अजय सिंह चौहान || पवित्र श्री अमरनाथ गुफा धाम एक ऐसा शिव धाम है जिसके संबंध में मान्यता है कि भगवान शिव साक्षात इस गुफा में आज भी विराजमान हैं। बाबा बर्फानी की गुफा में भगवान शिव की दिव्य उपस्थिति का साक्षात ऐहसास होता है। श्री अमरनाथ जी के दर्शनों को कुछ शिव भक्त स्वर्ग की प्राप्ति का माध्यम बताते हैं तो कुछ लोग मोक्ष प्राप्ति का। जबकि कुछ लोग अमरनाथ शिवलिंग को वैज्ञानिक तर्क-वितर्क के आधार पर प्राकृतिक क्रिया बताते हैं। मगर, जिन स्थितियों और परिस्थितियों में इस शिवलिंग का निर्माण होता है वह विज्ञान के तथ्यों से विपरीत है, और यही बात विज्ञान को भी अचंभित भी करती है।
बाबा अमरनाथ जी की इस गुफा के बारे में हमारे पौराणिक ग्रंथों में कहा गया है कि भगवान शिव इस गुफा में पहले पहल श्रावण की पूर्णिमा के दिन आए थे इसलिए उस दिन श्री अमरनाथ जी की यात्रा को विशेष महत्व मिला। हिंदू धर्म में श्रावन मास की पूर्णिमा को धार्मिक और व्यावहारिक दृष्टि से बहुत ही पवित्र और शुभ माना जाता है। और इसीलिए हर साल रक्षाबंधन की पूर्णिमा के दिन छड़ी मुबारक के रूप में माने जाने वाले त्रिशुल को गुफा में बने हिमशिवलिंग के पास स्थापित कर दिया जाता है।
अमरनाथ गुफा धाम के रहस्य के विषय में हमारे धर्मग्रंथों और पुराणों की मान्यताओं के अनुसार, जब देवी पार्वती ने भगवान शिव से अमर होने के रहस्य को प्रकट करने की प्रार्थना की तो शिव जी ने उसके लिए एक ऐसे एकांत स्थान का चयन किया जहां बैठकर वे अमर कथा सुना सकें। और कहा जाता है कि यह गुफा वही एकांत स्थान है जो आज बाबा अमरनाथ की गुफा के नाम से जानी जाती है।
भगवान शिव ने अमरकथा सुनाने के लिए एकांत स्थान का चयन इसलिए किया ताकि अमर कथा देवी पार्वती के अलावा कोई और न सुन सके। फिर चाहे कोई पशु हो, पक्षी हो या किसी भी प्रकार की प्राकृतिक वनस्पति। कोई अमरकथा के रहस्य को सुन न सके इसके लिए गुफा की ओर जाते हुए भगवान शिव सर्वप्रथम पहलगाम पहुंचे, जहां उन्होंने अपने नंदी बैल का परित्याग किया था। पहलगांव को बैल गांव के नाम से भी जाना जाता है। आगे चलने पर पिस्सू घाटी में पिस्सू नामक कीड़े को भी त्याग दिया। पिस्सू एक प्रकार का छोटा उड़नेवाला कीड़ा होता है। उसके बाद चंदनबाड़ी में शिव ने अपनी जटा से चंद्रमा को मुक्त किया। शेषनाग नामक झील पर पहुंच कर उन्होंने गले से सर्प को भी उतार दिया। पुत्र श्री गणेश को भी उन्होंने महागुणेसु पर्वत पर छोड़ दिया। पंचतरणी नामक स्थान पर पहुंच कर भगवान शिव ने पृथ्वी, जल, वायु, आकाश और अग्नि नामक पांचों तत्वों का भी परित्याग किया।
ऐसी मान्यताऐं भी हैं कि इसके पश्चात शिव और पार्वती ने इस पर्वत शृंखला में तांडव नृत्य भी किया था। शिव के तांडव नृत्य को वास्तव में सृष्टि के त्याग का प्रतीक माना जाता है। इस प्रकार महादेव ने अपने पीछे जीवनदायी पांचों तत्वों को भी अपने से अलग कर दिया, और अंत में देवी पार्वती के साथ उस एकांत गुफा में चले गए जहां उन्होंने देवी पार्वती को अमरकथा सुनाई थी। और इसी गुफा को आज हम सब पवित्र अमरनाथ गुफा के नाम से जानते हैं।
कहते हैं कि जब शिव जी ने देवी पार्वती को जीवन की अमर कथा सुनाना शुरू किया तो कथा सुनते-सुनते देवी पार्वती को नींद आ गई, लेकिन शिव जी को पता ही नहीं चला और वे अमर कथा सुनाते रहे। जबकि माना जाता है कि इतने त्याग करने के बाद भी वहां दो सफेद कबूतरों का एक जोड़ा शिव जी से कथा सुन रहा था और बीच-बीच में गूं-गूं की आवाज निकाल रहा था। जबकि शिव जी को लग रहा था कि देवी पार्वती कथा सुन रही है और बीच-बीच में हुंकारे भी भर रही है। इस तरह दोनों कबूतरों ने तो अमर होने की पूरी कथा सुन ली, लेकिन देवी पार्वती इससे वंचित रह गई।
कथा समाप्त होने पर शिव का ध्यान देवी पार्वती की ओर गया तो देखा कि वो तो सो रही थी। शिव ने सोचा कि अगर पार्वती सो रही है, तो इसे सुन कौन रहा था और हुंकारे कौन भर रहा था? तब महादेव की नजर उन कबूतरों पर पड़ी। महादेव उन कबूतरों पर क्रोधित हुए और उन्हें मारने के लिए खड़े हो गए। इस पर कबूतरों ने शिव जी से कहा कि हे प्रभु, हमने आपसे अमर होने की कथा सुनी है, और यदि आप हमें मार देंगे तो अमर होने की यह कथा झूठी हो जाएगी।
कबूतरों की प्रार्थना को सून कर शिव जी ने कबूतरों को जीवित छोड़ दिया और उन्हें आर्शीवाद दिया कि तुम सदैव इस स्थान पर शिव और पार्वती के प्रतीक चिन्ह के रूप में निवास करोगे। और इस दो अजर-अमर कबूतर का वह जोड़ा शिव पार्वती के प्रतीक चिन्ह के रूप में कई वर्षों से आज भी उस गुफा में साक्षात देखा जाता है। कुछ भाग्यशाली श्रद्धालुओं को इनके दर्शन भी हो जाते हैं।
यह भी माना जाता है कि देवी पार्वती को अमरत्व के रहस्य का ज्ञान नहीं था, इसलिए उन्हें बार-बार जन्म और मृत्यु से गुजरना पड़ा। जबकि शिव अजर, अमर और अविनाशी हैं और उनके गले में मौजूद नरमुंडों की माला देवी पार्वती के अब तक हुए पूर्वजन्मों के ही हैं।
हिंदू धर्म और अध्यात्म में अमरनाथ गुफा को बहुत ही पवित्र स्थान माना जाता है। जो व्यक्ति यहां दर्शन के लिए आता है वह बहुत ही भाग्यशाली होता है। यहां शिवलिंग के दर्शन करने के बाद उसके कई जन्मों के पाप कट जाते हैं और उनकी मुक्ति का मार्ग खुल जाता है। माना जाता है कि यहां गुफा के कण-कण में अमर होने का रहस्य छुपा हुआ है।
कहते हैं कि काशी में विश्वनाथ लिंग दर्शन एवं पूजन से दस गुणा, प्रयाग से सौ गुणा, गौमती नदी के तट पर स्थित नैमिषारण्य और कुरुक्षेत्र से भी हजार गुणा अधिक फल देने वाला श्री अमरनाथ जी का पूजन-दर्शन है। ऐसी भी मान्यता है कि देवताओं की हजार वर्ष तक पूजा-पाठ करने पर जो पूण्य फल मिलता है उससे कहीं अधिक पूण्य की प्राप्ति श्री अमरनाथ की पूजा से एक ही दिन में प्राप्त हो जाता है।
यहां प्रमुख हिमलिंग के पास ही में देवी पार्वती, पुत्र गणेश और भैरव जी और शेषनाग के रूप में अन्य प्राकृतिक लिंगों के भी दर्शन हो जाते हैं। इस पवित्र गुफा में जो शिवरूपी हिमशिवलिंग बनता है वह पक्की बर्फ का बनता है जबकि गुफा के बाहर मीलों तक कच्ची बर्फ ही देखने को मिलती है।
बर्फीली बूंदों से बनने वाला यह हिमशिवलिंग ऐसा दैवी चमत्कार है जिसे देखने के लिए हर कोई लालायित रहता है और जो देख लेता है वो धन्य हो जाता है। प्राकृतिक रूप से प्रति वर्ष बनने वाले हिमशिवलिंग में इतनी अधिक चमक विद्यमान होती है कि देखने वालों की आंखों को चकाचैंध कर देती है। जबकि इस क्षेत्र में प्राकृतिक बर्फ के अनेकों छोटे-बड़े ग्लेशियर हैं, लेकिन, उनमें ऐसी चमक नहीं मिलती। दरअसल, बर्फीली बूंदों से बनने वाला भगवान शिव का यह हिमशिवलिंग ऐसा दैवी चमत्कार है जिसमें एक प्रकार की आभा किरणें निकलतीं हैं, और वही आभा किरणें इस हिमलिंग में एक प्रकार की दैवीय चमत्कार को उत्पन्न करती हैं।