
अजय सिंह चौहान || अपने दूसरे कार्यकाल में अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ लेते ही डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी उन शक्तियों को लागू करना प्रारंभ कर दिया है जिनके लिए वे पिछले कार्यकाल में तड़प रहे थे। ट्रंप ने दुनिया को दिखा दिया है कि यदि राष्ट्रवाद की सही परिभाषा देखनी और सीखनी है तो आज के अमेरिका से सीखें। वैसे तो, उनकी अनेकों ऐसी शक्तियां है जिनका यहां उल्लेख किया जा सकता है किंतु यदि भारत के संदर्भ में देखा जाये तो यहां हमें अवैध प्रवासियों से जुड़ी उन बातों का उल्लेख सबसे अधिक करना चाहिए अर्थात अमेरिका में रहने वाले अवैध प्रवासियों को वापस भेजने की वह प्रक्रिया शुरू हो गई है जिसके इंतजार में हम भारतीय भी पिछले 10 वर्षों से तड़प रहे हैं।
व्हाइट हाउस ने अवैध प्रवासियों से जुड़ी ऐसी कई तस्वीरें शेयर करते हुए इसकी पुष्टि की है और अन्य देशों को भी संदेश दिया है कि अब अन्य सभी राष्ट्रवादी नेताओं को भी अपने अपने-अपने देशों के बारे में सोचना ही होगा। व्हाइट हाउस की तरफ से एक्स पर जो तस्वीरें शेयर की गई हैं, उनमें अवैध प्रवासियों को अमेरिकी सेना के विमानों में पंक्तिबद्ध चढ़ते हुए देखा जा सकता है। मात्र इतना ही नहीं, अमेरिका ने इसके माध्यम से यह संदेश भी दिया है कि मानवाधिकारों की आड़ में यह एक ऐसा अपराध है जो किसी भी देश के लिए भी मान्य नहीं होना चाहिए।
अवैध प्रवासियों को विमानों में चढ़ते हुए ध्यान से देखने पर एक बात तो स्पष्ट नजर आती है कि उनके हाथों को जंजीरों से बांधकर विमानों में ले जाया जा रहा है। हाथों और पीठ के साथ-साथ इन लोगों के पैरों में भी जंजीरें बंधी हुई दिख रही है। इसका अभिप्राय तो यह है कि अपराधी ये लोग नहीं बल्कि इनके अपने राष्ट्राध्यक्ष ही असली अपराधी हैं जो अपने-अपने देशों की दशा को सुधारने की बजाय अपनी तिजोरियों भरते रहते हैं। आज भले ही ये नागरिक अमेरिका में अवैध हो गये हैं लेकिन इनके अपने देशों के राष्ट्राध्यक्ष इस अपराध के लिए दंड के भागी हैं जो अपने-अपने देशों के साथ राष्ट्रद्रोही राजनीति कर रहे हैं और जनता की सुध भी नहीं ले रहे हैं।
दरअसल, ट्रंप ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान जब अमेरिका में रहने वाले अवैध प्रवासियों पर सख्ती की बात कही थी, तभी से उनके समर्थकों को इस बात की उम्मीद बंधनी शुरू हो चुकी थी कि संभव है कि अब हमारे अच्छे दिन आ जायें और ठीक उसी प्रकार से आज अमेरिका में हो भी रहा है, क्योंकि राष्ट्रपति पद संभालने के तुरंत बाद से ही ट्रंप ने इस पर कार्रवाई शुरू भी कर दीहै जबकि उनके विरोधी इसको मजाक में लेकर चल रहे थे और कह रहे थे कि ऐसा संभव ही नहीं है।
भारत में भी 2014 में इसी प्रकार के वायदे किये जा रहे थे, किंतु इस समय हो रहा है उसका ठीक उलटा। यह सच है कि नेता चाहे जितना भी राष्ट्रवादी हो, लेकिन जब तक वह उन नौकरशाहों के साथ मिलकर अपने मन से उन लाभकारी फैसलों पर ईमानदारी से अमल नहीं कर पायेंगे तब तक ऐसा संभव ही नहीं है। इसे हम भारत की वर्तमान छद्म राष्ट्रवादी राजनीति और नौकरशाही से एक अच्छे उदाहरण के रूप में भी समझ सकते हैं।
भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 के अपने प्रथम चुनाव प्रचार के दौरान तरह-तरह से लुभावने वायदे कर अपने वोटरों को जिस प्रकार से पक्ष में किया था उसके ठीक विपरीत उनकी नीतियां रही हैं। ठीक यही हाल अब तक की अन्य सरकारों के भी रहे हैं। यही हाल दुनिया के अन्य कई देशों के राष्ट्राध्यक्षों के भी रहते आये हैं लेकिन डोनाल्ड ट्रंप ने उस परंपरा को पलटते हुए अपने वायदों के अनुसार ही कार्य करने शुरू कर दिये हैं जिसके कारण दुनियाभर के अन्य कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष सकते में आ गये हैं। आश्चर्य तो इस बात का है कि इसके लिए उन्हें किसी कानून में खास बदलाव भी नहीं करने पड़े हैं।
हालांकि, डोनाल्ड ट्रंप का पहला कार्यकाल आशा के विपरीत रहा था लेकिन इसके लिए वे स्वयं जिम्मेदार नहीं थे बल्कि उनकी नौकरशाही इसके लिए उत्तरदायी थी। नौकरशाही किसी प्रकार से किसी भी नेता को तभी सफल बना सकती है जब वह नेता या तो स्वयं चाहे, अथवा वह नौकरशाही स्वयं भी चाहे।
डोनाल्ड ट्रंप को अपने पिछले कार्यकाल में यह समझ में आ चुका था कि समस्या की जड़ में वे स्वयं नहीं बल्कि उनका नौकरशाह है इसलिए इस बार अपने शपथ ग्रहण के तुरंत बाद पहले ही दिन उन्होंने 80 से अधिक ऐसे निर्णयों पर हस्ताक्षर कर दिये जो अमेरिका के ही नहीं बल्कि दुनिया के अन्य कई देशों के लिए एक उदाहरण का काम कर सकते हैं। दरअसल, उन्होंने अपने कार्यकाल के पहले ही दिन ऐसे अनेकों नौकरशाहों को हटा दिया जिन पर शक था कि वे उनके राष्ट्रवाद के विरोधी हैं जबकि भारत में तो आज भी वही नौकरशाह पदों पर हैं जो राष्ट्रविरोधी नीतियों के लिए जाने जाते हैं। उनमें से कुछ तो सेवानिवृत्त होने के बाद भी वापस बुलवा लिये गये हैं। इसका अभिप्राय तो यही है कि हमारी सरकार को राष्ट्रवाद से कोई लेना-देना ही नहीं है।
अमेरिका द्वारा अवैध प्रवासियों पर सख्ती के विषय को अगर हम भारत देश की नजर से देखें तो यहां इसके ठीक विपरीत परिस्थतियां और आंकड़े उपलब्ध हैं। हालांकि, यहां भारत में तो मात्र राष्ट्रवादी ही नहीं अपितु सनातन धर्म की मूल विचारधारा से जुड़ी राजनीति की स्व-घोषित केन्द्र सरकार चल रही है जिसने अपने अब तक के करीब-करीब हर एक चुनाव प्रचार में सनातन धर्म और शुद्ध राष्ट्रवाद के साथ देशहित से समझौता न करने का संकल्प लिया हुआ है। सरकार के मुखिया नरेंद्र मोदी जी ने कई बार इस बात को मंच से घोषित किया था कि हमारी सरकार बनते ही हम उन लाखों-करोड़ों बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों को वापस भेजने का कार्य शुरू कर देंगे जो भारत में अवैध तरीके से घुसपैठ कर रह रहे हैं और अपराध कर रहे हैं लेकिन आश्चर्य है कि इन वायदों और घोषणाओं को इस समय करीब-करीब 11 वर्ष हो चुका है। इस बीच भारत में इस सरकार को तीसरा कार्यकाल भी मिल चुका है।
एक अनुमान और अन्य नेताओं के बयानों को देखें तो पता चलता है कि कम से कम दो करोड़ से भी कहीं अधिक बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं के अवैध घुसपैठिये भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में रह रहे हैं। हालांकि देश की राजधानी दिल्ली में इनकी संख्या कम नहीं है, लेकिन, सबसे अधिक पश्चिम बंगाल और जम्मू में इनको देखा जा सकता है। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में केन्द्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने दिनांक 17 अगस्त 2022 के अपने एक ट्वीट के माध्यम से इस बात की जानकारी दी थी कि – ‘‘भारत ने हमेशा उन लोगों का स्वागत किया है जिन्होंने देश में शरण मांगी है। एक ऐतिहासिक निर्णय में सभी रुरोहिंग्या रुशरणार्थियों को दिल्ली के बक्करवाला इलाके में EWS फ्लैटों में स्थानांतरित किया जाएगा। उन्हें बुनियादी सुविधाएं, UNHCR आईडी और चैबीसों घंटे @DelhiPolice सुरक्षा प्रदान की जाएगी।’’ इससे तो स्पष्ट हो जाता है कि यह सरकार उनको भेजने में नहीं बल्कि बुलाकर उनका सम्मान और मुफ्त सुविधाएं देने में अधिक विश्वास रखती है।
यदि हम केवल दिल्ली पुलिस की ही बात मानें तो पिछले एक माह के दौरान 15 जिले की पुलिस ने यहां 16,000 संदिग्ध बांग्लादेशियों की सूची तैयार की है। इनसे चरणबद्ध तरीके से पूछताछ व उनके दस्तावेज की जांच की जा रही है जबकि इनमें से भी मात्र 750 संदिग्धों के बारे में पुलिस को पूरा शक है कि ये बांग्लादेशी हो सकते हैं। इनके पास बंगाल, असम, बिहार, झारखंड, दिल्ली, यूपी व हरियाणा के आधार व वोटर कार्ड इत्यादि भी मिले हैं। आश्चर्य तो इस बात का है कि इनमें से भी एक माह के दौरान अब तक केवल 75 बांग्लादेशियों को वापस भेजा गया है। केन्द्र सरकार ने तो सुप्रीस कोर्ट में यह भी कह दिया है कि विदेशी घुसपैठियों का आकलन करना संभव नहीं है क्योंकि ऐसे लोग चोरी-छिपे भारत की सीमा में प्रवेश करते हैं अर्थात बाकी सभी को यहां रहने का अधिकार प्राप्त हो चुका है लेकिन सच तो यह है कि एक भी बांग्लादेशी हमारे लिए खतरा हो सकता है लेकिन फिर भी उनको यहां घोषित रूप से सरकारी आवास और अन्य सुविधाएं मुफ्त दी जा रही हैं।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि यदि ये लोग चोरी से भारत की सीमा में प्रवेश करते हैं तो फिर इसकी जिम्मेदारी तो केन्द्र की है कि वह इसके लिए उचित कदम उठाये और उन्हें बाहर करे क्योंकि यह अंतर्राष्ट्रीय मामला बनता है और इसमें केवल केन्द्र सरकार ही कदम उठा सकती है तो फिर वो अन्य पार्टियों की राज्य सरकारों को क्यों निशाना बनाती है?
प्राप्त आंकड़ों के अनुसार मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार के 2005 से 2013 तक के कार्यकाल में कुल 88,792 अवैध घुसपैठियों को बाहर किया गया था जबकि वर्तमान की केन्द्र सरकार ने 2014 से अब तक मात्र 2,566 को ही वापस भेजा है। इन आंकड़ों से स्पष्ट झलक मिलती है कि राष्ट्रवाद के नाम पर एनडीए सरकार ने अपने वोटरों के साथ बहुत बड़ा छल किया है।
हमारी वर्तमान राष्ट्रवादी केन्द्र सरकार का यह तो मात्र एक छोटा सा उदाहरण है। ऐसे ही अनेकों उदाहरण हैं जो अन्य राजनीतिक दलों के लिए भी लागू होते हैं। हालांकि, यह सच है कि वर्ष 2014 के बाद से जितना नुकसान आज तक भारत को हो चुका है उतना संभवतः 1947 के बाद से 2014 तक नहीं हुआ होगा। ऐसे में यहां यह कहा जा सकता है कि राष्ट्रवादी होना या न होना कोई मायने नहीं रखता। ऐसे में हम किस आधार पर किसी भी सरकार को राष्ट्रवादी मान सकते हैं। सनातनधर्मी तो दूर की बात है किंतु फिर भी भारत में जागरूकता के नाम पर आज के मूल सनातनधर्मी इस बात पर विश्वास ही नहीं कर पा रहे हैं कि हमारी सरकारें इस प्रकार की नीति और नीयत पर काम कर रहीं हैं।