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कहीं, अपनी दुर्दशा के लिए लोग स्वयं जिम्मेदार तो नहीं?

admin 3 August 2023
Flood in Delhi ITO
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देश के किसी हिस्से में जब भी कोई प्राकृतिक आपदा आती है तो हाहाकार मचने लगता है। उस समय सभी लोग अपने-अपने हिसाब से परिस्थितियों की व्याख्या करने लगते हैं और तमाम लोग कहते हैं कि सरकार एवं शासन-प्रशासन ने यह नहीं किया तो वह नहीं किया। अभी ताजा उदाहरण के रूप में दिल्ली को लिया जा सकता है। राजधानी दिल्ली में यमुना जी खतरे के निशान से ऊपर आ गयीं, ऐसे में जो लोग यमुना जी के किनारे बसे हुए हैं उनके समक्ष बहुत बड़ी समस्या आ गयी। आनन-फानन में परिवार, घर के सभी सामान एवं मवेशियों को सुरक्षित निकालना कोई आसान काम तो है नहीं।

बहरहाल, जो भी है, ऐसी स्थिति में अपनी सामथ्र्य के मुताबिक लोग सुरक्षित स्थान पर आने की कोशिश करते हैं। इसी प्रकार की विपरीत परिस्थितियों में ही देखा जाता है कि उन्होंने कैसी सरकार चुनी है? यमुना जी के किनारे तो बाढ़ आती रहती है और किनारे रहने वालों को अकसर सुरक्षित स्थानों पर लाने का काम किया जाता रहा है किंतु जहां शासन-प्रशासन की कमी से काफी दिनों तक पानी जमा रह जाता है। आखिर, उसकी जिम्मेदारी किसकी बनती है?

यह बात अपने आप में पूरी तरह सत्य है कि किसी भी शहर या क्षेत्र की छोटी नालियां, नाले, बड़े नाले या अन्य ऐसे स्थान जहां से पानी का प्रवाह होता रहता है, यदि उनकी निरंतर सफाई होती रहती है तो बरसात से उत्पन्न होने वाली समस्याएं काफी हद तक दूर हो जाती हैं। नियमित रूप से सफाई न होने के कारण थोड़ी सी बरसात होने पर ही शहर की दुर्दशा हो जाती है। इस संबंध में यदि दिल्ली सरकार की बात की जाये तो उसे यह अच्छी तरह पता है कि उसने बिजली-पानी के फ्री का स्वाद दिल्ली वालों को अच्छी तरह से चखा दिया है, ऊपर से महिलाओं की यात्रा बस में फ्री है।

वैसे भी, आम जनता को प्रत्यक्ष रूप से दो सौ रुपये का लाभ पहुंचा कर, दायें-बायें से दो हजार रुपये ले लिया जाये तो उसे कोई फर्क नहीं पड़ता है क्योंकि लोग सिर्फ तात्कालिक रूप से अपना लाभ देखते हैं। अधिकांश लोगों को इस बात से कोई मतलब नहीं होता कि दस-पंद्रह वर्ष बाद की दिल्ली कैसी होगी और इस दौर में राजधानी दिल्ली में उनके बच्चों का भविष्य कैसा होगा? लोग यह भी नहीं सोचते कि जिन कारणों से वे गांवों से पलायन करके दिल्ली में आये हैं, कहीं वही स्थिति दिल्ली में भी न आ जाये? कुल मिलाकर कहने का आशय यही है कि यदि किसी शहर का बुनियादी ढांचा कमजोर होगा तो देर-सवेर उसे बर्बाद होने से कोई रोक नहीं पायेगा। हालांकि, ये बातें सिर्फ दिल्ली के संदर्भ में ही नहीं हैं बल्कि ऐसी स्थिति पूरे हिंदुस्तान में जहां भी है, गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है।

आज नहीं तो कल, आम लोगों को इस बात पर विचार करना ही होगा कि वोट सिर्फ उन कामों को आधार बनाकर देना होगा, जिनसे शहर का वर्तमान अच्छा तो होगा ही, साथ ही भविष्य भी अच्छा हो। आम लोग यदि इन बातों पर गंभीरता से विचार नहीं करेंगे तो अपनी दुर्दशा को इसी प्रकार निमंत्रण देते रहेंगे। आज नहीं तो कल, इन बातों पर विचार करना ही होगा।

– जगदम्बा सिंह

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