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भारतीय चिकित्सा पद्धति में प्राचीन ‘मड थेरेपी’ | Mud therapy- ancient Indian medical since

admin 3 May 2022
Mud therapy- ancient Indian medical since
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ब्रह्मंड में सृष्टि की रचना के समय से ही पूरी सृष्टि की रचना पंच तत्वों यानी आकाश, जल, वायु अग्नि, पृथ्वी से हुई है। इनमें से पृथ्वी एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। पृथ्वी सबको धारण करने वाली सर्वबीजमयी, सर्वशक्ति, सर्वकाम प्रदायनी, सर्वजन्मनी गुणों वाली है, यह सर्वविदित है और विज्ञान की कसौटी पर भी प्रमाणित है। पृथ्वी के माध्यम से ही सम्पूर्ण वनस्पति, प्राणी या यूं कहिये सम्पूर्ण मानव जाति की उत्पत्ति प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में पृथ्वी तत्व की महत्वपूर्ण भूमिका में अन्य तत्वों के सहयोग से हुई है। पृथ्वी को माटी की भी संज्ञा दी गयी है। माटी यानी मिट्टी स्वस्थ रहने के लिए शरीर को जीवन और ऊर्जावान बनाये रखने में और चर्म रोगों में रामबाण का काम करती है। अन्य प्रकार की बीमारियां भी मिटटी के प्रयोग से दूर की जा सकती हैं।

भारतीय संस्कृति में तो प्राचीन काल से वेदों के साथ-साथ अन्य ग्रंथों में भी इसके उल्लेख मिल जाते हैं। एक बहुत पुरानी कहावत है कि मानव शरीर माटी का पुतला है। इसका अभिप्राय यही है कि अंततः इस माटी के पुतले को भी पृथ्वी रूपी माटी में ही समाहित हो जाना है।

विशेषकर, आपका ध्यान आकर्षित करना चाहूंगी कि पूरी पृथ्वी पर धन-धान्य, वन, वनस्पति, जड़ी-बूटियां, फल-फूल, जीव-जन्तु इत्यादि सभी पृथ्वी द्वारा अन्य तत्वों के सहयोग से उत्पन्न होती हैं। इसी कड़ी में खनिज सम्पदा, कीड़े-मकोड़े इत्यादि सभी अन्य तत्वों के सहयोग से निरंतरता बनाये हुए हैं। दूसरे, मानव शरीर में जिन प्रमुख 12 रसायनों की आवश्यकता होती है, उन्हीं के भिन्न-भिन्न संयोजनों से बायो केम थेरेपी का चलन हुआ है जो बहुत लाभकारी है एवं विश्वभर में उपयोग में भी है।

Mud therapy- ancient Indian medical since मड थेरेपी भारत की एक अति प्राचीन चिकित्सा पद्धति है। इस पद्धति में पूरे शरीर पर मिटटी का लेप लगाकर लगभग 20-30 मिनट तक उसे लगभग सुखाकर स्नान किया जाता है। प्राकृतिक चिकित्सा में भी मिट्टी की पट्टी को शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों में रखकर या लगाकर बहुत से रोगों का इलाज किया जाता है।

मड थेरेपी से निम्न दिक्कतें होती हैं दूर –
मड बाथ थेरेपी (Mud therapy- ancient Indian medical since) लेने से स्किन की जिन दिक्कतों को दूर किया जा सकता है उनमें झुर्रियां, मुंहासे, त्वचा का रूखापन, दाग-धब्बे, सफ़ेद दाग, कुष्ठ रोग, सोरायसिस और एक्जिमा जैसी कई और बीमारियां भी शामिल हैं। इसके साथ ही मड थेरेपी लेने से स्किन में ग्लो बढ़ता है, स्किन में कसाव आता है और स्किन साॅफ्ट भी होती है।

मड बाथ लेने से पाचन शक्ति में सुधार आता है। आंतों की गर्मी दूर होती है। डायरिया और उल्टी जैसी दिक्कत दूर होती है। साथ ही ये कब्ज़, फैटी लीवर, कोलाइटिस, अस्थमा, हाई ब्लड प्रेशर, मोटापा, डायबिटीज, माइग्रेन और डिप्रेशन जैसी दिक्कतों को दूर करने में भी मदद करती है।

पृथ्वी तत्व (मिट्टी) के गुण-लाभ –
– किसी भी तरह की दुर्गन्ध को मिटाने के लिये मिट्टी से बढ़कर संसार में अन्य कोई दुर्गन्ध नाशक वस्तु नहीं है।

– अमिट्टी में सद और गम रोकने की क्षमता है इसीलिए सर्द-गर्म दोनों मौसम में मिट्टी से बने घर अरामदायक सिद्ध होते हैं। इसी गुण के कारण यह विभिन्न रोगों में अपना अच्छा प्रभाव छोड़ती है।

– मिट्टी में विद्रावक शक्ति अचूक होती है। बड़े से बड़े फोडे़ पर मिट्टी की पट्टी चढ़ाने से, विद्रावक शक्ति के कारण वह उसे पकाकर निचोड़ देती है एवं घाव भी बहुत जल्दी भर देती है।

– मिट्टी में विष को शोषित करने की विलक्षण शक्ति होती है। सांप, बिच्छू, कैंसर तक के जहर को खींचकर (सोखकर) कुछ ही दिनों में ठीक कर देती है।

– मिट्टी में जल को शुद्ध करने की शक्ति निहित है। जल शोधक कारखानों में गन्दे दूषित जल को मिट्टी के संयोग से कई चरणों में छानकर निर्मल एवं पीने योग्य बनाया जाता है।

– मिट्टी में रोग दूर करने की अपूर्व शक्ति है क्योंकि मिट्टी में जगत की समस्त वस्तुओं का एक साथ रासायनिक सम्मिश्रण सर्वाधिक विद्यमान है जबकि किसी एक दवा या कई दवाओं के मिश्रण में उतना रासायनिक सम्मिश्रण सम्भव नहीं हो सकता।

– अग्नि, वायु, जल के वेग को रोकने की क्षमता मिट्टी में निहित है।

– मिट्टी में चूसने की शक्ति निहित है। अतः वह शरीर से विष को चूस लेती है।

– शरीर की बहुत सारी पीड़ाएं तो मिट्टी के प्रयोग के कुछ ही क्षणों बाद शांत हो जाती हैं।

– सब्र, संयम एवं विश्वास के साथ मड चिकित्सा की जाए तो जटिल रोग भी निश्चित ही चले जाते हैं।

– मिट्टी के प्रयोग से बड़े से बड़ा घाव भी ठीक हो जाता है। रोग चाहे शरीर के बाहर हो या भीतर मिट्टी उसके विष को चूसकर उसे जड़ से नष्ट कर देती है।
पृथ्वी पर नंगे पैर चलने के लाभ
– नंगे पैर चलने से नेत्र ज्योति बढ़ती है।

– नंगे पैर पृथ्वी के सम्पर्क में रहने से पैर मजबूत, स्वस्थ, सुडौल एवं रक्त संचरण बराबर होने से उनमें से गंदगी एवं दुर्गन्ध निकल जाती है एवं बिबाई भी नहीं पड़ती।

– पाचन संस्थान सबल होता है, उच्च रक्तचाप व शरीर के बहुत सारे रोग आश्चर्यजनक रूप से दूर हो जाते हैं।

– सिर दर्द, गले की सूजन, जुकाम, पैरों और सिर का ठण्डा रहना आदि रोग दूर हो जाते हैं।

मड थेरेपी के लाभ –
Mud therapy- ancient Indian medical since– मिट्टी के इस्तेमाल से आप ताज़ा, उत्साहजनक और आरामदायक महसूस करते हैं।

– घावों और त्वचा के रोगों के लिए, मिट्टी का उपयोग फायदेमंद है।

– मड थेरेपी का उपयोग शरीर को ठंडा करने के लिए किया जाता है।

– यह शरीर से विषैले पदार्थों को निकालकर शरीर को साफ करने में मदद करता है।

– कब्ज, सिरदर्द, तनाव, ऊच्च रक्तचाप, त्वचा से जुड़े रोग आदि विभिन्न समस्यों में मिट्टी का सफलतापूर्वक प्रयोग किया जाता है।

– कब्ज से छुटकारा पाने के लिए मड पैक लगा सकते हैं।

– पेट पर मड पैक लगाकर आप अपाचन और कब्ज की समस्या से छुटकारा पा सकते हैं।

– आँखों के ऊपर मड पैक लगाकर आई इरिटेशन और आँखों के दर्द से निजात मिलती है।

स्वास्थ्य, सुख-समृद्धि व शांति के लिए कुछ उपयोगी बातें

रोग मुक्ति हेतु मिट्टी के कुछ प्रयोग –
गीली मिट्टी की पट्टी को रोगग्रस्त अंग पर विशेष तरीके से प्रयोग कर हम रोगमुक्त हो सकते हैं। मिट्टी की पट्टी को बनाने की विधि हम आपको बता रहे हैं, जिन्हें आगे दिये गए रोगों में प्रयोग किया जा सकता है।

– मिट्टी की गरम पट्टी- पट्टी के लिए साफ बलुई मिट्टी ( जिसमें आधी मिट्टी एवं आधा बालू हो ) यदि यह न उपलब्ध हो तो किसी साफ जगह पर जमीन से एक-डेढ़ फिट नीचे की मिट्टी लेकर साफ करने के बाद उसमें पानी मिलाकर किसी लकड़ी आदि से चलाकर लुगदी जैसी बना लें। अब इस मिट्टी को रोगग्रस्त स्थान के आकार से थोड़े बड़े महीन कपड़े पर फैलाकर लगभग आधा इंच मोटाई की पट्टी बना लें। इस पट्टी का मिट्टी की तरफ वाला भाग रोगग्रस्त अंग पर रखकर किसी ऊनी कपड़े से ढक दें।

– मिट्टी की ठण्डी पट्टी- इस पट्टी को बनाने की विधि गरम पट्टी की तरह ही है। अन्तर सिर्फ इतना है कि इस पट्टी को रोगग्रस्त अंग पर रखने के उपरान्त ऊनी कपड़े से नहीं ढकते बल्कि इसे खुला ही रहने देते हैं।

– पेड़ू की मिट्टी पट्टी- इस पट्टी का प्रयोग अन्य रोगों के अतिरिक्त मुख्य रूप से कब्ज दूर करने के लिए किया जाता है। इस पट्टी को बनाने हेतु ‘मड ट्रे‘ के नाम से एक सांचा बाजार में मिल जाता है। यदि वह न मिले तो उपर्युक्त विधि से लगभग 15 इंच लम्बी, 8 इंच चैड़ी तथा एक इंच मोटी पट्टी बना लें।

यह तथ्य कि इस सृष्टि में जीवन चक्र पंच तत्वों के सम्मिश्रण, सहयोग और समीकरणों के द्वारा ही चलता है, यह एक परम सत्य है। अध्यात्म को छोड़कर, ज्ञान-विज्ञान की चर्चा करने वाले ये बातें तो स्वीकारते हैं कि यह सब कुछ होता है, पर कैसे होता है? शायद, इन सब बातों को समझने के लिए उन्हें जटिल और कठिन आध्यात्मिक राह को ही अपनाना पड़ेगा।

इस बात को लिखने का आशय यह है कि सृष्टि में प्राकृतिक रूपी शक्ति जीवन-मरण के इस चक्र को बनाये एवं, संतुलित किये हुये है, फिर वह चाहे पेड़-पौधे, फल-फूल, जड़ी-बूटी, मानव, पशु, कीड़े-मकोड़े या कोई भी प्रजाति ही क्यों न हो। यह बात कहने का तात्पर्य यह है कि मिट्टी के स्नान करने से शरीर की कुछ न कुछ आवश्यकताओं की पूर्ति अवश्य होती है परंतु कैसे यह एक कल्पित विचार हेै और आने वाले समय के लिए हो सकता है कि विज्ञान इस पर शोध भी करे।

शायद इसीलिए विश्व विख्यात आयुर्वेद आचार्य श्री राजीव दीक्षित जी के कथनानुसार मिट्टी के घड़े में पानी रखना व उसी पानी को पीना, मिट्टी के बने तवे, पतीली इत्यादी में खाना पकाना शरीर के लिए अत्यंत स्वास्थ्यवर्धक है। यहां पर यह बताना उपयुक्त होगा कि कोई भी जानवर अपने आपको जब बीमार महसूस करता है तो वह भी सूखी-गीली मिट्टी का स्नान कर या उसमें क्रीड़ा कर पुनः स्नान कर अपने आपको स्वस्थ करता है इसलिए कहा गया है कि सप्ताह में या एक पखवाड़े में 20-25 मिनट का मिट्टी स्नान किया जाये तो वह शरीर के लिए उपयुक्त है और मानव की स्वस्थ रहने की आकांक्षा में सहायक है।

संकलन – श्वेता वहल

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