अजय सिंह चौहान || जितना महत्व उत्तर प्रदेश में माता विन्ध्यवासिनी का है उतना ही महत्व मध्य प्रदेश में मां मैहर देवी शारदा (Maihar Mata Sharda Peeth) का भी माना जाता है। मां मैहर देवी शारदा का यह मंदिर मध्य प्रदेश के सतना जिले में चित्रकूट के नजदीक मैहर नाम के एक छोटे से शहर से मात्र 5 किलोमीटर दूर एक गोलाकार त्रिकुटा पहाड़ी पर स्थित है। मंदिर तक पहुंचने के लिए यहां कुल 1065 सीढियां है।
गोलाकार त्रिकुटा पहाड़ी पर बने मां दुर्गा के शारदीय रूप, देवी मां शारदा के मंदिर (Maihar Mata Sharda Peeth) को मैहर देवी मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर सनातन धर्म के एक अति महत्वपूर्ण और पवित्र स्थानों में से एक है। यहां आने वाले श्रद्धालुओं में भी वैसी ही आस्था देखी जाती है जो जम्मू में माता वैष्णो देवी के दर्शन करने जाने वाले श्रद्धालुओं में देखी जाती है। इसीलिए यहां आने वाले भक्तों की भीड़ कभी भी कम नहीं होती।
मैहर, एक छोटा-सा नगर जरूर है, लेकिन, माता मैहर देवी के इस मंदिर के कारण हिन्दू धर्म के लिए यह उतना ही बड़ा, प्रसिद्ध और पवित्र तीर्थस्थल है। इसके अलावा माता मैहर देवी (Maihar Mata Sharda Peeth) का यह मंदिर क्षेत्र प्राकृतिक रूप से बहुत ही समृद्ध माना जाता है। विंध्य की पर्वत श्रेणियों से होकर बहने वाली तमसा नदी के तट पर, त्रिकूट पर्वत मालाओं में से एक गोलाकार पर्वत जिसकी लगभग 600 फुट की ऊंचाई है उसकी चोटी पर स्थित है यह मंदिर।
यह मंदिर पौराणिक और ऐतिहासिक 108 शक्ति पीठों में से एक (Maihar Mata Sharda Peeth) माना जाता है। जबकि कुछ लोग इसे सिद्धपीठ ही मानते हैं। इसके अलावा इस पीठ की सबसे अनोखी बात यह है कि यह पीठ सतयुग के प्रमुख अवतार नृसिंह भगवान के नाम यानी ‘नरसिंह पीठ‘ के नाम से भी जाना जाता है।
शारदा माता के इस पीठ (Maihar Mata Sharda Peeth) की स्थापना को लेकर माना जाता है कि भगवान शिव जब देवी सती के मृत देह को लेकर आकाशमार्ग से होते हुए इस स्थान के ऊपर से जा रहे थे, तो उस वक्त उनके गले का हार इस स्थान पर गिर गया था। और क्योंकि मैहर, यानी माई का हार यहां गिरा था इसलिए इस स्थान का नाम मैहर माता शक्तिपीठ पड़ गया।
बताया जाता है कि संपूर्ण भारतवर्ष में माता शारदा (Maihar Mata Sharda Peeth) का यही एकमात्र मंदिर है। यहां पर आदि गुरु शंकराचार्य ने भी पूजा-अर्चना की थी। पर्वत की चोटी पर माता के साथ ही श्री काल भैरवी, भगवान हनुमान, देवी काली, देवी दुर्गा, श्री गौरी शंकर, शेष नाग, फूलमति माता, ब्रह्म देव और जलापा देवी की भी पूजा की जाती है।
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ऐतिहासिक तथ्यों और साक्ष्यों के आधार पर आल्हा व ऊदल नामक दोनों भाई मां शारदा (Maihar Mata Sharda Peeth) के उपासक माने जाते थे। इसीलिए इस जगह के साथ उनका इतिहास भी जुड़ा हुआ है। वे दोनों ही यहां नियमित पूजा-पाठ करते और युद्धकला का अभ्यास भी करते थे। इस पर्वत की तलहटी में आज भी आल्हा का तालाब व अखाड़ा नामक उनके अवशेष मौजूद है।
मंदिर में स्थित देवी शारदा की प्रतिमा पर देवनागरी लिपि में अंकित शिलालेख के अनुसार इस मूर्ति की स्थापना विक्रम संवत 559 में की गई थी। इस शिलालेख में बताया गया है कि सरस्वती के पुत्र दामोदर ही कलियुग के व्यास मुनि कहे जाएंगे। इस प्राचीन शिलालेख से मूर्ति की प्राचीनता की प्रामाणिकता की पुष्टि होती है।
देवी शारदा के इस मंदिर (Maihar Mata Sharda Peeth) स्थल से प्राप्त पौराणिक और ऐतिहासिक अवशेषों पर दुनिया के कई जाने-माने इतिहासकारों ने यहां विस्तार से शोध किया है। इसके अलावा बताया जाता है कि इस मंदिर में प्राचीन काल से ही पशु बलि की प्रथा भी चली आ रही थी, लेकिन सन 1922 में सतना के उस समय के राजा ब्रजनाथ जूदेव ने पशु बलि को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया था।
देवी शारदा का यह प्रसिद्ध शक्तिपीठ मंदिर (Maihar Mata Sharda Peeth), देश के लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र है। मां शारदा के पास ही में स्थापित भगवान नरसिंहदेव जी की प्रतिमा आज से लगभग 1500 साल पुरानी मूर्ति बताई जाती है। इसीलिए माना जाता है कि शारदा देवी का यह मंदिर सिर्फ आस्था और धर्म के नजरिये से ही खास नहीं है, बल्कि ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्व रखता है।
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वैसे तो यहाँ प्रतिदिन हजारों दर्शनार्थी आते हैं। लेकिन, नवरात्रों के अवसर पर यहां प्रति वर्ष मेले का भी आयोजन होता है जिसे देखने के लिए लाखों यात्री मैहर आते हैं।
मैहर शहर (Maihar Mata Sharda Peeth) आवागमन के माध्यमों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है इसलिए रेल या सड़क जैसी दोनों ही सुविधाओं का प्रयोग करने वालों को कोई परेशानी नहीं होती। राष्ट्रीय राजमार्ग 7 किनारे बसा होने के कारण देश या प्रदेश के हिसी भी भाग से आना-जाना बहुत आसान है। इसके अलावा कई ट्रेनें हैं जो यहां से होकर चलती हैं।
इसके अलावा बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान जो यहां से सिर्फ 90 किलोमीटर की दूरी पर है वहां से होकर भी मैहर पहुँचा जा सकता है। इसलिए अधिकतर पर्यटक और श्रद्धालु यहां आने के लिए बांधवगढ़ स्टेशन का भी उपयोग करते हैं।
यहां का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा रीवा में है जो यहां से लगभग 55 किलोमीटर दूर है जबकि जबलपुर का हवाई अड्डा यहां से लगभग 140 किलोमीअर की दूरी पर है।