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कल्पेश्वर की यात्रा पर कब जायें, कैसे जायें, कितना खर्च होगा? संपूर्ण जानकारी के साथ

admin 3 April 2022
KALPESHWAR KEDAR
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अजय सिंह चौहान || अगर आप उत्तराखण्ड में स्थित पंच केदारों में से एक यानी पांचवे केदार श्री कल्पेश्वर जी (Kalpeshwar Madir Yatra) के दर्शन करने के लिए यात्रा पर जाना चाहते हैं तो यहां में आप लोगों के लिए इस यात्रा से जुड़ी ऐसी तमाम जानकारियां लाया हूं जिनसे आपको इस यात्रा के दौरान बहुत अधिक लाभ मिलने वाला है। क्योंकि यहां मैं यहां बताने वाला हूं कि अगर आप इस यात्रा में जाते हैं तो रात को कहां ठहरा जा सकता है?, कितने दिन लग सकते हैं?, कितना खर्च लग सकता है?, बस से जाना ज्यादा अच्छा रहेगा कि टैक्सी से? वगैरह-वगैरह।

लेकिन, उससे पहले यहां ये भी जान लें कि कल्पेश्वर मंदिर (Kalpeshwar Madir) उत्तराखण्ड के चमोली जिले में स्थित है। इसलिए इस यात्रा पर जाने के लिए शत-प्रतिशत घुमावदार और ऊंचे-नीचे पहाड़ी रास्तों से होकर ही जाना होता है। मंदिर के आसपास में न तो कोई हवाई अड्डा है और न ही कोई रेलवे स्टेशन है। ऐसे में यहां जाने के लिए सिर्फ और सिर्फ सड़क मार्ग का ही सहारा होता है।

‘‘पंच केदार’’ मंदिरों के सभी पांचों स्थानों पर स्वयं पांडवों के द्वारा शिवलिंग स्थापित कर उनके मंदिरों का निर्माण किया गया था जिन्हें आज हम पंच केदार कहते हैं। पंच केदारों में सबसे पहले नाम आता है –
1. केदानाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर का –
2. दूसरा नाम आता है मध्यमहेश्वर का –
3. तीसरा तुंगनाथ महादेव मंदिर –
4. चैथा है रूद्रनाथ महादेव मंदिर और
5. कल्पेश्वर महादेव मंदिर।

मंदिर तक कैसे पहुँचें –
तो कल्पेश्वर मंदिर (Kalpeshwar Madir) तक पहुंचने से पहले तो यहां ये ध्यान रखना है कि आप देश के किसी भी शहर या किसी भी राज्य के रहने वाले हों, इस यात्रा के लिए सबसे पहले आपको हरिद्वार या फिर देहरादून पहुंचना होता है। हरिद्वार या फिर देहरादून तक आने-जाने के लिए सड़क मार्ग के अलावा रेल और हवाई जहाज की भी अच्छी सुविधाएं उपलब्ध हैं। लेकिन, हरिद्वार या फिर देहरादून से आगे की ओर इस यात्रा के लिए सिर्फ और सिर्फ सड़क के रास्ते ही जाना-आना होता है।

हरिद्वार से या फिर देहरादू से कल्पेश्वर मंदिर (Kalpeshwar Madir) के लिए जाने वाली बसें सीधे मंदिर तक नहीं जातीं, इसलिए मंदिर से करीब 28 कि.मी. पहले पड़ने वाले जोशीमठ जाना होता है और फिर जोशीमठ से टैक्सी या शेयरिंग जीप के द्वारा ही कल्पेश्वर मंदिर तक जाया जा सकता है।

हरिद्वार से जोशीमठ की यह दूरी करीब 276 कि.मी. है। जबकि देहरादून से जोशीमठ की दूरी 295 कि.मी. है। इस दूरी को पार करने में करीब-करीब 9 से 10 घंटे का समय लग जाता है।

पहले दिन की इस यात्रा में हरिद्वार से या फिर देहरादून से जोशीमठ तक जाने-आने के लिए विभिन्न प्रकार की बसें उपलब्ध हैं जिनमें साधारण बसें, नान-एसी डीलक्स बसें, एसी डीलक्स बसें और वोल्वो बसें भी हैं। इनमें कुछ लग्जरी बसें ऐसी भी हैं जो खास तौर से इस लंबी यात्रा के लिए हैं, लेकिन इन लग्जरी बसों का किराया ज्यादा महंगा होता है।

हरिद्वार से या फिर देहरादून से चलने वाली ये बसें सुबह करीब 6 बजे से चलनी प्रारंभ हो जाती हैं और 9 से 10 घंटे में जोशीमठ तक पहुंचतीं हैं। इसके अलावा यहां से शेयरिंग जीप का भी आॅप्शन मिल जाता है। जोशीमठ तक की इस यात्रा के लिए आर्डनरी, यानी साधारण बसों में कम से कम 700 से 800 रुपये तक का किराया लग जाता है। लेकिन, ध्यान रखें कि इन बसों में अपनी सीट पहले से ही बुक करवानी पड़ती है। जबकि शेयरिंग जीप में जाने पर बुकिंग की आवश्यकता नहीं होती।

कल्पेश्वर में कहां रुके –
पहले दिन की इस यात्रा में हरिद्वार या फिर देहरादून से चलने के बाद जोशीमठ पहुंच कर रात को यहीं ठहरना होता है। यहां रात्रि विश्राम के लिए बजट के अनुसार कई सारे छोटे-बड़े होटल्स और यात्री निवास हैं जिनमें कम से कम 500 रुपये से लेकर 2,000 रुपये तक में अच्छी सुविधाओं वाले कमरे मिल जाते हैं। लेकिन, अगर आप जोशीमठ में रात को ठहरने की बजाय सीधे देव ग्राम या फिर हेलंग में रूकना चाहते हैं तो यहां भी छोटे-छोटे होटल्स के अलावा, होमस्टे की सुविधाएं मिल जातीं हैं।

लेकिन, इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि चारधाम यात्रा के दिनों में यहां धार्मिक यात्राओं के अलावा पर्यटकों की भी अच्छी खासी भीड़ हो जाती है जिसके चलते कमरे मिलने में मुश्किल हो सकती है या फिर इन कमरों का किराया बहुत अधिक भी देना पड़ सकता है।

रात्रि विश्राम के लिए होटल या धर्मशालाओं में जो यात्री थोड़ी अच्छी सुविधाओं की उम्मी करते हैं उनके लिए यहां की बजाय जोशीमठ में रात को ठहरना ज्यादा उचित हो सकता है। क्योंकि जोशीमठ में कुछ बड़े प्रायवेट होटल, लाज और धर्मशालाएं मिल जाऐंगे।

यात्री चाहें तो जोशीमठ से और आगे यानी देव ग्राम में जाकर भी रात्रि विश्राम कर सकते हैं। यहां भी कुछ छोटे और कम बजट वाले होटलों के अलावा होमस्टे की सुविधाएं उपलब्ध हैं। लेकिन, अधिकतर यात्री जोशीमठ में इसलिए रात्रि विश्राम करते हैं क्योंकि जोशीमठ से तीन अलग-अगल यात्राओं के लिए जाना-आना आसान हो जाता है। इन तीन यात्राओं में से एक तो कल्पेश्वर की यही यात्रा है। दूसरी है बद्रीनाथ धाम के साथ-साथ माणा गांव के लिए, और तीसरा है ओली के लिए, क्योंकि ओली में भी पर्यटन के साथ-साथ वृद्ध बद्री, वासुदेव मंदिर, नरसिंह मंदिर और श्री दुर्गा मंदिर जैसे कुछ पौराणिक युग के सिद्ध और प्रसिद्ध मंदिर हैं।

अब बारी आती है इस यात्रा में दूसरे दिन की। तो, पहले दिन की इस यात्रा में अगर आप जोशीमठ में रात्रि विश्राम करते हैं तो, अगली सुबह जोशीमठ के टैक्सी स्टैण्ड पहुंचना है। जोशीमठ के टैक्सी स्टैण्ड से कल्पेश्वर की दूरी करीब 28 कि.मी. है। इस यात्रा में करीब एक घंटा समय लग जाता है, और इस दूरी के लिए कम से कम 70 से 80 रुपये देने पड़ते हैं। जोशीमठ से चलने पर सबसे पहला गांव आता है हेलंग। हेलंग गांव जोशीमठ से करीब 18 कि.मी. बाद और कल्पेश्वर मंदिर से 10 कि.मी. पहले आता है।

KALPESHWAR-KEDAR

यह वही हेलंग गांव है जहां से पहले कभी कल्पेश्वर मंदिर (Kalpeshwar Madir) के लिए 10 कि.मी. की कठीन पैदल यात्रा की जाती थी। लेकिन अब यहां सड़क बन जाने के बाद से मंदिर से इसकी पैदल दूरी मात्र 3 कि.मी. रह गई है। और यही कारण है कि पंच केदारों में कल्पेश्वर महादेव मंदिर तक पैदल जाने वाला यह सबसे कम दूरी वाला मार्ग है। और संभवतः इसी कारण यह मंदिर वर्षभर आम श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है।

लेकिन, यहां मैं यही सुझाव दूंगा कि सर्दियों में भले ही आप यहां की यात्रा कर सकते हैं लेकिन, बरसात के मौसम में जाने से बचना चाहिए। क्योंकि पहाड़ों में होने वाली लगातार और घनघोर बारिश के कारण यहां के रास्ते भी बंद हो जाते हैं, और कई तीर्थ यात्री यहां अक्सर फंस जाते हैं।

तो दूसरे दिन की इस यात्रा में जोशीमठ के टैक्सी स्टैण्ड से हेलंग के रास्ते पहुंचते हैं उरगम वैली के देव ग्राम में। देव ग्राम में उतरने के बाद यहां से कल्पेश्वर महादेव मंदिर तक पैदल यात्रा की शुरूआत होती है।

देवग्राम से चलने पर मात्र कुछ ही दूरी तक जाने के बाद कल्पगंगा नदी का शोर सुनाई देने लगता है। थोड़ा और आगे चलने पर सामने नजर आता है लोहे का एक पुल जिसके जरिए इसी कल्पगंगा नदी को पार करते हुए मंदिर तक जाना होता है।

कल्पेश्वर का मंदिर –
कल्पगंगा नदी के किनारे पर पहुंच कर भगवान कल्पेश्वर का मंदिर (Kalpeshwar Madir) सामने ही नजर आने लगता है। पुल पार करने के बाद सभी यात्री सीधे मंदिर की ओर पहुंचने लगते हैं। जो यात्री यहां कल्पगंगा नदी में स्नान करना चाहते हैं उनके लिए मंदिर के पास ही में सीढ़ियों से नदी तक जाने-आने का पक्का रास्ता भी बना हुआ है।

पंच केदार मंदिरों में पांचवे स्थान पर पूजा जाने वाला भगवान कल्पेश्वर का यह मंदिर उत्तराखंड राज्य में गढ़वाल क्षेत्र के अंतर्गत चमोली जिले की उरगम नाम की घाटी में स्थित है। दूर से देखने पर कल्पेश्वर मंदिर में भले ही विशाल आकार की कुछ चट्टानें नजर आतीं हैं लेकिन, मुख्य रूप से यही दिव्य चट्टानें भगवान शिव की उलझी हुई जटाओं के प्रतीक के रूप में पूजी जाती हैं।

आज की इस कल्पगंगा नदी का प्राचीन नाम हिरण्यवती हुआ करता। इसी नदी के एक दम किनारे पर स्थित भगवान कल्पेश्वर का यह मंदिर एक प्राकृतिक गुफा के रूप में है। इस मंदिर की स्थापना द्वापर युग में स्वयं पांडवों द्वारा की गई थी। समुद्र तल से इस मंदिर की ऊंचाई 2,200 मीटर, यानी करीब 7,217 फीट है। हालांकि गुफा के बाहर के कुछ हिस्से मान निर्मित भी हैं। पंच केदार मंदिरों में से मात्र कल्पेश्वर ही एकमात्र ऐसा मंदिर है जो आम श्रद्धालुओं के लिए वर्षभर खुला रहता है।

यहां कोई बहुत बड़ा या भव्य मंदिर नहीं बल्कि प्राकृतिक गुफा के तौर पर एक छोटे से आकार का कक्ष है जिसमें भगवान शिव की उन दिव्य जटाओं की पूजा होती है। इन जटाओं के अलावा इस गुफा में एक दिव्य स्वयंभू शिवलिंग भी है। इसी पूजा स्थल से लगा हुआ एक छोटा सा अमृत कुंड भी है जिसमें भगवान शिव की इन विशाल आकार वाली जटाओं से बूंद-बूंद जल टपकता रहता है। अमृत कुंड के इसी जल से भगवान कल्पेश्वर का जलाअभिषेक किया जाता है।

इन जटाओं के पास प्राचीनकाल में स्थापित पांच पांडवों की छोटी-छोटी प्रतिमाओं के भी दर्शन हो जाते है। इन प्रतिमाओं के पास उनके शस्त्र भी रखे हुए हैं। इनके अलावा पास ही में हनुमान, भगवान गणेश और माता पार्वती और नंदीजी के भी दर्शन हो जाते हैं।

कल्पेश्वर नाम का अर्थ –
कल्पेश्वर केदार (Kalpeshwar Madir) के नाम के विषय में पौराणिक तथ्यों से पता चलता है कि प्राचीन समय में मंदिर के आसपास की इस भूमि पर कल्प वृक्षों का घना वन, यानी ‘‘कल्प वन’’ हुआ करता था, इसलिए उस कल्प वन के नाम से ही पांचवें केदार के रूप को कल्प केदार और फिर कल्पेश्वर केदार नाम दिया गया। शिवपुराण में उल्लेख है कि ऋषि दुर्वासा ने इसी स्थान पर कल्प वृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या की थी।

भोजन का खर्च –
यहां सबसे पहले इस बात का ध्यान रखना होता है कि पीने के पानी की बोतल हर समय अपने पास रखनी चाहिए, वरना रास्ते में पानी खरीदेंगे तो उसकी कीमत बहुत अधिक देनी पड़ सकती है।

भोजन खर्च की बात करें तो इस संपूर्ण यात्रा के दौरान कोई निश्चित खर्च का अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। लेकिन, कम से कम 150 रुपये से लेकर 250 रुपये तक के खर्च में एक समय के लिए भरपेट भोजन मिल जाता है। और यदि आप इस यात्रा के दौरान पहले से ही अपने साथ खाने-पीने का कुछ हल्का सामान ले कर चलेंगे तो उस खर्च में भी कमी आ सकती है।

कल्पेश्वर का सही मौसम –
कल्पेश्वर यात्रा (Kalpeshwar Madir) के दौरान मौसम हमेशा एक जैसा नहीं रहता ऐसे में याद रखें कि कभी तो यहां का तापमान शून्य से नीचे चला जाता है और कभी दिन में भी गर्मी लगने लगती है। ऐसे में कल्पेश्वर की यात्रा के मौसम को लेकर यहां मैं आप लोगों को यही सुझाव दूंगा कि सर्दियों में भले ही आप यहां जा सकते हैं लेकिन, बरसात के मौसम में जाने से बचना चाहिए। क्योंकि पहाड़ों में होने वाली लगातार बारिश के कारण यहां के रास्ते भी बंद हो जाते हैं, जिसके कारण कई तीर्थ यात्री यहां अक्सर फंस जाते हैं।

मार्च से जून के महीनों में पड़ने वाली गर्मी के मौसम में कल्पेश्वर (Kalpeshwar Madir) का तापमान मैदानी क्षेत्र के मुकाबले खुशनुमा रहता है। दिन के समय धूप तेज होती है लेकिन सुबह-शाम हल्की ठंडक रहती है। ऐसे में यहां जाने से पहले कुछ हल्के गरम कपड़े ही पर्याप्त रहते हैं।

मानसून यानी जुलाई और अगस्त के महीनों में संपूर्ण कल्पेश्वर क्षेत्र प्राकृतिक सुंदरता से सज जाता है। इस दौरान रेनकोट आवश्यक हो जाता है।

वसंत ऋतु के अक्टूबर और नवंबर माह के दौरान कल्पेश्वर (Kalpeshwar Madir) में आसमान साफ, हवा खुशनुमा लेकिन, ठंड का एहसास देने लगती है। इस दौरान फलों और फूलों से पौधे और वृक्ष यात्रा को सबसे अधिक यादगार बना देते हैं।

सर्दियों के मौसम में कल्पेश्वर (Kalpeshwar Madir) का तापमान कभी-कभी शून्य से भी नीचे चला जाता है, ऐसे में गर्म ऊनी कपड़े सबसे जरूरी हो जाते हैं।

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