अजय सिंह चौहान | उज्जैन में स्थित देवी महामाया और महालाया का मंदिर जिसे अब 24 खंभे वाली माता के मंदिर के नाम से जाना जाता है, यह एक अति प्राचीन और सिद्ध मंदिर कहलाता है। इसके अलावा अवंतिका यानी उज्जैन नगरी के प्राचीन द्वार पर विराजमान होने के कारण इन दो देवियोंको नगर की सुरक्षा करने वाली देवियों के रूप में भी माना जाता है। इसी मंदिर में देवी महामाया और महालाया की मूर्तियों के अलावा राजा विक्रमादित्य की मूर्ति को भी दर्शाया गया है।
मान्यता है कि चैबीस खंबा माता का यह मंदिर एक ऐसे स्थान पर बना हुआ है जो पौराणिक इतिहास में महाकाल वन का प्रवेश द्वार कहा जाता था। यह वही प्राचीनकाल का महाकाल वन है जिसमें आज भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक भगवान महाकाल का ज्योतिर्लिंग मंदिर है।
सम्राट विक्रमादित्य से संबंधित साहित्य से पता चलता है कि यह द्वार और इसके एक तरफ स्थापित देवी महामाया और दूसरी तरफ देवी महालाया के रूप में स्थापित मूर्तियां सम्राट विक्रमादित्य के समय की हैं।
बेशकीमती रत्नों से जड़ित यह द्वार अवन्तिका नगरी की उत्तर दिशा की ओर है। लेकिन, मुगलों के आक्रमणों के दौरान बेशकीमती रत्नों से जड़ित यह द्वार लूट लिया गया और इसकी चारदिवारी को भी भारी नुकसान पहुंचाया गया।
हालांकि वर्तमान में यह द्वार बेशकीमती रत्नों से जड़ित नहीं है लेकिन, इस द्वार की भव्यता को देख कर लगता है कि पौराणिक इतिहास के दौर में यह अवश्य ही बेशकीमती रत्नों से जड़ित रहा होगा।
पौराणिक इतिहास के अनुसार वर्तमान का यह मंदिर विक्रमादित्य के समय में एक विशेष प्रवेश द्वार हुआ करता था। और सम्राट विक्रमादित्य स्वयं भी इसी प्रवेश द्वार से होकर भगवान महाकाल और माता हरसिद्धि के दर्शन करने के लिए आया-जाया करते थे।
वर्तमान द्वार और इसमें बने मंदिर की संरचना भी लगभग 1,000 वर्ष पुरानी है जो कि परमार वंश के शासनकाल की बनी हुई बताई जाती है। उस समय इस संरचना के दोनों ओर सुरक्षा के लिए काले पत्थरों की एक दीवार का ऊंचा परकोटा बना हुआ था।
हालांकि वर्तमान में वह ऊंचा परकोटा, यानी नगर की वह चार दिवारी अब लगभग नष्ट ही हो चुका है और प्राचीन समय में इस मंदिर के चारों तरफ जहां कभी महाकाल नाम का घना वन हुआ करता था आज उस स्थान पर यानी इस मंदिर के चारों तरफ घनी आबादी की बसावट देखने को मिलती है।
यह मंदिर भगवान महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर से मात्र कुछ ही दूर गुदरी चैराहे पर है। “चैबीस खंभा माता” के नाम से प्रसिद्ध इस मंदिर में महामाया और महालाया नामक दो देवियों की प्रतिमाएं प्रवेश द्वार के दोनों तरफ, यानी दायें और बायें तरफ बना हुआ है और बीच में आने-जाने के लिए प्रवेश द्वार है।
द्वार के दोनों ओर सिंदूरी चोले से लिपटी देवी महामाया और महालाया की मूर्तियां विराजित हैं। ये मूर्तियां कितनी पुरानी है इस विषय में भी स्पष्ट जानकारी नहीं है।
स्थानिय लोग बताते हैं कि यहां इस द्वार के आस-पास लगभग 100 वर्ष पहले तक भी घना जंगल हुआ करता था और दूसरा ऐसा कोई प्रवेश द्वार या मार्ग या फिर उसके निशान महाकालेश्वर मंदिर की ओर जाने के लिए नहीं था। लेकिन, वक्त के साथ-साथ सब कुछ बदलता गया और अब यह प्रवेश द्वार ही सुरक्षित बचा हुआ है, जबकि इसकी चारदीवारी तो लगभग नष्ट ही हो चुकी है और उसके अवशेष भी अब देखने को नहीं मिलते।
वैसे तो इस प्रवेश द्वार को राजा विक्रमादित्य प्रवेश द्वार भी कहा जाता है। लेकिन, वर्तमान में तो अब यह 24 खंभा वाली माता का मंदिर के नाम से ही पहचाना जाता है।
इसके अलावा यहां एक शिला-लेख भी है, जिसके अनुसार इस मंदिर में पशु बलि की प्रथा भी चलन में थी। लेकिन 12वीं शताब्दी में उस पशु बलि की प्रथा को प्रतिबंधित कर दिया गया।
इसके 24 खंबा माता मंदिर नाम के विषय में स्पष्ट तथ्य यह है कि यह प्रवेश द्वार दोनों ओर से 12-12 खंभों पर टीका हुआ है। यानी इसमें भव्य, आकर्षक और विशाल आकार वाले काले पत्थरों से तैयार कुल 24 खंभे लगे हुए हैं। इसीलिए इसको 24 खंबा माता मंदिर का नाम दिया गया।
पौराणिक युग की परंपरा के अनुसार, सम्राट विक्रमादित्य ने महाअष्टमी के दिन ही प्रातःकाल यहां आकर इस मंदिर में पूजा-अर्चना की थी। इसीलिए आज भी सम्राट विक्रमादित्य युग की उसी परंपरा का पालन करते हुए नगर प्रमुख के द्वारा यानी उज्जैन प्रशासन के मुखिया के द्वारा नगर प्रमुख के रूप में महाअष्टमी के महापर्व पर यहां पूजन का विशेष आयोजन किया जाता है।