अजय सिंह चौहान || हमारे प्रमुख और पौराणिक ग्रंथों में से एक बृहत् संहिता के अनुसार ईश्वर वहीं वास करते हैं जहाँ झील की गोद में कमल खिलते हों, सूर्य की किरने उसके पत्तों के बीच से झांकती हों, जहां हंस कमल के फूलों के बीच घूम रहे हो और जहाँ प्राकृतिक सौन्दय झलक रहा हो। अगर हम बृहत् संहिता में वर्णित तीर्थों के विषय में बात करें तो पता चलता है कि इस प्रकार के अधिक से अधिक तीर्थ तो हमें हिमालय पर्वत श्रंखलाओं में और देश भर की अधिकतर पहाड़ियों में ही मिलते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि ऊंचे-ऊचें पर्वतों को ही भगवान शिव का मूल निवास स्थान माना जाता है।
हालांकि, दुनियाभर में इसके अलावा भी भगवान शिव के अनगिनत स्थान हैं जो उनके चमत्कारों के गवाह हैं और देश भर की अधिकतर पहाड़ियों में कहीं न कहीं ऐसे स्थान देखने और सुनने को मिल ही जाते हैं। लेकिन भगवान शिव के मूल निवास के रूप में कैलाश पर्वत और उसकी श्रृंखलाओं को ही पौराणिक काल से धार्मिक मान्यताओं में स्थान दिया गया है। इसी तरह का एक स्थान हिमालय पर्वत की श्रंखलाओं में स्थित हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले में भी है जिसे पौराणिक काल से मणिमहेश पर्वत के नाम से जाना जाता है।
यहां ध्यान देने वाली एक बात यह है कि सनातन धर्म में पूज्य हर कैलाश पर्वत के साथ एक सरोवर सर्वव्यापक है। जैसे कि तिब्बत में कैलाश पर्वत के साथ मानसरोवर झील है और आदि-कैलाश के साथ पार्वती कुंड है। उसी प्रकार यहां भरमौर में भी कैलाश पर्वत के साथ मणिमहेश सरोवर है।
मणिमहेश कैलाश धाम हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले से लगभग 65 किमी की दूरी पर स्थित है जो बुद्धिल घाटी में स्थित है। माना जाता है कि भगवान शिव यहाँ की पहाड़ियों में आज भी निवास करते हैं और मणिमहेश धाम से उन्होंने कई लोगों को दर्शन भी दिए हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि मणिमहेश कैलाश धाम उनकी बहुत सी परेशानियों से रक्षा करता है।
मणिमहेश कैलाश पर्वत की विशेषता यह है कि इसके शिखर से सुबह के समय एक ऐसा चमत्कारिक प्रकाश उभरता है जो इस पर्वत की गोद में स्थित मणिमहेश सरोवर के जल में प्रवेश करता है।
माना जाता है कि मणिमहेश कैलाश पर्वत पर यह अलौकिक प्रकाश भगवान शिव के गले में पहने शेषनाग की मणि से निकलता है। यह प्रकाश इस बात का प्रतीक माना जाता है कि भगवान शंकर कैलाश पर्वत पर बने अपने आसन पर विराजमान हो गये हैं। इसीलिए हिमाचल प्रदेश के इस चंबा जिले को विशेष रूप से शिवभूमि के नाम से भी जाना जाता है।
इस प्राकृतिक चमत्कार, उभरते हुए दिव्य और अलौकिक प्रकाश के दृश्य को देखने के लिए यहां हजारों वर्षों से हर साल विशेष तीर्थ यात्रा का आयोजन होता आ रहा है जिसे मणिमहेश कैलाश यात्रा के नाम से जाना जाता है।
मणिमहेश कैलाश की इस यात्रा में हजारों की संख्या में यात्री यहाँ आते हैं और बहुत ज्यादा ठंढ वाला तापमान होने के बावजूद भी सूर्य की पहली किरण के रूप में निकलने वाले इस विशेष प्रकाश को साक्षात् देखने के लिए सुबह-सुबह का इंतजार करते हैं।
मणिमहेश कैलाश धाम के इस पर्वत की उंचाई समुद्रतल से लगभग 18,550 फुट है, जबकि इसी पर्वत की गोद में स्थित और प्राकृतिक रूप से निर्मित मणिमहेश झील समुद्रतल से लगभग 13,400 फुट की उंचाई पर है।
मणिमहेश कैलाश पर्वत की चमत्कारिक विशेषता यह है कि इसके शिखर तक जहां से यह चमत्कारिक प्रकाश उभरता है वहां आज तक कोई भी पर्वतारोही नहीं पहुंच पाया है। और जो कोई भी पर्वतारोही वहां जाने की कोशिश करता है वह जिंदा वापस नहीं लौट पाता। पर्वतारोहण से संबंधित इतिहास बताता है कि भले ही एवरेस्ट पर कई लोगों ने बार-बार जीत हासिल की हो लेकिन, इस पर्वत पर आज तक कोई भी नहीं चढ़ पाया है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि एक बार एक गडरिये ने इस पहाड़ की चोटी पर चढ़ने की कोशिश की थी, मगर वह गडरिया वहां पहुँचने से पहले ही पत्थर का बन गया। उस गडरिया को खोजने और उसका पता लगाने के लिए जो लोग वहां गये थे उन्होंने देखा कि पर्वत की ऊंचाई पर वह गडरिया और उसके साथ जो भी भेड़-बकरियां थीं वो भी पत्थर के बन गये थे। कहते हैं आज भी उनसे मिलते-जुलते पत्थरों की आकृतियां वहां पड़ी हैं।
पौराणिक और एतिहासिक तथ्यों के आधार पर माना जाता है कि मणिमहेश कैलाश पर्वत सनातन धर्म के उन प्रमुख तीर्थ स्थानों में से एक है जिनकी दर्शन यात्रा हजारों सालों से चली आ रही है। कई पौराणिक ग्रंथों और साहित्य में इसे ‘नीलमणि पर्वत’ या ‘वैदूर्यमणि पर्वत’ के नाम से जाना जाता है। अंग्रेजी साहित्य में इसे ‘टरकोइज माउंटेन’ लिखा गया है।