जगदम्बा सिंह || समाज में सेवा करने के अपने-अपने तौर-तरीके हैं। कोई किसी रूप में सेवा कर रहा है तो कोई किसी रूप में किन्तु इस सेवा का सोशल मीडिया से बहुत ही गहरा रिश्ता बनता जा रहा है। समाज में सेवा के जो भी कार्य किये जा रहे हैं, पहले इसके प्रचार-प्रसार का माध्यम मुख्य रूप से प्रिंट एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया हुआ करता था।
जाहिर सी बात है कि प्रिंट एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया में सभी सेवा कार्यों को स्थान मिलना मुश्किल था। इसमें जगह पाने के लिए तमाम तरह की जुगाड़ लगानी पड़ती थी किन्तु जबसे सोशल मीडिया का दौर आया है तब से अपने सेवा कार्यों का प्रचार-प्रसार बहुत आसान हो गया है। इस संबंध में तमाम लोगों की समझ में यह नहीं आता कि वास्तव में सेवा कार्यों के जो चित्र देखने को मिलते हैं, वास्तव में वे वास्तविक हैं या तकनीकी कौशल से बनाये गये हैं।
हालांकि, अपने समाज में एक बहुत ही प्राचीन कहावत प्रचलित है कि ‘नेकी कर दरिया में डाल’ यानी किसी के साथ कोई भी नेक कार्य करके भूल जाना चाहिए। नेकी के बदले किसी से यह उम्मीद बिल्कुल नहीं करनी चाहिए कि इस नेकी के बदले वह व्यक्ति भी आप के लिए कुछ करेगा किन्तु अब तो कुछ मामलों में ऐसा देखने को मिलता है कि यदि किसी की कुछ मदद कर दी जाती है तो उसका इतना प्रचार-प्रसार कर दिया जाता है कि मदद लेने वाले व्यक्ति की आत्मा व्यथित हो जाती है और वह यह सोचने के लिए विवश हो जाता है कि आखिर यह मदद उसने ली ही क्यों?
चूंकि, सोशल मीडिया (social media) का जमाना है इसलिए प्रचार तो हो ही जाता है। अब यह अलग बात है कि सेवा कार्य के प्रचार की कितनी जरूरत है या नहीं भी है। इस मामले में तो राजनैतिक क्षेत्र में कार्य करने वालों की बात ही निराली है। राजनैतिक समाजसेवियों के माध्यम से ऐसे सेवा कार्य भी देखने को मिले हैं कि एक भगोना खिचड़ी एवं खीर बांटने में डेढ़ सौ फोटो खिंचवा ली जाती है। हास्पिटल में जाकर मरीज को एक केला कई लोग मिलकर पकड़ाते हैं। हालांकि, इस प्रकार के सेवा भाव एवं सेवा कार्यों का कुछ लोग उपहास भी उड़ाते हैं।
दरअसल, इस मामले में सेवा करने वालों की भावना भले ही ठीक हो किन्तु सोशल मीडिया में प्रचार पाने की इच्छा यह सब करने के लिए विवश कर देती है। अब सवाल यह उठता है कि जिस समाज में ‘गुप्त दान’ को सबसे उत्तम दान माना गया है वहां किसी को एक पैकेट बिस्किट देने की भी फोटो खींचकर यदि सोशल मीडिया में डाल दी जाये तो सेवा कार्यों का उपहास उड़ना स्वाभाविक है।
सवाल यह उठता है कि क्या मंशा वास्तविक सेवा करने की है या सिर्फ सेवा कार्य करते हुए दिखने की। सेवा कार्यों का प्रचार-प्रसार निश्चित रूप से होना चाहिए किन्तु उसकी भी एक मर्यादा होनी चाहिए अन्यथा इस सोशल मीडिया के दौर में सेवा एवं सेवा कार्यों के पीछे जो भाव है, वह भी बदल जायेगा। इस संबंध में सभी को मिलकर विचार करने एवं उसको अमल में लाने की आवश्यकता है।