भारत सहित पूरी दुनिया में जाति, धर्म, क्षेत्र, भाषा, संप्रदाय, गोत्र आदि को लेकर किसी न किसी रूप में उथल-पुथल मची हुई है। उथल-पुथल के कारणों पर बारीकी से यदि नजर डाली जाये तो स्पष्ट रूप से देखने में आता है कि उथल-पुथल का सबसे प्रमुख कारण धार्मिक उन्माद है। जहां तक भारत की बात है तो यहां का स्वरूप धर्मनिरपेक्ष है किन्तु उथल-पुथल न हो, इसके लिए आवश्यकता इस बात की है कि सभी धर्म के लोग सभी धर्मों का सम्मान करें और दूसरे धर्म में हस्तक्षेप एवं तोड़-फोड़ की कोशिश न करें। इसके अतिरिक्त एक महत्वपूर्ण बात यह है कि सोचने-समझने का नजरिया सबका इंसानियत एवं मानवता के आधार पर हो।
वैसे भी देखा जाये तो विभाजन की कोई सीमा नहीं है। उदाहरण के तौर पर जब कोई व्यक्ति विदेश में जाता है तो उसकी पहचान उसके अपने देश से होती है और जब उसके देश में होता है तो उसकी पहचान अपने प्रांत से होती है। व्यक्ति जब अपने प्रांत में होता है तो उसकी पहचान जिले, तहसील, ब्लाॅक एवं गांव से होती है। जब गांव की बात आती है तो उसकी पहचान परिवार, कुल-खानदान एवं गोत्र के आधार पर होती है।
कहने का आशय यह है कि विभिन्न परिस्थितियों में व्यक्ति की पहचान विभिन्न रूपों में होती है किन्तु अंत में उसकी पहचान एक इंसान के रूप में होती है। इसी प्रकार धार्मिक एवं जातीय आधार पर व्यक्ति के अस्तित्व की चर्चा की जाये तो लोग पहले धार्मिक आधार पर विभाजित होते हैं। उसके बाद जातीय आधार पर, फिर विभाजित होते-होते कुल, खानदान एवं गोत्र तक पहुंच जाते हैं। अंततः विभाजित होते-होते एक दिन ऐसा भी आता है जब पति-पत्नी भी आपस में अलग-अलग हो जाते हैं।
यह सब लिखने का आशय मेरा मात्र इतना ही है कि व्यक्ति के विभाजित होने की कोई सीमा ही नहीं है। अतः सभी को मिलकर प्रयास करना चाहिए कि दुनिया का प्रत्येक इंसान अपने को सिर्फ इंसान के रूप में माने और इंसानियत की छतरी के नीचे ही रहने का प्रयास करे। प्रकृति सत्ता की मानव जाति के लिए जो नियमावली है, वही धर्म और मानवता है। जहां पर प्राणियों में सद्भावना हो ऐसी कल्पना एवं प्रार्थना है। प्रकृति के द्वारा ऐसा ही कर्म करने के लिए प्रेरित किया गया है।
अतः, आज आवश्यकता इस बात की है कि लोग किसी भी तरह के उन्माद से बचें, क्योंकि उन्माद से सिर्फ समस्याएं पैदा होंगी और उससे किसी भी समस्या का समाधान होने वाला नहीं है। वैसे भी देखा जाये तो जब से सृष्टि की स्थापना हुई है तब से लेकर आज तक जब भी धर्म पर अधर्म भारी पड़ा है तब-तब किसी न किसी महापुरुष ने धरती पर अवतरित होकर धर्म की रक्षा की है। यहां पर धर्म का आशय हिंदू, मूस्लिम, सिख, ईसाई एवं अन्य किसी धर्म से नहीं है बल्कि ‘असत्य पर सत्य’, ‘हिंसा पर अहिंसा’ की विजय से है। इंसानियत एवं मानवता की रक्षा हो, उसे धर्म कहा जाता है। धार्मिक आधार पर सबकी पूजा-पद्धति अलग-अलग हो सकती है किन्तु ईश्वर तो सभी के लिए एक ही है, बस उस तक पहुंचने के रास्ते अलग-अलग भले ही हैं।
त्रेता युग में जब अधर्म बढ़ा तो प्रभु श्रीराम को धरती पर स्वयं आना पड़ा और उन्होंने अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना की। इसी युग में महा प्रतापी रावण एवं बाली जैसे योद्धा प्रभु श्रीराम के हाथों मारे गये। इसी तरह द्वापर युग में अधर्म की अति होने पर नारायण को भगवान श्रीकृष्ण के रूप में आना पड़ा। भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध के माध्यम से अधर्मियों का नाश किया और धर्म की स्थापना की। पितामह भीष्म, गुरु द्रोणाचार्य एवं दानवीर कर्ण जैसे योद्धा इसलिए वीरगति को प्राप्त हुए क्योंकि वे दुर्योधन जैसे अधर्मी के साथ खड़े थे। बात सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है बल्कि धर्म की स्थापना हेतु समय-समय पर हिरण्यकश्यप एवं कंस जैसे आतताइयों का नाश करने के लिए भी नारायण को पृथ्वी लोक पर आना पड़ा है। द्रौपदी की लाज बचाने के लिए नारायण को स्वयं सामने आना पड़ा।
यह सब लिखने का आशय मेरा इस बात से है कि इन सभी मामलों में अधर्म पर धर्म की स्थापना धार्मिक आधार पर या किसी विशेष पूजा-पद्धति के आधार पर नहीं हुई थी। त्रेता एवं द्वापर युग में धर्म की स्थापना का आधार ही कुछ और था किन्तु आज जो कुछ भी हो रहा है, उसका स्वरूप निहायत ही दूषित हो गया है। आज धर्म का मूल्यांकन विशेष प्रकार की पूजा-पद्धति के आधार पर किया जा रहा है। आज हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, पारसी, यहूदी या अन्य धर्मों के आधार पर उन्माद को बढ़ावा दिया जा रहा है। इजरायल और फिलीस्तीन के संघर्ष का आधार धार्मिक है।
ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार, लोभ-लालच एवं सेवाभाव के जरिये किया जा रहा है जबकि इस्लाम में तमाम लोग ऐसे हैं जो तलवार के दम पर धर्म का विस्तार करना चाहते हैं जबकि सच्चाई यह है कि जिन देशों में एक ही धर्म के लोग सबसे अधिक हैं और वहां की शासन व्यवस्था भी धार्मिक आधार पर स्थापित है किन्तु वहां भी अशांति देखने को मिल रही है। उदाहरण के तौर पर अफगानिस्तान में अधिकांश लोग इस्लाम के अनुयायी हैं फिर भी वहां आये दिन बम धमाके देखने-सुनने को मिलते रहते हैं।
पाकिस्तान की अधिकांश आबादी इस्लामिक है किन्तु वहां भी आये दिन विस्फोट होते रहते हैं। इसी प्रकार इराक, सीरिया, यमन सहित कई देश ऐसे हैं जहां एक ही धर्म के अधिकांश लोग हैं फिर भी वहां आपस में अमन-चैन के साथ नहीं रह पा रहे हैं। कहने का आशय यह है कि जहां पूरी तरह एक ही धर्म विशेष की आबादी है, वहां भी तो मिल कर नहीं रह पा रहे हैं किन्तु जहां नहीं हैं, वहां अपनी आबादी बढ़ाने के लिए उन्माद फैलाने में लगे हैं।
अमेरिका जैसा देश जो दुनिया को अपने इशारों पर नचाना चाहता है और काफी हद तक अपने इस मकसद में कामयाब भी है, वहां भी देखने में आता है कि ‘गन’ यानी ‘बंदूक संस्कृति’ सिर चढ़कर बोल रही है। अकसर देखने में आता है कि कोई सिरफिरा बंदूक लेकर किसी न किसी बहाने स्कूलों-काॅलेजों में घुस जाता है और निर्ममता पूर्वक मासूम बच्चों एवं अध्यापकों की हत्या कर फरार हो जाता है। आखिर यह सब क्या है? यूरोपीय देश ईसाइयत का झंडा पूरे विश्व में फहराने के लिए बेचैन हैं किन्तु अपने देशों में नागरिकों को सुरक्षा नहीं दे पा रहे हैं और संस्कार देना तो दूर की बात है इसलिए बिना किसी लाग-लपेट के यह बात कही जा सकती है कि उन्माद की कोई सीमा नहीं है, उसका कोई प्रकार भले ही किसी रूप में हो। अमेरिका एवं अन्य यूरोपीय देश धर्मनिरपेक्षता एवं मानवाधिकारों की बात तो करते हैं किंतु उनकी धर्मनिरपेक्षता को छद्म धर्मनिरपेक्षता या यूं कहें कि झूठी धर्मनिरपेक्षता कहना ज्यादा उचित होगा।
धार्मिक उन्माद या अन्य किन्हीं कारणों से जो लोग दूसरे देशों में शरणार्थी बन कर गये हैं उनमें से तमाम लोग वहां की कानून व्यवस्था के लिए सिरदर्द साबित हो रहे हैं। रोहिंग्या एवं बांग्लादेशी घुसपैठिये भारत के लिए खतरा बनते जा रहे हैं। देश की तमाम घटनाओं में इनकी संलिप्तता पाई गई है। इस संबंध में प्रमुख बात यह है कि लूट-खसोट, छीना-झपटी, हत्या, अपहरण एवं अन्य घटनाओं में संलिप्त होने के साथ-साथ धार्मिक आधार पर जो उत्पात एवं उन्माद होते हैं, उसमें भी ये बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। राजधानी दिल्ली में श्रीराम नवमी के अवसर पर जहांगीर पुरी में निकली शोभा यात्रा में इन घुसपैठियों ने धार्मिक उन्माद में बहुत ही जोश-जुनून के साथ भाग लिया। इसी प्रकार देश के तमाम हिस्सों में धार्मिक उन्माद की घटनाओं में समय-समय पर इनकी भूमिका देखने-सुनने को मिलती रहती है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने देश में ‘लव जिहाद’ की घटनाओं को बहुत गंभीरता से लिया। एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत हिंदू लड़कियों को बहला-फुसला कर शादी करने का खेल बहुत व्यापक स्तर पर चल रहा है। यह सब सिर्फ इसलिए हो रहा है, जिसमें वे अपने धर्म की आबादी बढ़ा सकें। ‘लव जिहाद’ के माध्यम से अपने धर्म की आबादी बढ़ाने में पहले ये अपने धर्म की पहचान छिपाकर लड़कियों को अपने प्रभाव में लेकर शादी करते हैं, फिर उन पर धर्म परिवर्तन के लिए दबाव बनाते हैं। जो लड़कियां धर्म परिवर्तन से मना करती हैं, उन्हें जान से भी हाथ धोना पड़ता है। लव जिहाद के नाम पर जो कुछ भी हो रहा है, वह इंसानियत एवं मानवता को आधार बनाकर नहीं हो रहा है, बल्कि इसके पीछे का भाव धार्मिक ही है। इस प्रकार की घटनाओं से समय-समय पर धार्मिक उन्माद भी देखने-सुनने को मिलता रहता है। लव जिहाद के साथ-साथ अब ‘लैंड जिहाद’ की भी बातें देखने-सुनने को मिल रही हैं।
कुल मिलाकर कहने का आशय यह है कि धार्मिक आधार पर जिन लोगों को किसी न किसी रूप में उन्माद फैलाने की महारथ हासिल है, उन्हें इस बात पर विचार करने की नितांत आवश्यकता है कि आखिर वे क्या कर रहे हैं? रोहिंग्या मुसलमान जिस धार्मिक उन्माद के चलते म्यांमार से भागने के लिए विवश हुए हैं कहीं पूरी दुनिया में ही उनका यही हश्र न हो जाये क्योंकि अपने देश में कोई भी किसी भी रूप में धार्मिक उन्माद पसंद नहीं करता है इसलिए यह सभी की जिम्मेदारी बनती है कि धार्मिक उन्माद से स्वयं बचें और दूसरों को भी बचायें क्योंकि इसके अलावा अमन-चैन का कोई दूसरा विकल्प नहीं है।
भारत में मुसलमानों एवं ईसाइयों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है किन्तु बांग्लादेश, पाकिस्तान एवं अन्य इस्लामिक देशों में हिंदुओं एवं अन्य अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की संख्या लगातार घटती जा रही है। पाकिस्तान, बांग्लादेश एवं अफगानिस्तान में तो जबर्दस्ती लड़कियों का अपहरण कर उनका धर्मपरिवर्तन करा कर शादियां करा दी जा रही हैं किन्तु वहां की सरकारें कोई ठोस कदम नहीं उठा रही हैं। अपने देश में एक पुरानी कहावत प्रचलित है कि क्रिया की प्रतिक्रया जरूर होती है यानी पाकिस्तान, बांग्लादेश एवं अफगानिस्तान जैसे देशों में धार्मिक उन्माद के रूप में जो कुछ भी हो रहा है वही यदि पूरी दुनिया में होने लगे तो क्या होगा?
धार्मिक आधार पर पीड़ित होकर या अन्य तरीके से जो लोग दुनिया के तमाम हिस्सों में शरणार्थी बनकर गये हैं उन्हें शरणार्थी के रूप में रहना चाहिए अन्यथा उनके लिए जगह-जगह समस्या पैदा होगी। फ्रांस, आस्ट्रेलिया, जर्मनी जैसे देशों ने धार्मिक उन्माद फैलाने वालों को चेतावनी दे दी है कि उनके देश में यदि उन्हें रहना है तो वहां के कानूनों के मुताबिक रहना होगा अन्यथा देश छोड़कर जाना होगा। कमोबेश इसी तरह की स्थिति पूरी दुनिया में बनती दिख रही है। वैसे भी देखा जाये तो धार्मिक उन्माद पर रोक लगाने के लिए यह सब करना ही होगा। पूरी दुनिया में यह धारणा बनती जा रही है कि शरणार्थी धार्मिक उन्माद फैलाने वाली गतिविधियों में और अधिक सक्रियता से भाग लेते हैं।
इस दृष्टि से यदि भारत की बात की जाये तो देश के कई राज्यों में यहां की बहुसंख्यक आबादी यानी हिंदू अल्पसंख्यक हो चुके हैं। हिंदू जिन लोगों की वजह से अल्पसंख्यक हो चुके हैं उनकी प्रमुखता से यह जिम्मेदारी बनती है कि वे धार्मिक उन्माद से बचने-बचाने का कार्य करें। चूंकि, भारत धर्मनिरपेक्ष एवं सहिष्णु राष्ट्र है। इसकी रगों में ‘विश्व बंधुत्व’, ‘विश्व कल्याण’ एवं ‘सर्व धर्म समभाव’ का भाव है किन्तु इस प्रकार का भाव बनाये रखने की जिम्मेदारी सबकी है। भारत के लोग भगवान महावीर के बताये गये रास्ते एवं उनके उपदेशों का पालन करने वाले हैं। ‘अहिंसा परमो धर्मः’ एवं ‘जियो और जीने दो’, यहां के जन जीवन का मुख्य आधार है। भारत में कुछ लोग स्पष्ट रूप से यह मानते हैं कि देश में हिंदू जब तक बहुसंख्यक हैं तभी तक देश धर्मनिरपेक्ष एवं सहिष्णु है अन्यथा इसे बांग्लादेश, पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान बनते देर नहीं लगेगी।
धार्मिक आधार पर यदि पूरे विश्व की बात की जाये तो बिना किसी लाग-लपेट के यह कहा जा सकता है कि यदि पूरी दुनिया एक ही धर्म में तब्दील हो जाये तो भी अमन-चैन की कोई गारंटी नहीं है क्योंकि अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, इराक एवं सीरिया जैसे देशों का हाल लोगों ने देखा है। शिया-सुन्नी का विवाद भी धार्मिक उन्माद का कारण बनता है। जाति, क्षेत्र कुल-खानदान एवं गोत्र के आधार पर भी उन्माद देखने को मिलते रहते हैं इसलिए यह कहा जा सकता है कि पूरी दुनिया ‘सर्व धर्म समभाव’ के रास्ते पर चले और धार्मिक उन्माद से बचने-बचाने का काम करे। इसी में भारत सहित पूरे विश्व का कल्याण है। इसके अलावा पूरी दुनिया के समक्ष कोई अन्य रास्ता भी नहीं है। आज नहीं तो कल इसी रास्ते पर आना ही होगा। अतः इस रास्ते पर जितनी शीघ्र बढ़ लिया जाये, उतना ही अच्छा होगा।
– सिम्मी जैन