अजय सिंह चौहान || मशहूर मलयाली फिल्म निर्देशक अली अकबर (Malayali film director Ali Akbar) जो कि अब ‘रामसिम्हन’ के नाम से पहचाने जाते हैं उन्होंने वर्ष 1921 में मालाबार में हुए भीषण हिंदू संहार (Massacre of Moplah Hindus) को लेकर अपनी आगामी मलयालम भाषा में आने वाली फिल्म ‘Puzha mutual Puzha Vare’ (1921 पूझा मुथल पुझावरे) ‘नदी से नदी तक’ बना कर न सिर्फ सबको हैरत में डाल दिया है बल्कि केरल और भारत सरकार के सेंसरबोर्ड की असलियत भी खोलकर रख दी है। लेकिन उससे भी अधिक हैरानी की बात तो ये है कि इस फिल्म को अब सेंसरबोर्ड पास करने को तैयार नहीं दिख रहा है।
निर्देशक अली अकबर उर्फ रामसिम्हन (Malayali film director Ali Akbar) ने इस विषय पर मीडिया से बात करते हुए कहा है कि, “सेंसर बोर्ड ने मुझे अपनी फिल्म में तथ्यों को गलत तरीके से पेश करने का आरोप लगाते हुए फटकार लगाई है और फिल्म के कुछ दृश्यों को हटाने के लिए दबाव डाला है।”
सीधे-सीधे कहें तो निर्देशक अली अकबर के अनुसार इस फिल्म को पास करने से केरल के सेंसरबोर्ड ने मना कर दिया है। हैरानी होती है कि यदि केरल के सेंसरबोर्ड ने मना किया है तो जाहिर सी बात है कि वर्ष 1921 में मालाबार में हुए भीषण हिंदू संहार (Massacre of Moplah Hindus) के सच को कोई भी सरकार, बोर्ड, मंत्रालय या फिर कोई भी सरकारी संगठन सामने लाने को तैयार क्यों नहीं है। सीधे-सीधे कहें तो अब केरल के फिल्म सेंसरबोर्ड ने भी हिंदुओं के खिलाफ जेहाद छेड़ दिया है और चेतावनी दे दी है कि हिंदुओं का अब कोई सगा नहीं है।
हैरानी तो इस बात की होती है कि केरल के सेंसरबोर्ड के मना करने के बाद केंद्रीय फिल्म प्रमाण बोर्ड, यानी Central Board of Film Certification (CBFC) के पास गुहार लगाई गई, लेकिन केंद्र के सूचना प्रसारण मंत्रालय के अधीन आने वाली इस एजेंसी ने एक कदम और आगे चलते हुए रामसिम्हन को यानी निर्देशक अली अकबर को केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) ने अपनी समीक्षा समिति की बैठक के दौरान यह कह दिया है कि, आप पहले अपने उस पुराने मुस्लिम नाम यानी अली अकबर को फिर से बहाल कीजिए फिर आपकी इस फिल्म के बारे में सोचेंगे। अर्थात रामसिम्हन का कहना है कि, उन पर दबाव डाला जा रहा है कि वह अपना पुराना मुस्लिम नाम फिर से रख लें। रामसिम्हन ने आरोप लगाया है कि वे लोग मेरी इस फिल्म के कई दृश्यों पर कैंची चलाकर फिल्म के न सिर्फ किरदार बदलवाना चाहते बल्कि घटनाओं को भी छिपाने का दबाव डाल रहे हैं।
दक्षिण भारत के ये वही मशहूर निर्देशक अली अकबर (Malayali film director Ali Akbar) हैं जिन्होंने 13 जनवरी 2022 को पत्नी लुसिम्मा के साथ मिलकर अपने ही मुस्लिम समाज के कट्टरपंथियों से नाराज होकर हिंदू धर्म अपना लिया था और तब से वे रामसिम्हन कहलाने लगे। दरअसल, एक हेलीकाॅप्टर दुर्घटना में देश के पहले सीडीएस जनरल बिपिन रावत की मौत पर खुश होने वाले मुस्लिमों को देखकर वे बेहद दुखी हुए और उन्होंने इस्लाम छोड़ने की घोषणा कर हिंदू धर्म अपना लिया था।
उस घटना के बाद उन्होंने कहा था कि जनरल बिपिन रावत की मौत पर मुस्लिमों की तरफ से ऐसी हरकतों का विरोध किसी भी सीनियर मुस्लिम नेता या फिर किसी भी इस्लामिक धर्मगुरु ने नहीं किया। मुझे अपने देश के बहादुर बेटे का ऐसा अपमान स्वीकार्य नहीं है। इसलिए इस्लाम से मेरा विश्वास उठा गया है और अब मैं निराश होकर अपनी मर्जी से इस्लाम छोड़ रहा हूं और अब से मुझे अली अकबर की जगह ‘रामसिम्हन’ के नाम से पहचाना जाएगा।
रामसिम्हन यानी अली अकबर (Malayali film director Ali Akbar) ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो के माध्यम से यह जानकारी दी थी। इस वीडियो में उन्होंने बताया था कि ‘मुझे जन्म के समय जो चोला मिला था, उसे अब उतारकर फेंक रहा हूं। आज से मैं मुस्लिम नहीं हूं। मैं एक भारतीय हूं। मेरा यह संदेश उन लोगों के लिए है, जिन्होंने भारत के खिलाफ स्माइली पोस्ट की है।’ मलयाली फिल्म निर्देशक अली अकबर के उस वीडिया के बाद कई लोगों ने उनका विरोध किया था तो कईयों ने उनका समर्थन भी किया था।
दरअसल, वर्ष 1921 में मोपला मुस्लिमों ने हिन्दुओं का जमकर नरसंहार (Massacre of Moplah Hindus) किया था, लेकिन, दरबारी और चाटूकार इतिहासकारों ने उस नरसंहार को ‘जमींदारों के खिलाफ विद्रोह’ का नाम देकर उसे दबाने का प्रयास किया था। वर्ष 1921 के उस मालाबार हिंदू संहार में करीब-करीब 10 हजार से अधिक निर्दोष हिंदुओं को बेवजह मार डाला गया था। ऐसे में यदि केरल के सेंसरबोर्ड और केंद्रीय फिल्म प्रमाण बोर्ड यानी Central Board of Film Certification (CBFC) मिलकर इस फिल्म को पास नहीं करते हैं तो कहीं न कहीं निश्चित रूप से मोपला के मुस्लिमों द्वारा हिंदुओं के उस ‘भीषण नरसंहार को सरकारों के द्वारा क्लीन चिट’ देने जैसा ही लग रहा है।
मोपला हिंदू नरसंहार (Massacre of Moplah Hindus) भारत के इतिहास की एक ऐसी घटना है जिसे खुद हिंदू ही ठीक से नहीं जानते। और यदि कोई जानना चाहते भी हैं तो अपने इतिहास को लेकर गुगल पर भरोसा करने वाले हिंदू जब गुगल पर सर्च करने के बाद वहां भी इस विद्रोह को ‘जमींदारों के खिलाफ विद्रोह’ और ‘भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन’ के रूप में ही पेश किया गया है। इसलिए हिंदुओं को इस नरसंहार और विद्रोह के बीच का सच ठीक से पता ही नहीं चल पाता। हालांकि, मोपला नरसंहार में सिर्फ 10 हजार हिंदुओं के ही मारे जाने का जिक्र मिलता है, लेकिन स्थानीय लोगों और कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं के अनुसार उस हत्याकांड में करीब-करीब 40 से 50 हजार हिंदू युवकों, महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों की हत्याएं हुई थीं।
मोपला के उस नरसंहार में हिंदुओं (Massacre of Moplah Hindus) के खिलाफ ऐसी कई हृदय विदारक घटनाएँ दर्ज हैं जिनके बारे में सोच कर भी डर लगता है। उस समय के कुछ ही इतिहासकारों ने इस घटना को सीधे-सीधे लिखा है कि नरसंहार की उन घटनाओं में से एक घटना है कि एक शिशु अपनी माता का स्तनपान कर रहा था। मोपला मुस्लिमों ने उस बच्चे को माता की छाती से छीन कर वहीं उसके दो टुकड़े कर दिए थे। एक महिला का क्रूरता से बार-बार इस प्रकार से रेप किया गया कि उसकी मृत्यु हो गई, जबकि उसका छोटा सा बच्चा काफी देर तक उस मरी हुई माँ के शरीर पर खेलता रहा और स्तनपान करने की कोशिश करता रहा। इसी प्रकार वहां के ब्राहमणों को जबरन मांस का सेवन करवा कर उनका धर्म परिवर्तन करवाया गया।
इतिहासकारों ने बताया है कि मोपला (Massacre of Moplah Hindus) के अधिकतर हमले रात के समय किये जाते थे जब अधिकतर हिंदू गहरी निंद में होते थे। इस दौरान उनकी नाबालिग बच्चियों के साथ सामुहिक योनाचार किया जाता था। हैरानी की बात तो ये है कि इस कुक्रत्य में अंग्रेजी सेना भी उनका खुब साथ दिया था। किसी भी हिंदू परिवार को वहां से पलायन का अवसर नहीं दिया गया। जो कोई भी पलायन करता हुआ देखा जाता उसे वहीं मार दिया जाता था। उस क्षेत्रा के जितने भी धनी हिंदू परिवार थे उन सबकी पहचान पहले ही कर ली गई थी, ताकि उन्हें मार कर उनकी संपत्ति को लूटा जा सके।
जाहिर सी बात है कि यदि इतने भयावह और दर्दनाक हिंदू नरसंहार पर कोई फिल्म के जरिए थोड़ा सा भी सच दिखाने का प्रयास करता है तो इसमें नुकसान किसका होने वाला है। लेकिन, हैरानी की बात तो ये है कि उस मोपला के भीषण नरसंहार (Massacre of Moplah Hindus) को अब तक की सभी सरकारों के द्वारा न सिर्फ क्लीन चिट दी गई बल्कि यदि कोई उसे उजागर करने का प्रयास भी करता है तो उसका सहयोग करने के बजाय उसे इस प्रकार से प्रताड़ित किया जा रहा है जैसे वह खुद भी उस नरसंहार का आरोपी हो। ऐसे में आवश्यकता है कि देश के तमाम हिंदूवादी संगठन और हिंदुत्व की आवाज उठाने वाले तमाम लोगों को सामने आकर इस फिल्म का समर्थन करना चाहिए ताकि सच सामने आ सके।