कांग्रेस पार्टी को एक के बाद एक झटके लगते जा रहे हैं किन्तु वह अपने घिसे-पिटे तौर-तरीकों से हटने के लिए तैयार नहीं है। देखते-देखते उसके हाथ से पुड्डूचेरी भी निकल गया। जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकारें हुआ करती थीं, आज वहां से वह धीरे-धीरे उखड़ती जा रही है।
भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से बेदखल करने के लिए कांग्रेस पार्टी लगातार क्षेत्रीय दलों के समक्ष सरेन्डर करती गई और सरेंडर करते-करते उसकी स्थिति ऐसी बनती गई कि अब कई राज्यों में उसकी स्थिति वोटकटवा दल के रूप में भी नहीं दिख रही है।
तथाकथित क्षेत्रीय सेकुलर दल कांग्रेस की जगह लेने के लिए बेचैन दिख रहे हैं। तमाम क्षेत्रीय दल अब कांग्रेस को अपने आगोश में लेने के लिए कमर कस कर बैठे हैं। अब यह कांग्रेस पार्टी को तय करना है कि उसे अपना वजूद बरकरार रखना है या फिर क्षेत्रीय दलों के आगे सरेंडर करेगी।
कांग्रेस पार्टी क्षेत्रीय दलों की मदद भले ही करती है किन्तु जहां तक क्षेत्रीय दलों की बात है तो ये दल कांग्रेस को पूरी तरह निगलने के लिए तैयार बैठे हैं।
आज आवश्यकता इस बात की है कि क्षेत्रीय दलों की पिछलग्गू बनने के बजाय कांग्रेस पार्टी अपने भविष्य को संवारने के लिए ध्यान केंद्रित करे इसी में उसका कल्याण है।