अजय सिंह चौहान || अमेरिकन, यूरोप और अरेबियन मानसिकता तथा एजेंडे के अनुसार भारत के सनातन से जुड़े सभी प्रकार के तीर्थ स्थानों को किसी भी प्रकार से तहस-नहस किया जाना सबसे जरुरी हो गया है. वे जानते हैं की तीर्थ स्थानों के माध्यम से हिन्दुओं में “पुण्य” की अवधारणा आती है और वे हिन्दू धर्म के प्रति जुड़े रहते हैं. हालाँकि यह भी जग जाहिर हो चुका है कि अब तो सीधे-सीधे कानून बनाकर हिन्दुओं के त्यौहार, संस्कृति और परम्पराओं को भी नष्ट करने की शुरूआत भी हो चुकी है.
एजेंडे के अनुसार हिन्दू धर्म के प्रमुख तथा पवित्र तीर्थ क्षेत्रों को किसी भी प्रकार से तहस-नहस किया जाना सबसे जरुरी इस लिए हो गया है क्योंकि अमेरिकन, यूरोप और अरेबियन एजेंडे की यही मांग है. यदि उनका यह अजेंडा संवेधानिक बदलावों के दम पर सफल हो जाता है तो इसके जरिये वे लोग हिन्दू धर्म की महिलाओं को “सेक्स गुलाम” बनाकर अपने देशों में कानूनी रूप से भी ले जाने में सक्षम हो जायेंगे.
ध्यान रहे की जिस एजेंडे के तहत भारत में विदेशी विचारधारा अपना कार्य कर रही है उसको देखते हुए वह दिन दूर नहीं जब अगले मात्र कुछ ही वर्षों में हिन्दू धर्म की महिलाओं को “सेक्स गुलाम” या दूसरे शब्दों में कहें तो “सेक्स सर्विस” देने वाली महिलाओं का देश बना दिया जाएगा, और वे लोग हमारी महिलाओं को अपने देशों में इसीलिए आसानी से ले जा सकेंगे.
यह ठीक उसी प्रकार से है जिस प्रकार से आज हमारे बच्चे विदेशों में अच्छे-अच्छे पैकेज वाली नौकरियों कर रहे हैं. जबकि अन्य धर्मी महिलायें अपने धर्मों के प्रति आज भी कट्टर हैं इसलिए उनके साथ ऐसा कुछ नहीं होने वाला है जैसा की हिन्दू महिलाओं के साथ होने की पूरी संभावना दिख रही है.
दरअसल, समस्या यहाँ आ रही है कि हमारी शिक्षा पद्धति में नैतिक और धार्मिक शिक्षा के नाम पर भयंकर कमियों और खामियों के चलते हिन्दू धर्म की खासकर पढ़ी-लिखी महिलायें अपने लिए अधिक से अधिक अधिकारों, न्याय, बराबरी, कंधे से कंधा मिलकर चलने, फैशन आदि के आधिकारों के लिए सीधे-सीधे एजेंडे के जाल में फंस जाती हैं और पश्चिमी विकृत मानसिकता को सबसे पहले अपना लेतीं हैं, जबकि अन्य धर्मी महिलायें स्वयं ही आज भी बुर्के से बाहर आना नहीं चाहतीं.
पश्चिमी एजेंडे के एक छोटे से उदाहरण को देखें तो हमारे किसी भी बड़े से बड़े नामी स्कूल की ड्रेस में लड़कों को तो फुल पेंट में आना होता है लेकिन बच्चियों को स्कर्ट पहनना जरुरी है. लेकिन वहीं मुस्लिम लड़कियां इन्हीं स्कूल में स्कर्ट नहीं पहनतीं. पश्चिमी एजेंडे की इतनी छोटी सी बात आज तक किसी भी हिन्दू को समझ क्यों नहीं आती.
इसी प्रकार सनातन से जुड़े हर प्रकार के प्रमुख तथा पवित्र तीर्थ क्षेत्रों को भी किसी न किसी प्रकार से एजेंडे के तहस-नहस कर उन्हें “तीर्थ क्षेत्र” के बजाय “पर्यटन क्षेत्र” बनाया जाना सबसे जरुरी हो गया है. क्योंकि हिन्दू धर्म से यदि उसके “तीर्थ” और “तीर्थ यात्रा” जैसे कुछ पवित्र शब्द ही छीन लिए जाय तो फिर हिन्दू धर्म का मूल ही नष्ट हो जायेगा.
पश्चिमी लोग जानते हैं कि “तीर्थ” शब्द से हिन्दुओं में धर्म के प्रति जागरूकता और कट्टरता बढती है तथा “तीर्थ स्थान” और “तीर्थ यात्रा” के माध्यम से हिन्दुओं में “पुण्य” की अवधारणा आती है. “तीर्थ स्थान” और “तीर्थ यात्रा” के माध्यम से हिन्दू अपनी आत्मा को पवित्र कर लेते हैं और धर्म के प्रति अत्यधिक सजग रहते हैं. ऐसे में यदि सनातन से जुड़े उनके हर प्रकार के प्रमुख तथा पवित्र तीर्थ क्षेत्रों को तीर्थ के बजाय विकास के नाम पर “पर्यटन स्थान” बना दिया जाय और उन्हें उन्हीं के द्वारा विकसित “पर्यटन स्थान” घोषित करवा दिया जाय तो वे स्वयं ही धीरे-धीरे नष्ट हो जायेंगे. ठीक उसी प्रकार से जिस प्रकार से आज की शिक्षा पद्धति कार्य कर रही है.
यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है कि “तीर्थ स्थान” और “तीर्थ यात्रा” के माध्यम से हिन्दुओं में “पुण्य” की अवधारणा आती है, जबकि “पर्यटन” और “पर्यटन स्थान” से जैसे शब्दों से हर किसी को मौज, मस्ती, शापिंग, खानपान, हनीमून सैर-सपाटा आदि की अनुभूति होने लगती है. यही कारण है की हिन्दुओं से उनके अपने “तीर्थ स्थान” और “तीर्थ यात्रा” के अधिकारों को छीना जा रहा है, ताकि वे तीर्थ क्षेत्रों में खूब मौज मस्ती करते रहे और वे इस बात से भी अनजान रहें की यह तीर्थ है या पर्यटन क्षेत्र. इसके अलावा सारे हिन्दू पश्चिमी मानसिकता के रंग में इतने रंग जाएँ और की “तीर्थ” को वे स्वयं ही “पर्यटन” कहने लग जाएँ.
एक अन्य सबसे महत्वपूर्ण बात यह भी है कि जब तक हिन्दुओं के “तीर्थ स्थान” और “तीर्थ यात्रा” जैसे शब्द और “पुण्य” की अवधारणा वाले पवित्र स्थान मौजूद रहेंगे, वहां अमेरिकन, यूरोप और अरेबियन मानसिकता के पर्यटक घुस नहीं पायेंगे, जैसे कि ओड़िसा के श्री जगन्नाथ मंदिर में अन्य धर्मियों को आज भी घुसने नहीं दिया जाता. लेकिन जैसे ही श्री जगन्नाथ मंदिर से भी “तीर्थ स्थान” और “तीर्थ यात्रा” जैसे शब्द हट जायेंगे और वहां भी किसी न किसी दिन “पर्यटन” और “पर्यटन स्थान” जैसे शब्द प्रचलन में आ जायेंगे, और वैसे ही संवैधानिक रूप से कानून अपना दखल दे देगा और किसी न किसी दिन अमेरिकन, यूरोपियन और अरेबियन पर्यटक भी वहां “टूरिज्म” और “हनीमून ट्रिप” पर आने लगेंगे.
आज हम काशी कोरिडोर और उज्जैन के महाकाल कोरिडोर में उसी “विकास” को सनातन के लिए साक्षात “विनाश” के रूप में देख पा रहे हैं. क्योंकि हिन्दुओं को “तीर्थ स्थान” से अधिक “पांच सितारा विकास”, “पांच सितारा विकसित स्थान” तथा “पांच सितारा तीर्थ उद्योग” अच्छे लगने लगे हैं. यानी जो हिन्दू जितना पढ़ा लिखा होता जा रहा है उतना ही धर्म से दूर होता जा रहा है.
आज की कार्यपालिका, संवैधानिक व्यवस्था और न्यायपालिका का रवैया साफ-साफ बता रहा है कि हिन्दू तीर्थ स्थलों ही नहीं बल्कि धर्म का भी नाश किस प्रकार से किया और करवाया जा रहा है. कार्यपालिका, संवैधानिक व्यवस्था और न्यायपालिका यह बात अच्छे से जान चुकी है कि हिन्दुओं में “यौन विकृति” लाने से पहले उनमें मानसिक विकृति लाना जरुरी है. क्योंकि “तीर्थ स्थान” और “तीर्थ यात्रा” के माध्यम से यौन विकृति को स्वीकार नहीं कर पाते. और जब तक हिन्दू “यौन विकृति” से दूर रहेंगे हमारा अजेंडा कैसे सफल हो सकेगा?