
अजय सिंह चौहान || शीतला माता को स्वच्छता के साथ ‘शीतलता’ अर्थात ‘ठंडक प्रदान करने वाली’ माता भी कहा जाता है। इसके अलावा उनको संक्रामक रोगों, जैसे- चेचक, खसरा, फोड़े-फुंसी आदि को दूर करने वाली देवी के रूप में भी पूजा जाता है। इन्हीं शीतला माता का एक पोराणिक और प्राचीन सिद्ध मंदिर है जो दिल्ली एन.सी.आर. के अंतर्गत आने वाले गुरुग्राम में स्थित है, और ये गुरुग्राम हरियाणा राज्य का एक जिला है जो महाभारतकालीन गुरु द्रोणाचार्य की भूमि के रूप में जाना जाता है। यह मंदिर न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि इतिहास की उन परतों को भी उजागर करता है जो पौराणिक कथाओं से लेकर प्राचीनकाल और दिल्ली के उस मुगल युग से जुडी है।
शीतला माता की पौराणिक कथाएं स्कंद पुराण और देवी महात्म्य जैसे ग्रंथों में पढने को मिलतीं हैं, जिनके अनुसार शीतला माता देवी दुर्गा की अवतार और कात्यायनी के रूप में जानी जाती हैं, जो ऋषि कात्यायन की पुत्री के रूप में अवतरित हुईं थीं। माता शीतला की उत्पत्ति से जुडी एक प्रमुख कथा के अनुसार, जब असुर ‘ज्वरासुर’ यानी ज्वर के दानव ने सम्पूर्ण मानव जाति को धीरे-धीरे ज्वर या तेज़ तपाने वाले बुखार जैसे रोग से पीड़ित करना शुरू कर दिया, तब माता दुर्गा ने उसको शांत करने और मनुष्यों को राहत देने के लिए ‘शीतलता’ का रूप धारण कर उसका संहार किया। अर्थात, माता शीतला के नाम का अर्थ यहाँ वह ‘शीतलता’ है, जो बुखार से तपते शरीर को ठंडक प्रदान करती है। इसीलिए देवी शीतला को पार्वती का भी एक रूप माना जाता हैं जो, फोड़े-फुंसियों, घावों और कई प्रकार की महामारियों से मुक्ति दिलाती हैं।
इसके अलावा, महाभारत से जुड़ी एक अन्य कथा में शीतला माता को गुरु द्रोणाचार्य जी की पत्नी कृपी या जिनको किरपाई और ललिता जैसे नामों से पहचाना जाता है से भी जुड़ा हुआ बताया जाता है। इस कथा के अनुसार, गुरु द्रोणाचार्य जी की पत्नी कृपी इसी स्थान पर रहती थीं और बीमार बच्चों की देखभाल करती थीं, विशेषकर चेचक से पीड़ितों की। उनकी मृत्यु के बाद उन्हें माता शीतला या मसानी माता के रूप में पूजा जाने लगा, जो ‘चेचक की देवी’ कहलाती हैं। यह कथा हिंदू, बौद्ध और जनजातीय समुदायों में प्रचलित है। और कहा जाता है कि तब से शीतला अष्टमी का त्योहार इसी देवी को समर्पित है, जहां ठंडे भोजन से उनकी पूजा की जाती है, जिसको वर्तमान में प्रतीकात्मक रूप से रोगों से मुक्ति की कामना के देखा जाता है। ऐसे में कहा जा सकता है कि मात शीतला के इस मंदिर से जुडी पौराणिक कथाओं से मंदिर और देवी शीतला के प्रति आस्था और आध्यात्मिक गहराई की झलक देखने को मिलती है।
शीतला माता मंदिर से जुड़े प्राचीन इतिहास की जड़ों को सबसे अधिक महाभारत काल से जोड़ कर देखा जाता है। जिसके अनुसार, आज के इस गुरुग्राम को पहले भी गुरुग्राम ही कहा जाता था। जिसका अर्थ है ‘गुरु का ग्राम’ जो गुरु द्रोणाचार्य का गांव है।
यह मंदिर स्थल आज भी कुछ ऐसे प्राचीन तीर्थ के रूप में जाना जाता है, जहां महाभारत काल से शुरू हुआ पारंपरिक और सांस्कृतिक मेला आज तक भी लगता आ रहा है। पुरातन साक्ष्यों से पता चलता है कि प्राचीन काल में यह मंदिर सम्पूर्ण अखंड भारत में ज्वर से सम्बंधित रोगों से मुक्ति का प्रतीक बन गया था, जहां अनगिनत तीर्थयात्री आते थे।
गुरुग्राम में स्थित श्री शीतला माता जी के इस मंदिर के मुगलकालीन इतिहास की बात करें तो इसका इतिहास कई चमत्कारी घटनाओं से भी जुड़ा हुआ है। इसके अलावा प्राचीन काल से मुग़लकाल तक की कई राजनीतिक घटनाओं से भी इसका गहरा सम्बन्ध रहा है। मुगल साम्राज्य के पतन के बाद, 18वीं शताब्दी में भरतपुर के जाट राजा जवाहर सिंह जी, जिनका शासनकाल 1763 से 1768 तक रहा, उन्होंने एक युद्ध में मुगलों पर विजय प्राप्त करने से पूर्व शीतला माता से आशीर्वाद लिया था, और उस विजय विजय की स्मृति में जिस मंदिर संरचना का पुनर्निर्माण कराया था यह वही है जिसे आज हम देख पा रहे हैं।
श्री शीतला माता जी की यह मंदिर संरचना नागर और राजस्थानी शैली का सुंदर मिश्रण है, जिसमें संगमरमर के खंभे और जटिल नक्काशी की गई है। मुगल काल की ये घटनाएं मंदिर को ऐतिहासिक महत्व प्रदान करती हैं, जहां आस्था और शक्ति का संगम हुआ। हालाँकि मंदिर पर कई बार मुग़ल आक्रमण हुए, इसकी अपार संपत्ति को लुटा गया। लेकिन उतनी ही बार इसको फिर से खड़ा कर दिया गया। यही कारण है की इस मंदिर से जुड़े अधिक तथ्य प्राप्त नहीं होते, क्योंकि यह हमेश से एक जीवंत मंदिर रहा और इसमें पूजापाठ भी अधिक समय तक बाधित नहीं रही।
श्री शीतला माता जी का यह मंदिर प्राचीन काल से लेकर आजतक भी लाखों स्थानीय श्रद्धालुओं सहित राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली सहित आसपास के कई राज्यों के श्रद्धालुओं को आशीर्वाद प्रदान करता आ रहा है। मंदिर में आस्था से जुडी कई प्रकार की रश्में प्रचाल में हैं, जैसे ‘जल देना’, मुंडन संस्कार और 84 घंटियों को छूना आदि उन कई प्राचीन परंपराओं को जीवंत रखती हैं। यह मंदिर न केवल रोगों से मुक्ति का प्रतीक है, बल्कि इतिहास की उन कहानियों का संग्रह भी है जो पौराणिक देवत्व से लेकर मुगलकाल और आज की सेकुलरवादी घिनोनी राजनीति तक फैली हैं।
अगर आप भी शीतला माता मंदिर में दर्शनों के लिए जाना चाहते हैं तो यह मंदिर दिल्ली एन.सी.आर. के अंतर्गत आने वाले हरियाणा राज्य के जिला गुरुग्राम के पुराने गुरुग्राम शहर में शीतला माता रोड पर मसानी गाँव, सेक्टर 6 में स्थित है। मंदिर के सबसे नज़दीकी दो मेट्रो स्टेशन हैं जिनमें से एक है ‘इफको चौक’, और दूसरा ‘मिलेनियम सिटी सेंटर’ या जिसको ‘हुडा सिटी सेंटर’ भी कहा जाता है। ये दोनों मेट्रो स्टेशन दिल्ली मेट्रो की येलो लाइन पर हैं। इफको चौक से मंदिर की दुरी लगभग 4.13 किमी है, जबकि हुडा सिटी सेंटर मंदिर की दुरी लगभग 4.59 किमी है। इन स्टेशनों से टैक्सी, ऑटो या साइकिल रिक्शा, बेटरी रिक्शा या फिर स्थानीय बस सेवा द्वारा मंदिर पहुँचना होता है।