अजय सिंह चौहान || जो लोग कश्मीर में बाबा अमरनाथ जी और हिमाचल के चंबा में स्थित भगवान मणिमहेश (Manimahesh Yatra Chamba Himachal Pradesh) की यात्रा कर चूके होते हैं वे अक्सर यही बात कहते हैं कि मणिमहेश की यात्रा अमरनाथ की यात्रा के बाद दूसरी सबसे कठिन यात्रा है। लेकिन, मैं अपने अनुभवों के आधार पर आप लोगों को यह कहूंगा कि मणिमहेश की यात्रा बबा अमरनाथ जी की यात्रा से ज्यादा कठीन है। और मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि मैंने दोनों ही यात्राएं की हैं और मैं दोनों ही यात्राओं की जमीनी हकीकतों और अपने अनुभवों के आधार पर ही ऐसा कह रहा हूं।
यह बिल्कुल सच है, मैंने सन 2010 में और फिर 2011 में यानी दो बार, बाबा अमरनाथ जी की यात्रा की थी और उसके बाद सन 2013 में चंबा में स्थित भगवान मणिमहेश (Manimahesh Yatra Chamba Himachal Pradesh)की भी पवित्र यात्रा की थी। और मैंने इन दोनों ही यात्राओं में वैसे तो कई समानताएं देखीं लेकिन जो एक सबसे खास बात है वह यह है कि बाबा अमरनाथ जी की यात्रा में पहाड़ों की सीधी चढ़ाई बहुत ही कम है जबकि साधारण, सीधे और मैदानी रास्ते ज्यादा से ज्यादा हैं। फिर चाहे पहलगांव से हो या फिर बालटाल की ओर से गुफा तक जाने और आने का मार्ग हो।
मणिमहेश का यात्रा मार्ग वैसे तो लगभग 14 किलोमीटर का ही है और इसका लगभग 80 प्रतिशत रास्ता चढ़ाई वाला है, लेकिन इस रास्ते को एक ही दिन में पार करना होता है। जबकि अमरनाथ जी की पैदल यात्रा में यदि हम पहलगांव से जाते हैं तो 45 किमी की इस दूरी में अधिक से अधिक 40 से 50 प्रतिशत रास्ते को ही पहाड़ी चढ़ाई वाला कहा जा सकता है, जबकि इस रास्ते में यात्रियों को दो अलग-अलग स्थानों के बेस कैंपों में आराम करने का भी अवसर मिलता है। वहीं अगर हम इसके दूसरे मार्ग यानी बालटाल वाले पैदल मार्ग से गुफा की ओर पहुंचते हैं तो इसमें हालांकि, पहलगांव के मुकाबले इसकी दूरी करीब 14 किमी ही है, लेकिन, इसमें चढ़ाई थोड़ी अधिक ही होती है। हालांकि, फिर भी इसका ज्यादातर रास्ता सीधा और कम चढ़ाई वाला ही है, इसलिए इस मार्ग के बारे में हम यह मान सकते हैं कि इसमें करीब 60 प्रतिशत मार्ग चढ़ाई वाला है। हालांकि मणिमहेश की तरह ही यहां भी रात को ठहरने की व्यवस्था नहीं है इसलिए यहां भी एक ही दिन में यह रास्ते पार करना होता है।
इसके अलावा, मणिमहेश यात्रा का पूरा का पूरा ट्रैक संकरा और खड़ा होने के कारण इस पर पैदल चलने में जितना ज्यादा से ज्यादा सावधान खुद को रहना होता है उतना ही इसमें दूसरे यात्रियों का भी ध्यान रखना पड़ता है। क्योंकि इसी रास्ते से होकर घोड़े-खच्चर भी चलते हैं और इक्का-दूक्का पालकी वाले भी आते-जाते रहते हैं। ऐसे में अगर कोई यात्री, बीच रास्ते में खड़े हो जाये तो आने-जाने वाले दूसरे यात्रियों का रास्ता रूक जाता है।
मैंने खुद इन दोनों ही यात्राओं में जो अनुभव किया है उसके अनुसार अमरनाथ जी की यात्रा में पैदल यात्रियों को यात्रा मार्ग में आराम करने के लिए ज्यादा से ज्यादा खाली जगह या मैदानी क्षेत्र मिल जाती है। जबकि मणिमहेश जी की यात्रा के रास्ते संकरे होने के कारण और पहाड़ों के खड़े होने होने के कारण यात्रा मार्ग के दोनों ही तरफ बहुत कम जगह मिलती है। ऐसे में यात्रियों को बीच-बीच में थोड़ा आराम करना होता है, लेकिन छोटे-छोटे पत्थर और फिसलन भरे रास्ते होने के कारण आराम करने के लिए बैठना भी बहुत खतरनाक होता है।
यहां सबसे ज्यादा परेशानी होती उन यात्रियों के लिए जो किसी तरह पैदल चल कर चढ़ जाते हैं और फिर दर्शन करने के बाद उन पहाड़ों से उतरते वक्त अगर वे घोड़े या खच्चर पर बैठ गए तो उनके लिए यह एक बहुत बड़ी आफत हो जाती है। इसलिए कोशिश करें कि आप मणिमहेश की यात्रा में वापसी के समय घोड़े या खच्चर पर न बैठें। क्योंकि यहां लगभग 80 प्रतिशत पैदल रास्ता चढ़ाई वाला है। और ऐसे में घोड़े या खच्चर के फिसलने का अंदेशा बहुत ज्यादा होता है। हालांकि, घोड़े या खच्चर ऐसे रास्तों पर चलने में माहिर तो होते हैं लेकिन, उन पर बैठने वाली सवारियों को इसका अनुभव नहीं होता। इसलिए वे कई बार डर जाते हैं और अपना संतुलन खो बैठते हैं। जबकि अमरनाथ जी की यात्रा में इस तरह की परेशानी ना के बाराबर ही देखने को मिलती है।
अमरनाथ जी की यात्रा में अधिकतर रास्ता या बैसकैंप वाले स्थान दूर-दूर तक समतल नजर आता है। जबकि हिमाचल के पहाड़ों में ऐसा बहुत ही कम देखने को मिलता है और खासकर मणिमहेश जी की इस यात्रा वाले क्षेत्र में तो ऐसा बहुत ही कम या यूं कहें कि न के बराबर देखने को मिलता है। लगभग सारे पहाड़ ऊंचे-ऊंचे और खड़ी चढ़ाई वाले ही नजर आते हैं।
इसमें एक बात और ध्यान देने वाली है कि बाबा अमरनाथ जी की गुफा की ऊंचाई समुद्रतल से लगभग 12,756 फिट है। जबकि, पीर पंजाल पर्वत श्रंखला में मणिमहेश पर्वत पर स्थित मणिमहेश झील की ऊंचाई समुद्रतल से 13,390 फिट है। जो कि अमरनाथ जी की गुफा से भी ज्यादा ऊंचाई पर है। इसलिए जैसे-जैसे आप ऊंचाई पर पहुंचते जायेंगे आपको परेशानी होती जायेगी और थकान भी बढ़ती जायेगी और सांस फूलने लगेगी। इसलिए ध्यान रखें कि यदि आप मैदानी क्षेत्रों के रहने वाले हैं तो ऐसी यात्राओं में और खासकर मणिमहेश की यात्रा में बुजुर्गों या छोटे बच्चों को ना ही ले कर जाएं, क्योंकि मैंने खुद ही देखा और महसूस किया है कि जैसे-जैसे आप ऊंचाई पर जायेंगे आपको घबराहट का एहसास होने लगेगा।
इन सब बातों के अलावा भी हमको अक्सर ऐसी खबरें देखने या सूनने को मिलती हैं कि कई लोग ऐसी यात्राओं को एक ट्रेकिंग और रोमांच के तौर पर लेते हैं और फिर मस्ती के मुढ़ में आकर गलतियां कर बैठते हैं जबकि ऐसा करना खतरनाक भी हो सकता है।
मणिमहेश जी की यात्रा के समय यहां का मौसम भी अक्सर बिगड़ जाता है जिसके कारण यात्रा मार्ग में कभी भी चट्टानों के धंसने के कारण पैदल रास्ते बहुत ही खतरनाक हो सकते हैं और जिसकी वजह से यात्री इन पहाड़ों में भटक सकते हैं, और कई तरह के जंगली जानवरों का शिकार भी बन सकते हैं। इन्हीं सब बातों का ध्यान रखते हुए भी इस यात्रा को बहुत ही कम समय के लिए आयोजित किया जाता है। हालांकि कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा और सरकार की तरफ से दी जाने वाली सुविधाओं की कमी तो नहीं है लेकिन फिर भी यात्रियों को अपनी सुरक्षा का ख्याल खुद ही करना चाहिए। क्योंकि ऐसी यात्राओं में हर समय और हर कदम पर सुरक्षा और सहायता कभी भी किसी को भी मिलना संभव नहीं होता।