अजय सिंह चौहान || अमरनाथ जी की पवित्र यात्रा (Memories Of The Amarnath Yatra), एक ऐसी यात्रा है जिसमें हर कोई व्यक्ति शामिल होना चाहता है और भगवान अमरनाथ जी के दर्शन करने की मन में प्रबल इच्छा रखता है। लेकिन, ऐसा हर किसी के लिए संभव नहीं हो पाता है। जबकि कई लोग तो इतने किस्मत वाले होते हैं कि वे यहां एक या दो बार नहीं बल्कि लगातार 15-15 और 20-20 सालों से, लगातार, यानी कई सालों तक लगातार इस यात्रा का हिस्सा बनते हैं। और क्योंकि ऐसे लोग जो यहां बार-बार और कई बार तो मात्र इसलिए जाते हैं, क्योंकि वे लोग यहां पैदल चलने में समर्थ होते हैं और पैदल चलकर ही इस यात्रा का आनंद भी लिया जा सकता है इसलिए वे लोग यहां जाते रहते हैं। और ऐसे श्रद्धालुजन तो इसके लिए हर साल 5 से 7 दिनों तक का समय विशेष तौर पर समय निकाल ही लेते हैं। भले ही यह यात्रा पैदल चलने वालों के लिए थोड़ी कठीन है, लेकिन फिर भी लाखों श्रद्धालु हर साल यहां पूरी तरह से आदर और श्रद्धा के साथ इस यात्रा में शामिल हो ही जाते हैं।
मैं भी इस यात्रा में दो बार शामिल हो चुका हूं इसलिए यहां मैं अपने अनुभवों के आधार पर बताने का प्रयास कर रहा हूं कि आखिर क्यों इस यात्रा में पैदल चलकर ही आनंद लिया जा सकता है। दरअसल, यहां मान्यता है कि भगवान शिव और पार्वती जी भी पहलगांव से पैदल चल कर ही गुफा तक पैदल ही गये थे। इसलिए श्रद्धालुओं को भी यहां पैदल चल कर ही जाना चाहिए। लेकिन आज हम यहां ऐसी कोई बात नहीं करेंगे कि यहां आने वाले सभी श्रद्धालुओं को भी इस यात्रा में पैदल चलकर ही जाना चाहिए।
अगर आप पैदल चलने में सक्षम हैं और आप भले ही यहां के आधे रास्ते में ही सही लेकिन पैदल चल सकते हैं तो जरूर चलना चाहिए। क्योंकि अगर आप यहां बार-बार नहीं जा सकते हैं तो कोई बात नहीं। लेकिन अगर आप पहली बार ही जा रहे हैं तो भी आपको इस यात्रा को यादगार बनाने के लिए इसमें पैदल जरूर चलतना चाहिए। लेकिन, किसी भी कारण से अगर पैदल चलने में असमर्थ हैं और आप इस यात्रा पर जाना ही चाहते हैं तो फिर आप किसी भी प्रकार के साधन का यहां इस्तमाल कर सकते हैं ऐसी कोई पाबंदी या नियम नहीं है। आखिर यही तो खासियत है हमारी सनातन धर्म की।
अगर हम यहां इस यात्रा में शामिल होने वाले श्रद्धालुओं के लिए मान्यताओं से परे हट कर समय और समस्याओं के अनुसार बात करें तो समझ में आता है कि अधिकतर श्रद्धालुओं को यहां शायद कुछ दो या तीन विशेष कारणों से आते देखा जाता है। जिसमें से एक तो ये कि वे यहां भगवान अमरनाथ जी के दर्शन करना चाहते हैं और। दूसरा कारण यह है कि वे इसी बहाने कश्मीर की सैर भी करना चाहते हैं लेकिन असुरक्षा के माहौल में ऐसा करना हर किसी के लिए संभव नहीं हो पाता है। तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण कारण यहां यह आता है कि अगर कोई भी श्रद्धालु यहां इस पूरी यात्रा (Memories Of The Amarnath Yatra) में पैदल चल कर इस यात्रा में शामिल होना चाहता है तो उसे कम से कम खर्च में ये दोनों ही लाभ मिल जाते हैं।
अमरनाथ जी की पवित्र यात्रा (Memories Of The Amarnath Yatra) के दौरान मेरी ऐसे कई श्रद्धालुओं से मुलाकात हुई जिन्होंने साफ-साफ कहा कि वे किसी भी कीमत पर यहां हर वर्ष आते रहते हैं। ऐसे में कहा जा सकता है कि उन श्रद्धालुओं की संख्या हर वर्ष सबसे अधिक होती है जो किसी भी कीमत पर इस यात्रा में आना चाहते हैं और दर्शन करना चाहते हैं। उनके लिए फिर यहां सुरक्षा और असुरक्षा, सुविधा और असुविधा, आराम और थकान जैसी अनेकों प्रकार की समस्याओं के बारे में सोचने का कोई मतलब नहीं रह जाता।
श्री अमरनाथ जी की इस पैदल यात्रा (Memories Of The Amarnath Yatra) में ऐसे लोग भी देखे जाते हैं जो अच्छी-अच्छी क्वालिटी के जूते पहन कर पैदल यात्रा करते हैं ताकि उनके पैरों को नुकसान ना हो और आराम भी मिले। लेकिन वहीं कई श्रद्धालु ऐसे भी मिलते हैं जो इस पुरी पैदल यात्रा में बर्फ के ऊपर से, बर्फीले पानी में से, कीचढ़ में से, चट्टानों और पथरीले रास्तों पर लगातार तीन दिनों तक, एक दम नंगे पैर चलते हुए बाबा अमरनाथ जी के दर्शन करने के बाद ही अपने पैरों में चप्पल या जूते पहनते हैं।
यह बात तो सभी को मालुम है कि यहां पैदल चलना पड़ता है और वो भी यहां के ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों पर लेकिन शायद जो यहां कभी नहीं गया उन्हें यह नहीं मालूम कि इस यात्रा का पैदल मार्ग कुल मिलाकर लगभग 48 किलोमीटर का है और अधिकतर श्रद्धालु यहां इस पूरी यात्रा को पैदल चल (Memories Of The Amarnath Yatra) कर ही तय करते हैं और वो भी ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों में, गहरी घाटियों में, खतरनाक ग्लेशियों को पार करते हुए, कीचड़ से भरे कच्चे रास्तों से, पथरीले और फिसलन भरे अधिकतर ऐसे संकरे रास्तों से जहां अगर पैदल चलने में जरा सी भी चुक हो जाती है तो सैकड़ों फिट गहरी खाई में गिर कर कोई भी यात्री वापस नहीं आ पाता है।
लेकिन, अब तो यहां हेलीकाॅप्टर की सुविधा भी है इसलिए जो लोग यहां पैदल या फिर घोडे, खच्चर या फिर पालकी में चलने में भी असमर्थ हैं होते हैं वे लोग भी इस यात्रा का हिस्सा बनते जा रहे हैं। और अपने आप को भाग्यशाली समझने लगे हैं। इसके अलावा यहां जो दूसरी सबसे खास बात देखने को मिलती है वो ये कि यहां हेलीकाॅप्टर, घोडे, खच्चर या फिर पालकी की सुविधा खास कर उन लोगों के लिए है जो यहां लगभग एक किलोमीटर भी पैदल नहीं चल पाते हैं। लेकिन आजकल तो पता नहीं क्यों? कुछ हट्टे-कठ्टे नौजवान स्त्री और पुरुष भी इन सब सुविधाओं का लाभ लेने लगे हैं। शायद ऐसे लोगों के लिए यहां तक जाना और इन सुविधाओं का लाभ लेना या फिर इतने पैसे खर्च करना कोई बड़ी बात नहीं रह गई है और वे किसी भी कीमत पर इस यात्रा (Memories Of The Amarnath Yatra) को करना ही चाहते हैं। या यूं कहें कि इस यात्रा को पैसे के दम पर करने और फिर इसमें फोटोग्राॅफी और वीडियोग्राॅफी का लाभ लेकर सोशल मीडिया में कुछ लाइक्स लेकर अपने को भी भगवान का भक्त समझने की नासमझ कोशिश करना और फिर अपने अनुभवों को कुछ ही लोगों में शेयर करना भर हो सकता है।
कारण जो भी हो, लेकिन, जो आनंद इस यात्रा में शामिल होकर और यहां पैदल चलने में और यहां के बेसकैपों में रात गुजार कर, पारंपरिक तरीके से इस यात्रा को पुरा करने के बाद भगवान अमरनाथ जी के दर्शन करने में और यहां के लंगरों में स्वादिष्ट भोजन करके मस्ती में झूमते हुए पूरे आदर और श्रद्धा के साथ यहां पैदल चलने वाले सैकड़ों और हजारों यात्रियों के बीच जयकारे लगाने में है वो आनंद यहां घोडे पर बैठकर या फिर पालकी में चलने में या हेलीकाॅप्टर से यात्रा को पूरा करने में तो मिलेगा ही नहीं।
इसके अलावा यहां जो एकजुटता और भाईचारा यात्रियों में और उनकी सुरक्षा में लगे भारती सेना के जवानों के बीच देखने को मिलता है, और यहां इतनी दूर आकर उनके साथ फोटोग्राफी करवाने में मिलता है वो आनंद आपको घोडे़ पर या हेलीकाॅप्टर में तो मिलना दूर की बात है आप सोच भी नहीं सकते हैं।
देश के प्रति अपने कर्तव्य और धर्म के प्रति त्याग, सहनशील, इमानदार और मेहनती सैनिकों को यहां उस समय बहुत ही ज्यादा खुशी होती है जब इस यात्रा की तारीख तय हो जाती है। क्योंकि यही वह समय होता है जब उन्हें देशभर से आने वाले उन श्रद्धालुओं की साक्षात सेवा का दोहरा अवसर मिलता है। क्योंकि ये सभी सैनिक यहां आने वाले सभी श्रद्धालुओं में अपने ही परिवार, गांव और शहर के लोगों को देखते और समझते हुए उनकी सेवा और रक्षा करते हैं।
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यहां आप यह भी देख सकते हैं कि कैसे अगर कोई पैदल यात्री चलने में असमर्थ हो जाता है या ज्यादा देर तक एक ही जगह बैठ कर सुस्ताने लगता है तो दूर से देख रहे सेना के जवानों में एक-दो जवाना उसके पास पहुंच कर उसका हौसला बढ़ाते हैं। और अगर फिर भी वह चल नहीं पाता है तो वही जवान उन्हें अपनी पीठ पर बैठा कर उसे आगे तक ले जाते हैं। या फिर अगर आप को यहां पीने वाला पानी ठंडा लग रहा है तो यहां पर आपकी सेवा में तैनात सीआरपीएफ या फिर गोरखा रेजीमैंट के जवान आपके लिए गुनगुने पानी की व्यवस्था भी कर देते हैं। या फिर कुछ ऐसे बुजुर्ग जो यहां तक पैदल चल कर आते हैं और उनके पैरों में दर्द हो रहा हो तो वे जवान उनके पैरों का दर्द दूर करने के लिए पैरों की मालिश भी करते हुए देखे जा सकते हैं।
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अगर आप वहां पैदल चल कर उनसे नहीं मिलते हैं और हेलीकाॅप्टर में बैठकर उनके ऊपर से उड़कर आगे निकल जाते हैं तो उन्हें लगता है कि साल में एक बार ही तो ऐसा मौका मिलता है कि जब हम यहां इन ऊंचे-ऊंचे और सुनसान पहाड़ों की बर्फीली वादियों में अपने देश के कोने-कोने से आने वाले अपने परिवार के लोगों को देख सकें।
और अगर यहां इन सैनिकों की हिम्मत, ताकत, मेहनत, सेवाभाव और हौसले को देखकर भी कोई यात्री जब उनके धन्यवाद कहता है तो वे उनका एक ही जवाब होता है कि, अभी तो हम अपनी ड्यूटी पर हैं, यानी अभी तो हम वह काम कर रहे हैं जो हमारा कर्तव्य बनता है तो इसमें धन्यवाद कैसा? ये तो हमारा फर्ज है।
और अगर कोई ऐसा नौजवान जो यहां पैदल चलने में समर्थ होते हुए भी अगर यहां घोड़े पर बैठकर या फिर पालकी में या हेलीकाॅप्टर से यात्रा इस यात्रा पर जाता है या गया है और फिर यह कहता है कि मैंने भी इस यात्रा का भरपूर आनंद लिया है तो शायद यह उसकी भूल हो सकती है। क्योंकि यहां पैदल यात्रियों के जो अनुभव होते हैं, वे अनुभव अपने आप में एक देव स्थान या यूं कहें कि देव लोक की यात्रा के समान होते हैं।
चलो मान भी लिया जाय कि आप के पास समय की कमी है और आप इस यात्रा में 4 या 5 दिनों का वक्त नहीं दे सकते हैं तो फिर आप कम से कम 2 से 3 दिनों का वक्त तो देना ही चाहिए। क्योंकि इन 2 से 3 दिनों में भी आप इस यात्रा में पैदल चल कर यात्रा करने के उन सारे अनुभवों का आनंद ले सकते हैं और फिर भले ही इस यात्रा के परंपरागत वाले रास्ते से यानी पहलगांव वाले रास्ते से ना भी यात्रा कर सकें तो कोई बात नहीं, लेकिन ऐसे में आप बालटाल वाले रास्ते से तो यह यात्रा कर ही सकते हैं। यहां भी आपको वही आनंद और अनुभव मिलेगा जो पहलगांव वाले परंपरागत रास्ते में मिलता है।
बालटाल वाल इस रास्ते से आप 4 से 5 दिनों की बजाय, 2 दिनों में भी यह यात्रा पुरी कर सकते हैं। यहां भी आपको उसी तरह के अनेकों लंगरों में मिलने वाला वही स्वादिस्ट भोजन मिलेगा, वही वादियां मिलेगी, वही जयकारे लगाने वाले साथी मिलेंगे। यहां भी आपको उसी प्रकार से पैदल यात्रियों की वही एकजुटता देखने को मिलेगी। यहां भी आपको उसी प्रकार से भारती सेना के जवान आम यात्रियों की सेवा करते हुए दिख जायेंगे।
तो अगर आप लोग भी बाबा अमरनाथ जी की इस पवित्र यात्रा पर जा रहे हैं तो मैं तो यही कहूंगा कि आप लोग भी यहां हवाई हेलीकाॅप्टर से ना जाकर पैदल ही यात्रा करें और हमारे सैनिक जो यहां आने वाले हजारों और लाखों श्रद्धालुओं का साल भर से इंतजार रहते हैं। चाहे फिर यह पैदल यात्रा पहलगांव के रास्ते से हो या फिर बालटाल के रास्ते से। जो आनंद आप को यहां पैदल चल कर आने वाला है वह आनंद देश के किसी भी महानगर के किसी भी पांच सितारा होटलों में या किसी भी माॅल में नहीं आने वाला है। इसीलिए, कम से कम मैं तो यही कहूंगा कि अगर आप लोग भी इस यात्रा में शामिल होने जा रहे हैं तो इसको यादगार बनाने के लिए इसे पैदल जरूर चलतना चाहिए।