अजय सिंह चौहान || मध्य प्रदेश के देवास जिले में नर्मदा नदी के तट पर बसे नेमावार नामक एक प्राचीन और छोटे से कस्बे की एक छोटी-सी पहाड़ी पर कौरवों और पांडवों के द्वारा स्थापित किया गया “सिद्धनाथ शिवलिंग मंदिर” एक ऐसा चमत्कारिक मंदिर है जो द्वापर युग का होने के कारण इस क्षेत्र के लिए आस्था और विश्वास का प्रमुख केन्द्र माना जाता है। सिद्धनाथ शिवलिंग मंदिर के नाम के बारे में एक अन्य किंवदंती यह भी है कि इस शिवलिंग की स्थापना द्वापर युग से भी पहले हो चुकी थी और जिन चार सिद्ध ऋषियों ने इसकी स्थापना की थी उनका नाम – सनक, सनन्दन, सनातन और सनत कुमार था। इसी कारण इस शिवलिंग का नाम सिद्धनाथ पड़ा था। और अब यह मंदिर ‘सिद्धनाथ महादेव’ या ‘सिद्धेश्वर महादेव’ के नाम से जाना जाता है।
नर्मदा नदी के तट पर स्थित इस ‘सिद्धनाथ महादेव’ या ‘सिद्धेश्वर महादेव मंदिर’ के बारे में कहा जाता है कि द्वापर युग में कौरवों और पांडवों के बीच किसी बात पर एक ही रात में मंदिर निर्माण करने की शर्त लगी। कौरव की संख्या अधिक थी इसलिए उन्होंने एक ही रात में यह काम सिद्ध कर दिखाया था, इसलिए इस मंदिर को नाम दिया गया सिद्धनाथ शिव मंदिर। जबकि पांडवों की संख्या कम थी इसलिए उनका मंदिर अधूरा ही बन पाया था और वह आधा-अधूरा मंदिर यहां आज भी देखा जा सकता है।
नेमावार के मणिगिरी पर्वत पर पांडवों द्वारा बनाया गया वह आधा-अधुरा मंदिर आज उतना प्रसिद्ध नहीं है जितना कि कौरवों के द्वारा बनाया गया सिद्धनाथ शिवलिंग मंदिर प्रसिद्ध है। इस मंदिर को लेकर एक और मान्यता है जिसके अनुसार कहा जाता है कि जब कौरवों ने एक ही रात में मंदिर का निर्माण करने के बाद अभिमानवश पांडवों को ताने मारने शुरू कर दिये।
कौरवों के ताने सुन कर भीम को क्रोध आ गया और उसने कौरवों के द्वारा बनाये गए उस मंदिर को घुमा कर उसका मुख पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर कर दिया जो आज भी वैसा का वैसा ही है। इसीलिए कहा जाता है कि सामान्यतः हिंदू मंदिरों का मुख पूर्व दिशा की ओर होता है लेकिन इस मंदिर का मुख पूर्व की बजाय पश्चिम की ओर है।
स्थानिय एवं अन्य श्रद्धालुओं का मानना है कि मंदिर के गर्भगृह में स्थित शिवलिंग एक चमत्कारिक शिवलिंग है, क्योंकि जब सिद्धेश्वर महादेव के इस चमत्कारिक शिवलिंग पर जल अर्पण किया जाता है, तो उसमें से ‘ओम‘ शब्द की मध्यम प्रतिध्वनि उत्पन्न होती है।
अनेकों हिंदू और जैन पुराणों में इस प्राचीन नेमावर तीर्थ का उल्लेख मिलता है। इन पुराणों के अनुसार नेमावर सब पापों का नाश करने वाला एक सिद्धिदाता तीर्थस्थल है। इसके अलावा नेमावर के आस-पास के क्षेत्रों में समय-समय पर की गई खुदाईयों के दौरान प्राचीनकाल के अनेकों पुरातात्विक अवशेष पाये गये हैं जो आज भी मौजूद हैं।
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कई लोगों का मानना है कि सिद्धनाथ मंदिर के पास नर्मदा किनारे की रेती पर कई बार सुबह-सुबह कुछ दिव्य और चमत्कारिक पदचिन्ह भी नजर आते हैं। जबकि कुछ स्थानिय और ग्रामिणों का मानना है कि पहाड़ी के अंदर स्थित प्राचीन गुफाओं और कंदराओं में वर्षों से तपस्या करने वाले कुछ सिद्ध साधु-सन्यासी प्रातःकाल यहां नर्मदा नदी में स्नान करने के लिए आते हैं संभवतः उन्हीं के पदचिन्ह हों। इन पदचिन्हों को लेकर यहां मान्यता है कि दूर-दूर से आकर कई कुष्ठ रोगी इन चमत्कारिक पदचिन्हों पर श्रद्धापूर्वक लोट लगाते हैं और जल्दी ठीक होने की कामना करते हैं।
ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार, इस मंदिर का जिर्णोद्धार 10वीं और 11वीं सदी के चंदेल और परमार राजाओं के द्वारा करवाया गया था। उसके बाद से आज तक इसमें कोई विशेष कार्य नहीं किया गया है। इसकी स्थापत्य कला और इसमें किया गया नक्काशीदार काम यहां आने वाले श्रद्धालुओं और पर्यटकों को सबसे ज्यादा आकर्षित करता है। मंदिर को देखकर ही इसकी प्राचीनता का पता चल जाता है। इस मंदिर के ऊपरी तल पर ‘ओमकारेश्वर‘ और निचले तल पर ‘महाकालेश्वर‘ शिवलिंग स्थित हैं।
मंदिर संरचना के स्तंभों और दीवारों पर उकेरी गई भगवान शिव, गणेश, इंद्राणी, यमराज, भैरव और देवी चामुंडा की कई सुंदर मूर्तियां बड़ी सुंदर और मनमोहक लगतीं हैं। लेकिन, दूर्भाग्य यह है कि दीवारों पर उकेरा गया अधिकतर नक्काशीदार काम और मूर्तियां मुगलकाल के दौरान खंडित कर दिया गया था। इसलिए कई मूर्तियों को तो ठीक से पहचानना भी मुश्किल है। यहां आने वाले पर्यटक, श्रद्धालु और कई मूर्तिकार इन मूर्तियों की कला और उसके महत्व को ही निहारते रहते हैं। यह मंदिर भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के संरक्षण में है। मंदिर के पास ही में ऐतिहासिक महत्व के अन्य मंदिरों में नर्मदा माता मंदिर और गणेश मंदिर भी बने हुए हैं।
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नर्मदा नदी के तट पर नेमावार के नाम से बसा यह छोटा-सा कस्बा आज भले ही दुनिया के लिए उतना प्रसिद्ध नहीं है लेकिन, पौराणिक काल से ही धर्म, आस्था और विश्वास का प्रमुख केन्द्र होने के साथ-साथ एक महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध व्यापारिक केंद्र रहा है और आज भी इसके पौराणिकता और ऐतिहासिक साक्ष्य राज्य शासन के रिकाॅर्ड में मौजूद हैं। राज्य शासन के रिकाॅर्ड कहते हैं कि इस गांव का प्राचीन नाम नाभिपुर या नाभापट्टम हुआ करता था।
नर्मदा नदी के किनारे बसा नेमावर शहर इंदौर से लगभग 130 किमी और भोपाल से 170 किमी की दूरी पर स्थित है। हरदा रेलवे स्टेशन से नेमावार की दूरी महज 22 किलोमीटर रह जाती है। यहां का सबसे नजदीकी हवाईअड्डा इंदौर का देवी अहिल्या बाई होलकर हवाईअड्डा है, जो यहां से लगभग 130 किलेमीटर की दूरी पर है।
परिवार के साथ यहां जाने के लिए सबसे अच्छा समय सितंबर से मार्च के बीच का हो सकता सकता है। इसके अलावा यहां बारिश के मौसम में मौसम बहुत ही सुहाना हो जाता है इसलिए अधिकतर पर्यटक बारिश के मौसम में भी देखे जा सकते हैं।