यदि आप उत्तराखंड राज्य में हैं और पिथौरागढ़ से होते हुए धारचूला जाने वाले मार्ग पर जा रहे हैं या आ रहे हैं तो रास्ते में थल नाम के एक कस्बे के पास ही में स्थित बल्तिर नाम के गांव में संसार के एक ऐसे इकलौते शिवालय के दर्शन भी कर सकते हैं जो है तो प्राचीन, लेकिन, उसमें पूजा-पाठ नहीं की जाती। दरअसल, बल्तिर गांव का यह एक ऐसा अभिशप्त या शापित शिव मंदिर है जिसे एक हथिया महादेव मंदिर या एक हथिया देवालय कहा जाता है।
इस क्षेत्र में आने वाले लगभग सभी श्रद्धालु और पर्यटक इसमें भगवान भोलेनाथ के सिर्फ दर्शन करते हैं और मंदिर की अनूठी स्थापत्य मूर्ति कला को निहारते हैं। लेकिन, मंदिर में शिवलिंग की पूजा किये बिना ही लौट जाते हैं। यहां आने वाले पर्यटक और श्रद्धालु जब इस मंदिर की अज़ीबोगरीब परंपरा के बारे में सुनने हैं तो अक्सर यही सोचते हैं कि भगवान का मंदिर और उसमें पूजा-पाठ न हो ऐसा कैसे हो सकता है?
दरअसल, इस परंपरा के पीछे किंवदंती है कि इस गांव में एक मूर्तिकार रहता था जो पत्थरों को काट-काटकर मूर्तियां बनाया करता था और उन्हें बेचकर अपना परिवार पालता था। लेकिन, एक बार किसी दुर्धटना के कारण उसका एक हाथ कट गया। जिसके बाद वह उस काम को करने में असमर्थ हो गया। इस बात पर कई लोगों ने उसे उलाहना देना शुरू किया कि अब एक हाथ के सहारे वह क्या काम कर पाएगा? गांव वालों की इस बात से उस मूर्तिकार का मन टूट गया और उसने ठान लिया कि अब इस गांव में रहने का कोई फायदा नहीं है। इसलिए कहीं ओर जाकर यह काम किया जाय।
यह सोचकर एक रात वह मूर्तिकार अपनी छेनी, हथौड़ी सहित बाकी सभी औजार लेकर उस गांव से निकल गया। कहा जाता है कि उस गांव के पास ही में दक्षिणी दिशा की ओर एक विशाल चट्टान हुआ करती थी। वह चट्टान उस दिन शाम तक भी थी जिस रात वह मूर्तिकार उस गांव से बिना बताये कहीं चला गया था। लेकिन उसकी अगली सुबह जब कुछ लोग वहां से गुजर रहे थे तो उन्होंने पाया कि वह विशाल चट्टान एक ही रात में देवालय का रूप ले चुकी थी। यानी, किसी ने एक ही रात में उस चट्टान को काटकर उसे एक बहुत ही सुंदर मंदिर का आकार दे दिया था।
जिसने भी उस मंदिर को देखा, वह दंग रह गया। देखते ही देखते गांव के सारे लोग वहां इकट्ठा हो गए। लोगों ने अनुमान लगाया कि हो न हो यह मंदिर उसी मूर्तिकार ने बनाया हो। उसे ढूंढने की कोशिश की गई। मगर उसका कुछ भी पता नहीं चल सका। गांव के पंडितों ने कहा कि यह मंदिर दिन की बजाय रात में बना है और इसमें बने शिवलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा भी नहीं की गई है। इसलिए यह शिवलिंग दोषपूर्ण है और इसकी पूजा-पाठ करना फलदायक नहीं मानी जा सकती। जानकारों का मानना है कि मंदिर के प्रति यहां के लोगों में यही आस्था धीरे-धीरे परंपरा का रूप लेती गई। जिसके कारण आज भी इस मंदिर में पूजा-पाठ नहीं की जाती है।
इस मंदिर को लेकर यहां की एक अन्य लोकप्रचलित मान्यता है कि चंद राजवंश के राजा का राज महल औरव कुमांऊ की स्थापत्य कला के रूप में देश-विदेश में विख्यात यहां के बालेश्वर मंदिर का निर्माण करने वाले जगन्नाथ नामक मिस्त्री और मूर्तिकार का एक हाथ राजा ने कटवा दिया था ताकि बालेश्वर मंदिर जैसा शानदार निर्माण दोबारा न हो सके।
माना जाता है कि एक हाथ कट जाने के बाद भी जगन्नाथ मिस्त्री ने अपनी कला को जिंदा रखने के लिए अपनी पुत्री की सहायता से एक ही रात में इस शिव मंदिर का निर्माण किया और हमेशा के लिए वो राज्य छोड़कर चला गया। और जब प्रजा को यह बात मालूम हुई तो वे बहुत दुखी हुए और उन्होंने राजा का इतना विरोध किया कि उस विरोध के कारण लोगों ने इस मंदिर में पूजा-पाठ भी नहीं की। माना जाता है कि तब से लेकर आज तक यहां पूजा-पाठ नहीं हुआ है।
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एक हथिया का नौला या देवालय नाम के इस मंदिर की खासियत और इसके नाम के बारे में यही माना जाता है कि यह एक ही हाथ से बनाया गया देवालय है, इसलिए इसको एक हथिया का नौला या देवालय कहा जाता है। इस मंदिर के इतिहास के बारे में बताया जाता है कि यह मध्ययुगीन राजवंश के राजा कत्यूरी के समय का बना हुआ मंदिर है।
कत्यूरी राजवंश के बारे में माना जाता है कि वे अयोध्या के शालिवाहन शासक के वंशज थे इसलिए वे सूर्यवंशी कहलाते थे। कत्यूरी राजवंश का शासन इस क्षेत्र पर 6ठीं शताब्दी से 11वीं शताब्दी तक रहा। इसलिए, माना जाता है कि संभवतः यह मंदिर छठी शताब्दी से 11वीं शताब्दी के मध्य का बना हुआ है। उस दौर के शासकों को स्थापत्य कला से बहुत लगाव था। यहां तक कि वे इस मामले में दूसरों से प्रतिस्पद्र्धा भी करते थे। कई ग्रंथों और अभिलेखों में भी इस मंदिर का जिक्र पाया जाता है।
पत्थरों को तराशकर बनाये गए इस मंदिर के ढांचे में बहुत ही शानदार और आकर्षक नक्काशीदार और कलात्मक काम देखने को मिलता है। मंदिर का प्रवेश द्वार पश्चिम दिशा की तरफ है। मंदिर के मंडप की ऊंचाई 1.85 मीटर और चैड़ाई 3.15 मीटर बताई जाती है। मंदिर में लगे पत्थरों पर स्थानीय लोकजीवन के विभिन्न दृश्यों को बहुत ही सुंदर और प्रभावशाली तरीके से उकेरा गया है। कला की दृष्टि से आज भी यह इमारत इस क्षेत्र की बेजोड़ कलाकृतियों में से एक है ।
मंदिर को देखने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं, परंतु पूजा-पाठ निषेध होने के कारण केवल दर्शन करके ही लौट जाते हैं। एक हथिया का नौला यानी मंदिर, उत्तराखंड राज्य के चंपावत जिले से 5 किमी दूर स्थित एक प्रसिद्ध पर्यटन के रूप में विख्यात है। यह मंदिर नैनीताल से लगभग 152 किमी दूर और हल्द्वानी से 180 किमी दूर है। यहां का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन टनकपुर रेलवे स्टेशन है जो यहां 74 किमी की दूर है।
चम्पावत जिले में अन्य दर्शनिय और पर्यटन के स्थानों में मध्य युगीन बाणासुर का किला, माउंट एबट और अद्वैत आश्रम जैसे पर्यटन स्थलों के अलावा चम्पावत के कई छोटे-बड़े पर्यटन स्थलों का आनंद भी ले सकते हैं।
– अजय सिंह चौहान