जहां एक ओर आधुनिक भारतीय समाज में सबसे प्रमुख सामाजिक, धार्मिक और राष्ट्रीय पर्व तथा त्यौहार आदि से माध्यम से होने वाले मेल-मिलाप अब महज एक औपचारिकता मात्र ही रह गए हैं वहीं दूसरी ओर इसके कुछ फायदे भी होते थे, लेकिन आर्थिक तरक्की के चलते सामाजिक और नैतिक पतन में व्यक्ति स्वयं ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने को तैयार बैठा है। दूसरी तरफ देखा जाये तो वर्तमान दौर की कुछ प्रमुख राजनीतिक पार्टियों ने भी अब समाज को दो भागों में बांटने के लिए राष्ट्रीय और क्षेत्रिय स्तर पर एक बहुत बड़ी खाई पैदा कर दी है।
देखा जाये तो सामाजिक मेल-मिलाप अब महज एक औपचारिकता मात्र इसलिए रह गए हैं क्योंकि समाज को राजनीतिज्ञों ने आर्थिक और सांप्रदायिक तौर पर इस्तमाल करना प्रारंभ कर दिया हैं। यही कारण है कि आर्थिक स्तर पर जब से समाज में असमानता पनपी है तभी से समाज दो वर्गों में बंट कर एक मजदूर तथा दूसरा मालिक बन बैठा है। मजदूर को हमेशा अपने भविष्य की चिंता सताने लगी है और दूसरी तरफ मालिक को अपने आर्थि लाभ के विषय में सोचते रहने के कारण सामाजिक मेल-मिलाप से दूरी बनाने का अवसर मिल गया है।
इसके पहले हमने देखा और पढ़ा भी है कि भारत सदियों से विभिन्न जातियों, पंथों और रंगों वाला एक विशाल देश रहा है इसलिए यहां अपने सभी देवी-देवताओं के सम्मान में बड़ी संख्या में तीज-त्यौहार बड़ी ही धूम-धाम से मनाये जाते रहे हैं। जबकि वर्तमान में वही तीज-त्यौहार महज औपचारिकता बन कर रह गये हैं। इसका कारण पूरी तरह से वर्तमान राजनीति कारणों को माना जा सकता है। क्योंकि राजनीतिज्ञों ने अपने लाभ के चलते समाज को विभिन्न तरिकों से इस्तमाल करना शुरू कर दिया है और यही कारण है कि समाज में विभिन्न प्रकार से आराजकता का माहौल भी पैदा करने का प्रयास करना प्रारंभ कर दिया है।
हालांकि, यह भी सच है कि हमारे समाज में अब अनेक ऐसे नये समुदाय भी पैदा हो गये हैं जो असामाजिक, षड्यंत्रकारी और अराजकता से भरी मानसिकता को ही आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं। इसलिए हमारे प्राचीन और परंपरागत तीज-त्योहारों को मनाने के तरीके भी अब अलग-अलग राज्यों तथा क्षेत्रों में अलग-अलग प्रकार से कर दिये हैं और उनमें सभी संवैधानिक तरीके से रोक लागने का प्रयास किया जा रहा है ताकि समाज में विघटन और दरार का दायरा जल्द बढ़े और उसका आकार भी विकसित होता रहे।
एक समय था जब, हमारा प्राचीन समाज तीज त्यौहारों के नाम पर सामाजिक मेल-मिलाप का बहाना ढूंढता था और प्रत्येक तीज-त्यौहारों को बड़े ही जोश, उत्साह एवं प्यार से पवित्रता के साथ मनाता था, जबकि आज का दौर तो उससे बिल्कुल उलट देखा जा रहा है। एक समय था जब किसी परिवार में कन्या का विवाह होता था तो संपूर्ण गांव मिलजुल कर उसमें संयुक्त परिवार की भांति सहभागी होता था और सहयोग के बहाने ढूंढता था। इसी प्रकार से जब किसी परिवार में जब किसी सदस्य का निधन हो जाता था तो वहां भी संपूर्ण गांव के लोग उस परिवार के साथ उस दुःख की घड़ी में उसका सहयोग करते थे। आज तो स्थिति यह है कि अर्थी के कंधा देने के लिए भी लोग तैयार नहीं होते। किंतु किसी भी विवाह समारोह में मात्र इसलिए पहुंच जाते हैं क्योंकि वहां खाने के लिए भरपूर और अच्छे पकवान मिलेंगे। क्योंकि यही पकवान यदि किसी होटल आदि में जाकर खायेंगे तो उसका खर्च बहुत अधिक हो जायेगा।
यह सच है कि भारतीय समाज में आयोजित होने वाली दावतें हमेशा किसी न किसी सामाजिक, धार्मिक और पारिवारिक उत्सव और अवसरों का हिस्सा रही हैं और प्राचीन काल से ही आम लोग उनका आनंद लेते रहे हैं। हालांकि, आज भी हिंदू त्योहारों के दौरान, पूरा देश जीवंत और रंगीन हो जाता है क्योंकि यह आधुनिक दिनचर्या से खुद को पुनर्जीवित करने का एक अच्छा मााध्यम होता है। इन तीज-त्यौहारों में मौज-मस्ती, मेल-मिलाप, विशेष भोजन और मिठाइयाँ, रंग, पटाखे, तेज संगीत, नृत्य और नाटक, भारत में त्योहारों की विशेषताएं हैं।
हालांकि, भारत के अन्य सभी धर्मों और समुदायों के भी अपने-अपने त्योहार और पवित्र दिन हैं, लेकिन यह अन्य धार्मिक समूहों को उतना आनंद और उत्सव का अवसर नहीं देते जितना की हिंदू धर्म के द्वारा प्राप्त होता है। आज भले ही भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और अब यहां विभिन्न धर्मों और समुदायों से जुड़े कई त्योहारों पर भी छुट्टियां घोषित की जाती हैं लेकिन, उन त्यौहारों में वह रौनक नहीं देखी जाती जो हिंदू धर्म के पर्व और त्यौहारों में होती है।
त्यौहारों की सूचि की बात की जाये तो वर्तमान में हिंदू धर्म के अलावा भी अब अन्य की धर्मों के त्योहार और पर्व इसमें समाहित होते जा रहे हैं लेकिन, बावजूद इसके अब भी भारत के लिए सबसे प्रमुख पर्व और त्यौहार तो हिंदू धर्म से ही आते हैं जो देश को एकता और समानता में पिरोने का कार्य करते हैं। आजकल राष्ट्रीय महत्व की कई प्रमुख और ऐतिहासिक घटनाओं के घटित होने पर भी राष्ट्रीय त्यौहार बनते जा रहे हैं और उनको भी मनाने का चलन चल पड़ा है। जबकि राष्ट्रीय महत्व के उत्सवों के माध्यम से भारतीयों के मन में सनातन धर्म के तीज-त्यौहारों के प्रति लगाव को कम करने का एक षड्यंत्र रचा जा रहा है ताकि राष्ट्रवाद के चलते अपने मूल तीज-त्यौहारों से हिंदू कटता जाये और देशभक्ति के नाम पर अन्य धर्मों के साथ जुड़ कर उनके भी उन त्यौहारों को मनाने लगे जिनका कोई आधार नहीं है।
आज का समाज आर्थिक तरक्की के चलते सामाजिक और नैतिक पतन में व्यक्ति स्वयं ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने को तैयार बैठा है। लेकिन, इस बात को जानने का प्रयास नहीं कर रहा है कि उसके तीज-त्यौहार धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे हैं और उनका अस्तित्व ही अब मंद पड़ रहा है। उदाहरण के लिए, होली मुख्य रूप से हिंदुओं द्वारा मनाया जाने वाला एक सामाजिक तथा धार्मिक त्योहार है, लेकिन आज के दौर में भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में गैर-हिंदू इसका अन्य तरीकों से आनंद लेते देखे जा रहे हैं। जैसे कि अन्य धर्मी लोग इसका लाभ लेने के लिए हिंदू धर्म की महिलाओं को होली के बहाने छेड़ते हैं और फिर बेचारे बन कर बचने का प्रयास करते हैं। इसी प्रकार दिवाली की बात करें तो वे लोग दिवाली से परहेज तो करते हैं लेकिन, दिवाली के दौरान होने वाले आर्थिक लाभ को पाने के लालच में वे सभी अन्य धर्मी लोग बिना सोचे विचारे व्यावसाय में आ जाते हैं।
वे लोग भले ही हिन्दू त्यौहारों में अपने अपने लाभ के अनुसार ही अवसर तलाशते हैं लेकिन, सामाजिक एकता और सद्भावना के नाम पर तो आजकल अन्य धर्मियों की बात ही क्या करें स्वयं हिंदू भी अपने-अपने कर्तव्यों से परहेज करने लगे हैं। सामाजिक एकता और सद्भावना के नाम पर अब मात्र मेलजोल और दिखावे का उत्सव मनाना ही एक मात्र उद्देश्य समझने लगे हैं।
– अशोक चैहान