अजय सिंह चौहान || किसी भी देश, प्रदेश या भाषा की फिल्में समाज का आइना होती हैं। उन फिल्मों के कुछ प्रमुख और मुख्य कलाकार आम लोगों के जीवन में प्रेरणा का कार्य करते हैं। फिर चाहे उनमें काम करने वाले नकारात्मक किरदार हों या फिर सकारात्मक या हीरों की भूमिका वाले नायक हों या नायिकाएं। आज हमारे सामने ऐसे तमाम उदाहरण हैं जो आम जनजीवन में प्रेरणा के स्रोत बने हुए हैं। लेकिन, हिंदीभाषी क्षेत्रों की मुंबईया फिल्मों के कलाकारों में प्रेरणादायक कम और नकारात्मकता अधिक नजर आती है। नतीजा आज संपूर्ण हिंदीभाषी दर्शक भूगत भी रहे हैं।
दक्षिण भारतीय फिल्मों (South Indian Movies) में आम तौर पर क्षेत्रीय स्तर पर आस-पास के प्रकृति और संस्कृति को सबसे अधिक और सबसे नजदीकी अंदाज में परौसा जाता है और यही कारण है कि आज भी प्रकृति और संस्कृति से जुड़े भारतीय दर्शकों की संख्या सबसे अधिक उन्हीं फिल्मों की ओर आकर्षित होती है। जबकि बाॅलीवुड (Bollywood) इसके विपरित विदेशों में जाकर फिल्मों की शुटिंग करने पर जोर देता है। इसके अलावा न कोई कहानी और न ही कोई दमदार डायलाॅग होने के कारण इनके गानों को भी फूहड़ता के साथ परोसा जाता है जिनमें न तो कोई शब्दों का चयन होता है और न ही कोई कारण।
हालांकि, जब से दक्षिण भारतीय फिल्मों (South Indian Movies) का हिंदी में अनुवाद या डबिंग होने लगा है तब से उनके नायकों और नायिकाओं ने कुछ हद तक हिंदीभाषी दर्शकों को नकारात्मकता से न सिर्फ दूर रखने की जिम्मेदारी संभाल रखी है बल्कि उन्हें एक बार फिर से सही मार्ग दिखाने का कार्य भी किया जा रहा है। भले ही कोई भी अभिनेता या अभिनेत्री ‘रील’ लाइफ से निकल कर ‘रियल लाइफ’ में शत-प्रतिशत नहीं आ सकते। लेकिन, कुछ हद तक तो उनकी भूमिका को स्वीकार किया ही जा सकता है।
इस मामले में दक्षिण भारतीय फिल्मों (South Indian Movies) के अभिनेताओं और अभिनेत्रियों के प्रभाव को विशेषकर उन्हीं के राज्यों या क्षेत्रों के आम दर्शकों पर प्रारंभ से ही सकारात्मक भूमिका में देखते भी आ रहे हैं। और संभवतः यही कारण रहा है कि दक्षिण में इन अभिनेताओं और अभिनेत्रियों का राजनीतिक भविष्य भी अक्सर सफल ही रहा है। लेकिन, अगर हम हिंदीभाषी यानी कि मुंबईया फिल्मों के कुछ खास कलाकारों को देखें तो चाहे अमिताभ बच्चन हो या फिर राजेश खन्ना, विनोद खन्ना, धर्मेन्द्र जैसे कुछ दिग्गज कलाकार, पर्दे पर भले ही वे कितने भी सफल रहे हों, लेकिन, राजनीतिक मैदान में अपने दम पर वे कुछ खास नहीं कर पाये और एक कठपुतली की भांति ही राजनीतिज्ञ की भूमिका में रहे।
हालांकि, कुछ हिंदीभाषी नायिकाओं ने जैसे कि शबाना आजमी, हेमा मालिनी, रेखा, जया बच्चन, जया प्रदा और कुछ अन्य अभिनेत्रियों ने भले ही अपनी-अपनी पार्टियों की दबंगई विचारधाराओं के आधार पर कुछ सफलता हासिल कर ली, लेकिन, निजी जीवन में वे आज भी शून्य ही हैं। जबकि दक्षिण भारत के चाहे नायक हों या नायिकाएं आज भी उनके नाम और काम का दबदबा फिल्मों के साथ-साथ राजनीति में बरकरार है।
यही कारण है कि इन दिनों न सिर्फ बाॅक्स ऑफिस पर बल्कि आम लोगों के फिल्मी गपशप में भी दक्षिण भारतीय फिल्मों (South Indian Movies) का असर दिखने लगा है। ऐसा इसलिए क्योंकि इन फिल्मों को देखने के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेश के दर्शकों की भीड़ भी सिनेमाघरों में उमड़ी हुई दिख जाती है। इसका कारण है पिछले कुछ वर्षों से तेलुगु की फिल्मों में ‘पुष्पा’ और ‘आरआरआर’ के अलावा कन्नड़ भाषा की फिल्म ‘केजीएफ2’ ने न सिर्फ बाॅक्स ऑफिस के शानदार कलेक्शन में बल्कि आम दर्शकों में भी जगह बना ली। जबकि बाॅलीवुड की फिल्मों में ‘तानाजी’ के बाद से अब तक कोई भी फिल्म सफल नहीं हो सकी है।
फिल्मों के असली जानकार और असली विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले समय में यही रूझान बरकरार रहने वाला है क्योंकि बाॅलीवुड के पास जिहाद के अलावा और कुछ भी नहीं बचा है। जबकि, दक्षिण भारतीय फिल्मों (South Indian Movies) में एक के बाद एक सकारात्मकता और भारतीय संस्कृति के साथ आम दिनचर्या को अच्छे से फिल्माने के न सिर्फ सारे गुण हैं बल्कि बल्कि वे इसके लिए आज भी झुकने को या जिहाद करने को तैयार नहीं है।
सिनेमाप्रेमी यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि दक्षिण भारतीय सिनेमाजगत के कुछ खास और दिलचस्प पहलू हैं जो कि उनके अपने जीवन से मिलते-जुलते लगते से लगते हैं। यही कारण है कि हिंदी के दर्शक भी अब दक्षिण भारत (South Indian Movies) की फिल्मी दुनिया से अच्छी तरह जुड़ चुके हैं। यही कारण है कि हिंदी भाषा में डब दक्षिण भारतीय फिल्मों को हिंदी टीवी के हिंदी चैनलों और ओटीटी मंच पर देखने वालों की संख्या अच्छी खासी हो चुकी है। यही कारण है कि अब हिंदी फिल्म उद्योग के दर्शकों की संख्या अब धीरे-धीरे कम होती जा रही है।
दक्षिण भारतीय फिल्मों (South Indian Movies) में हमें अब वो सब कुछ देखने को मिल रहा है जो एक हाॅलीवुड और बाॅलीवुड (Bollywood) फिल्मों में देखने को मिलता है। लेकिन, उस षड्यंत्र की तरह नहीं जो बाॅलीवुड कर रहा है। उस ग्लैमर की तरह नहीं जो हाॅलीवुड परोस रहा है। बल्कि एक साधारण सी पारिवारिक कहानी को पेश करने का अंदाज ही दक्षिण भारतीय सिनेमाजगत के लिए वरदान साबित होता जा रहा है। जबकि बाॅलीवुड इस बात को आज तक न तो समझ पाया है और ना ही समझना चाहता है। यही कारण है कि आज सोशल मीडिया में बाॅलीवुड की हर फिल्म का अच्छा खास बहिष्कार हो रहा है।