंशवाद
  • विज्ञान-तकनीकी
  • विदेश
  • विदेश
  • विशेष
  • विश्व-इतिहास
  • शिक्षा-जगत
  • श्रद्धा-भक्ति
  • षड़यंत्र
  • समाचार
  • सम्प्रदायवाद
  • सोशल मीडिया
  • स्वास्थ्य
  • हमारे प्रहरी
  • हिन्दू राष्ट्र
Primary Menu
  • समाचार
    • देश
    • विदेश
  • राजनीति
    • राजनीतिक दल
    • नेताजी
    • अवसरवाद
    • वंशवाद
    • सम्प्रदायवाद
  • विविध
    • कला-संस्कृति
    • भाषा-साहित्य
    • पर्यटन
    • कृषि जगत
    • टेक्नोलॉजी
    • नारी जगत
    • पर्यावरण
    • मन की बात
    • लाइफस्टाइल
    • शिक्षा-जगत
    • स्वास्थ्य
  • इतिहास
    • विश्व-इतिहास
    • प्राचीन नगर
    • ऐतिहासिक व्यक्तित्व
  • मीडिया
    • सोशल मीडिया
    • टेलीविज़न
    • प्रिंट मीडिया
    • फिल्म जगत
  • धर्म
    • अध्यात्म
    • तीर्थ यात्रा
    • धर्मस्थल
    • श्रद्धा-भक्ति
  • विशेष
  • लेख भेजें
  • dharmwani.com
    • About us
    • Disclamar
    • Terms & Conditions
    • Contact us
Live
  • धर्मस्थल
  • विशेष

जानिए, इल्तुत्मिश ने कैसे किया था महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का अपमान!

admin 19 December 2021
Mahakaleshwar Jyotirlinga
Spread the love

अजय सिंह चौहान || उज्जैन यानी प्राचीन नगरी उज्जयिनी या अवंतिका को हिंदू धर्म के बारह ज्योतिर्लिंगों में तीसरा स्थान रखने वाले भगवान महाकालेश्वर और सम्राट विक्रमादित्य की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर आज मध्य प्रदेश के लिए ही नहीं बल्कि संपूर्ण सनातन के लिए भी धार्मिक पर्यटन के लिहाज से अहम माने जाने वाला शहर है।

स्वयंभू माने जाने वाले महाकाल ज्योतिर्लिंग के नाम के विषय में माना जाता है कि जिस स्थान पर यह ज्योतिर्लिंग मंदिर है कभी यहां बहुत बड़ा और घना वन हुआ करता था जिसको महाकाल वन के नाम से जाना जाता था और इसी से ज्योतिर्लिंग का नाम भी महाकाल ज्योतिर्लिंग पड़ा है। जबकि कुछ विद्धानों का मत है कि कालों के काल कहे जाने वाले महाकाल ज्योतिर्लिंग के कारण ही उस घने वन का नाम भी महाकाल वन के नाम से विख्यात हुआ था। पुराणों में संदर्भ मिलते हैं कि महाकाल ज्योतिर्लिंग की स्थापना प्रजापिता ब्रह्माजी के द्वारा हुई थी।

पौराणिक साक्ष्यों के आधार पर माना जाता है कि महाकाल का प्रारंभिक या प्रागैतिहासिक मन्दिर पूर्ण रूप से लकड़ी का बना हुआ था। राजपूत युग से पूर्व में जो मन्दिर था, उसके विषय में जो भी संदर्भ मिलते हैं, उनके अनुसार मन्दिर विशाल एवं दर्शनीय था।

इतिहास बताता है कि गुप्त काल के पूर्व के मन्दिरों पर कोई शिखर नहीं होते थे, उनकी छत सपाट होती थी और संभवतः इसी कारण से शिवभक्त महाकवि कालिदास ने अपनी रचना रघुवंशम् में महाकाल मंदिर को निकेतन भी कहा गया है। कालिदास द्वारा रचित पूर्व मेघ में भी उज्जयिनी के विवरण से उस समय के महाकालेश्वर मन्दिर और उसके कलाबोध का अद्भुत एवं मनोहारी विवरण प्राप्त होता है।

ईसवीं पूर्व द्वितीय शताब्दी के अनेकों प्रमाण आज भी महाकाल मंदिर परिसर में हैं। गुप्त काल के उपरांत अनेक राजवंशों ने उज्जयिनी की धरती पर राज किया था, जिनमें उत्तर गुप्त, कलचुरि, पुष्यभूति, गुर्जर-प्रतिहार और राष्ट्रकूट जैसे कुछ नाम प्रमुखता से मिलते हैं। इन सब ने भगवान महाकाल के सम्मुख अपना शीश झुकाया और मंदिर के लिए भरपूर दान भी दिए।

दसवीं सदी के राजशेखर और ग्यारहवी शदी के राजा भोज ने भी महाकाल मंदिर में कई प्रकार से अपने-अपने योगदान दिए थे और इन्हीं के वंशज राजा भोजदेव ने भी महाकाल मन्दिर में कुछ विशेष योगदान दिये थे। कहा जाता है कि सम्राट विक्रमादित्य ने महाकालेश्वर का स्वर्ण शिखर-सुशोभित बड़ा और भव्य मन्दिर बनवाया था, जिसका ग्वारहवीं शताब्दी में परमार वंश के भोजराजा द्वारा बड़े पैमाने पर जीर्णोद्धार करवाया गया था।

उज्जैन के महत्व को समझने के लिए एक बार अवश्य पधारें | Importance of Ujjain in Hinduism

समय के साथ-साथ परमार काल में निर्मित और जीर्णोद्धार किये गए उस समय के प्रमुख और भव्य महाकालेश्वर मन्दिर में शताब्दियों तक छोटे-मोटे बदलाव और निर्माण के कार्य Mahakaleshwar Temple Ujjainहोते रहे थे। और सन 1235 ई. में अरब से आये क्रूर शासक शमशुद्दीन इल्तुत्मिश द्वारा नष्ट किए गए परमारों की वह मन्दिर वास्तुकला भूमिज स्थापत्य निर्माण शैली की होती थी (भूमिज निर्माण शैली मुख्य रूप से नागर शैली की एक उप-शैली है और राजस्थान के कुछ प्राचीन मंदिरों में इस शैली की झलक देखने को मिलती है) जो आज भी इस क्षेत्र में देखने को मिल जाती है। पुरातत्वज्ञानी बताते हैं कि उस काल में बने महाकाल मन्दिर के जो भी अवशेष आज मन्दिर परिसर और आसपास के क्षेत्रों में उपलब्ध हैं, उनको देखकर यह निष्कर्ष निकलता है कि यह मन्दिर भी निश्चित ही भूमिज स्थापत्य शैली में निर्मित रहा होगा।

सन 1000 से 1300 ई. तक संपूर्ण मालवा क्षेत्र पर परमार राजाओं का शासन रहा और इस दौरान उनकी राजधानी उज्जैन ही रही। जबकि इसी समय काल में उधर दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्रों में उथल-पुथल का दौर चल रहा था। जिसका बुरा असर मालवा क्षेत्र पर भी पड़ना तय था, और दिल्ली के दास एवं खिलजी वंश के शासकों ने मालवा क्षेत्र पर भी आक्रमण कर दिया, जिससे परमार राजाओं के पैर उखड़ गये और उनके वंश का पतन हो गया।

सन 1235 ई. में दिल्ली का क्रूर शासक शमशुद्दीन इल्तुत्मिश विदिशा पर जीत हासिल करता हुआ उज्जैन की तरफ आया। इल्तुत्मिश ने उज्जैन को बुरी तरह से लूटा और महाकाल मंदिर सहित अन्य धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के समृद्ध स्थानों को निशाना बनाया। महाकालेश्वर मंदिर को लुट कर उसने उसे बुरी तरह से नष्ट कर दिया और कई मूर्तियों को विखंडित कर दिया। और जो मूर्तियां मंदिर के मलबे में दब गई थीं वे ही शेष बची रहीं।

ऐतिहासिक तथ्य बताते हैं कि मंदिर के गर्भगृह में स्थापित उस प्राचीन और प्रमुख शिवलिंग को मंदिर के पीछे स्थित कोटितीर्थ कुण्ड में फिंकवा दिया। कहा जाता है कि उसने मंदिर परिसर और उसके के आस-पास के कई प्राचीन मंदिरों को भी भारी नुकसान पहुंचाया और उनका अस्तित्व ही नष्ट कर दिया था।

शमशुद्दीन इल्तुत्मिश के द्वारा इस प्राचीन मंदिर का विध्वंस किए जाने के बाद से यहां जो भी शासक रहे, उन्होंने इस मंदिर के जीर्णोद्धार में कुछ न कुछ योगदान दिया। हाल ही में जब महाकाल मंदिर परिसर में कुछ नये और अन्य प्रकार के निर्माण कार्यों के लिए खुदाई का कार्य चल रहा था तब उन प्राचीन मंदिरों के अवशेष और मूर्तियों सहीत कई प्रकार के सामान भी प्राप्त हुए हैं।

आज भी संसार के अधिपति माने जाते हैं भगवान महाकालेश्वर | Mahakaleshwar Jyotirling Mandir

फिलहाल हमें ऐसे कोई ठोस ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिलते जिनके आधार पर यह कहा जा सके कि वर्तमान में हम जिस ज्योतिर्लिंग की पूजा करते हैं यह वही स्वयंभू ज्योतिर्लिंग है जिसे कोटितीर्थ कुण्ड में फिंकवा दिया गया था या उसके स्थान पर दूसरे ज्योतिर्लिंग की प्राणप्रतिस्था की गई थी। हालांकि अधिकतर लोग यही बताते हैं कि यह वही प्राचीन ज्योतिर्लिंग है और बाद में इसी की पुनः प्राण-प्रतिष्ठा करायी गयी थी।

इतिहास ने करवट ली और एक लंबे समय के बाद सन 1690 ई. में मालवा क्षेत्र पर मराठा शासकों ने आक्रमण करके, 29 नवंबर, 1728 को पूर्ण रूप से यहां अपना अधिकर कायम कर लिया। इस दौरान उज्जैन को एक बार फिर से उसकी खोई हुई गरिमा लौटाने का अवसर मिला। और सन 1731 से 1809 तक यह धार्मिक नगरी मालवा की राजधानी बनी रही।

सिंधिया शासकों ने उज्जैन को अपनी राजधानी बनाया। मराठी राज्य स्थापित होते ही सन 1737 के लगभग उज्जैन में सिंधिया राज्य के प्रथम संस्थापक राणाजी सिंधिया ने यहाँ का राजकाज अपने दीवान रामचन्द्रराव शेणवी के हाथो में सोंप दिया।

रामचन्द्रराव शेणवी के पास दौलत की कमी नहीं थी, मगर वे निःसंतान थे, इसलिए कई विद्धानों और पंडितों के परामर्श और सुझावों के बाद उन्होंने अपनी सम्पत्ति को धार्मिक कार्यों में लगाने का संकल्प लिया। और इसी सिलसिले में उन्होंने उज्जैन के इस वर्तमान महाकाल मन्दिर का पुनर्निर्माण करवाया। जो अठारहवीं सदी के चैथे-पाँचवें दशक में बन कर तैयार हुआ।

About The Author

admin

See author's posts

1,241

Related

Continue Reading

Previous: दुनियाभर के पर्यटकों के लिए इतना महत्वपूर्ण क्यों है गढ़ गणेश मंदिर
Next: भगवान महाकालेश्वर के मंदिर की संरचना से जुड़े ऐतिहासिक तथ्य

Related Stories

What does Manu Smriti say about the names of girls
  • कला-संस्कृति
  • विशेष

कन्या के नामकरण को लेकर मनुस्मृति क्या कहती है?

admin 9 May 2025
Harivansh Puran
  • अध्यात्म
  • विशेष

श्रीहरिवंशपुराण में क्या लिखा है?

admin 20 April 2025
ham vah hain jinakee pahachaan gaatr (shareer) se nahin apitu gotr (gorakshaavrat) se hai
  • विशेष
  • हिन्दू राष्ट्र

कोई राजनीतिक दल गाय के पक्ष में नहीं, अब ये स्पष्ट हो गया है 

admin 16 April 2025

Trending News

कन्या के नामकरण को लेकर मनुस्मृति क्या कहती है? What does Manu Smriti say about the names of girls 1

कन्या के नामकरण को लेकर मनुस्मृति क्या कहती है?

9 May 2025
श्रीहरिवंशपुराण में क्या लिखा है? Harivansh Puran 2

श्रीहरिवंशपुराण में क्या लिखा है?

20 April 2025
कोई राजनीतिक दल गाय के पक्ष में नहीं, अब ये स्पष्ट हो गया है  ham vah hain jinakee pahachaan gaatr (shareer) se nahin apitu gotr (gorakshaavrat) se hai 3

कोई राजनीतिक दल गाय के पक्ष में नहीं, अब ये स्पष्ट हो गया है 

16 April 2025
‘MAAsterG’: जानिए क्या है मिशन 800 करोड़? Masterg 4

‘MAAsterG’: जानिए क्या है मिशन 800 करोड़?

13 April 2025
हम वह हैं जिनकी पहचान गात्र (शरीर) से नहीं अपितु गोत्र (गोरक्षाव्रत) से है ham vah hain jinakee pahachaan gaatr (shareer) se nahin apitu gotr (gorakshaavrat) se hai 5

हम वह हैं जिनकी पहचान गात्र (शरीर) से नहीं अपितु गोत्र (गोरक्षाव्रत) से है

30 March 2025

Total Visitor

077472
Total views : 140810

Recent Posts

  • कन्या के नामकरण को लेकर मनुस्मृति क्या कहती है?
  • श्रीहरिवंशपुराण में क्या लिखा है?
  • कोई राजनीतिक दल गाय के पक्ष में नहीं, अब ये स्पष्ट हो गया है 
  • ‘MAAsterG’: जानिए क्या है मिशन 800 करोड़?
  • हम वह हैं जिनकी पहचान गात्र (शरीर) से नहीं अपितु गोत्र (गोरक्षाव्रत) से है

  • Facebook
  • Twitter
  • Youtube
  • Instagram

Copyright ©  2019 dharmwani. All rights reserved