अजय सिंह चौहान || अक्सर हम सुनते हैं या बात करते हैं कि भगवान शिव के कुल 12 ज्योतिर्लिंग मंदिर हैं। जबकि इससे भी ज्यादा हम ये देखते या सुनते हैं कि करीब-करीब हर एक शहर में या फिर आस-पास में कहीं न कहीं एक प्रसिद्ध शिवलिंग मंदिर होता ही है जो काफी प्रसिद्ध और प्राचीन काल का होता है।
लेकिन यहां अक्सर एक सवाल आता है, खास तौर पर उन लोगों के लिए जो इन ज्योतिर्लिंग और शिवलिंग मंदिरों के बीच का अंतर समझ नहीं पाते। और कई लोग उन मंदिरों को भी ज्योतिर्लिंग मंदिर समझ लेते हैं।
आम तौर पर देखा गया है कि दक्षिण भारत के राज्यों में तो करीब-करीब हर महिला, पुरुष और बच्चे को इस बारे में जानकारी होती है कि ‘ज्योतिर्लिंग’ और ‘शिवलिंग’ के बीच क्या अंतर होता है। ऐसा शायद इसलिए क्योंकि दक्षिण भारत में सबसे अधिक भगवान शिव की पूजा को ही महत्व दिया जाता है। लेकिन, वहीं अगर आप दक्षिण भारत से निकल कर जैसे-जैसे उत्तर भारत के किसी भी हिस्से में प्रवेश करते जाते हैं तो यहां ये समस्या, यानी ज्योतिर्लिंग और शिवलिंग के बीच के इस अल्पज्ञान को महसूस कर सकते हैं।
इस बारे में अगर मैं खुद अपनी ही बात करूं कि ज्योतिर्लिंग और शिवलिंग में क्या फर्क है तो मुझे खुद भी पिछले कई सालों तक इस बात का ज्ञान नहीं हुआ था कि आखिर ज्योतिर्लिंग और शिवलिंग में क्या फर्क होता है? इसका कारण शायद यही रहा है कि हमारी परंपरागत शिक्षा व्यवस्था में अब वो बात नहीं रही जो आज से करीब 200 साल पहले तक हुआ करती थी।
मेरा दावा है कि आज भी अगर हम उत्तर भारत के किसी नामी पब्लिक स्कूल के शिक्षकों से या फिर उस स्कूल के बच्चों के माता-पिता से भी ज्योतिर्लिंग और शिवलिंग के बीच का अंतर पूछेंगे तो उनमें से बहुत कम लोग ही इसका सही उत्तर दे पायेंगे।
लेकिन, यहां मेरा ये उद्देश्य ये बताना नहीं है कि ज्योतिर्लिंग और शिवलिंग के बीच का अंतर कितने लोग जानते हैं और कितने नहीं।
साधारण भाषा में अगर हम ज्योतिर्लिंग और शिवलिंग के बीच बात करें तो, हिंदू धार्मिक मान्यताओं में भगवान शिव को ‘ज्योति स्तंभ’ या ‘ज्योतिर्लिंग’ कहा जाता है। या फिर इसे हम एक ऐसा ‘ज्योति स्तंभ’ कह सकते हैं जिसका न आदि है न अंत।
यहां ये जान लेना भी बहुत आवश्यक है कि इसमें ‘ज्योति’ के साथ ‘लिंग’ का प्रयोग किया गया है। इसमें ‘लिंग’ का अर्थ है शिव का ज्योति के रूप में या प्रकाश के रूप में प्रकट होकर ब्रह्मांड की रचना करना।
और क्योंकि भगवान शिव ‘ज्योति स्तंभ’ के रूप में प्रकट हुए थे, इसलिए ‘ज्योति स्तंभ’ या ‘ज्योतिर्लिंग’ भी अपने आप ही प्रकट हुए हैं। इसी प्रकार से आज जिन्हें हम 12 ज्योतिर्लिंगों के नाम से पूजते हैं वे उन स्थानों पर स्वयं ज्योति स्वरूप प्रकट हुए थे। इसे हम एक और शब्द से पहचान सकते हैं, और वो है ‘स्वयंभू’। लेकिन, ‘स्वयंभू’ शब्द इतना चलन में नहीं है जितना की ज्योतिर्लिंग।
जबकि अगर हम बात करें ‘शिवलिंग’ की तो इसको साधारण सी भाषा में समझने या समझाने के लिए कहा जा सकता है कि ऐसे शिव मंदिर जिनमें स्थित ‘शिवलिंग’ को किसी न किसी मनुष्य द्वारा स्थापित किया गया हो।
भले ही किसी भी ‘शिवलिंग’ को हजारों वर्ष पहले स्थापित किया गया हो, फिर भी उसे हम ‘ज्योतिर्लिंग’ यानी स्वयं प्रकट हुआ प्रकाश स्तंभ नहीं कह सकते क्योंकि शिवलिंग तो मानव निर्मित होते हैं।
लेकिन, यहां ये जरूर हो हो सकता है कि अगर कोई ज्योतिर्लिंग यानी ‘ज्योति स्तंभ’ किसी भी कारण से नष्ट हो जाये तो उसी स्थान पर एक अन्य लिंग को आकार देकर विधि-विधान से स्थापित करवा दिया जा सकता है। ऐसे में उसकी मान्यता भी उसी ‘ज्योति स्तंभ’ या योतिर्लिंग के समान ही रहेगी। इसके उदाहरण के तौर पर हमारे सामने 12 ज्योतिर्लिंगों में पहले स्थान पर पूजे जाने वाले भगवान सोमथान के ज्योतिर्लिंग का सबसे बड़ा उदाहरण है।
क्योंकि सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर पर कई बार विदेशी आक्रमण हुए और हर बार उस प्रमुख ज्योतिर्लिंग को नष्ट और अपवित्र कर दिया गया। लेकिन, हर बार वहां एक नये ‘ज्योति स्तंभ’ या योतिर्लिंग को फिर से स्थापित किया गया। इसी प्रकार से उज्जैन के महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर और बाबा काशी विश्वनाथ मंदिर के ज्योतिर्लिंग का भी प्रमुख उदाहरण हमारे सामने है।
इन सबसे अलग, बाबा काशी विश्वनाथ के ज्योतिर्लिंग का तो अपने प्रमुख स्थान से कुछ दूरी पर पुनः स्थापित किये जाने का भी उदाहरण हमारे सामने है।
हिंदू धर्म ग्रंथों और पुराणों में शिव के ऐसे 12 ज्योतिर्लिंगों का स्पष्ट उल्लेख मिलता है जहां से प्रकाश पुंज प्रकट हुआ था। इसलिए ऐसे सभी 12 शिव ज्योतिर्लिंगों को ‘स्वयंभू’ या ‘ज्योतिर्लिंग’ कहा जाता है। इन सभी 12 स्थानों पर भव्य मंदिर बने हुए हैं और अनंतकाल से पूजा-पाठ होता आ रहा है। शिव पुराण की ‘रुद्र संहिता’ में इन सभी 12 ज्योतिर्लिंगों का विस्तार से वर्णन भी दिया गया है।
लेकिन, आजकल कई लोगों पता ही नहीं है कि ‘शिवलिंग’ और ज्योतिर्लिंगों में कितना फर्क होता है। हो सकता है कि अधिकतर लोग इसके बारे में जानते हों, लेकिन आजकल के बच्चों को इस बात की बहुत कम जानकारी है। इसलिए उन बच्चों को भी ‘शिवलिंग’ और ‘ज्योतिर्लिंग’ के बीच का अंतर जरूर बताया जाना चाहिए।
यदि हम समय रहते ‘शिवलिंग’ और ‘ज्योतिर्लिंग’ के बीच का सही अंतर नहीं समझ पाये तो यही होगा कि आने वाले समय में हर ‘शिवलिंग’ को ‘ज्योतिर्लिंग’ कहा जाने लगेगा, और फिर धीरे-धीरे ‘ज्योतिर्लिंग’ और ‘शिवलिंग’ के बीच का अंतर भी मिट जायेगा और उनका अस्तित्व भी संकट में पड़ जायेगा।
भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग हैं जहां भव्य मंदिर बने हुए हैं और इनमें अनंतकाल से लेकर आज तक पूजा-पाठ होता आ रही है वे इस प्रकार से हैं – 1. सोमनाथ, 2. मल्लिकार्जुन, 3. महाकालेश्वर, 4. ओंकारेश्वर, 5. केदारनाथ, 6. भीमाशंकर, 7. काशी विश्वनाथ, 8. त्रयंबकेश्वर, 9. वैद्यनाथ, 10. नागेश्वर, 11. रामेश्वरम, और 12. घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर।