अजय सिंह चौहान || जिस प्रकार से हिमाचल और उत्तराखण्ड को देवभूमि के रूप में जाना जाता है उसी प्रकार से दक्षिण भारत के राज्यों में से तमिलनाडु राज्य को प्राचीन मंदिरों की भूमि के नाम से पहचाना जाता है। तमिलनाडु के करीब-करीब हर एक प्राचीन मंदिर आज भले ही अपने अस्तित्व को लेकर संघर्ष कर रहे हैं लेकिन फिर भी इन मंदिरों में की गई प्राचीन काल की वो जटील से जटील नक्काशी और अद्भुत कलाकारी दुनिया में कहीं भी और किसी भी प्राचीन इमारत में देखने को नहीं मिलती। बावजूद इसके, हमारा दुर्भाग्य ये है कि ईस्ट इंडिया कंपनी के 200 वर्षों के राज में जिस प्रकार से तमिलनाडु सहित देशभर के तमाम मंदिरों को आर्थिक रूप से खोखला करने का षड्यंत्र रचा गया था, वही षड्यंत्रकारी नीति और वही अपमान आज तक भी कायम है।
यदि हम सिर्फ और सिर्फ तमिलनाडु के ही मंदिरों से जुड़े कुछ ताजा आंकड़ों और उनकी गंभीरता पर बात करें तो एक पीआईएल से हमें ये पता चलता है कि तमिलनाडु के 37,000 से भी अधिक मंदिरों में पूजा-पाठ, रखरखाव और सुरक्षा जैसी सभी प्रमुख गतिविधियों के लिए अब सिर्फ एक ही व्यक्ति मौजूद है। जबकि तमिलनाडु में 34,000 से भी ज्यादा मंदिर ऐसे हैं जिनमें एक वर्ष में मात्र 10,000 रुपये से भी कम आय हो पाती है।
वहीं, पिछले 25 वर्षों में तमिलनाडु के मंदिरों से करीबन 1200 से भी ज्यादा ऐसी प्राचीन मूर्तियों की चोरी हो चुकी हैं जो बहुत ही महत्वपूर्ण और सबसे पवित्र मानी जाती थीं। लेकिन इस मामले में ना तो कानून कुछ कर पा रहा है और ना ही कोई राजनेता या राजनैतिक दल सूनने वाला बचा है। और तो और, तमिलनाडु सरकार ने खुद भी जुलाई 2020 में मद्रास हाईकोर्ट में प्रस्तुत होकर बताया था कि राज्य में करीब 11,999 ऐसे मंदिर है जिनमें वित्तीय संकट के चलते एक बार भी पूजा नहीं हो सकी है।
यानी कि, जो ताजा आंकड़ें बताते हैं उसके अनुसार इस वक्त खास तौर पर तमिलनाडु के मंदिरों के लिए ये एक सबसे कठीन दौर चल रहा है। यानी कि तमिलनाडु का प्रशासन और सरकार खूद इस बात को मानते हैं कि हमने यहां के हिन्दू मंदिरों का जो हाल कर रखा है उसके लिए अगर कोई हमारा कुछ बिगाड़ सकता है तो बिगड़ कर देख लो।
तमिलनाडु के प्रशासन और तमाम सरकारों और राजनेताओं की नाकामियों के इस दौर में तमिल संस्कृति की आत्मा और तमिल आध्यात्मिकता का दम धीरे-धीरे घूटता जा रहा है। वक्त रहते इस स्थित को संभाला नहीं गया तो ना तो मंदिर ही बच पायेंगे और ना उनमें पूजा-पाठ करने वाले वहां के श्रद्धालु। क्योंकि दक्षिण भारतीय राज्यों में धर्मांतरण का जो खेल चल रहा है उसको देख कर अंदाजा लगाया जा सकता है कि तमिलनाडु के हिन्दू धर्म में आस्था रखने वाले गिने-चुने लोग भी अब हाथों से निकल जायेंगे।
हमारा दुर्भाग्य है कि 200 साल पहले जिस ईस्ट इंडिया कंपनी ने हमारी भूमि और राजस्व पर कब्जा करने के लिए मंदिरों पर नियंत्रण की एक शातिर और षड्यंत्रकारी नीति शुरू की गई थी वह आजादी के इतने वर्षों बाद भी जारी है। दुख तो इस बात का है कि मात्र कुछ शक्तिशाली लोगों के कारण हमारे तमाम प्राचीन मंदिरों की व्यवस्थाएं उथल-पुथल होकर बिखरती जा रही है जिसके कारण करोड़ों भक्तों और समुदायों को भारी पीड़ा झेलनी पड़ रही है।
उदाहरण के तौर पर देखें तो तमिलनाडु के ऐसे एक-दो या दस-बीस मंदिर नहीं हैं जहां की सरकारी व्यवस्थाएं चरमराई हुई हैं, बल्कि ये संख्या तो हजारों में है। यानी कि जितने मंदिर हैं, उन सबके साथ कुछ न कुछ गलत हो रहा है, कहीं किसी मंदिर में हुई चोरी को छूपाया जाता है, किसी मंदिर के दान को ही गबन कर दिया जाता है, किसी मंदिर से मूर्तियां ही चोरी हो जाती है तो किसी मंदिर की इमारत को ही ढहा दिया जाता है। लेकिन, न तो कोई सूनने वाला है ना ही कोई कहने वाला है।
जैसे कि तमिलनाडु के विश्व प्रसिद्ध कपालेश्वर मंदिर से देवी पार्वती की पवित्र, प्राचीन और कीमती मूर्ति को चोरी कर लिया गया और उस स्थान पर हूबहू एक नकली मूर्ति के साथ बदल दिया गया। इस बारे में तमाम सबूत और दस्तावेजों होने के बावजूद चोरी के चैदह साल बाद, मंदिर से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी को चोरी के आरोप में गिरफ्तार किया गया। लेकिन, उसके बाद क्या हुआ कुछ भी कहना मुश्किल है।
इसी प्रकार से एक अन्य मामले में तमिलनाडु के कांचीपुरम में स्थित एक अन्य मंदिर कांची एकमपरेश्वर की बात करें तो यहां से 8.7 किलो चढ़ावे का सोना चोरी होने के आरोप में मंदिर से जुड़े एक वरिष्ठ व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया था। लेकिन, उसके बाद क्या हुआ ये भी वही व्यक्ति बता सकता है।
इसी तरह से तमिलनाडु के आदिकेशव पेरुमल मंदिर का भी हाल हो रहा है। आदिकेशव पेरुमल नाम से प्रसिद्ध ये मंदिर भगवान विष्णु का विश्व प्रसिद्ध मंदिर है जो अपनी मूर्तिकला के लिए फेमस है। लेकिन, इसका दुर्भाग्य भी यही है कि कुछ साल पहले मंदिर से हीरे का एक मुकुट, सोने के गहने और अन्य कई आभूषण चोरी हो गए थे। इसके अलावा, इस मंदिर में से 1990 के दशक में, पत्थर के दो प्राचीनकाल के खंभे चुरा कर चेन्नई ले जाये गये थे। लेकिन, इसका दुर्भाग्य भी यही है कि यहां भी करीब 25 साल बाद यानी सन 2020 में जाकर चोरी के लिए मामला दर्ज किया गया था।
अब अगर हम मदुरै में स्थित विश्व प्रसिद्ध मीनाक्षी मंदिर के बारे में भी बात करें तो भला इस मंदिर को कौन नहीं जानता? लेकिन, यहां भी इतनी बड़ी लापरवाही हो सकती है, कोई सोच भी नहीं सकता? लेकिन, ऐसा हुआ भी है और हो भी रहा है। दरअसल, इस मीनाक्षी मंदिर में लापरवाही के कारण लगी आग में 400 साल पुराना मंडपम जल कर नष्ट हो चुका है। जबकि रखरखाव ठीक से ना होने के कारण ये मंडप आग लगने से पहले ही खस्ताहाल हो चुका था। और इसके 46 खंभों में से 15 खंभों में तो पहले से ही बहुत ज्यादा दरारें पड़ चुकी थीं और कुछ स्थानों पर तो इसमें पत्थर की नक्काशीदार छत पहले से ही गिर गई थी। लेकिन, इसके लिए जिम्मेदार लोगों ने या विभागों ने इस पर जरा भी ध्यान नहीं दिया।
इसी तरह यूनेस्को के एक दल ने भी माना है कि मीनाक्षी मंदिर के दक्षिण और पूर्वी गलियारों को नष्ट करके उसको पुनर्निर्मित किया गया था। जबकि यूनेस्को की रिपोर्ट में साफ-साफ लिखा है कि इसके लिए उन्हीं पुराने पत्थरों और उसी सामग्री का उपयोग किया जाना चाहिए था, लेकिन, इसमें न सिर्फ अनदेखी की गई, बल्कि ये एक बहुत बड़ी और जानबुझ कर की गई लापरवाही है। यानी हम ये मान सकते हैं कि इसमें खेल कुछ ओर ही खेला गया होगा।
अब जरा तमिलनाडु के ही थोलूर शिव मंदिर के बारे में भी जान लिया जाय। चोल राजवंश के द्वारा बनाया गया यह मंदिर अभी कुछ साल पहले तक करीब 800 साल पुराना हुआ करता था। लेकिन, अब ये पूरी तरह से जमीन पर बिखरा हुआ है। बावजूद इसके, इस मंदिर में अब भी भारी संख्या में पर्यटक और श्रद्धालु पूजा-पाठ करने आते हैं।
आप को ये जानकर हैरानी होगी कि ये मंदिर तो पहले से ही खराब हालत में था और कई बार इसके लिए संबंधित लोगों और विभागों में जाकर गुहार भी लगई गई थी लेकिन, उन लोगों ने एक बार भी इधर ध्यान नहीं दिया। उसका परिणाम ये हुआ कि आज इस प्राचीन और पवित्र मंदिर की इमारत का मलबा और इसकी प्राचीन और पवित्र मूर्तियां यहां-वहां बिखरी पड़ी हैं। इतना सब कुछ होने के बाद भी यहां कोई सूनने वाला नहीं है।
उधर, आस्ट्रेलियाई सरकार ने सन 2014 में, भारत को जो मूर्ति लौटाई थी उसके बारे में तो आप में से किसी ने कुछ न कुछ तो सूना ही होगा? दरअसल, तमिलनाडु के श्रीपुरंथन गांव में स्थित श्रीपुरंथन बृहदेश्वर शिव मंदिर से भी करीब 1000 वर्ष पुरानी और पवित्र भगवान नटराज की पंचधातु से बनी ये मूर्ति सन 1982 में चोरी हो गई थी जिसे आस्ट्रेलिया की नेशनल गैलरी आफ को उन चोरों ने बेच दिया था। कहा जाता है कि इस पवित्र और खास मूर्ति की चोरी का केस पुलिस ने सिर्फ इसलिए बंद कर दिया था क्योंकि इसमें उन्हें कोई सफलता नहीं मिल पा रही थी। हालांकि, आस्ट्रेलियाई सरकार ने सन 2014 में, भारत को वो मूर्ति लौटा दी है। लेकिन, इस मंदिर की अन्य मूर्तियां जैसे कि भगवान गणेश और उमा परमेश्वरी की मूर्तियों के लिए अभी तक ऐसा कोई शुभ संकेत या सुराग नहीं मिला है।
यानी कि अगर हम इसी तरह की कुछ खास और महत्वपूर्ण लेकिन आंखे खोल देने वाली समस्याओं पर बात करें तो आंकड़े बताते हैं कि तमिलनाडु राज्य के मंदिरों से चोरी हुई मूर्तियों की तस्करी के मामलों में सन 2017 तक, मूर्तियों की तस्करी के करीब 550 मामले कोर्ट में लंबित थे। ये सभी 550 मामले तमिलनाडु राज्य के अलग-अलग मंदिरों से हुई मूर्तियों की चोरी और तस्करी के मामलों से संबंधित हैं।
तमिलनाडु के हिन्दू मंदिरों की खस्ताहाल दुर्दशा से जुड़े तमाम मामलों पर गौर करें तो हैरानी होती है कि वहां की अब तक की किसी भी राज्य सरकार ने या किसी भी राजनेता ने इन पर न तो ध्यान ही दिया है ओर ना ही कोई आश्वासन तक भी दिया है। ऐसे में इन मंदिरों के उचित रखरखाव और संरक्षण जैसी कार्यवाही या हस्तक्षेप की बात करना तो बहुत बड़ी बात हो जाती है।
ये भी सच है कि मात्र कुछ ही बड़े और प्रसिद्ध मंदिरों में मिलने वाली अच्छी-खासी दान राशि के कारण उनकी व्यवस्था और रखरखाव ठीक से चल पा रहे हैं लेकिन, कई ऐसे छोटे और प्राचीन मंदिर भी हैं जो दूरदराज के क्षेत्रों में होने के कारण वहां ना तो श्रद्धालुओं की भीड़ पहुंच पाती है और ना ही पर्यटकों की आवाजाही ही हो पाती है। इन मंदिरों को न तो सरकारी अनुदान मिल पाता है और ना ही संरक्षण या सुरक्षा। ऐसे मंदिरों में बैठे तमाम ग्रामीण और स्थानीय पुजारियों को आये दिन भूमि माफिया और जेहाद माफियाओं की धमकियां भी मिलती रहती हैं जिसके कारण वे हमेशा ही डर के साये में रहते हैं और इसी कारण से न तो अपना धर्म ठीक से निभा पा रहे हैं और ना ही कर्तव्य।