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आंदोलन और संघर्ष में फर्क

admin 4 March 2021
Movement and struggle
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किसी भी नीतिपूर्ण बात को मनवाने के लिए या निश्चित उद्देश्य की पूर्ति हेतु शासक या व्यवस्था पर दबाव व्यक्त करने के लिए की जाने वाली सामूहिक गतिविधि या फिर हलचल को आम बोल-चाल की सबसे सरल भाषा में आंदोलन कहा जाता है। दूसरी भाषा में कहें तो आंदोलन किसी भी उद्देश्य के लिए किया जाने वाला एक व्यापक तथा सामूहिक प्रयास होता है।
जहां एक ओर आंदोलन को सामूहिक संघर्ष कहा जाता है वहीं कुछ लोग इसे संघर्ष के साथ भी जोड़कर देखते हैं लेकिन यहां दोनों ही शब्द परस्पर विपरीत अर्थों वाले हैं यानी दोनों का ही अलग-अलग मतलब होता है।

आंदोलन समाज को जोड़ने वाला या समाज के साथ मिलकर की जाने वाली गतिविधि का नाम है तो वहीं संघर्ष किसी भी व्यक्ति या परिवार के लिए रोजमर्रा की जिंदगी का निजी अभिन्न हिस्सा कहलाता है।

विभिन्न वर्गों में बँटे और शोषण पर टिके हमारे समाज में व्यक्तियों को हर रोज अनगिनत रूपों में संघर्ष करते देखा जा सकता है यानी संघर्ष व्यक्ति, समूह या वर्ग विशेष के संघर्ष का हिस्सा हो सकता है लेकिन इन सबको आदोलन नहीं कहा जा सकता।

खास कर भारतीय लोकतंत्र में धरना-प्रदर्शन, कार्य बहिष्कार और जेल भरो आंदोलन, सत्याग्रह आदि अधिकार एवं न्याय मांगने के माध्यम होते हैं। आजादी के समय महात्मा गांधी ने नारा दिया था कि- ”न मारेगें न मानेंगे बहादुर कष्ट झेलेंगे”। यही कारण रहे हैं कि आंदोलनों के दौरान आंदोलनकारी पुलिस की लाठी-गोली खाने के बावजूद हिंसक नहीं होते हैं।
आज कल आंदोलन, विरोध, कार्य बहिष्कार एवं हड़ताल के सहारे जितनी सफलता कर्मचारी

संगठनों को मिल जाती है उतनी आम लोगों को धरना-प्रदर्शन करने पर जल्दी नहीं मिल पाती है। जैसे कि कहा जाता है कि- ”संघे शक्ति कलियुगे” अर्थात कलियुग में सगंठन की शक्ति ही महाशक्ति होती है इसीलिए लोकतंत्र में संगठन बनाकर संघर्ष करने की सलाह दी जाती है।

वहीं संगठन और एकजुटता के उदाहरण के तौर पर अगर हम किसी को मुक्का मार दें तो वह मरणासन्न भी हो सकता है, लेकिन, अगर उसी मुक्के की उन अलग-अलग पांचों अगुंलियों को एक-एक करके आसानी से तोड़ा जा सकता है। इसे अगर हम दूसरी भाषा में कहें तो किसी भी संगठन के कर्मचारियों की एकजुटता। यहां एकरूपता एवं संघर्ष की पराकाष्ठा के नमूने हैं लेकिन अब इन संगठनों में भी राजनीति शुरू हो चुकी है। यही कारण है कि वह जब जो चाहते हैं उसे सरकार से मनवा लेते हैं और कोई उनका बाल तक बांका नही कर पाता है।

– कार्तिक चौहान 

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