- ताजमहल नाम का उल्लेख औरंगजेब तक के किसी भी तवारीखों में या दरबारी दस्तावेजों में कहीं भी नहीं मिलता है।
- इसे ताज-इ-महल याने महलों का ताज कहने का प्रयास करना हास्यास्पद है, क्योंकि यह तो इस्लामी कब्र है। कब्र को कभी भी विश्व में कहीं भी महल न कहा जाता था न कहा जाता है।
- इसका अन्तिम पद ‘महल’ इस्लामी शब्द ही नहीं है, क्योंकि अफगा- निस्तान से लेकर अलजीरिया तक फैले विस्तृत इस्लामी प्रदेशों में ‘महल’ नाम की एक भी इमारत नहीं है ।
- सामान्य धारणा यह है कि इसमें दफनाई महिला मुमताज़ महल के नामानुसार इसका नाम ताजमहल रखा गया है। यह दो दृष्टियों से असंगत है। प्रथम बात तो यह है कि शाहजहाँ की उस पत्नी का नाम मुमताज महल नहीं अपितु मुम्ताज़ -उल्-जमानी था। द्वितीयतः मुम्ताज की स्मृति में बने उस भवन को नामांकित करते समय दो आद्य अक्षर ‘मुम्’ उड़ा देना हास्यास्पद है। एक महिला के नाम के आरम्भ के दो अक्षर हटाकर शेष हिस्सा इमारत का नाम बनता है, यह किस व्याकरण का नियम है?
- फिर भी उस महिला का नाम मुमताज़ होने के कारण यदि उससे इमारत का नाम पड़ता तो वह इमारत ताज़महल कहलाती, न कि ताजमहल।
- शाहजहाँ के समय भारत में आए हुए यूरोप के कई पर्यटकों ने इस भवन का उल्लेख ताज-ए-महल नाम से किया है जो शिव मंदिर सूचित करने वाला संस्कृत शब्द तेजोमहालय का बिगड़ा रूप है। स्वयं मुगल बादशाह शाहजहाँ और औरंगजेब के दरबारी दस्तावेज़ों में या तत्कालीन तवारीखों में ताजमहल शब्द का उल्लेख भी नहीं है, क्योंकि तेजोमहालय उर्फ ताजमहल संस्कृत शब्द है।
- कब्र का अर्थ विशाल इमारत नहीं अपितु केवल इमारत के अन्दर स्थित मृतक के शव पर बना टीला होता है। इससे पाठकों को ज्ञात होगा कि हुमायूँ, अकबर, मुमताज, एतमाद-उद-दौला, सफदरजंग आदि व्यक्तियों के शव कब्जा किये गये हिन्दुओं के विशाल भवनों में ही दफनाए गये हैं।
- यदि ताजमहल मकबरा होता तो उसे महल नहीं कहा जाता, क्योंकि महल में तो सजीव व्यक्ति ही रहते हैं।
- चूँकि ताजमहल का उल्लेख शाहजहाँ तथा औरंगजेब-कालीन किसी मुगल लेख में नहीं है, ताजमहल के निर्माण का श्रेय शाहजहाँ को देना उचित नहीं। उन्होंने ताजमहल शब्द का उल्लेख जानबूझकर इसलिए टाल दिया क्योंकि वह मूलत: तेजोमहालय एक पवित्र हिन्दू संस्कृत शब्द है। जिसका वर्णन उन्हें पसन्द नहीं था।
मंदिर परम्परा –
- ताजमहल संस्कृत शब्द तेजोमहालय यानि शिव मंदिर का अपभ्रंश होने से पता चलता है कि अग्रेश्वर महादेव अर्थात् अग्रनगर के नाथ ईश्वर शंकर जी को यहाँ स्थापित किया गया था।
- शाहजहाँ के पूर्व समय से जब ताज एक शिव मंदिर था तब से ही जूते खोलकर अन्दर प्रवेश करने की परम्परा आज भी मौजूद है। यदि यह भवन मकबरा ही होता तो इसमें प्रवेश करते समय जूते उतार देने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती बल्कि कब्रस्तान में तो जूते पहनना आवश्यक होता है।
- पर्यटक देख सकते हैं कि संगमरमरी तहखानों में बनी मुमताज के कब्र की आधारशिला सादी सफेद है जबकि पड़ोस की शाहजहाँ की कब्र और ऊपरले मंजिल में बनी शाहजहाँ-मुमताज की कब्रों पर हरे बेल-बूटे जड़े हैं। इससे निष्कर्ष यह निकलता है कि वह सफेद संगमरमरी शिला अलग से बनी थी जो कि मूलत: शिवलिंग की आधारशिला थी। वह अभी अपनी जगह पर है और मुमताज़ के वहाँ दफनाए जाने की कहानी कपोल-कल्पित है।
- संगमरमरी जाली के शिखर पर बने कलश कुल 108 हैं जो संख्या पवित्र हिन्दू धर्म की परम्परा है।
- ताजमहल के संगमरमरी तहखाने के नीचे जो लाल पत्थर की बनी मंजिलें शाहजहाँ द्वारा आबड़-खाबड़ चुनवा दी गई हैं उनमें से कई बार पुरातत्वीय कर्मचारियों को मूर्तियाँ मिली हैं। दरारों में से अन्दर झाँकने वाले व्यक्तियों को अन्दरूनी अँधेरे दालानों में मूर्तियों से अंकित स्तम्भ भी दिखाई दिए थे। ऐसे कई रहस्य सरकारी आदेशों द्वारा गुप्त रखे गये हैं। सरकारी पुरातत्व कर्मचारी तथा अन्य पुरातत्वेता, ऐतिहासिक तथ्यों को उजागर करने के अपने कर्तव्य के प्रति सचेत हो पर्यवेक्षण करने के बजाय, इस सम्बन्ध में विचारपूर्वक, सभ्य तरीके एवं कूटनीति से चुप्पी साधे बैठे हुए हैं।
- भारतवर्ष में बारह ज्योतिर्लिंग अर्थात् मुख्य शिव मंदिर हैं। यह तेजोमहालय याने तथा कथित ताजमहल उनमें से एक है, क्योंकि ताजमहल की ऊपर के किनारे में नाग-नागिन की आकृतियाँ जड़ी होने से स्पष्ट होता है कि यही मंदिर नागनाथेश्वर के नाम से जाना जाता था। शाहजहाँ के अधिग्रहण के बाद से इसने अपनी हिन्दू महत्ता खो दी।
- विश्वकर्मा वास्तुशास्त्र नामक वास्तुकला के विवेचनात्मक प्रसिद्ध ग्रन्थ में उल्लिखित विविध प्रकार के शिवलिंगों में तेजोलिंग का उल्लेख करता है जो हिन्दुओं के आराध्यदेव शिवाजी का चिन्ह होता है। वैसा तेजोलिंग ही ताजमहल के अन्दर प्रतिष्ठित हुआ था। अत: यह तथाकथित ताजमहल तेजोमहालय ही है।
- आगरा शहर जहाँ ताजमहल अवस्थित है, प्राचीनकाल से शिवपूजा का केन्द्र रहा है। यहाँ की धार्मिक जनता श्रावण मास में रात्रि का भोजन करने से पूर्व पाँच शिव मंदिरों के दर्शन करती थी। पिछली कुछ शताब्दियों से आगरा के निवासियों को बल्केश्वर, पृथ्विनाथ, मन-कामेश्वर और राज-राजेश्वर इन चार शिव मंदिरों के ही दर्शन से सन्तुष्ट होना पड़ रहा है, क्योंकि उनके पूर्वजों का आराध्य पाँचवें मंदिर का देवता उनसे छीना गया। स्पष्टतः अग्रेश्वर महादेव नाग नाथेश्वर ही उनके पाँचवें आराध्य थे जो तेजोमहालय अर्थात् तथाकथित ताजमहल में विराजमान थे।
- आगरा की आबादी ज्यादातर जाटों की है। वे भगवान शंकर को तेजाश्री कहकर पुकारते हैं। इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इण्डिया, 28 जून, 1971 जो जाट विशेषांक था, कहता है कि जाटों के तेज मंदिर होते थे। शिवलिंग के विविध प्रकारों में तेजोलिंग भी एक है । इससे स्पष्ट होता है कि ताजमहल तेजोमहालय अर्थात् शिव का विशाल मंदिर है।
दस्तावेज के साक्ष्य –
- शाहजहाँ का दरबारी वृत्त शाहजहाँनामा अपने खण्ड एक के पृष्ठ 403 पर कहता है कि अतुलनीय वैभवशाली गुम्बदयुक्त एक भव्य प्रसाद को इमारत-ए-आलीशान वा गुम्बज़े (जो राजा मानसिंह के प्रसाद के नाम से जाना जाता था) मुमताज़ को दफनाने के लिए जयपुर के महाराज जयसिंह से लिया गया।
- ताजमहल के प्रवेश द्वार के साथ लगे पुरातत्वीय शिलाओं पर हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी आदि भाषाओं में लिखा है कि मुमताज़ की कब्र के रूप में शाहजहाँ ने सन् 1631 से 1653 तक ताजमहल का निर्माण करवाया। किन्तु उक्त कथन में किसी ऐतिहासिक आधार का तो उल्लेख ही नहीं। यह उसका एक बड़ा दोष है। दूसरा मुद्दा यह है कि मुमताज़ महल नाम ही झूठा है। मुगली दस्तावेजों में मुमताज़-उल्-जमानी नाम उल्लिखित है। तीसरा मुद्दा यह है कि ताजमहल निर्माण की अवधि जो 22 वर्ष कही गई है वह मुंगल दरबार के दस्तावेजों पर आधारित न होकर टॅव्हरनिए नाम के एक ऐरे-गैरे फ्रेंच सर्राफ के कुछ ऊटपटाँग, संभ्रमित संस्मरणों से निकाला गया निराधार निष्कर्ष है। अन्य प्रमाणों का विश्लेपण करने पर टॅव्हरनिए का कथन गलत सिद्ध होता है।
- अपने पिता शाहजहाँ को लिखा औरंगजेव का पत्र टॅव्हरनिए के दावे को झूठा साबित कर देता है। औरंगजेब का वह पत्र आदाब-ए-आलमगिरी, यादगारनामा और मुरक्का-ई अकबराबादी (सईद अहमद, आगरा से सम्पादित, सन् 1931, पृष्ठ 43, फुटनोट 2) में अन्तर्भूत है। सन् 1652 के उस पत्र में औरंगजेब ने स्वयं लिखा है कि मुमताज की कब्र परिसर की इमारतें सात मंजिलों वाली थी और वे इतनी पुरानी हो गई थीं कि उनमें से पानी टपकता था और गुम्बद के उत्तरी भाग में दरार पड़ी थी। अत: औरंगजेब ने स्वयं अपने खर्चे से उन भवनों को तत्काल मरम्मत करने की आज्ञा देकर शाहजहाँ को सूचित किया कि यथावकाश इन भवनों की व्यापक मरम्मत की जाए। इससे सिद्ध होता है कि शाहजहाँ के समय में ही ताज इतना पुराना हो गया था कि उसकी तत्काल मरम्मत करने की आवश्यकता पड़ी।
- दिसम्बर 18 सन् 1633 के शाहजहाँ द्वारा महाराजा जयसिंह को भेजे दो पत्र (फर्मान्) कपड़द्वारा नाम के जयपुर के गुप्त विभाग में सुरक्षित हैं। उन्हें आधुनिक क्रमांक 176-77 दिये गये हैं। सारी सम्पत्ति सहित ताजमहल का शाहजहाँ द्वारा अपहरण किये जाने की अपमानकारी घटना उन पत्रों में उल्लिखित होने से जयपुर नरेश की असमर्थता छिपाने के हेतु व पत्र गुप्त रखे गये।
- राजस्थान के राजपूत रियासतों के ऐतिहासिक दस्तावेज बीकानेर में सरकारी अभिलेखागार में रखे गये हैं। उनमें शाहजहाँ द्वारा जयसिंह को भेजे तीन पत्र हैं। एक चौथा पत्र भी भेजा गया था ऐसा उन तीन पत्रों में से एक में उल्लेख है। उनमें जयसिंह को मकराने के संगमरमर तथा संगतराश भेजने के लिए कहा है। ताजमहल और उसके अन्तर्गत सारी सम्पति हड़प करने के पश्चात् उसमें मुमताज की कब्र बनाने और कुरान की आयतें जड़ाने के हेतु शाहजहाँ जयसिंह से ही संगमरमर तथा संगतराश मँगवाने की धृष्टता कर रहा था। यह देखकर जयसिंह को बड़ा क्रोध चढ़ा। उसने न ही पत्रों का कोई उत्तर दिया और न ही संगमरमर या संगतराश भेजे। इतना ही नहीं अपितु आस पास के संगतराश अपने आप भी शाहजहाँ के पास न जा सकें उन्हें मना करवा दिया।
- मुमताज की मृत्यु के लगभग दो वर्ष के अन्दर शाहजहाँ ने संगमरमर की माँग करते हुए जयसिंह को तीन आदेश भेजे। यदि वास्तव में 22 वर्ष की कालावधि में शाहजहाँ ने ताज निर्माण करवाया होता तो 10 से 15 वर्षों के बाद ही संगमरमर की आवश्यकता पड़ती न कि मुमताज की मृत्यु के तुरन्त बाद। बना-बनाया ताजमहल हथियाने के कारण ही मुमताज़ की मृत्यु के तुरन्त पश्चात् शाहजहाँ को उसमें कुरान जड़ाने के लिए संगमरमर की आवश्यकता पड़ी।
- इतना ही नहीं, इन तीनों पत्रों में ताजमहल, मुमताज़ और उसके दफन का कोई उल्लेख नहीं है। उसकी लागत एवं पत्थर की मात्रा का भी उनमें उल्लेख नहीं है। ताज को हस्तगत करने के बाद कब्र बनाने तथा आवश्यक मरम्मत के लिए थोड़े से संगमरमर की आवश्यकता पड़ी। क्रुद्ध जयसिंह की मिन्नतें करके प्राप्त होने वाले अल्पस्वरूप संगमरमर से शाहजहाँ द्वारा ताजमहल जैसी विशाल इमारत का समुच्चय निर्माण वैसे भी असम्भव था।
यूरोपियन पर्यटकों के वृत्त –
- पीटर मंडी नाम का एक अंग्रेज पर्यटक शाहजहाँ के काल में आगरा नगर में आया था। इसने निजी संस्मरण लिखे हैं। मुमताज की मृत्यु के पश्चात् एक-डेढ़ वर्ष में ही वह विलायत को लौट गया। तथापि उसने लिखा है कि आगरा नगर तथा आसपास प्रेक्षणीय इमारतों में मुमताज तथा अकबर के दफन-स्थल प्रेक्षणीय हैं।
- द लायट नाम के हालैण्ड के एक अफसर ने उल्लेख किया है कि आगरा के किले से एक मील की दूरी पर शाहजहाँ काल के पूर्व का ही मानसिंह भवन था। शाहजहाँ के दरबारी इतिवृत ‘बादशाहनामा’ में उसी मानसिंह भवन में मुमताज को दफनाने की बात लिखी गई है।
- तत्कालीन फ्रेंच पर्यटक बर्निए ने लिखा है कि ताजमहल के (संगमरमरी) तहखाने में चकाचौंध करने वाला कोई दृश्य था। और उस कक्ष में मुसलमानों के अतिरिक्त किसी अन्य को प्रवेश नहीं करने देते थे। इससे स्पष्ट है कि वहाँ मयूर सिंहासन, चाँदी के द्वार, सोने के खम्भे इत्यादि थे और ऊपरके अष्टकोनी कक्ष में शिवलिंग पर पानी टपकने वाला सुवर्ण घट और संगमरमरी जालियों में जवाहरात इत्यादि थे। इतनी सारी सम्पति हड़प करने के उद्देश्य से ही तो शाहजहाँ ने मृत मुमताज को उस मानसिंह के तेजोमहल में ही दफनाने की धृष्टता तथा दुराग्रह किया ताकि उस बहाने उस इमारत पर कब्जा कर अन्दर की सम्पति लूटी जा सके।
- (i) महाराष्ट्रीय ज्ञानकोप के अनुसार ताजमहल निर्माण कार्य 1631 में आरम्भ होकर 1643 में पूर्ण हुआ। अर्थात निर्माण कार्य 12 वर्ष में पूर्ण हुआ।जवकि प्रचलित निर्माण अवधि 22 वर्प।
(ii) एक मुस्लिम विवरण के अनुसार मुमताज की मृत्यु 1631 में हुई। ताजमहल निर्माण 1631 में आरम्भ होकर 1648 में पूर्ण हुआ। निर्माण अवधि 17 वर्ष। जबकि प्रचलित निर्माण अवधि 22 वर्ष। अपनी प्रिय पत्नि की मृत्यु होते ही उसका शोक न मनाकर शाहजहाँ विदेशों से मानचित्र बनवाने में जुट गया। क्या यह सम्भव है? क्या यह उचित लगता है? मानचित्र के लिए दूरस्थ विदेशों में सन्देश भेजे गए। वहाँ से बनकर मानचित्र आए। पसन्द भी किए गए। तद्नुसार स्थान ढूंढा गया। निर्माण सामग्री मंगवाई गई। सब कार्य छोड़ कर केवल ताजमहल बनाना शेष रहा। क्या यह सम्भव है?
(iii) अब मुख्य मुद्दे पर आएं- ताजमहल की निर्माण अवधि गोरे व काले अंग्रेजों के अनुसार 22 वर्ष है। जो उपर वर्णित अवधियों से एकदम अलग है। इस अवधि का आधार है टॅव्हरनिए नाम का फ्रांस का एक सर्राफ जिसने अपनी यात्रा टिप्पणी में उल्लेख किया है कि शाहजहाँ ने मुमताज़ को ताज इ-मकान के निकट दफनाने का कारण यह था कि वहाँ आने वाले विदेशी यात्री उस दफन स्थल की तारीफ करें। आगे वह लिखता है कि वह ताज-इ-मकान छह चौक वाला बाजार था। लकड़ी न मिलने के कारण शाहजहाँ को कमानों को ईंटों के ही आधार देने पड़े। कब्र पर जो रकम खर्च हुई उसमें मचाण का खर्चा सर्वाधिक था। कब्र का निर्माण-कार्य मेरी उपस्थिति में आरम्भ होकर मेरी उपस्थिति में ही समाप्त हुआ। बीस हजार मजदूर लगातार 22 वर्ष काम करते रहे।” टॅव्हरनिए के पूर्वोक्त कथन का इतिहासकारों ने गलत अर्थ लगाया है। ताज-इ-मकान के निकट का अर्थ उसके अन्दर कैसे हो गया। दूसरे वह ताज़-इ-मकान को छ: मन्जिल का कहना चाह रहा है या बाज़ार को। टॅव्हरनिए को भारतीय भाषाओं का ज्ञान न होने के कारण वह बाजार को ही ताजमहल समझा । उस बाजार में आने वाले विदेशी यात्री जिस मानसिंह के मन्दिर को दंग होकर देखते थे उसमें शाहजहाँ ने मुमताज को इसी उद्देश्य से दफनाया कि उस दफनस्थल का सर्वत्र बोलबाला हो। इससे यह बात स्पष्ट है कि एक बड़ा सुन्दर मानसिंह महल वहाँ आरम्भ से ही बना था। वास्तव में ताज-इ-मकान (उर्फ ताजमहल यानि तेजोमहालय यह उस इमारत का नाम है जिसमें अब मुमताज की कब्र है। ऐसा स्वयं शाहजहाँ के बादशाहनामे में वर्णन है कि वह अति सुन्दर प्रेक्षणीय गुम्बद वाली इमारत थी।
वैसे तो ताजमहल में तेजोमहालय शिव मंदिर के साक्ष्य और भी सैकड़ों हैं किंतु पुस्तक के मात्र कुछ अंश ही यहां प्रस्तुत हैं।
(पुरुषोत्तम नागेश ओक जी द्वारा प्रस्तुत “ताजमहल तेजोमहालय शिव मंदिर है” पुस्तक से साभार)