सनातन धर्म वैदिक काल से चला आ रहा है और इस पवित्र धर्म में हमारे ऋषि और मुनियों ने हमारे लिए कुछ ऐसी परम्पराओं को बनाया है जो आज के वैज्ञानिक और धार्मिक दोनों ही नजरिये से शत प्रतिशत खरी उतरती हैं, तभी तो आज की युवा और किशोर पीढ़ी जितना आधुनिक विज्ञान और सोशल मीडिया में दिलचस्पी रखती है उतना ही धर्म में भी विश्वास रखती है।
आज भी मंदिरों में उमड़ने वाली भीड़ में एक बहुत बड़ा वर्ग किशोर आयु और युवा पीढ़ी का भी देखने को मिलता है। आज के युवा मानसिक रूप से जितने परेशान होते जा रहे हैं उतने ही भगवान और धर्म को भी मानने लगे हैं। क्योंकि वे जानते हैं कि धर्म किसी भी व्यक्ति का मौलिक अधिकार है और मन की शांति के लिए उसका मंदिर में जाना उससे भी अधिक जरूरी है।
धर्म और विज्ञान में समान रूप से विश्वास रखने वाली आज की किशोर और युवा पीढ़ी यह अच्छी तरह जानती है कि उसके लिए मंदिर जाना क्यों जरूरी होता जा रहा है। और इन्हीं मान्यताओं, परंपराओं और गूढ़ रहस्यों को लेकर अक्सर धर्मी और अधर्मी लोगों के बीच बहस भी होती रहती है।
यह बात हम सब को पता है कि हम लोग अक्सर मंदिरों में जाया करते हैं और वहां जाकर हम जो पूजा-पाठ करते हैं वह भी हमारी सनातन परम्परा का ही एक हिस्सा ही है और पूजा-पाठ करने के पीछे का जो वैज्ञानिक रहस्य है वह बताता है कि इसके करने से मन को जो शांति मिलती है वह शब्दों में बयान नहीं की जा सकती। इसी प्रकार की हमारे अन्य अनेकों परंपराएं हैं जो हजार या दो हजार साल पुरानी नहीं बल्कि आदि काल से ही चली आ रही हैं।
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हमारे सनातन धर्म में प्रचलित ऐसी अनेकों परंपराओं और गूढ़ रहस्यों पर आज का विज्ञान आये दिन अध्ययन करता रहता है। और जब सनातन धर्म में प्रचलित ऐसी अनेकों मान्यताओं, परंपराओं और गूढ़ रहस्यों पर विज्ञान अपनी मुहर लगा देता है तो कुछ तथाकथित लोग जो हमारी इन्हीं मान्यताओं, परंपराओं और गूढ़ रहस्यों को अंधविश्वास कहता रहता है वह अपनी चुप्पी साध लेता है। लेकिन, वहीं सनातन धर्म के अनुयायीयों में इन मान्यताओं, परंपराओं और गूढ़ रहस्यों में अपनी आस्था और विश्वास बढ़ जाता है।
यदि हम मंदिर शब्द के अर्थ को समझें तो पता चलता है कि ‘मंदिर‘ का शाब्दिक अर्थ है ‘घर‘। दूसरे शब्दों में मंदिर को द्वार भी कहा जा सकता है, जैसे रामद्वारा, गुरुद्वारा आदि। इसमें सबसे महत्वूपर्ण बात यह है कि मंदिर या अन्य धार्मिक स्थानों पर जाकर हमें जितनी शांति प्राप्त होती है, उतनी अन्य किसी जगह नहीं होती। इसका प्रमुख कारण यही है कि मंदिर के प्रति हमारी आस्था और उसमें विराजित देवी या देवता की मूर्ति में हमारा जो विश्वास होता है वह अन्य किसी भी स्थान से अधिक पवित्र और निर्मल होता है।
मंदिर शब्द की रचना कैसे हुई और मंदिर शब्द का अर्थ क्या होता है? अगर यह रहस्य ढूंढा जाये तो मालूम होता है कि यह जितना प्रचलित शब्द है उतना ही रहस्यमय भी है, और इसको लेकर हर किसी के अपने-अपने विचार हैं। लेकिन हमें आम भाषा में जो रहस्य समझ में आता है वह यही है कि ‘मन‘ और ‘दर‘ की संधि से बना मिलकर बना शब्द ही मंदिर कहलाता है। इसमें मन अर्थात मन जो हर मानव के भीतर होता है जबकि दर अर्थात द्वार से संबंधित है। यानी, मन का द्वार से तात्पर्य यही है कि जहाँ हम अपने मन का द्वार खोलते हैं, वह स्थान मंदिर कहलाता है।
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मंदिर शब्द को समझने के लिए एक अन्य तरीका भी है जो शायद इससे भी आसान है। जिसके अनुसार, ‘म’ अर्थात ‘मम’ = ‘मैं’ और ‘न’ अर्थात ‘नहीं’। यानी वह स्थान जहाँ मैं या मेरा अहंकार नहीं। यानी जिस स्थान पर जाकर किसी भी व्यक्ति का ‘मैं‘ यानि अंहकार ‘न‘ रहकर केवल ईश्वर ही रहे वह स्थान मंदिर ही है।
इसके अलावा अन्य भाषाओं और रूपों में यदि देखा जाय या पूकारा जाय तो मंदिर को आलय भी कह सकते हैं, जैसे कि शिवालय या देवालय। लेकिन मंदिर को अंग्रेजी भाषा में ‘मंदिर‘ या देवालय न कहकर ‘टेम्पल‘ के नाम से पुकारा जाता है जबकि यह मंदिर का बहुत बड़ा अपमान है।
मंदिर को अंग्रेजी भाषा में या अन्य किसी भी भाषा में भी ‘मंदिर‘ या देवालय ही पुकारा जाना चाहिए। और जो लोग मंदिर को ‘टेम्पल‘ कह कर पुकारते हैं, उन्हें शत प्रतिशत मंदिर के विरोधी ही कहा जा सकता है। सोचने वाली बात है कि यदि चर्च को हर देश, हर क्षेत्र और हर भाषा में चर्च ही कहा जा सकता है तो फिर मंदिर को भी हर भाषा में मंदिर ही क्यों नहीं कहा जा सकता।
मंदिर जाने को लेकर हमारे धर्म ग्रंथों और शास्त्रों के अनुसार एक सबसे महत्वपूर्ण बात जो सामने आती है उसके अनुसार, हमारे लिए मंदिर जाना जरूरी इसलिए भी जरूरी हो जाता है कि मंदिर जाकर हमें जो आत्मिक शांति प्राप्त होती है, वो अन्य जगहों पर नहीं हो सकती। इसके अलावा अगर नियमित रूप से मंदिर जाने को लेकर अन्य वैज्ञानिक कारणों पर नजर डालें तो उसमें एक महत्वपूर्ण कारण यह है कि मंदिर में जाकर आप यह सिद्ध करते हैं कि आप देवीय शक्तियों में विश्वास रखते हैं तो देव शक्तियां भी आपमें विश्वास रखेंगी। और अगर आप मंदिर में नहीं जाते हैं तो यह बात कैसे व्यक्त करेंगे की आप परमेश्वर या देवी-देवताओं या उनकी शक्तियों में विश्वास रखते हैं?
मंदिर में स्थापित देवी या देवताओं की मूर्तियों के दर्शन करके हमें उनमें स्थित देवीय शक्तियों की एक दिव्य अनुभूति होती है। और यही हमारे लिए एक ऊर्जा का काम करती है। यही धर्म भी कहता है और यही विज्ञान भी। कोई भी धर्म या देवी-देवता यह नहीं कहते कि उसके अनुयायियों को सबकुछ अपने आप ही मिल जायेगा। विज्ञान भी यही कहता है कि कुछ तो करना ही पड़ेगा, तभी कुछ न कुछ मिलेगा। यदि आप देवताओं की ओर देखेंगे तो देवता भी आपकी ओर देखेंगे। यानी जो धर्म कहता है वही विज्ञान भी कहता है।
– अमृति देवी