अजय सिंह चौहान || माता पूर्णागिरी का शक्तिपीठ मंदिर उत्तरखंड राज्य के टनकपुर शहर में स्थित है। माता के इस मन्दिर में देवी महाकाली की पूजा होती है। कहा जाता है कि इस स्थान पर भगवान विष्णु के चक्र से कट कर माता सती की मृत देह का नाभि भाग गिरा था। इसलिए यह स्थान 108 सिद्ध पीठों में से एक माना जाता है। पूर्णागिरी को पुण्यगिरी के नाम से भी पहचाना जाना जाता है। समुद्र तल से इस मंदिर की ऊंचाई 3,000 मीटर, यानी करीब 9,843 फिट है। यह क्षेत्र पड़ोसी देश नेपाल की सीमा पर बसे चम्पावत जनपद के दक्षिणी भाग में स्थित है। इसके अलावा यहां मंदिर के पास ही से पौराणिक युग की पवित्र शारदा नदी भी बहती है जो गंगा की एक प्रमुख सहायक नदी के रूप में है।
यात्रा से संबंधित अन्य जानकारियों से पहले यहां हम आपको यह भी बता दें कि यह संपूर्ण टनकपुर क्षेत्र पर्यटन और प्रकृति प्रेमियों के लिए हमेशा ही आकर्षण का केन्द्र रहता है। इसलिए अगर आप भी यहां दर्शन करने जाते हैं तो आपकी यह यात्रा धार्मिक और आध्यात्मिक यात्रा होने के साथ-साथ बहुत ही कम खर्च में की जाने वाली एक पर्यटन और सैर-सपाटे वाली यात्रा भी हो सकती है।
माता पूर्णागिरी के इस मंदिर क्षेत्र के मनोरम दृष्यों और इसके वातावरण में फैले सौन्दर्य को जिस प्रकार से प्राकृतिक सौंदर्य और सम्पदा का वरदान मिला है उसके आगे तो मानो स्विटजरलैंड और कश्मीर का सौंदर्य भी फिका लगने लगता है। लेकिन, इस क्षेत्र का दूर्भाग्य यह है कि यहां केवल धर्म, आस्था और मान्यता को ही आधार मानकर यहां के दुर्गम घने जंगलों में लोग कुछ देर के लिए आते हैं।
जम्मू में स्थित माता वैष्णो देवी की ही भांति माता पूर्णागिरि का यह मंदिर भी सभी श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है। इसके अलावा, उत्तराखंड के पूर्वी पहाड़ी जिले पिथौरागढ़ को मिनी कश्मीर के रूप में जाना जाता है। इसलिए पिथौरागढ़ जाने वाले अधिकतर सैलानी इसी सड़क मार्ग से होकर जाते हैं। और यहां चंपावत में स्थित चंद शासकों के किलों और मंदिरों के अवशेषों को भी वे देखना नहीं भूलते। इस शहर में स्थित बालेश्वर और रत्नेश्वर मंदिरों की आकर्षक और खूबसूरत नक्काशी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र होता है।
कैसे जायें –
माता पूर्णागिरी के दर्शन करने के लिए जाने पर हमें सबसे पहले उत्तरखंड राज्य के टनकपुर शहर से होकर जाना होता है। और टनकपुर शहर से माता पूर्णागिरी के इस शक्तिपीठ मंदिर की दूरी करीब 23 किमी है। जबकि चम्पावत से 95 किमी और पिथौरागढ से 165 किमी और दिल्ली से यह दूरी करीब 375 किमी है।
मणिबंध शक्तिपीठ मंदिर- कब जायें, कैसे जायें, कहां ठहरें?
सड़क मार्ग से –
टनकपुर शहर, सड़क और रेल जैसी दोनों ही सुविधाओं से जुड़ा हुआ है इसलिए पूर्णागिरी मन्दिर का निकटतम रेलवे स्टेशन टनकपुर में ही है। अगर आप रोडवेज बस के द्वारा दिल्ली से यहां जाना चाहते हैं तो बता दें कि टनकपुर के लिए दिल्ली के आनंद विहार बस अड्डे से रोडवेज बसों की नियमित सेवा मिल जाती है। इसके अलावा बरेली, लखनऊ और आगरा सहीत उत्तराखंड के आस-पास के अन्य कई राज्यों से प्राइवेट और सरकारी बसों की सीधी सेवाएं उपलब्ध हैं।
रेल मार्ग से –
अगर आप यहां रेल के द्वारा जाना चाहते हैं तो यहां का सबसे नजदिकी रेलवे स्टेशन (टीपीयू) भी इसी टनकपुर शहर में स्थित है।
हवाई जहाज से –
लेकिन, अगर कोई यहां हवाई जहाज से आना चाहे तो उसके लिए यहां का निकटतम हवाई अड़डा पन्तनगर में है जहां से मंदिर की दूरी करीब 120 किमी है।
टनकपुर शहर से आगे –
टनकपुर के रेलवे स्टेशन या बस अड्डे पर पहुंचकर पुर्णागिरि माता मंदिर तक जाने के लिए आपको यहां शेयरिंग जीप की सवारी मिल जायेगी जो कम से कम 50 से 60 रुपये में मंदिर तक पहुंचा देते हैं। लेकिन, अगर आप यहां से आॅटो या फिर टैक्सी बुक करके भी जाना चाहें तो उसकी भी सविधा सुविधा मिल जाती हैं। और, अगर आपको अपने ही किसी वाहन से वहां पहुंचना है तो उसके लिए यहां 10 रुपये की एक पर्ची कटवानी होती है।
अगर आप यहां अपने ही किसी वाहन से मंदिर तक जाना चाहते हैं तो ध्यान रखें कि टनकपुर शहर से 23 किलोमीटर आगे का यह रास्ता हराभरा, मनमोहक और एक दम शांत वातावरण वाला पहाड़ी रास्ता है। वैसे तो, यह रास्ता ज्यादा लंबा या ज्यादा खतरनाक और ऊंचे पहाड़ों वाला नहीं है। लेकिन, फिर अगर आपको यहां के पहाड़ी रास्तों में गाड़ी चलाने का अनुभव नहीं है तो आप इस रास्ते पर रात के समय यात्रा ना करें।
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स्थानिय भाषा –
वैसे तो यहां की स्थानिय भाषा कुमांऊनी है लेकिन, यहां हिन्दी भाषा का प्रचलन भी अच्छा-खासा है। इसके अलावा अंग्रेजी भाषा वालों को भी यहां निराशा नहीं होती।
कब जायें –
आप यहां वर्ष के किसी भी मौसम में और किसी भी महीने में जा सकते हैं, लेकिन, कोशिश करें कि नवरात्र के अवसर पर यहां अधिक भीड़ होती है। इसलिए नवरात्र के समय में यहां रात हो या दिन हर समय लंबी-लंबी लाइनें लगी रहतीं हैं। ऐसे में यहां होटल और धर्मशालाओं में भी जगह नहीं मिल पाती। इसलिए दूर-दराज के क्षेत्रों से आने वाले श्रद्धालुओं को नवरात्र के विशेष अवसरों पर यहां जाने से बचना चाहिए। इसके अलावा यहां नये साल के पहले दिन और साप्ताहिक अवकाश जैसे दिनों में भी भीड़ देखने को मिलती है।
अगर आप यहां सर्दी के मौसम में जायेंगे तो ध्यान रखें कि यहां मैदानी क्षेत्रों से थोड़ी अधिक ही सर्दी होती है। इसके अलावा यहां गर्मी के मौसम में भी खास तौर से बच्चों और बुजुर्गों के लिए हल्के ऊनी कपड़ों की जरूरत हो सकती है।
भोजन की सुविधा –
टनकपुर शहर पहाड़ी राज्य के साथ-साथ मैदानी क्षेत्र से भी लगा हुआ है। इसके अलावा पिथौरागढ़ जाने वाले अधिकतर सैलानी इसी सड़क मार्ग से होकर जाते हैं। इसलिए यहां ऐसे कई सारे होटल और ढाबे हैं जिनमें हर प्रकार के भोजन सुविधा मिल जाती है। यहां कोई आलीशाल होटल या रेस्टाॅरेंट नहीं मिलेंगे। लेकिन, आपके बजट के हिसाब से यहां भोजन की अच्छी व्यवस्था मिल जाती है।
कहां ठहरें –
पूर्णागिरी पर्वत से लगभग 1 किमी पहले यहां बहुत सारी होटल और धर्मशालाएं मिल जाते हैं। अगर आपको यहां रात को ठहरना है तो आपके बजट के अनुसार अच्छी सुविधाओं वाले कई होटल या धर्मशालाएं मिल जायेंगी। लेकिन, अगर आप यहां रूकना नहीं चाहते और केवल दर्शन करके वापस जाना चाहते हैं तो उसके लिए आपको यहां अपना सामान लाॅकर में रखने और स्नान वगैरह के लिए भी यहां की होटल और धर्मशालाओं में यह सुविधा मुफ्त में मिल जाती है। लेकिन, उसके लिए यहां उनकी एक शर्त यही होती है कि आपको उन्हीं के पास से प्रसाद खरीदना होगा। इस प्रसाद की कीमत कम से कम 150 रुपये से लेकर 400 या 500 रुपये तक की हो सकती है। अगर आप यहां अपना सामान किसी भी लाॅकर में रखना चाहते हैं तो ध्यान रखें कि उसमें कोई भी किमती सामान छोड़कर ना जायें। इसके अलावा, टनकपुर शहर में भी ठहरा जा सकता है।
मंदिर के लिए पैदल यात्रा –
ध्यान रखें कि धर्मशाला से पैदल चल कर माता पूर्णागिरी के दर्शन करने तक के रास्ते में आपको कम से कम साढ़े 3 किलोमीटर तक चढ़ाई वाले रास्ते पर चलना होता है। इसके बाद वापसी में भी साढ़े 3 किलोमीटर की ही यात्रा करनी होती है। यानी धर्मशाला से चलकर वापस धर्मशाला तक आने में आपको यहां कम से कम 7 किमी की पैदल यात्रा करनी पड़ती है।
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रास्ते में सावधानी –
लेकिन, यहां इस पैदल रास्ते में जैसे-जैसे आप आगे को बढ़ते जायेंगे आपको यहां कई ऐसे पंडे और पुजारी भी मिल सकते हैं जो आपसे यहां विशेष पूजा-पाठ करवाने के लिए कहेंगे या फिर आपकी कलाई पर जबरजस्ती कलावा बांधकर, तिलक लगाकर या आपको प्रसाद खिलाकर आपसे दक्षिणा तौर पर मोटी रकम की मांग करते हैं। इसलिए यहां आपको अपनी जेब का ध्यान रखते हुए उनसे बच कर चलना होगा।
दो अलग-अलग रास्ते –
मंदिर में माता के दर्शनों के लिए पैदल यात्रा शुरू करने से पहले यहां हम आपको बता दें कि माता पूर्णागिरी की इस पहाड़ी की चढाई के लिए दो अलग-अलग रास्ते बने हुए हैं। और दोनों ही रास्तों से यहां से आस-पास का नजारा भव्य और आकर्षक लगता है। लेकिन, अगर आप पूर्णागिरी पर्वत की प्रकृति का आनंद लेना चाहते हैं तो कोशिश करें की यहां सीढ़ियों के रास्ते जाने से बचें और सपाट रास्ते का ही प्रयोग करें। क्योंकि यहां आने वाले अधिकतर श्रद्धालुओं को माता वैष्णों देवी की पैदल यात्रा वाले रास्ते की तरह ही लगने लगता है। यहां भी उसी तरह से अधिकतर पैदल रास्ते को टीन के शेड से ढंक दिया गया है ताकि श्रद्धालुओं को पैदल चलने में यहां किसी भी मौसम में परेशानी ना हो।
मनमोहक दृश्य –
इस पैदल यात्रा में धर्मशाला से निकल कर थोड़ा आगे जाने के बाद रास्ते में एक प्रवेश द्वार बना हुआ मिल जाता है। इसी प्रवेश द्वार से आपको यहां दो अलग-अलग रास्ते दिखते हैं। जिसमें से एक सीढ़ियों वाला रास्ता है और दूसरा सपाट चढ़ाई वाला। अगर आप यहां प्लेन या सपाट रास्ते से चढ़ाई करेंगे तो करीब 2 किमी का यह रास्ता एक दम शांत वातावरण और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर मिलेगा। साथ ही साथ यहां आते-जाते श्रद्धालुओं को पूरे जोश और श्रद्धा के साथ माता के जयकारे लगाते हुए देखा जा सकता है।
करीब करीब 2 किमी के इस पैदल चढ़ाई वाले पहाड़ी रास्ते की ऊंचाई को पार करने के बाद मुख्य मंदिर से थोड़ा पहले ही ‘झूठे का मंदिर’ नाम के एक छोटे से मंदिर के पास जाकर ये दोनों ही पैदल रास्ते मिल जाते हैं और यहां से दोनों ही रास्ते से आने वाले श्रद्धालु एक साथ आगे बढ़ते जाते हैं। यहां से करीब 1 किमी और आगे जाने के बाद रास्ते में काली माता का एक अन्य मंदिर आता है। यहां से आगे का रास्ता एक सीधी चढ़ाई वाला रास्ता है।
बंदरों से सावधान –
काली माता के इस मंदिर से आगे के रास्ते पर जूता-चप्पल पहन कर जाने की अनुमति नहीं होती। इसके अलावा यहां इस रास्ते में आपको खास तौर से ध्यान रखना होगा कि आपके पास जो भी सामान या प्रसाद होता है उस पर यहां के बंदरों की नजर लगी होती है। ऐसे में अचानक आपको यहां के बंदर घेर कर आपका सामान छीन सकते हैं इसलिए अगर आप यहां से अकेले ही यह रास्ता पार कर रहे हों तो थोड़ा इंतजार करें और पीछे आने वाले दूसरे श्रद्धालुओं के साथ मिलकर या गु्रप में ही चलने का प्रयास करें।
माता के दर्शन –
धर्मशाला से निकलने के बाद चढ़ाई चढ़ते-चढ़ते पता ही नहीं चलता कि श्रद्धालु कब इस साढ़े 3 किमी की चढ़ाई चढ़ कर माता पूर्णागिरी शक्तिपीठ मंदिर के प्रवेश द्वार तक पहुंच जाते हैं। नवरात्र में और कुछ अन्य अवसरों पर तो यहां अथाह भीड मिलती है, लेकिन, बाकी दिनों में ज्यादा भीड़ नहीं होती, इसलिए आम दिनों में यहां बहुत ही आराम से माता के दर्शन किये जा सकते हैं।
मुख्य मंदिर के गर्भगृह में माता पूर्णागिरी शक्तिपीठ के दर्शन करने के बाद उसी रास्ते से श्रद्धालु जब वापस आते हैं तो रास्ते में थोड़ा नीचे उतरने के बाद वही काली माता का मंदिर मिलता है। उसी काली मंदिर में भगवान भैरो नाथ जी के भी दर्शन हो जाते हैं जो इस यात्रा का अंतिम पढ़ाव है। वापसी में भी आप अपनी सुविधा के अनुसार ही रास्ता चुन सकते हैं।