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यहाँ बेटियों के मरने के बाद भी उनकी कब्रों पर पहरेदारी क्यों करते हैं लोग? | Guard of the Graves

admin 15 February 2021
NECROPHILIA__Screenshot - 12_16_2020 , 2_04_20 PM
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AJAY-SINGH-CHAUHAN__AUTHOR

अजय सिंह चौहान | फैसबुक पर एक पोस्ट पढ़ी, लिखा था कि ‘पाकिस्तान में जब किसी सुंदर लड़की या फिर किसी महिला की मृत्यु होती है तो उसके परिजन अगले कई दिनों तक उस कब्र की पहरेदारी करते हैं। और अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो अक्सर कुछ ऐसा होता कि अवसर पाकर कुछ लोग वहां आते हैं और उस ‘शव‘ को या यानी उस डेड बाॅडी को कब्र से निकाल कर उसके साथ अपनी ‘योन कुंडा‘ निकालते हैं। यानी इसे अगर हम दूसरी भाषा में कहें तो बलात्कार कर जाते हैं।’

उस पोस्ट को पढ़ने के बाद मेरे मन में एक सवाल आया कि, क्या यह कोई परंपरा है या फिर एक सामाजिक बुराई? या फिर कोई ऐसा डर, कि अगर उस सुंदर लड़की या महिला की कब्र की पहरेदारी ना की जाये तो वहां कोई शैतानी आत्मा या फिर कोई भूत-प्रेत आकर उस मृत शरीर को अपने साथ ले जातें हैं या कोई जादू-टोना करने वाले उन लाशों का उपयोग करते हैं? क्या ऐसा सिर्फ किसी सुंदर लड़की या सुंदर महिला की डेड बाॅडी के साथ ही होता होगा या फिर किसी अन्य व्यक्ति की डेड बाॅडी के साथ भी होता होगा?

गुगल पर उपलब्ध है खबरें –
इस विषय पर कम से कम मुझे तो याद नहीं कि मैंने पहले शायद ऐसा कभी सूना होगा या फिर अपने आस-पास के माहौल में ऐसी कोई घटना घटित हुई होगी। लेकिन, जब मैंने ‘गुगल गुरु’ से इस बात की जानकारी लेनी चाही तो शुरूआत में तो मैं खुद भी नहीं समझ पाया कि इस विषय पर प्रश्न क्या करूं, या फिर क्या लिखूं, जिससे कि उसका उत्तर मुझे सटीक मिल सके, या फिर कुछ उसी प्रकार कोई घटना के बारे में कोई जानकारी मिल सके।

मौत के बाद भी बलात्कार का खौफ : बहु बेटियों की कब्र पर ताला लगाकर पहरेदारी को मजबूर परिजन…

लेकिन, जब मैंने बस यूं ही एक आधा-अधूरा वाक्य डाल कर गुगल में क्लीक किया, तो मेरे सामने एक ऐसी खबर आई जिसे देख कर, कुछ पल के लिए मैं हैरान तो जरूर हुआ लेकिन, उसके बाद फैसबुक की उस पोस्ट और गुगल की इस खबर को लेकर इंटरनेट पर और अधिक सामग्री की खोज-पड़ताल करना मेरे लिए कुछ आसान भी हो गया और फेसबुक की उस खबर की पुष्टी भी हो गई।

हैरान करने वाले तथ्य –
खोज करते-करते मेरे सामने एक ऐसा शब्द आया जो सीधे-सीधे बता रहा था कि यह एक प्रकार की बीमारी है जो नेक्रोफिलिया (Necrophilia) कहलाती है। मैंने जब उस नेक्रोफिलिया शब्द का हिन्दी अनुवाद जानना चाहा तो पता चला कि इसको हिन्दी में ‘शव कामुकता’ कहा जाता है। ठीक उसी प्रकार से जैसे कोई व्यक्ति, किसी लड़की या महिला से एकतरफा प्यार करता है या उसे चाहता है, लेकिन वह लड़की उसे ना तो चाहती है और ना ही उसकी तरफ देखती है।

जब मैंने नेक्रोफिलिया के विषय में विस्तृत जानकारी पढ़नी शुरू की तो पता चला कि यह ना तो कोई परंपरा है और ना ही कोई काल्पनिक कहानियों का संसार। बल्कि यह तो एक प्रकार की बीमारी है जो ना सिर्फ इंसानों में बल्कि कुछ स्तनधारी जानवरों, पक्षियों, सरीसृप जानवरों और मेंढ़कों तक में भी देखी जाती है।

क्या कहता है विज्ञान –
विज्ञान और मनोविज्ञान के जानकारों ने इस विशेष प्रकार की आदत या इच्छा को ‘नेक्रोफिलिया‘ (Necrophilia) शब्द दिया है और बताया है कि अगर कोई किसी ‘शव‘ के साथ अपनी कामुकता को शांत करना चाहता है तो उसकी उस आदत को नेक्रोफिलिया कहा जाय।

दरअसल, दुनिया के सामने ‘नेक्रोफिलिया‘ शब्द को रोजमैन और रेजिनक नाम के दो विद्वानों ने सन 1989 में मानसिक रोग के 34 मामलों का अध्ययन करने के बाद दिया, और उससे जुड़े कुछ उदाहरण देकर यह भी बताया कि नेक्रोफिलिया के शिकार, यानी शव-प्रेमी, या फिर यूं कहें कि मृत देह के साथ कामुकता की हद तक जाने वाले वे व्यक्ति कई कारणों से लाश के साथ अपनी कामुकता को शांत करने की कोशिश करते हैं।

उन विद्वानों ने इसे नेक्रोफिलिया नाम दिये जाने के विषय में बताया कि ग्रीक भाषा में ‘नेक्रो‘ का मतलब होता है ‘शव‘ यानी लाश और ‘फीलिया‘ का मतलब है ‘प्यार‘। इस तरह दो शब्दों को मिलाकर एक नया शब्द ‘नेक्रोफीलिया‘ बन गया। यानी, ‘नेक्रोफीलिया‘ का मतलब है ‘मरे हुए लोगों की देह के साथ अपनी कामुकता को शांत करके आनंद हासिल करना’।

कामुकता का आकर्षण और ‘नेक्रोफीलिया‘ –
वैज्ञानिकों ने अपनी खोज में ‘नेक्रोफीलिया‘ को कुकर्म से जुड़ी दुनिया की सबसे खतरनाक विकृति के रूप में माना है। रोजमैन और रेजिनक के अनुसार- कभी-कभी एक ऐसे Necrophilia News from Pakistanसाथी की चाह जो न तो उन्हें अस्वीकारे, और ना ही उनका विरोध करे, ऐसा करीब 68 प्रतिशत में देखा गया। इसके अलावा दूसरे कारण के तौर पर एक प्रेमी के साथ पुनर्मिलन की इच्छा का कारण भी 21 प्रतिशत तक पाया गया।

साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि ‘नेक्रोफीलिया‘ से ग्रसित लोगों में लाशों के प्रति यौन आकर्षण के मामले 15 प्रतिशत तक देखे गये। जबकि, अकेलापन दूर करने से संबंधित मामलों में यह संख्या 15 प्रतिशत थी। साथ ही साथ उन्होंने यह भी बताया कि मरे हुए व्यक्ति के ऊपर अपना अधिकार जमाकर उसके प्रति अपना आत्म-सम्मान बढ़ाने की चाह में ऐसे लोगों की संख्या 12 प्रतिशत तक देखी गई।

सीधे-सीधे कहें तो ‘नेक्रोफीलिया‘ का मरीज व्यक्ति शव के प्रति कामुकता का आकर्षण महसूस करता है। कभी-कभी तो कुछ लोग इस चाहत के चलते पहले उस लड़की या उस औरत की हत्या कर देते हैं, फिर उसके शव के साथ शारीरिक संबंध बनाते हैं। यानी अगर वह महिला जिंदा न भी मिले तो उसे मार कर उसकी लाश के साथ भी अपनी यौन कुंठा को शांत करना पड़े तो कोई गम नहीं।

शोधकर्ताओं के दावे –
हालांकि, इसमें सिर्फ पुरूष ही नेक्रोफिलिया के शिकार होते हैं ऐसा भी नहीं है। क्योंकि शोध में यह दावा किया गया है कि इसमें दस में से नौ नेक्रोफिलिया के शिकार पुरुष हैं तो 1 महिला भी है। सन 1979 में घटित एक घटना के अनुसार अमेरिका की करेन ग्रीनली नामक एक महिला ने यह स्वीकार किया था कि उसने कैलिफोर्निया के सैक्रामेंटो में मेमोरियल लाॅन मोरचुरी यानी मुर्दाघर में, जहां वह कार्य करती थी, करीब 40 से भी अधिक पुरूषों की लाशों के साथ शारीरिक संबंध बनाने जैसी घटनाओं को अंजाम दिया था।

इस मस्जिद में थी शुद्ध सोने से बनी देवी सरस्वती की मूर्ति लेकिन…

इस विषय पर भले ही मुस्लिम देशों से सबसे अधिक आंकड़े आते हों, लेकिन, हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि हमारे देश में भी सन 2006 में इसी प्रकार का एक मामला नोएडा के बहुचर्चित निठारी कांड के रूप में आ चुका है।

पश्चिमी देशों और खास कर पाकिस्तान या अन्य मुस्लिम देशों से या फिर मुस्लिम बहुल आबादी वाले अन्य क्षेत्रों से इस प्रकार की घटनाओं की खबरें कई बार आ चुकी हैं। ऐसे में सवाल आता है कि आखिर ऐसा क्यों है और क्या यह कोई किसी धर्म या समुदाय विशेष की परंपरा है, या फिर एक सामाजिक बुराई या फिर कोई मानसिक रोग?

क्या है हकीकत –
मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि नेक्रोफीलिया एक ‘मृत देह‘ के साथ पैथोलाॅजिकल आकर्षण से जुड़ा विशेष मानसिक रोग है, जो अक्सर संभोग में उनके साथ जुड़ने की इच्छा का रूप लेता है, जैसे कि जीवित अवस्था में होता है।

मनोवैज्ञानिकों द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार यह बीमारी सामान्य रूप से हमारे समाज में बहुत बड़े स्तर पर तो नहीं है लेकिन, फिर भी हर 10 लाख व्यक्तियों में से एक में होती है। लेकिन अगर हम इसमें इस्लामी समुदाय के आंकड़ों को देखें तो इस्लाम में हर दसवां व्यक्ति नेक्रोफिलिया का शिकार है।

अब यहां यह सवाल उठता है कि क्या नेक्रोफिलिया नामक यह बीमारी सिर्फ आज ही की पीढ़ी में देखने को मिलती है? या फिर इतिहास में भी इसके कोई उदाहण हैं? तो अगर यहां हम भारत की किसी ऐतिहासिक घटना को नेक्रोफिलिया से जोड़कर उदाहरण पेश करेंगे तो अधिकतर लोगों को विश्वास ही नहीं होगा। जबकि भारत के मध्यकालीन इतिहास में नेक्रोफिलिया से जुड़े एक या दो नहीं बल्कि सैकड़ों-हजारों उदाहरण तथ्यों के साथ हमारे सामने हैं। लेकिन, उन तथ्यों और आंकड़ों पर खुद हमने ही गौर नहीं किया, और ना ही उन्हें नेक्रोफिलिया जैसी बीमारी से जोड़ कर देखा गया।

विश्व स्तर पर उदाहरण –
भारत की ऐसी किसी ऐतिहासिक घटना पर बात करने की बजाय, पहले यहां सीधे-सीधे मिस्र की साम्राज्ञी क्लियोपेट्रा के विषय में बात करना ज्यादा उचित रहेगा। क्योंकि अगर हम किसी विदेशी ऐतिहासिक घटना को तथ्यों के साथ पेश करें तो सभी को आसानी से विश्वास हो जायेगा।
तो, यहां अगर हम ऐतिहासिक तथ्यों की मानें तो मिस्र की साम्राज्ञी क्लियोपेट्रा ने अपनी मौत खुद ही चुनी थी। और जो मौत उसने अपने लिए खुद ही चुनी थी उससे दुनिया स्तब्ध थी। आखिर ऐसा क्या हुआ होगा कि एक महिला नग्न अवस्था में अपने स्तन पर सांप से डसवाने को विवश हो जायेगी?

दरअसल, क्लियोपेट्रा ने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि वह जानती थी कि जिस फौज ने उसके देश मिस्र पर हमला किया है वे कोई और नहीं बल्कि इस्लामिक फौज के लोग हैं, इसलिए उसने अपने स्तन पर सांप से दंस मरवाया, ताकि, उसके पूरे शरीर में जहर फैल जाएगा, और जब पूरे शरीर में जहर फैल जाएगा तो उसके इंफेक्शन के डर से कोई भी शत्रु उसकी मृत देह के साथ बर्बरता वाला ‘कामुक कार्य’ नहीं कर पाएगा, और साथ ही स्तनों को भी वे अपने मुँह में लेकर कुचल नहीं पाएगें। क्योंकि वह जानती थी कि इस्लामिक फौज के वहशियों का क्या, वे किसी भी हद तक जा सकते हैं।

इतिहासकारों ने इस घटना के विषय में आगे लिखा है कि मिस्र की साम्राज्ञी क्लियोपेट्रा के पूरे शरीर में जहर फैल चुका था, बावजूद इसके उसके शव के साथ उस इस्लामिक फौज के लोगों ने तीन हजार बार बलात्कार किया था।

क्लियोपेट्रा की मौत की तरह ही भारत में भी नेक्रोफिलिया रूपी यह समस्या मुगलों के आक्रमणों के दौर में सैकड़ों-हजारों बार हुईं। हालांकि, अब भी यदा-कदा उसके उदाहरण देखने को मिल ही जाते हैं।

भारतीय इतिहास में नेक्रोफिलिया –
भारतीय इतिहास में नेक्रोफिलिया के उदाहरण एक या दो नहीं बल्कि सैकड़ों-हजारों की संख्या में देखने और पढ़ने को मिलते हैं, जिसमें सोमनाथ मंदिर पर हुए आक्रमणों के समय सबसे अधिक देखा गया था। इसी तरह बार-बार होने वाले मुगलों के आक्रमणों के चलते ही अचानक, भारत में महिलाओं के द्वारा जौहर और सति होने जैसी ‘कुप्रथा’ ने भी जन्म ले लिया। लेकिन, इस विषय पर विस्तार से ना तो चर्चा हो सकी है और ना ही कोई जानना ही चाहता।

अब अगर हम भारतीय इतिहास के मुगलकालीन दौर में घटित नेक्रोफिलिया से जुड़े कुछ प्रमुख उदाहरण देखें तो हमें सीधे-सीधे रानी पद्मावती और रानी संयोगिता के जौहर से जुड़ी उन ऐतिहासिक घटनाओं की याद ताजा हो जाती है।

इसी तरह पृथ्वीराज चैहान की पत्नी संयोगिता को भी मालुम था कि मोहम्मद गोरी का सेनापति कुतुबुद्दीन, उसके साथ-साथ उन हजारों हिंदू महिलाओं की मृत देह के साथ कुकर्म करके अपनी कुंठा निकलेगा। यही कारण था कि संयोगिता ने भी उन हजारों हिंदू महिलाओं के साथ जौहर कर दिया, और जब कुतुबुद्दीन उस किले के अंदर पहुंचा तो उसे वहां उन महिलाओं की चिताओं की ठंडी राख ही मिली, जिनके लिए वह यह युद्ध कर रहा था।

विश्व स्तर पर नेक्रोफिलिया –
नेक्रोफिलिया से जुड़ी ऐसी तमाम ऐतिहासिक घटनाओं में चाहे मिस्र की साम्राज्ञी क्लियोपेट्रा हो, रानी पद्मावती हो या फिर रानी संयोगिता, या फिर कब्र में दबी किसी सुंदर लड़की या महिला की लाश।

अब अगर हम नेक्रोफिलिया से जुड़ी इतिहास की मात्र एक-दो घटनाओं का ही उदाहरण दे कर इसे छोड़ दें तो यह भी तो ठीक नहीं है। क्योंकि, इस प्रकार की घटनाओं का जिक्र इतिहास में कई बार आया है। ग्रीक के एक इतिहासकार हेरोडोटस ने लिखा है कि प्राचीन मिस्र में, असाधारण सुंदर महिलाओं के शवों के साथ भी कई बार इस प्रकार का व्यवहार किया गया है।

यदि हम सैन्य संघर्षों और युद्धों में विजय और पराजय के बीच नजदीकी इतिहास की कुछ अन्य घटनाओं का उदाहरण देखें तो 15वीं शताब्दी दौरान फ्रेंच आर्मी के एक सेना नायक गिल्स डी रईस के द्वारा भी युद्ध में विजय होने के बाद पीड़ितों के शवों का यौन शोषण करने के उदाहरण मिलते हैं।

क्या गलत होगा अगर भारत हिंदू राष्ट्र बनता है तो? | India Hindu Nation

सन 1990 में न्यूयाॅर्क के एक अमेरिकी सीरियल किलर आर्थर शाॅक्राॅस ने भी 11 लोगों की हत्या करके नेक्रोफिलिया का उदाहरण प्रस्तुत किया था। सन 994 के आस-पास रवांडा में हुए नरसंहार के दौरान भी महिलाओं के शवों के साथ इसी प्रकार के व्यवहार की सूचनाएं मिलीं थी। ठीक इसी प्रकार से अन्य कई देशों में भी इस प्रकार की अनेकों घटनाएं हो चुकी हैं।

नेक्रोफिलिया के खिलाफ कानून –
अब अगर हम नेक्रोफिलिया जैसे गंभीर मानसिक रोग या इसके रोगी को रोकने या उसे सजा देने के लिए बने कानून और न्यायव्यवस्था की तो, भारत की कानून और न्यायव्यवस्था में संभवतः ऐसा कोई नया या पुराना दंडात्मक प्रावधान नहीं है। हालांकि, जानकार मानते हैं कि इस प्रकार की किसी घटना में भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को भी लागू किया जा सकता है।

हालांकि, वर्तमान में इसके लिए कई देशों ने अपने-अपने कानूनों में कुछ विशेष प्रावधानों को जोड़ना शुरू कर दिया है। लेकिन, इसमें सबसे बड़ी बाधा यह आती है कि नेक्रोफिलिया से पीड़ित व्यक्ति पर आपराध साबित ही नहीं हो पाता है तो फिर उसे सजा कैसी? इसीलिए अब तक वे सीधे-सीधे बच निकलते रहे हैं।

उदाहरण के तौर पर यहां अमेरिका और पाकिस्तान की दो अलग-अलग घटनाओं का जिक्र किया जा सकता है। जिसमें पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के रहने वाले मौहम्मद फरमान अली और मौहम्मद आरिफ अली नामक दो भाईयों से जुड़ी सन 2011 की एक घटना का उदाहरण दिया जा सकता है। उन दो भाइयों पर इल्जाम था कि उन्होंने करीब 150 मुर्दों को कब्र से निकालकर खाया था। इस अपराध के लिए पाकिस्तान के कानून में कोई विशेष प्रावधान ना होने की वजह से उन्हें कब्र से छोड़छाड़ के अपराध में दो वर्षों की सजा दी गई थी। लेकिन, दो वर्षों के बाद वे फिर से बाहर आ गये और कुछ दिनों बाद उन्हें फिर से इसी प्रकार का अपराध करते हुए पाया गया।

इसी प्रकार से करेन ग्रीनली द्वारा कैलिफोर्निया में की गई वह घटना भी उस समय एक प्रकार के अपराध की श्रेणी में नहीं मानी जा रही थी इसलिए उस महिला पर केवल चोरी करने और अंतिम संस्कार में हस्तक्षेप करने का आरोप लगा कर उसे दोषी ठहराया गया और मात्र 255 अमेरिकी डाॅलर का जुर्माना और 11 दिन जेल जेल में रहने की सजा सुनाई थी। और तो और रिहाई के बाद, उस महिला को अपनी उसी नौकरी पर फिर से बहाल भी कर दिया गया था।

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