वर्तमान परिस्थितियों में समाज सेवा एवं राजनीति का ऐसा घालमेल बना दिया गया है, जिससे तमाम लोगों को लगता है कि समाज सेवा का वास्तविक अर्थ चुनाव लड़कर जन प्रतिनिधि बनना या संगठन के माध्यम से राजनीति ही है। पाँच राज्यों के विधानसभा चुनावों के टिकट वितरण के समय कई लोग टिकट कटने से इतने विक्षिप्त हो गये जैसे अब उनके लिए समाज सेवा के सारे रास्ते बंद हो गये। कुछ लोग ऐसे भी मिल जायेंगे जिनका कहना है कि बिना राजनीति में आये या जन प्रतिनिधि बने जन सेवा या समाज सेवा का आनंद नहीं लिया जा सकता।
यह लेख लिखने का मेरा मूल आशय यही है कि समाज सेवा एक व्यापक शब्द है, इसके लिए जरूरी नहीं है कि यह केवल राजनीति के ही माध्यम से हो सकती है किन्तु इतना अवश्य है कि राजनीति में आने के बाद जन सेवा या समाज सेवा के लिए व्यापक आधार मिल जाता है। शासन-प्रशासन से संबंधित समस्याओं का समाधान आसानी से होने लगता है परंतु मैं यह भी स्पष्ट कर देना चाहती हूं कि जिन्हें लगता है कि समाज सेवा के लिए जन प्रतिनिधि बनना बहुत आवश्यक है तो उन्हें यह सोचना चाहिए कि क्या उनकी समाज सेवा जन प्रतिनिधि न रहने पर समाप्त हो जायेगी, इसलिए बिना किसी लाग-लपेट के कहा जा सकता है कि समाज सेवा का स्वरूप बहुत व्यापक है और समाज सेवा करने के तमाम रास्ते हैं।
हमारी भारतीय संस्कृति में ऋषियों, मुनियों, संत, महात्माओं, उद्योगपतियों एवं अन्य तमाम विभूतियों ने बिना राजनीति में गये एवं जन प्रतिनिधि बने समाज सेवा एवं जन कल्याण को ऐसे मुकाम पर पहुंचाया, जिसकी मिसाल आज भी दी जाती है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसा अंतर्राष्ट्रीय संगठन आज समाज के तकरीबन सभी क्षेत्रों में कार्य कर रहा है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं में सुबह-सुबह इस गीत से शुरुआत हो जाती है कि- ‘देश हमें देता है सब कुछ, हम भी तो कुछ देना सीखें’ या ‘तेरा वैभव अमर रहे मां, हम दिन चार रहें या न।’ इससे यह आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है कि समाज सेवा का स्वरूप कितना व्यापक है? यह बात भी अपने आप में बेहद महत्वपूर्ण है कि यदि राजनीति करनी है तो उसके लिए समाज सेवा में निपुणता निहायत जरूरी है।
सही अर्थों में देखा जाये तो निःस्वार्थ सेवा ही राजनीति का मुख्य आधार है। जब कोई व्यक्ति राजनीति में जाता है या जन प्रतिनिधि बन जाता है तो उसके पास लोग तमााम समस्याएं लेकर इस उम्मीद से आते हैं कि उनकी समस्याओं का समाधान हो जायेगा किन्तु यह तभी संभव है जब उस काम को करवाने की पूरी जानकारी हो।
जब तक किसी कार्य को करवाने की पूरी जानकारी नहीं होगी तब तक वह काम नहीं हो पायेगा, इसीलिए अधिकांश राजनीतिक दल अपने कार्यकर्ताओं को समय-समय पर प्रशिक्षण देने का कार्य करते रहते हैं जिससे कार्यकर्ताओं को यह मालूम हो सके कि छोटे-छोटे कार्यों से लेकर बड़े-बड़े कार्य कैसे करवाये जा सकते हैं? इसके अंतर्गत पार्टी की विचारधारा, संगठन की रीति-नीति, संरचना आदि के बारे में कार्यकर्ता अच्छी तरह से जान एवं समझ सकें। भारतीय जनता पार्टी तो इस संदर्भ में बहुत जागरूक है। कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण के लिए पार्टी ने प्रशिक्षण विभाग बना रख्,ाा है। इसी विभाग के माध्यम से कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण देने का काम किया जाता है।
आम जन जीवन में कुछ कार्यों की चर्चा की जाये, जिससे समाजसेवियों को अकसर दो-चार होना पड़ता है, वे हैं जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र, आय प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र, स्कूलों में बच्चों का एडमिशन, अस्पताल, पुलिस विभाग, बिजली, जल बोर्ड, सीवर, सफाई एवं अन्य अनेक तरह के कार्य। इन कार्यों के अलावा और भी कार्य करवाने के लिए समाजसेवियों के पास लोग आते हैं।
अमूमन देखने में आता है कि कोई नागरिक किसी कार्यकर्ता के पास इनमें से किसी कार्य के लिए जाता है तो अधिकांश मामलों में कार्यकर्ता दायें-बायें देखने लगते हैं, क्योंकि उन्हें इस बात की जानकारी ही नहीं होती कि उस कार्य को किस प्रकार करवाना है। इन कार्यों को करवाने का तौर-तरीका यदि मौटे तौर पर समाजसेवियों या यूं कहें कि कार्यकर्ताओं को मालूम हो जाये तो तमाम काम अपने आप आसान हो जाते हैं।
इस संदर्भ में भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं की बात की जाये तो पार्टी इस बात पर लगातार जोर देती है कि मोदी सरकार की तमाम जन कल्याणकारी योजनाओं, भाजपा शासित राज्य सरकारों एवं स्थानीय निकायों के बारे में ठीक से जानकारी लें और उनके बारे में लिखें-पढ़ें तभी उनके बारे में निपुणता आयेगी।
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भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री जे.पी. नड्डा जी अकसर कहा करते हैं कि कार्यकर्ताओं को प्रतिदिन लिखने-पढ़ने का कार्य करते रहना चाहिए। पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं रक्षामंत्री राजनाथ सिंह जी अकसर यह बात कहते रहते हैं कि भाजपा सिर्फ सरकार बनाने के लिए ही राजनीति नहीं करती है बल्कि उसके पीछे उसका मकसद समाज बनाने का होता है और समाज बनाने का मकसद पूरी तरह तभी संभव हो सकता है जब कार्यकर्ता समाज सेवा या सामाजिक कार्यों में निपुण हों।
वैसे भी राजनीतिक दलों में उन कार्यकर्ताओं को ज्यादा तरजीह मिलती है जिनमें समाज सेवा एवं संगठन दोनों की काबिलियत एवं समझ हो। अपने देश में ऐसी तमाम महान विभूतियां रही हैं जिन्होंने बिना सत्ता के समाजसेवा को बहुत ऊच्च आयाम दिया है। उदाहरण के तौर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तमाम प्रचारक एवं कार्यकर्ता बिना किसी स्वार्थ के समााज सेवा के कार्य में लगे हैं।
नानाजी देशमुख ने तो समाज सेवा को एक नया आयाम दिया है। पं. मदनमोहन मालवीय ने आम जनता के सहयोग से विश्व विख्यात काशी हिन्दू विश्व विद्यालय की स्थापना कर दी। आचार्य विनोबा भावे जी ने सामाजिक पहल करते हुए जिनके पास भूमि अधिक थी, उनसे लेकर भूमिहीन लोगों को भूमि देने का कार्य किया।
वैसे भी देखा जाये तो भारतीय सभ्यता-संस्कृति में समाज सेवा एवं एक दूसरे की मदद करने की महान परंपरा सत्ता के माध्यम से विकसित नहीं हुई थी बल्कि ऐसा करना लोग अपना नैतिक कर्तव्य समझते थे। सही अर्थों में देखा जाये तो आज भी उसी तरह नैतिक कर्तव्यों की जरूरत है मगर आज देखने को मिल रहा है कि जो लोग राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता हैं, उनमें से अधिकांश को यही लगता है कि बिना जन प्रतिनिधि बने समाज सेवा संभव नहीं है।
चुनावी मौसम से कुछ दिनों पहले जनसेवा केन्द्र खोल लिये जाते हैं और बाद में टिकट न मिलने की स्थिति में जनसेवा कार्यालय बंदकर दिये जाते हैं जबकि यह प्रवृत्ति ठीक नहीं है। यह सब लिखने का आशय मात्र यही है कि कोई भी किसी दल का कार्यकर्ता हो या सामान्य नागरिक यदि वह समाज सेवा में निपुण है तो आम जनता की समस्याएं आसान होती जायेंगी और समाज सेवा में निपुणता ही राजनीति का मुख्य आधार होना चाहिए।
– हिमानी जैन, मंत्री- भारतीय जनता पार्टी, दरियागंज मंडल, दिल्ली प्रदेश