अजय सिंह चौहान || मैंने अपने इस सीरिज के पिछले लेख में मिस्टर एल.पी. फैरेल के साथ घटित उस वास्तविक घटना का जिक्र किया था और बताया था कि आखिर कैसे वर्ष 1942 में पश्चिमी कमान के एक ब्रिटिश सैन्य अधिकारी मिस्टर एल.पी. फैरेल के साथ कुमाऊं के पहाड़ों में एक अदृश्य शक्ति से मुलाकात हुई थी। उस लेख का लिंक भी मैं यहाँ दे रहा हूँ। इसके अलावा अगले सभी लेखों का लिंक भी आप देख सकते हैं –
हिमालय के अमर प्राणियों से मुलाकात – भाग #1
और आज के इस लेख में मैं एक बहुत ही दिलचस्प और आश्चर्य से भरी जानकारियां देने का प्रयास कर रहा हूं। मैं आप लोगों को ऐसे ही कुछ और भी लेखों के माध्यम से इसी विषय से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां तथ्यों के साथ देने का प्रयास कर रहा हूं।
दरअसल, मिस्टर एल.पी. फैरेल के साथ घटित उस वास्तविक घटना की भांति ही और कई घटनाएं हैं जो हमारे आस-पास एक जीवंत उदाहरण के तौर पर देखी जा सकती है। हालांकि आम जनजीवन में हम या तो उन्हें महसूस नहीं कर पाते या फिर उन्हें अनसुना कर देते हैं। जबकि बहुत ही कम लोग उन घटनाओं को संसार के सामने ला पाते हैं। उनमें से मिस्टर एल.पी. फैरेल भी एक थे। इस लेख में मैं आप लोगों ऐसे ही कुछ अन्य लोगों के विषय में भी बताने जा रहा हूं जिन्होंने हिमालय के घने क्षेत्रों में उन शक्तियों और महान आत्माओं तथा व्यक्तियों से ना सिर्फ मुलाकात की है बल्कि उनके साथ समय भी बिताया है।
यह बात तो सभी ने सूनी और पढ़ी ही है कि भारतीय शास्त्रों में शिव, भैरव, परशुराम, हनुमान, अश्वत्थामा और अन्य कई सिद्ध पुरूषों और अमर आत्माओं का विस्तार से वर्णन है।
कोई माने या ना माने, लेकिन, उदाहरण के तौर यहां हम कल्कि पुराण की एक कहानी को आधार मान सकते हैं जिसके अनुसार- जब भगवान कल्कि ने देखा कि पूरी दुनिया भोग-विलास, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, आलस्य जैसी विकृतियों में डूब गई है जिसके कारण अच्छे लोगों का या अच्छी आत्माओं का प्रकाश धीरे-धीरे समाप्त होता जा रहा है, तो उन्होंने ऐसे ही आत्माओं के द्वारा एक बार फिर से जनसमूह का मार्गदर्शन करने का फैसला किया।
लेकिन, भगवान कल्कि को महसूस हुआ कि उनके पास जनता में जागरण के लिए आवश्यक शक्तियों का अभाव था। तब उनके आध्यात्मिक गुरु परशुराम जी ने उन्हें हिमालय पर बुलाया और एक ऐसी जगह पर तपस्या करने को कहा जहाँ गुरु परशुराम ने स्वयं तपस्या की थी। इस तपस्या ने भगवान कल्कि के भीतर की उस प्रचंड शक्ति को फिर से जगा दिया, जिसकी उन्हें युग परिवर्तन के लिए आवश्यकता हो रही थी।
यानी कि यहां यह तथ्य महत्वपूर्ण है कि भगवान परशुराम का जन्म तो बहुत पहले हो चुका था। लेकिन, उनकी उपस्थिति अमरता का संकेत देती है और इस तथ्य की गवाही भी देती है कि उन्हीं के जैसी और भी अन्य कई अमर आत्माएं हिमालय में आज भी मौजूद हैं।
हिमालय क्षेत्र में आज भी प्रकृति के अनगिनत चमत्कार देखने को मिलते हैं। हजारों किलोमीटर क्षेत्र में फैले हिमालय के हजारों-लाखों ऐसे स्थान हैं जहां आज भी मानव की पहुंच नहीं हुई है। इन क्षेत्रों जहां एक ओर सुंदर और अद्भुत झीलें हैं तो दूसरी ओर हजारों फुट ऊंचे हिमखंड भी हैं। कहा जाता है कि हिमालय के इन्हीं दुर्गम क्षेत्रों में प्राचीन काल में देवी-देवता निवास करते थे और संभवतः आज भी वे वहीं रहते हैं।
मुण्डकोपनिषद् के अनुसार देवात्मा हिमालय की वादियों को सूक्ष्म-शरीरधारी आत्माओं का एक संघ कहा जाता है। इनका केंद्र उत्तराखंड क्षेत्र में स्थित हिमालय की वादियों में है। ऐसे में यदि हम भारतीय शास्त्रों और धर्म तथा दर्शन की गहराईयों में जायें तो ठीक इसी प्रकार की अन्य अनेकों घटनाएं हैं जो हमें बताती हैं कि आज भी हिमालय क्षेत्र में वे अमर आत्माएं मौजूद हैं जो युगों पहले हुआ करती थीं।
यहां अगर हम एक बार फिर, मिस्टर एल.पी. फैरेल के साथ वर्ष 1942 में घटित उस घटना की तरह ही एक अन्य घटना का उदाहरण देखें तो स्वामी योगानंद द्वारा लिखित प्रसिद्ध पुस्तक ‘एक योगी की आत्मकथा’ के माध्यम से भी हमारे सामने कुछ ऐसे ही उदाहरण सामने आते हैं।
श्री श्यामा चरण लाहिड़ी, जो कि लाहिड़ी महाशय के नाम से भी प्रसिद्ध थे वे योगानंद जी के दादा गुरु थे। ‘एक योगी की आत्मकथा’ नामक इस पुस्तक में बताया गया है कि उन्हें भी हिमालय के एक अमर सिद्ध बाबा द्वारा वहां बुलाकर उन्हें क्रिया योग का विज्ञान सिखाया गया था, ताकि यह ज्ञान विलुप्त न हो।
ठीक इसी प्रकार की एक अन्य घटना के विषय में, डाॅ. हरि दत्ता भट्ट ’शैलेश’ ने भी हिंदी साप्ताहिक धर्मयुग में 23 अगस्त 1964 के अंक में गढ़वाल की एक पहाड़ी के अपने पर्वतारोहण के अनुभव का दिलचस्प वर्णन किया है। डाॅ. हरि दत्ता भट्ट ’शैलेश’ बताते हैं कि उन्हें पक्का विश्वास है कि किसी अलौकिक शक्ति ने ही उन्हें और उनके समूह को भूस्खलन के नीचे दबने से बचाया था।
ये सभी घटनाएं स्पष्ट रूप से प्रमाणित करती हैं कि अमर अलौकिक शक्ति रखने वाली अमर आत्माएँ अभी भी हिमालय के किसी कौने में आज भी मौजूद हैं और वे अनंत समय तक वहाँ विचरण करती रहेंगी।
इसी विषय पर एक और लेखक है ब्रिटेन के सी. क्लार्क। सी. क्लार्क द्वारा वर्ष 1968 में लिखी गई अपनी पुस्तक ‘स्पेस ओडिसी’ में उन्होंने स्पष्ट रूप से लिखा है कि हिमालय के बारहमासी बर्फ से जमे रहने वाले क्षेत्रों में अमर प्राणियों के अस्तित्व को एक मिथक के रूप में नहीं माना जा सकता। और क्योंकि कठिन साधना सदैव उपयुक्त वातावरण पर निर्भर करती है। इसलिए कई वैज्ञानिकों ने उन्हीं अमर प्राणियों के अस्तित्व को लेकर इस बात के सुझाव भी दिये हैं कि वायुमंडलीय तापमान को कम करना चाहिए। इसी सीरीज के अगले लेख का लिंक देखें – हिमालय के अमर प्राणियों का अस्तित्व क्या है? भाग #3
तमाम जानकारों और जानकारियों के आधार पर यहां यह कहना सरल है कि आज भी हिमालयी क्षेत्र में ऐसे सैकड़ों योगी हैं जिनको हिमालय के दुर्गम पहाड़ों के आंतरिक क्षेत्रों में तमाम रहस्यों के विषय में विस्तृत जानकारियां हैं।
हिमालयी क्षेत्र के ऐसे कई सिद्धाश्रम हैं जो सूक्ष्म-भौतिक क्षेत्रों से एक दम अलग-थलग हैं और भौतिकतावादी सामान्य व्यक्तियों की पहुंच से एक दम बाहर हैं, यानी दृश्यमान नहीं है। केवल मानसिक रूप से जागृत और विशेष सिद्धियों के ज्ञाता योगियों को ही इन सिद्धाश्रमों में प्रवेश का सौभाग्य प्राप्त है।
ऐसे में इस विषय पर विस्तृत चर्चा होनी चाहिए कि आखिर ये सिद्ध बाबा और अमर बाबाओं का रहस्यमयी संसार क्या है और कहां है, या फिर यह मात्र एक कोरी कल्पना ही है। इस प्रकार के रहस्यों को जानने के लिए हमें भारतीय धर्मग्रंथों शास्त्रों और पुराणों का सहारा भी लेना चाहिए।