भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में यह क्यों कहा,
स्वधर्मे निधन श्रेय: परधर्मो भयावह:।
जब तक हिंदुओं का अपने धर्म पर अटल विश्वास था, धर्म पग-पग पर उनकी रक्षा करता था। जब से हिंदुओं का धर्म-बंधन शिथिल हुआ धर्म ने उसका साथ छोड़ दिया। और यह धर्म-बंधन शिथिल ‘पंचमक्कारवाद’ के फैलाए जाल के कारण हुआ।
मनु ने कहा है,
धर्म एव हतो हन्ति, धर्मो रक्षति रक्षित:।
तस्माद्धर्म्मो न हन्तव्यो, मानो धर्मो हतोऽवधीत्।।
अर्थात्:- नष्ट हुआ धर्म ही नाश करता है, और रक्षित किया धर्म ही रक्षा करता है। नष्ट धर्म कहीं हमें नष्ट न कर दे, अतः कभी धर्म का नाश नहीं करना चाहिए।
परंतु हिंदुओं ने तो अपने ही धर्म का नाश कर पश्चिम के ‘एक किताबी’, समाजवादी और सेक्यूलरिज्म के दूषित विचार का अफीम चाट लिया, और उनका शनै:- शनै: नाश होता चला गया।
उदाहरण के लिए जो हिंदू १००० साल की गुलामी में भी म्लेच्छ का प्रतिकार करते रहे, आज उनके वंशज मौजूद हैं, और जिन्होंने भय, लालच आदि के कारण अपना धर्म त्याग दिया उनकी पूरी पहचान ही मिट गई!
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है,
स्वधर्मे निधन श्रेय: परधर्मो भयावह:।
अर्थात् स्वधर्म में स्थित पुरुष की मृत्यु भी श्रेष्ठ है क्योंकि दूसरेका धर्म भयदायक और हेय है।
भगवान की वाणी कितनी सटीक है। आज देख लीजिए धर्मांतरित म्लेच्छ बात-बात में ‘भय का माहौल है’ का नारा पीटते रहते हैं। उपराष्ट्रपति बन जाएं या IITins, हमेशा भय की ही गति से आबद्ध हैं। ये म्लेच्छ दुनिया में जहां कहीं भी है, दुनिया का वह हिस्सा अशांत है।
तो हे हिंदुओं अपने सनातन धर्म को दृढ़ता से धारण करो ताकि धर्म तुम्हारी सदा ही रक्षा करे। धर्मो रक्षति रक्षित:।
जयश्री कृष्ण!
– संदीप देव