सनातन धर्म के अठारह पुराणों में मत्स्यपुराण अपना विशिष्ट स्थान रखता है। भगवान् विष्णु के मत्स्यावतार से सम्बद्ध होने के कारण यह मत्स्यपुराण कहलाता है। भगवान् मत्स्य के द्वारा राजा वैवस्वत मनु तथा सप्तर्षियों को जो अत्यन्त दिव्य एवं कल्याणकारी उपदेश दिये गये थे, वे ही मत्स्यपुराण में संगृहीत हैं। सृष्टि के प्रारम्भ में जब हयग्रीव नामक असुर वेदादि शास्त्रों को चुराकर पाताल में चला गया, तब भगवानन ने मत्स्यावतार धारणकर वेदों का उद्धार किया।
भगवान् विष्णु के दस अवतारों में मत्स्यावतार सर्वप्रथम अवतार है।
वैष्णव, शैव, शाक्त, गाणपत्यादि सभी सम्प्रदायों में मत्स्यपुराण की समानरूप से मान्यता है। इस पुराण की श्लोक – संख्या चौदह हजार है, जो २९१ अध्यायों में उपनिबद्ध है। इसमें भगवान् के मत्स्यावतार की कथा, मनु-मत्स्य-संवाद, सृष्टि-वर्णन, तत्त्व-मीमांसा, मन्वन्तर तथा पितृवंश का विस्तृत वर्णन है। श्राद्धों के सांगोपाङ्ग निरूपण के साथ चन्द्रवंशी राजाओं का वर्णन भी इस पुराण का पठनीय विषय है । ययाति-चरित्र का वर्णन अत्यन्त करने की रोचक एवं शिक्षाप्रद है, जो भोग मार्ग को सर्वथा अनुचित बताकर निवृत्ति एवं त्यागधर्म का आश्रय ग्रहण प्रेरणा देता है।
विविध व्रतों का वर्णन भी इस पुराण की महती विशेषता है। अनेक व्रतानुष्ठानों की विधि, विविध दानों की महिमा, शान्तिक एवं पौष्टिक कर्म, नवग्रहों का स्वरूप एवं तर्पण विधि का प्रतिपादन सुन्दर कथाओं के माध्यम से किया गया है। तदनन्तर प्रयाग-महिमा, भूगोल- खगोल का वर्णन, ज्योतिश्चक्र, त्रिपुरासुर संग्राम, तारकासुर – आख्यान, नृसिंह- चरित्र, काशी तथा नर्मदा-माहात्म्य, ऋषियों का नाम – गोत्र तथा वंश, सती-सावित्रीकी कथा तथा राजधर्मों का इसमें सरस चित्रण किया गया है।
गणेश पुराण की आवश्यकता और महत्त्व
पुराणों की विषयानुक्रमणिका, भृगु, अंगिरा, अत्रि, विश्वामित्र, वसिष्ठादि गोत्रप्रवर्तक ऋषियों के वंश-वर्णन, राजनीति, यात्राकाल, स्वप्नशास्त्र, शकुनशास्त्र, अंगस्फुरण, ज्योतिषशास्त्र, रत्नविज्ञान, विभिन्न देवताओं की प्रतिमाओं के स्वरूप-लक्षण, प्रतिमान-मान तथा निर्माण-विधि, देव-प्रतिष्ठा एवं गृह-निर्माण सम्बन्धी वास्तु-विद्या आदि इस पुराण के अन्य उपयोगी विषय हैं। इसमें वर्णित कच-देवयानी-आख्यान, त्रिपुर-वध, पार्वती-परिणय, विभूति द्वादशीव्रत आदि की कथाएँ अत्यन्त सुन्दर और उपयोगी हैं।
इस पुराण के पठन-पाठन एवं श्रवण के माहात्म्य के विषय में स्वयं मत्स्य भगवान ने कहा है- यह पुराण परम पवित्र, आयु की वृद्धि करने वाला, कीर्तिवर्धक, महापापों का नाशक तथा शुभकारक है। इस पुराण के एक श्लोक के एक पाद को भी जो पढ़ता है, वह पापों से मुक्त होकर श्रीमन्नारायण के पद को प्राप्त कर लेता है तथा दिव्य सुखों का भोग करता है।
(गीताप्रेस से प्रकाशित ‘मत्स्यमहापुराण’ की भूमिका)