देश की राजधानी दिल्ली से करीब 190 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश में स्थित सम्भल भले ही किसी समय में भगवान शिव की नगरी और सनातन धर्म के लिए एक पवित्र और प्रसिद्ध तीर्थ रहा हो। लेकिन, वर्तमान में यह एक घनी मुस्लिम आबादी वाला क्षेत्र बन चुका है। इसी प्रकार से तमाम इतिहासकारों और उनके दस्तावेजों से ज्ञात होता है कि सम्भल में स्थित एक प्रसिद्ध मस्जिद को आज भले ही जामा मस्जिद के नाम से जाना जाता है, लेकिन वास्वत में वह एक ऐसा मंदिर हुआ करता था जिसका जिक्र और अस्तित्व हमारे पौराणिक ग्रंथों में हरिहर मंदिर के नाम से आज भी मौजूद है।
इतिहास, इतिहासकारों और ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर सुदर्शन न्यूज के संपादक और मालिक सुरेश चव्हाण के. ने भी अपने एक कार्यक्रम में संभल की इस जामा मस्जिद के कई पहलुओं को उजागर किया और बताया कि किस प्रकार से इससे जुड़े इतिहास को दबाने का प्रयास किया गया और कैसे आज वहां इसे एक मजहब विशेष ने अपना लिया है।
संभल में स्थित हिन्दुओं की आस्था का प्रतिक हरिहर मंदिर कब और कैसे एक मस्जिद में परिवतर्तित हो गया इस बात की जानकारी के तौर पर हम अगर इतिहास में जाएं तो पता चलता है कि इसको बचाने के लिए वैसे तो कई बार हिंदू राजाओं और मुस्लिम आक्रांताओं के बीच छोटे-बड़े युद्ध हुए, लेकिन जो सबसे निर्णायक युद्ध हुआ वह था अफगान से आये मुस्लिम आक्रांता मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान बीच का एक भीषण युद्ध। जिसमें मोहम्मद गौरी ने जीत हासिल की और इसे अपने कब्जे में ले लिया। ऐतिहासिक तथ्य बताते हैं कि इस युद्ध में और उसके बाद भी मंदिर के अस्तित्व को बचाने के लिए लाखों हिंदुओं ने अपना बलिदान दिया।
बताया जाता है कि मोहम्मद गौरी ने इसी सम्भल और यहां के हरिहर मंदिर को जीतने और लूटने के लिए 17 बार लड़ाईयां लड़ी थीं। लेकिन, जब मोहम्मद गौरी इसके बाद भी सफल नहीं हो सका तो उसने पृथ्वीराज चौहान की ताकत को कम करने के लिए उसके सहायक राजाओं और अन्य राज्यों को कमजोर करना शुरू कर दिया। और जब पृथ्वीराज चौहान के सहायक राजा कमजोर होने लगे तो उसका फायदा उठाकर मौहम्मद गौरी ने 17वीं बार में पृथ्वीराज चौहान को हरा दिया। पृथ्वीराज चौहान सम्भल के उस 17वें युद्ध में परास्त हो गए थे।
पृथ्वीराज चौहान की हार होते ही मोहम्मद गौरी की लुटैरी सेना ने सम्भल के सबसे प्रमुख और सबसे समृद्धशाली हरिहर मंदिर सहित अन्य कई मंदिरों में भारी लूटपाट की और मूर्तियों को भी खंडित कर दिया। इस दौरान उसने हरिहर मंदिर के गर्भगृह को पूरी तरह से तहस-नहस करवा कर ध्वस्त करवा दिया और उस स्थान पर सनातनियों का प्रवेश भी रोक दिया।
उन मुगल आक्रमणकारियों को इस बात का अंदेशा था कि सनातन के लिए सम्भल का बहुत बड़ा महत्व है इसलिए भविष्य में इस्लाम के लिये यह स्थान हानिकारक हो सकता है। इसलिए, उन लोगों ने यहां भारी संख्या में हिंदू समुदाय का धर्म परिवर्तन करवाना शुरू कर दिया और जो लोग धर्म परिवर्तन से बचते थे उन हिंदूओं का कत्लेआम करना शुरू कर दिया।
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इसके अलावा भी सम्भल ने अपने इतिहास में न जाने कितने ही छोटे-बड़े युद्ध देखे और अपमानों को झेला है। शेरशाह सूरी और बाबर के शासनकाल के दौरान भी सम्भल में कई मन्दिरों को तोड़ा और मूर्तियों को खण्डित किया गया।
जानकार मानते हैं कि पृथ्वीराज चौहान के शासन काल तक सम्भल शहर के बिचोंबिच सनातन धर्म और अखण्ड भारत के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक और पौराणिक युग का जो हरिहर मंदिर हुआ करता था, वही मंदिर अब यहां जामा मस्जिद के नाम से जाना जाता है।
इतिहासकारों, जानकारों और स्थानीय लोगों के अनुसार मौहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को परास्त कर संभल के जिस हरिहर मंदिर को नष्ट कर दिया था और उसके स्थान पर जिस मस्जिद का ढांचा खड़ा करवा दिया था उस मस्जिद के अंदर आज भी उसी हरिहर मंदिर के वे अवशेष इसलिए मौजूद हैं क्योंकि उस मंदिर को पूरी तरह से नष्ट नहीं किया गया था। बल्कि, उस मंदिर की मुख्य इमारत के मात्र शिखर को ही तोड़ कर उसके ऊपर गुम्बद बनाकर उसको मस्जिद का आकार दे दिया।
स्थानीय लोगों का कहना है कि सम्भल की इस मस्जिद में आज भी ऐसे अवशेष देखने को मिलते हैं जिनसे यह सिद्ध होता है कि यहां पौराणिक काल का कोई मंदिर हुआ करता था और उसमें पूजा-पाठ होती आ रही थी। यही कारण है कि संभल की इस जामा मस्जिद को यहां के हिन्दू समाज के लोग आज भी हरिहर मंदिर कह कर ही संबोधित करते हैं। जबकि इससे भी बड़े आश्चर्य की बात तो यह है कि यहां के मुस्लिम समाज में भी यह मस्जिद हरिहर मस्जिद के नाम से जानी जाती है।
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दरअसल, जब पृथ्वीराज चौहान के मित्र और महामंत्री चंदबरदाई ने जब पृथ्वीराज चौहान को बताया कि शास्त्रों के अनुसार संभल नामक इसी स्थान पर भगवान विष्णु का अवतार होने वाला है, तब पृथ्वीराज चौहान ने इस स्थान को अखण्ड भारत का एक धार्मिक और पर्यटन स्थल बना कर यहां अन्य अनेकों प्रकार के विकास कार्य किये। जिसमें सबसे प्रमुख हरिहर मंदिर का जिर्णोद्वार सहीत अन्य अनेकों प्रकार के कुएं और तालाबों का निर्माण करवाया। इसके अलावा पृथ्वीराज चौहान ने इसको सैन्य छावनी बनाकर सम्भल को अपने राज्य की एक छोटी राजधानी के तौर पर भी दर्जा दिया था।
पृथ्वीराज चौहान के बाद जब अखंड भारत पर मुगलों के आक्रमणों का दौर चल रहा था उस समय से लेकर देश की आजादी तक भी सम्भल को सामरिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता रहा। आगरा व दिल्ली के निकट होने के कारण यहां कई प्रकार की सामरिक और राजनैतिक षड्यंत्रों की उथल-पुथल मची हुई रहती थी। ऐसे में हर राजा और राज्य के लिए सम्भल का सामरिक महत्व बढ़ जाता था।
सम्भल के लोगों का कहना है कि कुछ तो स्थानीय लोगों ने और कुछ यहां के स्थानीय प्रशासन और प्रदेश की सरकारों ने यहां की कई ऐतिहासिक और पौराणिककाल की अपनी ही धरोहरों को संवारने के प्रति उदासीनता और लापरवाही को उजागर किया है। जबकि आज भी यह क्षेत्र पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व के रूप में प्रदेश ही नहीं बल्कि देश के महत्वपूर्ण पर्यटन स्थलों में बदल सकता है।
– अजय सिंह चौहान