इतिहास गवाह है कि भारत सहित पूरी दुनिया में विभिन्न क्षेत्रों के कुछ ऐसे प्रतिभावान लोग जो अपने राष्ट्र एवं समाज के लिए विशेष रूप से कुछ कर रहे थे या कुछ करने की इच्छा रखते थे किन्तु वे किसी न किसी कारण से अकाल मौत के शिकार हो गये। शिकार शब्द लिखने का मेरा आशय इस बात से है कि या तो ऐसे लोगों की हत्या हो गई या इनके खिलाफ शासन-प्रशासन के माध्यम से साजिश रची गई या फिर किन परिस्थितियों में इन्हें अकाल मौत का शिकार होना पड़ा, उस रहस्य से पर्दा नहीं उठ पाया है। लोग आज भी जानना चाहते हैं कि आखिर वे अदृश्य शक्तियां कौन सी हैं जिनका इन मामलों से सरोकार है।
इन सभी मामलों का मूल्यांकन किया जाये तो स्पष्ट रूप से देखने में आता है कि यह सब काम उन्हीं के द्वारा किया जाता है जो किसी न किसी स्वार्थ भावना से प्रेरित हों। स्वार्थ की भावना व्यक्तिगत, सामूहिक, प्रादेशिक, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय किसी भी स्तर पर हो सकती है। वैसे भी एक पुरानी कहावत प्रसिद्ध है कि जब किसी का साम्राज्य सर्वदृष्टि से उजड़ता है तो वह अंतिम समय तक अपने साम्राज्य को बचाने के लिए किसी भी स्तर तक चला जाता है। साम्राज्य का आशय किसी भी रूप में लिया जा सकता है। व्यक्तिगत से लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक हो सकता है।
इतिहास में हुए इन हादसों, साजिशों एवं हत्याओं पर गौर किया जाये तो अधिकांश मामलों में जांच अंजाम तक नहीं पहुंच पाई है। किसी मामले में यदि जांच किसी अंजाम तक पहुंची भी है तो उसमें इतनी देर हो चुकी होती है कि उसका कोई मायने ही नहीं रह जाता है। ऐसे में कुछ मामलों पर यदि नजर डाली जाये तो अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन, जान. एफ. कैनेडी, सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक होमी भाभा, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के महान क्रांतिकारी नेताजी सुभाष चंद्र बोस, भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, भारत के चीफ डिफेंस स्टाफ जनरल विपिन रावत, पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो, जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे, बांग्लादेश के राष्ट्रपति शेख मुजीबुर्रहमान, भारत के प्रमुख आदिवासी नेता एवं महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बिरसा मुंडा, उत्तर प्रदेश के हिंदूवादी नेता कमलेश तिवारी, भारत में आयुर्वेद को आगे बढ़ाने वाले राजीव दीक्षित, भारत के वरिष्ठ नेता एवं केन्द्रीय रेल मंत्री ललित नारायण मिश्रा, ईरान के कासिम सुलेमानी आदि के नाम प्रमुख रूप से लिये जाते हैं। हालांकि, यह सूची बहुत लंबी है।
बात यहीं तक सीमित नहीं है। वर्तमान समय में भी जो लोग अपने राष्ट्र एवं समाज को किसी न किसी रूप में सर्वोच्चता के शिखर पर ले जाना चाहते हैं, उन्हें भी हर दृष्टि से सावधान रहने की आवश्यकता है। संघ प्रमुख मोहन भागवत, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, केन्द्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडगरी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ तथा असम के मुख्यमंत्री हेमंत विश्वा शर्मा सहित अन्य कई लोगों के प्रति भी कुछ नापाक लोगों व शक्तियों के मंसूबों के मद्देनजर सर्वदृष्टि से सुरक्षित रहने की आवश्यकता है। किसी के प्रति विश्वास अच्छी बात है, किन्तु अति विश्वास ठीक नहीं है।
इस दृष्टि से यदि वैश्विक महाशक्तियों की बात की जाये तो उनकी नजर किसी न किसी रूप में विश्व के संसाधनों पर होती है। किसी न किसी बहाने वे इन संसाधनों का दोहन करना चाहती हैं इसलिए उन्हें चाहे दुनिया में कितनी भी उथल-पुथल मचानी पड़े, इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है। इराक, अफगानिस्तान, यूक्रेन जैसे देश इसके प्रत्यक्ष रूप से उदाहरण हैं। अप्रत्यक्ष रूप से वैश्विक महाशक्तियां क्या-क्या कर रही हैं, उसकी तो गणना ही मुश्किल हो जायेगी। इस मामले में यदि विस्तृत रूप से विश्लेषण किया जाये तो देखने में आता है कि वैश्विक स्तर पर आम्र्स, फार्मा और आयल लाबी की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है और इन तीनों लाबी को नियंत्रित करने का काम मात्र कुछ ही लोग करते हैं।
वैसे तो भारत में एक पुरानी कहावत है कि अपराधी यदि कोई अपराध करता है तो उसका कोई न कोई निशान अपने पीछे छोड़ जाता है किन्तु ताज्जुब तो तब होता है जब चर्चित मामलों में भी कुछ पता ही नहीं चल पाता है कि वास्तव में इन मामलों में किसने क्या किया? इतिहास इस बात का गवाह है। भारत में लोग आज भी जानना चाहते हैं कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत कैसे और कब हुई, इस रहस्य से आज तक पर्दा क्यों नहीं उठ पाया? नेताजी की उपस्थिति से किसको खतरा था? लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु किन परिस्थितियों में हुई, इसकी जांच का आज भी देशवासियों को इंतजार है।
आखिर ऐसे कौन लोग हैं जो लाल बहादुर शास्त्री जी को अपने लिए खतरा मानते एवं समझते थे? इराक में सद्दाम हुसैन को फांसी पर चढ़ा दिया गया। वे अपने देश को सर्वोच्च शिखर पर ले जाना चाहते थे और वैश्विक महाशक्तियों को कोई भाव नहीं देते थे, क्या यही उनका गुनाह था? जिस आधार पर उन्हें फांसी पर लटकाया गया, क्या वह आज तक साबित हो पाया? आखिर उनकी कार्यप्रणाली से कौन परेशान था? 1973 से 75 के दौरान भारत के रेलमंत्री रहे ललित नारायण मिश्रा की समस्तीपुर रेलवे स्टेशन पर हुए बम धमाकों में मौत हो गयी। लगभग 40 साल तक चले इस केस में सीबीआई द्वारा कोई ठोस सबूत पेश नहीं किये जाने के कारण मुजरिमों को रिहा कर दिया गया।
श्रीमती इंदिरा गांधी को भारत में ‘आइरन लेडी’ के रूप में जाना जाता है। उन्होंने अपनी रणनीति एवं कौशल से पाकिस्तान के दो टुकड़े करवा दिया और पूरी दुनिया में भारत का मान बढ़ाया। आखिर वे किसकी आंखों की किरकिरी बनीं? युवा प्रधानमंत्री के रूप में राजीव गांधी ने भारत को टेक्नोलाजी के क्षेत्र में आगे बढ़ाया, उन्हें भी अकाल मौत का शिकार होना पड़ा। भारत में राजीव दीक्षित ऐसा नाम है, जिससे अधिकांश भारतवासी परिचित हैं। उन्होंने भारत में स्वदेशी आंदोलन को आगे बढ़ाया और बड़े पैमाने पर विदेशी कंपनियों और उद्योगों में चल रही गड़बड़ियों को उजागर किया। इस बात से यह आसानी से समझा जा सकता है कि आखिर वे किस साजिश के शिकार हुए होंगे? निश्चित रूप से उनकी अकाल मौत के वही लोग जिम्मेदार हैं जिनकी स्वार्थपूर्ति में वे बाधा बन रहे थे।
अमेरिका के 16वें राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन की पूरी दुनिया में अलग छवि थी। अमेरिका में चल रहे गृह युद्ध के दौरान वे राष्ट्रपति बने थे। राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने अमेरिका में कई बड़े बदलाव किये। दास प्रथा को समाप्त किया, अश्वेत लोगों के मताधिकार की लड़ाई लड़ी, इसी लड़ाई ने उनकी जान ले ली, यही उनका गुनाह था। अमेरिका के ही 35वें राष्ट्रप्रति जान एफ कैनेडी की 22 नवंबर 19963 को टेक्सास राज्य में चुनाव प्रचार के दौरान गोली मार कर हत्या कर दी गई। चुनाव प्रचार के दौरान वे खुली जीप में बैठकर जनता के बीच से गुजर रहे थे।
पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो 1988 में पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में चुनी गई थीं। बेनजीर भुट्टो दो बार प्रधानमंत्री बनीं किंतु दोनों बार उन्हें भ्रष्टाचार के आरोपों में बर्खास्त होना पड़ा था। 27 दिसंबर 2007 को पाकिस्तान में एक चुनावी रैली के दौरान आत्मघाती हमले में उनकी जान चली गई। इस संबंध में यदि विस्तृत रूप से जांच-पड़ताल की जाये तो निश्चित रूप से हत्या के तार कहीं न कहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जुड़े जरूर मिलेंगे।
मार्टिंन लूथ किंग जूनियर का एक भाषण ‘आई हैव ए ड्रीम’ पूरी दुनिया में अमर हो गया। अमेरिका में उन्होंने नागरिक अधिकारों के लिए लंबा आंदोलन चलाया, अश्वेतों की लड़ाई लड़ी किन्तु 4 अप्रैल 1968 को मार्टिन जब अपने होटल की बालकनी में खड़े थे, तभी जेम्स अर्ल रे नाम के एक शख्स ने उन पर गोली चला दी और उनकी जान चली गई। चूंकि, वे भी एक मिशन के लिए कार्य कर रहे थे।
शेख मुजीबुर्रहमान जो बांग्लादेश के प्रथम राष्ट्रपति थे और बाद में वे प्रधानमंत्री भी बने किन्तु वे भी असमय काल के गाल में समा गये। जिस समय उनकी हत्या हुई उस समय वे बांग्लादेश के प्रधानमंत्री थे। इन सब घटनाओं की चर्चा करने का मकसद मात्र इतना ही है कि उपरोक्त जिनकी भी चर्चा हुई है, सभी ने राष्ट्र एवं समाज के लिए कुछ अच्छा करने का प्रयास किया किन्तु ये लोग जिनके नापाक इरादों में रोड़ा बन रहे थे और उनकी आंखों में खटक रहे थे, उन्होंने इन सभी महान विभूतियों को अपनी राह से हटा दिया।
आज आवश्यकता इस बात की है कि ऐसे नापाक इरादे वालों से सतर्क रहकर मुंहतोड़ जवाब दिया जाये। इतिहास ही सब कुछ सिखाता है और सतर्क रहने की प्रेरणा देता है। अभी हाल की सबसे ज्वलंत घटना को उदाहरण के रूप में लिया जाये तो वह जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की हत्या है। शिंजो आबे की जापान को प्रगति के शिखर तक ले जाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है। किसी भी देश में यदि इस प्रकार की दुर्घटना होती है तो वहां के लोगों के दिलो-दिमाग को झकझोर कर रख देती है किन्तु इससे सीख लेकर सतर्क होते हुए आगे बढ़ना है।
एक लंबे अरसे से देखने-सुनने में आ रहा है कि हिन्दुस्तान एवं पूरे विश्व की हिंदुत्ववादी ताकतें अन्य धर्मों के कट्टरपंथी ताकतों के निशाने पर होती हैं। कई हिंदूवादी ताकतें अकाल मौत का शिकार हो चुकी हैं। आये दिन तमाम हिंदुत्ववादियों को धमकियां मिलती रहती हैं। समय-समय पर ‘सर तन से जुदा’ का नारा गूंजते हुए सुना जा सकता है। आखिर यह सब क्या है? किसी न किसी रूप में यह भी अंतर्राष्ट्रीय साजिशों का हिस्सा है जबकि आज आवश्यकता इस बात की है कि इस प्रकार की प्रवृत्ति से उबर कर देश एवं दुनिया को शांति, सद्भाव एवं अमन-चैन के रास्ते पर ले जाया जाये।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चल रही वर्तमान सरकार की बात की जाये तो बार-बार यह सुनने को मिलता रहता है कि वैश्विक ताकतें मोदी जी और उनकी सरकार को हजम नहीं कर पा रही हैं इसीलिए बार-बार उनकी सरकार को डिस्टर्ब करने का प्रयास किया जाता है किन्तु वे अपनी काबिलियत एवं बुद्धि कौशल से हर बार न स्वयं निकलने में कामयाब हो जाते हैं बल्कि राष्ट्र को भी सुरक्षित एवं मजबूत मोड़ पर लाकर खड़ा कर देते हैं। वैश्विक शक्तियां यदि मोदी जी से इतनी बेचैन हैं तो उसके कुछ ठोस कारण भी हैं। जो शक्तियां कभी भारत को मात्र एक बड़े बाजार के रूप में देखती थीं और भारत उनके लिए सबसे बड़े खरीदार की भूमिका में था। यदि वही भारत प्रत्येक क्षेत्र में आत्मनिर्भर होता जा रहा है तो वैश्विक महाशक्तियों का तिलमिलाना एवं बेचैन होना स्वाभाविक है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत का डंका पूरी दुनिया में बज रहा है। गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह एवं केन्द्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने तो भारत की गौरव गाथा में चार चांद लगा दिया है। भारत आंतरिक एवं बाह्य सुरक्षा के मामले में अनवरत मजबूत हो रहा है, रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की राह पर है तो बुनियादी ढांचा खड़ा करने में भारत कीर्तिमान स्थापित करता जा रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी जी अकसर कहा करते थे कि गाड़ी का पहिया जितना तेज दौड़ेगा, विकास की रफ्तार उतनी तेज होगी।
विकास की रफ्तार तो भारत में इतनी तेज हो गई है कि देश की सीमाओं पर भी नेशनल हाइवे एवं सड़कों का जाल बिछ चुका है। विकास की इस गौरवगाथा से भारत को मात्र बड़ा बाजार समझने वाली ताकतों का बौखलाना स्वाभाविक है किन्तु इस संदर्भ में मैं बिना किसी लाग-लपेट के कहना चाहता हूं कि अपने देश के विकास पुरुषों की सुरक्षा व्यवस्था और अधिक चाक-चैबंद करने की आवश्यकता है और भारत में उथल-पुथल मचाने के लिए जो ताकतें सक्रिय हैं, उन पर नजर रखने एवं सख्त नियंत्रण की नितांत आवश्यकता है।हालांकि, धर्म प्रधान देश भारत में यह भी कहा जाता है कि ‘मुद्दई लाख बुरा चाहे तो क्या होता है, होता वही है जो मंजूरे खुदा होता है’ यानी जो कुछ हो रहा है, वह ईश्वर की इच्छा से हो रहा है। वैश्विक शक्तियों को तिलमिलाना है तो तिलमिलाती रहें। सकारात्मक भाव से अपना सद्कर्म करने के साथ-साथ सावधान रहने की नितांत आवश्यकता है। इन्हीं भावनाओं एवं उद्देश्यों के साथ इस लेख की प्रस्तुति आपके समक्ष है।
– अरूण कुमार जैन (इंजीनियर)
(पूर्व ट्रस्टी श्रीराम-जन्मभूमि न्यास एवं पूर्व केन्द्रीय कार्यालय सचिव, भा.ज.पा.)