Skip to content
16 July 2025
  • Facebook
  • Twitter
  • Youtube
  • Instagram

DHARMWANI.COM

Religion, History & Social Concern in Hindi

Categories

  • Uncategorized
  • अध्यात्म
  • अपराध
  • अवसरवाद
  • आधुनिक इतिहास
  • इतिहास
  • ऐतिहासिक नगर
  • कला-संस्कृति
  • कृषि जगत
  • टेक्नोलॉजी
  • टेलीविज़न
  • तीर्थ यात्रा
  • देश
  • धर्म
  • धर्मस्थल
  • नारी जगत
  • पर्यटन
  • पर्यावरण
  • प्रिंट मीडिया
  • फिल्म जगत
  • भाषा-साहित्य
  • भ्रष्टाचार
  • मन की बात
  • मीडिया
  • राजनीति
  • राजनीतिक दल
  • राजनीतिक व्यक्तित्व
  • लाइफस्टाइल
  • वंशवाद
  • विज्ञान-तकनीकी
  • विदेश
  • विदेश
  • विशेष
  • विश्व-इतिहास
  • शिक्षा-जगत
  • श्रद्धा-भक्ति
  • षड़यंत्र
  • समाचार
  • सम्प्रदायवाद
  • सोशल मीडिया
  • स्वास्थ्य
  • हमारे प्रहरी
  • हिन्दू राष्ट्र
Primary Menu
  • समाचार
    • देश
    • विदेश
  • राजनीति
    • राजनीतिक दल
    • नेताजी
    • अवसरवाद
    • वंशवाद
    • सम्प्रदायवाद
  • विविध
    • कला-संस्कृति
    • भाषा-साहित्य
    • पर्यटन
    • कृषि जगत
    • टेक्नोलॉजी
    • नारी जगत
    • पर्यावरण
    • मन की बात
    • लाइफस्टाइल
    • शिक्षा-जगत
    • स्वास्थ्य
  • इतिहास
    • विश्व-इतिहास
    • प्राचीन नगर
    • ऐतिहासिक व्यक्तित्व
  • मीडिया
    • सोशल मीडिया
    • टेलीविज़न
    • प्रिंट मीडिया
    • फिल्म जगत
  • धर्म
    • अध्यात्म
    • तीर्थ यात्रा
    • धर्मस्थल
    • श्रद्धा-भक्ति
  • विशेष
  • लेख भेजें
  • dharmwani.com
    • About us
    • Disclamar
    • Terms & Conditions
    • Contact us
Live
  • ऐतिहासिक नगर

इसी आश्रम में श्रीकृष्ण को मिली थी जगत्गुरु की उपाधि

admin 21 May 2021
Sandipani Ashram Ujjain_1
Spread the love

अजय सिंह चौहन || श्रीकृष्ण के विषय में सबसे विशेष बात यह बताई जाती है कि वे एक विलक्षण बुद्धि के प्रतिभावान छात्र थे। और उनकी विलक्षणता का प्रमाण भी इसी बात से मिलता है कि उन्होंने मात्र 64 दिनों के अल्प समय में ही सम्पूर्ण शास्त्रों की शिक्षा ग्रहण कर ली। हमारे धर्मग्रंथों में इस बात के उल्लेख मिलते हैं कि श्रीकृष्ण ने 18 दिनों में 18 पुराण, 4 दिनों में 4 वेद, 6 दिनों में 6 शास्त्र, 16 दिनों में 16 कलाएं और मात्र 20 दिनों में ही गीता का संपूर्ण ज्ञान अर्जित कर लिया था। और इन्हीं 64 दिनों के अंदर ही उन्होंने गुरु दक्षिणा और गुरु सेवा के अपने कर्तव्यों को भी बखूबी निभाया था।

उज्जैन को सात मोक्ष पुरियों में से एक और 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक भगवान महाकाल की नगरी के नाम से ही नहीं बल्कि देवताओं के परम आदर्श गुरु और ऋषि सांदीपनि की तप स्थली और उनके परम शिष्य श्रीकृष्ण की शिक्षास्थली के नाम से भी पहचाना जाता है। यह वही नगरी है जहां महर्षि सांदीपनि ने घोर तपस्या की और दुनियाभर के हजारों विद्यार्थियों को धर्म, अध्यात्म, वेद, पुराण एवं शास्त्र की आदर्श शिक्षा देने के लिए एक ऐसे आश्रम का निर्माण करवाया जो युगों-युगों तक सारी दुनिया में एक मिसाल बन गया था। उसी सांदीपनि आश्रम का उल्लेख आज हमें महाभारत, श्रीमद्भागवत, ब्रम्ह्पुराण, अग्निपुराण तथा ब्रम्हवैवर्तपुराण में विस्तारपूर्वक उल्लेख मिलता है।

गुरु सांदीपनि अवन्ति के कश्यप गोत्र में जन्मे ब्राह्मण थे। ऋषि सांदीपनि वेद, धनुर्वेद, शास्त्रों, कलाओं और आध्यात्मिक ज्ञान के प्रकाण्ड विद्वान माने जाते थे। गुरु ‘संदीपन‘ या ‘सांदीपनि‘ परम तेजस्वी और सिद्ध ऋषियों में से एक थे। ऋषि सांदीपनि मात्र एक ऋषि ही नहीं बल्कि एक दिव्य पुरुष भी थे। उनके बारे में कहा जता है कि कई देवी-देवता भी समय-समय पर उनसे परामर्श लेने आया करते थे।

महर्षि सांदीपनि के गुरुकुल में वेद-वेदांतों और उपनिषदों सहित चैंसठ कलाओं की शिक्षा दी जाती थी। साथ ही न्याय शास्त्र, राजनीति शास्त्र, धर्म शास्त्र, नीति शास्त्र, अस्त्र-शस्त्र संचालन की शिक्षा भी दी जाती थी। गुरुकुल में दूर-दूर से शिष्यगण शिक्षा प्राप्त करने आते थे। आश्रम में प्रवेश पाने के लिए दूर-दूर से आये शिष्यों को अपने गोत्र के साथ पूरा परिचय देना होता था। यहां प्रवेश के पहले विद्यार्थियों का यज्ञोपवीत संस्कार करवाया जाता था एवं शिष्यों को आश्रम व्यवस्था के अनुसार ब्रह्मचर्य के नियमों का पालन करना होता था।

विभिन्न शास्त्रों में इस बात का विशेष तौर पर जिक्र है कि ऋषि संदीपनी का आश्रम वेद और विज्ञान की शिक्षा के क्षेत्र में इतना प्रसिद्ध था कि दुनियाभर के छात्र इसमें शिक्षा लेने के लिए आया करते थे। और इसमें उस समय छात्रों की संख्या भी लगभग दस हजार से ज्यादा हुआ करती थी। और गुरु संदीपनि के उन्हीं विद्यार्थियों में भगवान श्रीकृष्ण, उनके मित्र सुदामा और भाई बलराम ने भी शिक्षा प्राप्त की थी।

संदीपन ऋषि द्वारा कृष्ण और बलराम ने अपनी शिक्षाएँ पूर्ण की थीं। आश्रम में कृष्ण-बलराम और सुदामा ने एक साथ वेद-पुराण का अध्ययन प्राप्त किया। गुरु सान्दीपनि श्रीकृष्ण की लगन, मेहनत और सेवाभाव से इतने प्रभावित हुए थे कि उन्हें जगत गुरु की उपाधि दे दी। तभी से श्रीकृष्ण पहले जगत गुरु माने गए।

पुराणों में इस बात के भी प्रमाण मिलते हैं कि शिक्षा पूरी होने के उपरांत श्रीकृष्ण के विशेष आग्रह करने पर महर्षि सांदीपनि ने अपनी पत्नी सुषुश्रा को उनके बदले कुछ माँगने को कहा। और गुरु माँ ने गुरु दक्षिणा के रूप में श्रीकृष्ण से अकाल मृत्यु को प्राप्त अपने पुत्र का जीवनदान मांग लिया।
कहा जाता है कि गुरु पुत्र पुनर्दत्त की मृत्यु प्रभास क्षेत्र के समुद्र में डूबकर हो गई थी।

प्रभास क्षेत्र यानी गुजरात के समुद्री किनारे वाला वह क्षेत्र जिसमें श्रीसोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर भी आता है वह ‘प्रभासपाटन’ या प्रभास क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। श्रीकृष्ण अपनी गुरुमाता के दुःख को समझते हुए गुरु पुत्र पुनर्दत्त को पुनर्जीवन देने का वचन दे दिया।

गुरुमाता की आज्ञा का पालन करने के लिए श्रीकृष्ण और बलराम दोनों ही भाई प्रभास क्षेत्र में गुरु पुत्र पुनर्दत्त को पुर्नजीवन देने के लिए गए, और उन्होंने वहां उसकी तलाश शुरू की। और जब उन्हें पता चला कि गुरु पुत्र पुनर्दत्त को शंखासुर नामक एक राक्षस ले गया है, जो समुद्र के नीचे एक पवित्र शंख में छुप कर रहता है तो श्रीकृष्ण ने उस राक्षक को मारकर उसके कब्जे से वह दिव्य शंख ले लिया और श्रीकृष्ण ने उस शंख को धारण कर लिया और उसे नाम दिया ‘पाँचजन्य’। कहा जाता है कि पाँचजन्य नामक यह वही शंख था जिसको श्रीकृष्ण ने अर्जुन के देवदत्त शंख के साथ बजाया और महाभारत युद्ध के आरम्भ का प्रतीक बना था।

लेकिन जब पुनर्दत्त ‘पाँचजन्य’ नामक उस शंख में नहीं मिला तो दोनों भाई उस शंख को लेकर यमदेव के पास पहुँचे और वहां उसे बजाने लगे। यमदेव ने उन दोनों भाइयों को मानव रूप में देखकर पहचान लिया और जब उनसे वहां आने का कारण पूछा तो श्रीकृष्ण ने यमदेव को अपने वहां आने का कारण बताया और आग्रह किया कि वे कृपा करके पुनर्दत्त को पुर्नजीवन देकर मुझे सौंप दीजिये। और इस प्रकार यमदेव ने श्रीकृष्ण का अभिवादन स्वीकार करते हुए गुरु पुत्र पुनर्दत्त को पुर्नजीवन दे दिया। और इस प्रकार जहां श्रीकृष्ण ने गुरु दक्षिणा और गुरु सेवा के अपने कर्तव्यों को भी बखूबी निभाकर एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया। वहीं सारे संसार में ही नहीं बल्कि देवलोक में भी ऋषि सांदीपनि को एक आदर्श ऋषि, गुरु और दिव्य पुरुष माना गया।

About The Author

admin

See author's posts

8,425

Related

Continue Reading

Previous: अब गोविंद न आयेंगे
Next: राजा नाहर सिंह के जीवन के अनोखे रहस्य

Related Stories

Gora and Badal - Warriors of Mewad Rajasthan
  • ऐतिहासिक नगर
  • विशेष

मेवाड़ के वीर योद्धा: गोरा और बादल का बलिदान

admin 17 June 2024
Kashi Vishwanath Corridor Temple Ruins
  • ऐतिहासिक नगर
  • धर्मस्थल
  • विशेष

सावधान! भगवान् शिव के क्रोध से अब तक कोई भी नहीं बचे हैं काशी के शत्रु

admin 9 March 2024
Fatehpur-Sikri_Agra-District-of-Uttar-Pradesh-1
  • ऐतिहासिक नगर
  • पर्यटन
  • विशेष

फतहपुर सीकरी का इतिहास कितना सच कितना झूठ | History of Fatehpur Sikri

admin 27 November 2023

Trending News

पुराणों के अनुसार ही चल रहे हैं आज के म्लेच्छ Indian-Polatics-Polaticians and party workers 1
  • लाइफस्टाइल
  • विशेष

पुराणों के अनुसार ही चल रहे हैं आज के म्लेच्छ

13 July 2025
वैश्विक स्तर पर आपातकाल जैसे हालातों का आभास Natural Calamities 2
  • विशेष
  • षड़यंत्र

वैश्विक स्तर पर आपातकाल जैसे हालातों का आभास

28 May 2025
मुर्गा लड़ाई यानी टीवी डिबेट को कौन देखता है? 3
  • विशेष
  • षड़यंत्र

मुर्गा लड़ाई यानी टीवी डिबेट को कौन देखता है?

27 May 2025
आसान है इस षडयंत्र को समझना Teasing to Girl 4
  • विशेष
  • षड़यंत्र

आसान है इस षडयंत्र को समझना

27 May 2025
नार्वे वर्ल्ड गोल्ड मेडल जीत कर दिल्ली आने पर तनिष्क गर्ग का भव्य स्वागत समारोह Nave Word Medal 5
  • देश
  • विशेष

नार्वे वर्ल्ड गोल्ड मेडल जीत कर दिल्ली आने पर तनिष्क गर्ग का भव्य स्वागत समारोह

26 May 2025

Total Visitor

078661
Total views : 143546

Recent Posts

  • पुराणों के अनुसार ही चल रहे हैं आज के म्लेच्छ
  • वैश्विक स्तर पर आपातकाल जैसे हालातों का आभास
  • मुर्गा लड़ाई यानी टीवी डिबेट को कौन देखता है?
  • आसान है इस षडयंत्र को समझना
  • नार्वे वर्ल्ड गोल्ड मेडल जीत कर दिल्ली आने पर तनिष्क गर्ग का भव्य स्वागत समारोह

  • Facebook
  • Twitter
  • Youtube
  • Instagram

Copyright ©  2019 dharmwani. All rights reserved