आर बी आई के रिपोर्ट के अनुसार 4 जून, 2021 तक भारत की विदेशी मुद्रा भंडार 605 अरब डालर ( लगभग 44 लाख करोड़ रुपए ) की हो गई है । यह अब तक की सर्वाधिक बड़ी मुद्रा भंडार है । 2014 में विदेशी मुद्रा भंडार में सिर्फ 304 अरब डालर थे। पिछले 7 सालों में विदेशी मुद्रा भंडार में दुगने की वृद्धि होना एक बहुत ही सुखद संदेश है और वो भी तब जब हम राफेल, अपाचे सहित कई लाख करोड़ का सैन्य सामग्री विदेशों से खरीद चुके हैं ।
कभी इसी विदेशी मुद्रा के लिए हमारे देश के प्रधानमंत्री चंदशेखर जी ने देश का सोना गिरवी रखा था और उस समय रिजर्व बैंक के गवर्नर प्रख्यात अर्थशास्त्री मन मोहन सिंह ही थे । मनमोहन सिंह के पिछले 2 कार्यकालों में कोई बड़े आयुध खरीद नहीं हुए यहां तक कि देश के रक्षा मंत्री ने संसद में कहा था कि हमारे पास हेलीकॉप्टर खरीदने के भी पैसे नही है और मन मोहन सिंह ने कहा था कि पैसे पेरो पर नहीं उगते हैं ।
पिछले 7 वर्षो में सेना का काया कल्प हो गया है, हम दो दो बार चीन के साथ लंबे समय तक बॉर्डर पर आमने सामने रहे, कभी हर बात पर पाकिस्तान हमें आंख दिखाता था अब उसकी बोलती बंद है। देश में रेल, सड़क, हवाई मार्ग सब का काया कल्प हुआ है ।
पिछले दो सालो से कोरोना की वजह से देश की अर्थ व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है , देश के 80 करोड़ जनता को दोनो वर्ष आठ आठ महीने फ्री का राशन दिया जा रहा है, 35 हजार करोड़ से अधिक खर्च कर देश के सभी नागरिकों को वैक्सिन लगवाई जा रही है, पिछली सरकारों के लाखो करोड़ के पेट्रोल बिल का बकाया भुगतान किया जा रहा है परंतु कुछ लोगों को ये खुली आंखों से दिखाई नही देगा, वे तो यही कहते रहेंगे की मोदी ने देश को बेच दिया है, और भाई ये बेचने का सिलसिला भी तो मनमोहन सिंह और नरसिम्हा राव की सरकार के द्वारा ही शुरू किया गया था और पिछले 25 वर्षो में सभी सरकारों ने अपने ताकत भर disinvestment पर पूरा जोर लगाया है लेकिन दोष सिर्फ मोदी को ही दिया जाएगा ?
अब सोचना यह है कि अर्थशास्त्री प्रधान मंत्री बढ़िया थे या एक चाय वाला ? हां इन 7 सालो में भरष्टाचार और सरकारी खजाने की लूट की कोई खबर नहीं आ रही है । चाय वाले ने अपने “ना खाऊंगा और ना खाने दूंगा ” वाले आश्वाशन पर दृढ़ता से कायम है ।
ये मेरा अपना नजरिया है बहुत से मित्रों को यह पसंद नही आयेगा , परंतु मुझे उनकी परवाह नहीं, वे कॉमेंट बॉक्स में भी उल जलूल बातें लिखेंगे मुझे अंध भक्त कहेंगे परंतु अपने दिल पर हाथ रख रख कर ईमानदारी से सोचेंगे तो यह महसूस करेंगे कि जो मैं देख रहा हूं वो ही मै लिख रहा हूं।
– विजय सिंह