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यहां सबसे पवित्र है जिरोती चित्रकला | Wall paintings & art in Malwa & Nimad

admin 28 February 2021
Jiroti Art - wall painting of Nimad in Madhya Pradesh 1
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AJAY-SINGH-CHAUHAN__AUTHORअजय सिंह चौहान || मध्य प्रदेश के निमाड़ क्षेत्र की जिरोती भित्ति चित्र-कला सिर्फ एक कला नहीं बल्कि प्रदेश की परम्‍पराओं की मूल आधार मानी जाती है। यह कला प्रदेश और खासतौर पर इस निमाड़ क्षेत्र के जीवन में रची बसी प्रकृति, परंपरा और यहां की समृद्ध एवं पौराणिक संस्‍कृति के रूपों में से एक है। निमाड़ी लोकचित्र जिरोती को निमाड़ की जातीय स्‍मृति, इतिहास और संस्‍कृति के अनुभवों का सार माना जाता है। निमाड़ में लोकचित्रों की परंपरा पौराणिक काल से ही चली आ रही है।

निमाड़ क्षेत्र में भी सनातन प्रकृति के अनुरूप सालभर कोई न कोई तीज-त्‍यौहारों से संबंधित आयोजनों का दौर चलता ही रहता है। उन्ही पारंपरिक और लोककला पर आधारित यहां की एक प्रमुख और पारंपरिक भित्ति चित्रकला जो कि “जिरोती” के नाम से जानी जाती है मात्र एक भित्ति चित्र ही नहीं बल्कि पूजा-पाठ और लोकगीतों में भी स्थान बनाए हुए है।

Jiroti Art - wall painting of Nimad in Madhya Pradesh 3
निमाड़ क्षेत्र के घरों में सोईघर की दीवारों पर बनी पारम्परिक जिरोती।

निमाड़ के हर घर और आंगन में जिरोती नामक चित्रकला के पवित्र भित्ति चित्रों को देखा जाना आश्चर्य की बात नहीं कही जा सकती। यह कला यहां की प्रमुख लोक चित्रकला है और अपनी अलंकारिकता और पारम्‍परिक वैभव से सराबोर है।

निमाड़ के किसी भी गांव या कस्बे का कोई भी ऐसा घर या परिवार नहीं है जिसमें इस चित्रकला से महिलाओं और पुरूषों का लगाव न हो। यहां के जनजीवन में सदियों से प्रचलित मान्यताओं, परंपराओं, लोककथाओं और आचार-विचार सहित धर्म और आस्‍था को एक विशेष प्रकार की जिरोती नामक इस भित्ति चित्रकला के माध्यम से रेखांकित किया जाता है।

पांरपरिक रूप से बनाई जाने वाली इस भित्ति चित्र रूपी जिरोती कला में जिरोती माता को रसोई में काम करती गृहिणी के रूप में दिखाया जाता है और जिरोती माता के आस-पास के अन्य रेखांकित पात्रों में चांद, सूरज, नाग देवता, गणगौर नृत्य करते कुछ स्त्री-पुरूष, पालने में झूलते हुए बच्चे और गृहस्थ जीवन के सुख और समृद्धि से संबंधित कुछ अन्य प्रकार की आकृतियां भी बनाई जातीं हैं।
श्रावण मास की अमावस्या जो कि हरियाली अमावस्या के रूप में भी मनाई जाती है उसी दिन को मध्य प्रदेश के संपूर्ण निमाड़ क्षेत्र में जिरोती अमावस्या के रुप में मनाया जाता है। इस दिन घर के भीतरी दरवाजों के दोनों ओर की दीवारों के एक विशेष आकार के हिस्से को गेरू के रंग से पोत कर उस पर पीले रंग से जिरोती बनाई जाती है।

वैसे तो कई परिवारों की महिलाएं किसी न किसी कारण से इसे एक सप्ताह पहले ही बना देतीं हैं। लेकिन, परंपरागत और पूरे विधिविधान के अनुसार जिरोती को अमावस्या के दिन ही विशेष रूप से बनाया जाता है। निमाड़ा में चाहे धनी वर्ग हो या फिर निर्धन, घर चाहे छोटा हो या हो बड़ा। परंपरागत जिरोती लोक-चित्र सभी के घरों के दरवाजों के किनारों को एक सा सजाते और संवारते हैं।

जिरोती मांडने या बनाने से पहले पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है। इसे बनाने से पहले सुबह नहा-धो कर पूरी तरह पवित्र होने के बाद घर की दिवारों पर जिरोती मांडना शुरू की जाती है यानी बनानी शुरू की जाती है।

Jiroti Art - wall painting of Nimad in Madhya Pradesh 4

Jiroti Art is a Holy wall painting of Nimad area in Madhya Pradesh 3
जिरोती की भित्ति चित्रकला के माध्यम से ग्रामीण महिलाएं अपनी कला को एक जिवंत आकार देतीं हैं।

जिरोती को बनाने का अपना एक विशेष तरीका होता है और उस तरीके के अनुसार सबसे पहले जिस दिवार पर जिरोती बनानी होती है वहां गंगाजल का छिड़काव किया जाता है। उसके बाद उस पूरी दिवार को गाय के गोबर से लिपा जाता है। और फिर जिस स्थान पर और जितने आकार में जिरोती बनाई जाती है उतने हिस्से को गेरू से रंग दिया जाता है और उसके भीतर जिरोती माता की आकृति बनाकर घर परिवार के लिए सुख और समृद्धि का आशीर्वाद मांगा जाता है।

इस परंपरा और पवित्र कार्य में विशेष तौर पर महिलाएं हिस्सा लेती हैं और अपने घर परिवार के सुख और समृद्धि की कामना करते हुए अति सुंदर चित्रों की आकृतियां बनातीं हैं और फिर उनमें अलग-अलग रंग भरतीं हैं। और क्योंकि जिरोती विशेष रूप से महिलाओं के द्वारा बनाई जाती है इसलिए यह कलात्मक परंपरा एक त्यौहार का रूप ले लेती है। भले ही जिरोती बनाने वाली महिलाएं अच्छी कलाकार नहीं होतीं हैं, लेकिन, इस कला में वे विभिन्न दृश्यों और पात्रों को बहुत ही सुन्दर तरीके से रेखांकित करने में माहिर होतीं हैं।

जहां एक तरफ दुनिया की आधुनिकता में इस कला पर्व की चमक धीरे-धीरे कम होती जा रही है, वहीं अब निमाड़ी परिवारों की मात्र कुछ महिलाएं ही इस रंगबिरंगे पर्व को सहेजे हुए है। भले ही निमाड़ की इस जिरोती कला की सदियों से एक विशेष रूप में पूजा होती आ रही है, लेकिन, बावजूद इसके अब यह परंपरागत कला और संस्कृति अपने अस्त्तिव की लड़ाई लड़ने की कोशिश कर रही है।

इस परंपरा के इसी खतरे को देखते हुए अब कई संस्थाओं और समुदायों ने मिलकर मध्य प्रदेश के विभिन्न शहरों और कस्बों में समय-समय पर जिरोती कला प्रतियोगिताओं का आयोजन करना शुरू कर दिया है। उन प्रतियोगिताओं में कई महिलाएं हिस्सा भी लेतीं हैं, लेकिन, इस कला के जानकारों को डर है कि आधुनिकता के चलते इस कला की पारंपरिक विशेषताओं, मान्यताओं और इसकी पवित्रता पर असर पड़ सकता है। हालांकि उन लोगों का यह भी मानना है कि गांवों और कस्बों के घरों की भीतरी दिवारों पर बनाई जाने वाली यह कला अब घर से निकल कर बड़े शहरों की प्रमुख दिवारों और चैराहों पर नजर आने लगीं है। लेकिन ऐसे में इसका नुकसान यह हो रहा है कि यह कला जिरोती के नाम से नहीं बल्कि वाॅल पेंटिंग के रूप में पहचानी जा रही है और यही इसके लिए एक अभिशाप साबित हो सकता है।

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