सृष्टि की उत्पत्ति के समय से ही पूरे ब्रह्मांड में पोजिटिव-निगेटिव, स्त्री-पुरुष, इलेक्ट्रोन-प्रोटोन इत्यादि जैसे नामों से जानी-जाने वाली ऊर्जाएं स्थापित रही हैं। पूरा का पूरा ब्रह्मांड व्यापक है और अनंत है, जिसको सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता। इस तथ्य को भारतीय संस्कृति के ऋषियों ने समझकर-जानकर समय-समय पर ग्रंथों के माध्यम से व्याख्या भी की है।
भारतीय संस्कृति में मांगलिक प्रतीकों का सर्वोच्च स्थान रहा है और इस कड़ी में सर्व मंगल, कल्याण की दृष्टि से सृष्टि सर्व व्यापकता के माध्यम से स्वास्तिक चिन्ह की उत्पत्ति हुई है। स्वास्तिक सिर्फ भारतीय संस्कृति में ही प्रचलित नहीं है अपितु विश्व के भिन्न-भिन्न भागों एवं धर्मों में इसको स्वीकारा जाता है, प्रचलन में है और उपयोग में लाया जाता है।
स्वास्तिक दो प्रकार का बनाया जाता है। एक दाहिना स्वास्तिक और एक बायां स्वास्तिक। दाहिना स्वास्तिक नर या पोजिटिव का प्रतीक है और बायां यानी नारी जो निगेटिव का प्रतीक है। इन दोनों ऊर्जाओं को ही विश्व की उत्पत्ति का मूल स्रोत्र माना गया है। पूरे विश्व में स्वास्तिक सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत्र माना गया है।
स्वास्तिक दो रेखाओं के द्वारा बनाया जाता है और उन दोनों रेखाओं के बीच समकोण की स्थिति में विभाजित किया गया है। दोनों रेखाओं को इस प्रकार खींचा जाता है कि दायें-बायें, ऊपर-नीचे एवं आपस में किसी भी बिंदु को स्पर्श न करें, केवल एक बार सभी आपस में समकोण बनाकर निकलें।
स्वास्तिक चिन्ह समाज के सभी वर्गों द्वारा अनंत शक्ति, सौंदर्य, चेतना, सुख-समृद्धि, परम मंगल एवं सम्पूर्णता आदि प्रतीकार्थों को संजोए जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपनी अक्षुण्ण कल्याणकारी उपयोगिता को बनाते हुए पूज्य एवं प्रेरक है, तभी तो साहित्य, संस्कृति, कला, अध्यात्म आदि में इसे उत्कृष्ट स्थान दिया गया है और प्रथम पूजनीय माना गया है।
स्वास्तिक को सभी धर्मों में महत्वपूर्ण बताया गया है। अलग – अलग देशों में स्वास्तिक को अलग – अलग नामों से जाना जाता है।
– सिन्धु घाटी की सभ्यता आज से चार हजारों वर्ष पुरानी है। स्वास्तिक के निशान सिन्धु घाटी की सभ्यता में भी मिलते हैं।
– बौद्ध धर्म में स्वास्तिक को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। बौद्ध धर्म में भगवान गौतम बुद्ध के हृदय के ऊपर स्वास्तिक का निशान दिखाया गया है।
– स्वास्तिक का निशान मध्य एशिया के सभी देशों में मंगल एवं सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।
– मेसोपोटेमिया में भी स्वास्तिक को शक्ति का प्रतीक माना जाता है।
– नेपाल में स्वास्तिक हेरंब के नाम से की जाती है।
– बर्मा में महा प्रियेन्ने के नाम से स्वास्तिक की पूजा की जाती है।
– मिस्र में देवताओं के पहले कुमकुम के द्वारा क्रोस की आकृति बनाई जाती है एवं एक्टन के नाम से स्वास्तिक की पूजा भी होती है।
– हिटलर के नातसी दल और जर्मनी के ध्वज मे स्वास्तिक हिन्दू धर्म से लिया गया है।
– क्रिश्चियन धर्म का क्रास भी स्वास्तिक का ही रूप है।
– जैन धर्म में भी यह प्रचलित है, सकारात्मक ऊर्जा के लिए।
जब 16 इंद्रियां हमारे ब्रह्म स्थान पर जाकर मिलती हैं तो एक चिन्ह बनता है, वह है स्वास्तिक का। स्वास्तिक की रेखायें बाहर से अंदर की तरफ मिलती हैं यानी वह ब्रह्म स्थान पर जाकर मिलती हैं। कोई भी पाॅजिटिव एनर्जी जब हमारी केंद्रित हो जायेगी तो उसका एकाधिक प्रभाव मिलेगा और हम उस प्रकृतिसत्ता की तरफ अग्रसर होंगे जिसके लिए मानव शरीर विशेष है और जिसके लिए देवता भी तरसते हैं।
संकलन – श्वेता वहल