समय-समय पर ऐसी अनेक घटनाएं देखने-सुनने को मिलती रहती हैं जिससे यह सोचने के लिए विवश होना पड़ता है कि आखिर यह सब क्यों हो रहा है और कौन करवा रहा है? विगत वर्षों में कई ऐसी घटनाएं देखने-सुनने में मिली हैं जिससे यह जानकारी मिली है कि इन घटनाओं को अंजाम देने में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर साजिशें रची गई थीं। अंतर्राष्ट्रीय साजिशों की बात की जाये तो भारत के दो पड़ोसी देश पाकिस्तान एवं चीन भारत के खिलाफ किसी न किसी रूप में अनवरत साजिशें रचने का कार्य करते ही रहते हैं।
भारत में आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने वालों को शरण देने का काम पाकिस्तान लंबे अरसे से कर रहा है। इन आतंकी ताकतों के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर कार्रवाई करने की बात जब भी भारत करता है तो चीन पाकिस्तान के साथ खड़ा होकर भारत के खिलाफ कार्य करने वाले आतंकियों का मददगार बन जाता है। इस संबंध में यदि चीन की बात की जाये तो एक पड़ोसी देश एवं अंतर्राष्ट्रीय ताकत के रूप में कभी भी भारत के लिए सहयोगी एवं विश्वसनीय की भूमिका में नहीं रहा। चीन ने हमेशा भारत की पीठ में छुरा घोंपने का काम किया है और आज भी कदम-कदम पर भारत की राह में कांटे बिछाने का ही काम कर रहा है। पूरी दुनिया में इस बात की चर्चा है कि वैश्विक स्तर पर बर्बादी का कारण बना कोरोना चीन की लैब से ही निकला था।
पाकिस्तान-चीन ऐसे देश हैं जिनके बारे में भारत एवं देश के सभी नागरिकों को यह भली-भांति पता है कि ये दोनों देश भारत के बारे में कभी अच्छा नहीं सोच सकते हैं, क्योंकि ऐसा सोचने एवं कहने के ठोस कारण भी हैं। जिस समय देश में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार थी, उस समय बड़ा दिल दिखाते हुए भारत ने पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ को वार्ता के लिए भारत बुलाया किन्तु पाकिस्तान ने घटिया मानसिकता का परिचय देते हुए कारगिल युद्ध को अंजाम दे दिया। इसी प्रकार नेहरू जी के प्रधानमंत्रित्व काल में भारत सरकार ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ के नारे लगाती रही, किन्तु चीन ने अपनी धूर्तता का परिचय देते हुए 20 अक्टूबर 1962 को भारत पर आक्रमण कर दिया।
भारत-चीन के बीच युद्ध चल ही रहा था कि उसी बीच 14 नवंबर 1962 को संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पास किया गया था कि युद्ध के दौरान जो भारतीय भूभाग चीन के कब्जे में चला गया है, उसे भारत जब तक वापस नहीं ले लेगा, तब तक चैन से नहीं बैठेगा। चीन के कब्जे में गये भारतीय भूभाग को भारत अभी तक लेने में भले ही कामयाब नहीं हो पाया है किन्तु वर्तमान में प्रधानमंत्री के नेतृत्व में जो राष्ट्रवादियों की सरकार है उससे लोगों को इस बात की उम्मीद जगी है कि 14 नवंबर 1962 को संसद के दोनों सदनों में लिया गया संकल्प जरूर पूरा होगा। इसका ट्रायल देशवासियों ने गलवान घाटी में देख भी लिया है।
हिंदुस्तान में एक बहुत पुरानी कहावत प्रचलित है कि गद्दार एवं मक्कार दोस्त से अच्छा दुश्मन होता है, क्योंकि दुश्मन के बारे में यह पता होता है कि वह दुश्मन है किन्तु गद्दार दोस्तों के बारे में यह कहना मुश्किल होता है कि वे कब क्या कर देंगे? वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों का मूल्यांकन किया जाये तो कुछ इसी प्रकार की स्थिति बनी हुई दिखाई देती है। आज पूरी दुनिया जिन्हें महाशक्ति के रूप में जानती है और दुनिया के तमाम देश महाशक्तियों से इस बात की उम्मीद लगाये रहते हैं कि वक्त आने पर महाशक्तियां उनका साथ देंगी किन्तु उन्हें अधिकांश मामलों में हताशा एवं निराशा ही हाथ लगती है।
इस दृष्टि से यदि वर्तमान भारत की बात की जाये तो वह बहुत संभल-संभल कर चल रहा है और भारत अपने ऊपर किसी भी महाशक्ति को हावी नहीं होने दे रहा है बल्कि कभी-कभी तो ऐसा महसूस होता है कि महाशक्तियां ही भारत के जाल में उलझ जा रही हैं। रूस-यूक्रेन के युद्ध में तो कुछ ऐसी ही स्थिति देखने को मिल रही है। महाशक्तियां भारत को इस युद्ध में तरह-तरह से लपेटने की कोशिश करती रहीं किन्तु इस संबंध में भारत बहुत सावधानी से फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है।
अफगानिस्तान से जब अमेरिका अपना बोरिया-बिस्तर समेट कर जाने लगा तो भी भारत बेहद संतुलित, सावधान एवं दूरदर्शी के रूप में नजर आया। रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत ने तो इतनी सूझ-बूझ का परिचय दिया कि रूस भी किसी रूप में भारत से नाराज नहीं हुआ और पूरे विश्व को यह भी देखने को नहीं मिला कि यूक्रेन के प्रति भारत ने सहानुभूति नहीं दिखाई। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत की चाल बहुत ही संभल-संभल कर चलने की रही है।
भारतीयों के हितों को ध्यान में रखते हुए तमाम ऐसी स्वयं सेवी संस्थाओं (एनजीओ) पर प्रतिबंध लगा दिया गया जो वैश्विक स्तर पर भारत के खिलाफ साजिशें रचने में लगी हुई थीं। इसकी शुरुआत तभी हो गई थी जब वर्तमान रक्षामंत्री राजनाथ सिंह गृहमंत्री के रूप में थे। इस प्रकार के निर्णय समय-समय पर आज भी लिये जा रहे हैं। तमाम ऐसे चीनी ऐप जो भारतीय हितों के खिलाफ कार्य कर रहे थे, उन्हें भारत सरकार ने बैन कर दिया है। भारतीय उत्पादों को विदेशी उत्पादों के मुकाबले कम बताने की मानसिकता का भारत मुंहतोड़ जवाब दे रहा है।
समय-समय पर यह देखने-सुनने को मिलता रहता है कि विदेशी सामानों की गुणवत्ता के मुकाबले भारतीय सामानों की गुणवत्ता बहुत ही कम है किन्तु इस मामले में तारीफ करनी होगी अपनी सरकार की, जिसने कई मोर्चों पर वैश्विक ताकतों को माकूल जवाब देने का काम किया है। आज यह बात बेहद गर्व के साथ कही जा सकती है कि भारत ने अपने उत्पादों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुत ही मजबूती के साथ स्थापित करने का काम किया है और यह काम आज भी निरंतर जारी है। कोरोना काल में देखने को मिला कि भारत ने अपनी सनातन संस्कृति, योग, अध्यात्म, आयुर्वेदिक उत्पादों एवं अन्य पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों के द्वारा वैश्विक महामारी कोरोना को न सिर्फ पराजित करने का काम किया बल्कि ऐसे कठिन समय में भारत ने पूरी दुनिया की मदद भी की।
यह भी देखने में आया है कि विश्व की महाशक्तियों को अधिकतर रक्षा-सुरक्षा में काम आने वाले उपकरण बनाने की कंपनियां व वैश्विक दवा निर्माता कंपनियों द्वारा प्रभावित किया जाता है एवं संचालन में दखलंदाजी भी की जाती है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए, भारत रक्षा-सुरक्षा उपकरणों में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए इन उपकरणों की खरीद-फरोख्त के साथ स्वयं बनाने में भी लगा हुआ है।
कोरोना काल में कोरोनारोधी भारतीय वैक्सीन को बार-बार अनुपयोगी बताने का प्रयास किया गया किन्तु भारत ने उन सभी प्रयासों पर पानी फेर दिया। यदि किसी देश ने भारत की वैक्सीन पर सवाल उठाया तो भारत ने उसको उसी भाषा में जवाब दिया। कुल मिलाकर कहने का आशय यही है कि तमाम अंतर्राष्ट्रीय साजिशों के बीच भारत बेहद संभल-संभल कर चल रहा है बल्कि ‘जैसे को तैसा’ की नीति पर भी बखूबी अमल कर रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार-बार यह बात कहते रहते हैं कि भारत को प्रत्येक क्षेत्र में स्वयं आत्मनिर्भर बनना होगा। जब भारत प्रत्येक मामले में स्वयं आत्मनिर्भर हो जायेगा तो उसे आंख दिखाने की हिम्मत दूसरा कोई देश नहीं कर पायेगा। वैसे भी महाकवि गोस्वामी तुलसी दास जी ने श्री रामचरित मानस में लिख दिया है कि ‘समरथ को नहिं दोष गोसााईं’ यानी जो समर्थ है, उसका कोई दोष नहीं होता है इसीलिए मोदी जी देश को सर्व दृष्टि से समर्थ बनाने में लगे हुए हैं और इस मिशन में उन्हें काफी हद तक कामयाबी भी मिली है और भविष्य में कामयाबी मिलने की उम्मीद है। ‘लोकल फार वोकल’, का नारा भारत को आत्मनिर्भर बनाने में काफी मददगार साबित हो रहा है।
साइबर क्राइम से निपटने के लिए भारत निहायत सतर्क है। चूंकि, साइबर क्राइम का मामला अपने देश के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर से भी जुड़ा हुआ है। साइबर क्राइम के खिलाफ भारत ने सख्त कानून बनाया है।
अधिकांश इस्लामिक देशों की उथल-पुथल को देखकर हमें ऐसा लगता है कि वे आपस में लड़-भिड़ रहे हैं मगर गैर मुस्लिम राष्ट्रों में उनका लक्ष्य अपने समुदाय की सुरक्षा का ही रहता है। चाहे इसके लिए उनको कानूनी तरीकों से मदद पहुंचानी हो या फिर गैरकानूनी तरीके ही क्यों न अपनाने पड़े जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार के साथ-साथ मुस्लिमों की संख्या और जीने का स्तर व प्रभाव किस प्रकार से बढ़े एवं उसमें मदद मिल सके। जिस प्रकार नूपुर शर्मा के एक वक्तव्य को तोड़-मरोड़ कर मुस्लिम जगत ने एकजुटता दिखाई उसका यह एक सटीक उदाहरण है। और तो और, वर्ष 2016 से जिस प्रकार कानूनी आड़ में पीएफआई द्वारा देश में लगभग एक लाख करोड़ रुपये का आगमन हुआ जिसका पर्दाफाश अभी हाल ही में उसको प्रतिबंधित कर छापेमारी से सामने आ चुका है।
भारत में सांप्रदायिक सद्भाव खतरे में है, इस बात का दुष्प्रचार कई इस्लामिक देशों द्वारा किया जा रहा है किन्तु भारत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस दुष्प्रचार का न सिर्फ मुंहतोड़ जवाब दे रहा है बल्कि इस मामले में कई देशों को भारत आईना दिखाने का भी कार्य कर रहा है। अभी हाल ही में देखने एवं सुनने को मिला है कि इंग्लैंड, कनाडा एवं कुछ अन्य देशों में हिंदुओं का उत्पीड़न हुआ है। भारत ने हिंदुओं के उत्पीड़न पर न सिर्फ नाराजगी जाहिर की बल्कि संबंधित देशों से हिन्दुओं का उत्पीड़न करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के लिए भी कहा। इस मामले में भी देखने को मिला कि भारत की चाल बहुत ही संभल-संभल कर चलने की रही है। मुझे यह बात कहने में आज बहुत गर्व महसूस हो रहा है कि रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत की निष्पक्षता की पूरी दुनिया कायल है।
इसी प्रकार स्वास्थ्य के क्षेत्र में यह जानते हुए कि विश्व की अंग्रेजी दवाइयां व उनको बनाने वाली विदेशी कंपनियां कभी भी यह नहीं चाहतीं कि आयुर्वेदिक दवाइयां या अन्य कोई स्वदेशी पद्धति विकसित हो पाये, परंतु भारत ने अपने कुशल नेतृत्व व संकल्प के साथ योग एवं आयुर्वेदिक जागरूकता के माध्यम से और अपनी प्राचीन जीवन पद्धतियों को अपनाते हुए कोरोना काल में यह साबित कर दिया है कि भारत दवाइयों के क्षेत्र में भी आत्मनिर्भरता की ओर निरंतर अग्रसर हो रहा है। चाहे उसके लिए फिर अंग्रेजी फार्मूलों या स्वदेशी फार्मूलों का स्वदेश में ही उत्पादन क्यों न करना पड़े।
भारत के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय साजिशों को हर स्तर से नाकाम किया जा सके इसके लिए भारत कानूनी रूप से बहुत सतर्क है और इन साजिशों को नाकाम करने के लिए सख्त कानून भी बना रहा है। टेक्नोलाजी के क्षेत्र में भारत लगातार आत्मनिर्भर होता जा रहा है, इससे तमाम वैश्विक शक्तियों को बेचैनी हो रही है, क्योंकि उनको लगता था कि टेक्नोलाजी के माध्यम से भारत से मोटी राशि कमायेंगी किन्तु मोदी जी वैश्विक महाशक्तियों के मंसूबों पर निरंतर पानी फेरने का कार्य कर रहे हैं। सोशल मीडिया के बारे में भी प्रधानमंत्री जी ने कहा है कि भारत को आत्मनिर्भर बनना ही होगा। इस दिशा में तेजी से काम भी चल रहा है। अपने देश का डाटा सर्वदृष्टि से सुरक्षित रहे इसके लिए वर्तमान सरकार बहुत व्यापक स्तर पर कार्य कर रही है।
स्वास्थ्य एवं शिक्षा के क्षेत्र की बात की जाये तो देखने में आ रहा है कि इस क्षेत्र में भारत निरंतर आगे बढ़ता जा रहा है। आज दुनिया के तमाम छात्र भारत में शिक्षा ग्रहण करने के लिए आ रहे हैं। वैश्विक स्तर पर हमारे देश की बनी दवाओं की गुणवत्ता को बार-बार भले ही कम बताने की साजिश की जाती रही हो किन्तु भारत लगातार उन साजिशों को नाकाम करने का काम कर रहा है। ये सभी कार्य हमारे कुशल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में हो रहा है।
अब तो रक्षा क्षेत्र में भी भारत आत्मनिर्भरता के रास्ते पर निरंतर बढ़ता जा रहा है। इस प्रकार की कानूनी तरीके से चल रही अंतर्राष्ट्रीय स्तर की साजिशों से भी सतर्क रहते हुए संभल-संभल कर चल रहे हैं, यह अपने आप में उनकी दृष्टि में हमारी एक लक्ष्यभेदी उपलब्धि है। भारत को यह बात बहुत अच्छी तरह पता है कि भारत जैसे-जैसे सभी क्षेत्रों में आत्मनिर्भर होता जायेगा, उसके खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर साजिशें भी रचने का काम बढ़ता जायेगा किन्तु वर्तमान भारत ‘तू डाल-डाल, मैं पात-पात’ की नीति पर अमल करते हुए बेहद सधी हुई चाल से संभल-संभल कर चल रहा है।
वर्तमान परिस्थितियों में यह बात बेहद गर्व के साथ कही जा सकती है कि ‘सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे’ की नीति का पालन भारत बहुत व्यापक स्तर पर कर रहा है। एक तरफ भारत के खिलाफ साजिशें रचने वाली ताकतें परेशान भी हैं और दूसरी तरफ भारत का वे कुछ बिगाड़ भी नहीं पा रही हैं। भारत के लिए वर्तमान परिस्थितियों में इससे सुखद स्थिति क्या हो सकती है कि कोरोना की मार से जहां इंग्लैंड जैसा देश भयंकर आर्थिक संकट में चला गया वहीं भारत अपने को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मजबूती से खड़ा करता जा रहा है। इसी को कहा जाता है कि नेतृत्व कुशल एवं दमदार हो तो कुछ भी असंभव नहीं है। इन्हीं सब खूबियों की वजह से ही तो मोदी जी दुनिया के नेताओं में लोकप्रियता की दृष्टि से शीर्ष पायदान पर विराजमान हैं।
– सिम्मी जैन