मैदानी इलाकों की भीषण गर्मी के मौसम में अगर आपको दिन में भी ठंड का एहसास करना हो तो आप जम्मू कश्मीर के सनासर की यात्रा कर सकते हैं। जम्मू से उधमपुर होते हुए पटनीटाॅप में मुख्य सड़क छोड़कर सनासर करीब 20 किलोमीटर ऊपर की तरफ स्थित है। जम्मू से करीब 150 किमी दूर सनासर 90 के दशक में ‘सनम बेवफा’ फिल्म के एक गाने की शूटिंग की वजह से चर्चा में आया था।
बेहतरीन लोकेशन, प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर और बिल्कुल नैचरल लुक के साथ सनासर दरअसल अब तक पर्यटकों के बीच बहुत लोकप्रिय नहीं हुआ है। इस इलाके में छोटे-मोटे होटल से लेकर सरकारी गेस्ट हाउस और कुछ निजी कंपनियों के टेंट भी किराए पर उपलब्ध हैं।
सरकारी गेस्ट हाउस का एक दिन का किराया जहां 3000 रुपये प्रति दिन से शुरू होता है, वहीं निजी टेंट में आप 700-1,000 रुपये प्रति व्यक्ति प्रति दिन के हिसाब से ठहर सकते हैं। पटनीटाॅप से सनासर तक के लिए प्राइवेट टैक्सी 700 रुपए में मिल जाती है, जबकि जम्मू से पटनीटाॅप तक बस द्वारा करीब 150 रुपए प्रति व्यक्ति का किराया चुकाकर पहुंचा जा सकता है।
हम कैसे पहुंचे सनासर –
जम्मू में फ्लाइट से उतरने के बाद हमने बाहर सड़क पर आकर एक बस ली और उससे पटनीटाॅप जाने के लिए बस अड्डे पर पहुंच गए। बस अड्डे से बसें खुलने को तैयार थीं और करीब तीन घंटे में पटनीटाॅप पहुंच गईं। उधमपुर होते हुए बस से पटनीटाॅप जाने में साथ में एक नदी चल रही थी जो कभी ऊपर तो कभी नीचे जा रही थी। यह नदी अपने आप में एक रोमांच थी जो कभी शांत तो कभी कलकल करती ठंडक का अहसास करा रही थी। बीच-बीच में तो यह नदी इतनी पास आ जाती कि लगता बस रोक कर थोड़ी देर नदी में कूद लिया जाए।
पटनीटाॅप पहुंचने के बाद सनासर जाने के लिए टैक्सी के रेट पूछे तो किराया करीब 800 रुपये बताया गया जो पांच मिनट के मोलभाव के बाद 650 रुपये में तय हो गया। पथरीली सड़कें, घुमावदार पहाड़ और बीच में पैदल चलते हुए लोग, सिर्फ 25 मिनट में सनासर आ गया।
डोगरी जानते हैं तो मोस्ट वेलकम करेगा सनासर –
हाॅर्स राइडिंग के लिए सनासर एक आदर्श जगह है क्योंकि तकरीबन एक घंटे के लिए गाइड के साथ घोड़े 150-200 रुपए में आसानी से मिल सकते हैं। एक पार्क जिसके ठीक बीच में एक तालाब है, चारों तरफ ऊंचे-ऊंचे चीड़ के पेड़ और तमाम छोटे-छोटे ग्रामीण घरों से घिरा हुआ सनासर दूर से देखने पर जितना खूबसूरत नजर आता है, पास पहुंचकर उससे भी अधिक प्रिय लगता है। डोगरी बोलने वाले स्थानीय लोग आतिथ्य सत्कार की हर खूबियों को भलीभांति जानते हैं और अपनी हर संभव कोशिश करते हैं कि यहां आने वाला व्यक्ति दोबारा इस जगह पर जरूर आए।
बेटी याद करती है गाइड मुराद को –
एक छोटा सा मार्केट, कई छोटी-छोटी दुकानें और एक तरफ जम्मू कश्मीर सरकार का बोर्ड, बस यही था सनासर। जब वहां हमें कुछ ठहरने लायक नहीं दिखा तो पी।वाई। रिजाॅर्ट्स के मालिक कटोच साहब से बात की। उन्होंने कहा कि पार्क में स्वागत के लिए जो बोर्ड लगा है, वहीं से उतरकर नीचे आना है जहां जम्मू-कश्मीर सरकार के गेस्ट हाउस बने हैं। गेस्ट हाउस के बगल से एक रास्ता उस रिजाॅर्ट तक जाता है जहां हमें ठहरना था।
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वहां रास्ते पर रिजाॅर्ट का एक कर्मी हमारे स्वागत के लिए खड़ा था जिसने हमारी नौ साल की बिटिया को देखते ही गोद में उठा लिया। इसके बाद तो तीन दिन तक वही उसका स्थानीय अभिभावक बन गया। खेलने के लिए जाना हो, घुड़सवारी के लिए या वाटर फाॅल में नहाने के लिए, मुराद नाम का वह गाइड हमें तसल्ली से वो सब कुछ दिखाता रहा जो उस इलाके में हमें दोबारा आने के लिए मजबूर कर दे।
बच्चे, छोटा सा बाजार और बाॅनफायर –
पहाड़ की तराई में बसे घर, मासूम से बच्चे, मीलों की दूरी तय कर स्कूल जाते छात्र और कंधे पर गैस सिलेंडर लादकर आते पिट्ठू, सब कुछ हमारे लिए बिल्कुल नया था और बेहतर रोमांचित कर देने वाला भी। उस दिन लंच करने के बाद जैसे ही हम घूमने का मूड बना रहे थे, अचानक तेज हवाएं चलने लगी और ऐसा लगा कि टेंट उड़कर कहीं हवा में न चला जाए। उसे बनाने की कला इतनी फिट है कि उसे कुछ नहीं हुआ। हां दोपहर तीन-चार बजे हमें कंबल की जरूरत पड़ गई और प्रति व्यक्ति के हिसाब से अटेंडेट हमें तीन-तीन कंबल पहुंचा गया। करीब पांच बजे तक हम सांसे रोके वहीं पड़े रहे।
उसके बाद साइट सीइंग के लिए निकले और सिर्फ एक घंटे में हम आसपास के स्पाॅट को देखकर वापस आ गए। कैंप अटेंडेंट ने तब तक गरमागरम खाना तैयार रखा था, जबकि मुराद ने बाॅनफायर की व्यवस्था कर दी। आग के सामने लगी प्लास्टिक की कुर्सियों पर बैठकर हम खाने का मजा लेते रहे।
अगले दिन सुबह नौ बजे नाश्ता कर हम वाटरफाॅल के लिए निकले। बर्फ से भी ठंडे पानी में एकबारगी घुसने की हमारी हिम्मत नहीं हुई, लेकिन बिटिया ने झट से छलांग लगा दी। मुराद भी फाॅल में कूद गया। उसके बाद मैंने भी शर्म का आवरण छोड़ते हुए छलांग लगाई। दिन में कुछ और स्पाॅट घूमने के बाद हमें थकान होने लगी और वापस कैंप में आकर हमने आराम करने का फैसला किया।
– अमित त्यागी