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खादी एक विचारधारा है | Khadi an ideology

admin 26 January 2023
GANDHI WITH CHARKHA WEAPON
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यदि हम खादी को देखें तो खादी केवल एक कपड़ा नहीं है, चरखा आजादी दिलाने का यंत्र नहीं है। हमारे सामने तथ्य ही गलत रखे गए। गांधी का अर्थशास्त्र इतना मजबूत था कि वह सफेद चमकने वाली खादी के भी खिलाफ थे, उस विचार से खादी सादी होनी चाहिए जो साधारण धुली जाए, कूटा पीटा न जाए और ना ही उसे ब्लीच किया जाए। इससे कपड़ा बहुत कमजोर हो जाता है, उसकी उम्र कम हो जाती है अतः और ज्यादा खादी की मांग बढ़ती है और ज्यादा कपास की जरुरत पड़ेगी अर्थात उसका बोझ जमीन को ढोना होगा, और जमीन हमारे पेट के लिए अन्न पैदा करेगी या हमारे तन को ढकने के लिए कपास।

विनोबा भावे ने भी मोटी खादी की वकालत की है जो बगैर धुली हो अर्थात कोरी हो उन्होंने ब्लीच की हुई खादी की को बिल्कुल निकम्मी खादी कहा। हमारा देश गरीब है, जमीन भी हमारे पास मामूली है उसमें कपास पैदा करें उसे परिश्रम पूर्वक साफ करें, पीजें, कातें और बुने और फिर इतनी मेहनत के बाद ब्लीच कर दें, इसे एक नैतिक अपराध समझना चाहिए। धोने की क्रिया में कपड़े की उम्र 15 वर्ष कम हो जाती है, इससे कपड़ा अधिक लगेगा और करोड़ों रुपयों की हानि होगी। इससे स्पष्ट हो जाता कि विनोबा क्यों सफ़ेद भड़कीली खादी को नैतिक अपराध झूठ मानता हूँ। 16 मई, 1926 को ‘नवजीवन’ में गाँधी एक लेख में कहते हैं- “मैं चरखे को अपने लिए मोक्ष का द्वार मानता हूं।” ऐसे ही कई स्थानों पर उन्होंने चरखे के लिए मूर्तिरूपी ईश्वर, अन्नपूर्णा और यज्ञ जैसे रूपकों का भी इस्तेमाल किया ।

जब रविन्द्रनाथ टैगोर ने अपने प्रसिद्ध लेख ‘दी कल्ट ऑफ चरखा’ में चरखे से जुड़े कई पहलुओं की जोरदार आलोचना की थी, तो बिना व्यक्तिगत हुए जवाबी चिट्ठी में गांधीजी ने लिखा था कि “मैं तो भगवद्गीता में भी चरखे को ही देखता हूं”। चरखे की साधना में गांधी जैसे ही गहरे उतरे, वैसे ही वह उनके लिए एक आध्यात्मिक साधन भी बन गया । वे एक जगह लिखते हैं, “काम ऐसा होना चाहिए जिसे अपढ़ और पढ़े-लिखे, भले और बुरे, बालक और बूढ़े, स्त्री और पुरुष, लड़के और लड़कियां, कमज़ोर और ताकतवर- फिर वे किसी जाति और धर्म के हों- कर सके। चरखा ही एक ऐसी वस्तु है, जिसमें ये सब गुण हैं। इसलिए जो कोई स्त्री या पुरुष रोज़ आधा घंटा चरखा कातता है, वह जन समाज की भरसक अच्छी से अच्छी सेवा करता है।” साथ ही साथ उन्होंने ‘कताई से स्वराज’ का नारा भी दिया।

विनोबा तो चरखे के अध्ययन की शिक्षा देने के पक्षधर थे जिसमें वह धंधे के अध्ययन के अंतर्गत बिनौले निकालना, पींजना,पूनिया बनाना, कातना सिखाना चाहते थे। कला के अध्ययन में ज्यादा से ज्यादा महीन सूत कातना, हाथों से सूत कातना इसके साथ ही तकली पर कातना, समानांतर तंतु बनाना सिखाना चाहते थे। ओटनी, पींजना, चरखा की मरम्मत सिखाना और साथ ही उनका सिद्धांत कि घर्षण क्या होता है, इसे कैसे टालना चाहिए और चक्र का तकुए से क्या संबंध है अथवा हिलता क्यों है इसका अध्ययन कराने के की पक्षधर रहे।

चरखे के अर्थशास्त्र के अध्ययन के अंतर्गत ग्राम रचना, संपत्ति का विभाजन, बेरोजगारी की समस्या, विदेशी कपड़े का बहिष्कार, कपास के क्षेत्र में हिंदुस्तान का कार्य, स्वावलंबन स्वराज आदि की दृष्टि से कताई की क्या उपयोगिता है इसके अध्ययन पर जोर देते थे। इसके साथ ही उनका कहना था कि विद्यार्थी यह भी अध्ययन करें कि इस कला का आरंभ और विकास कैसे हुआ और धीरे-धीरे यह कल हिंदुस्तान में अब दूर होती जा रही है और इसके साथ धर्म की दृष्टि से भी अध्ययन करें, हिंदू, मुस्लिम, ईसाई धर्म का कातने के बारे में क्या रुख है, स्वदेशी धर्म क्या है, अविरोधी जीवन कैसा होता है, सादगी ,गरीबों के प्रति सहानुभूति, परिश्रम को मान्यता आदि पर विस्तृत जानकारी देना चाहते थे।

खादी की बचत कैसे करें इस के संदर्भ में विनोबा कहते हैं कि स्नान करने के बाद खादी के कपड़ों को ज्यादा देर तक ऐसे ही पड़े ना रहने दें उसे तुरंत ही सुखा लें, सड़कर कपड़ा जल्दी फटता है और जो लोग ज्यादा लंबी धोती पहनते हैं उसको रात में उतार कर रख दिया करें और यदि धोती कमजोर हो जाए तो बीच में से काट कर उसके टुकड़े को उल्टी तरफ से सिल लें वह नई हो जाती है। कपड़ा यदि कुछ फट जाए तो उसकी उपेक्षा या त्याग ना करें उसकी मरम्मत करें फटा कपड़ा नहीं पहना चाहिए यह बात सही है लेकिन उसे तुरंत त्याग भी नहीं देना चाहिए उसकी मरम्मत की जानी चाहिए।

विनोबा खादी को सर्वोदय-समाज और स्वराज्य -शक्ति का सबसे असरदार साधन मानते थे। विनोबा ने देश की प्रगति और लोक -कल्याण के लिए खादी एवं ग्रामोघोग के गांधीजी के दिखाये पथ को सबसे सुगम रास्ता माना।विनोबा ने कहा, चरखा अहिंसा का प्रतीक है। जितना अहिंसा का विचार समाज में फैलेगा, उतना ही चरखे का विचार भी फैलेगा।

विनोबा ने कहा था – “गांवों की रचना ग्रामोघोग -मूलक होनी चाहिए। खादी, ग्रामदान और शांति सेना यह त्रिविध कार्यक्रम हर एक का होना चाहिए।” खादी का अर्थ है- गरीबों से एकरूपता, मानवता की दीक्षा, आत्मनिष्ठा का चिन्ह।यह सम्प्रदाय नहीं है, मानवता का हृदय है। इसलिए पुराने सांप्रदायिक चिन्हों में से जिस तरह आगे दुष्परिणाम निकले, वैसे खादी में से निकलने का भय नहीं है। और जीवन मे परिवर्तन करने का सामर्थ्य तो उसमें अद्भुत है। हमारी पोशाक, हमारे सूत की बनाना स्वाभिमान की चीज है। यह समझकर जो खादी बनायेगा उस पर किसी की भी सत्ता नहीं चलेगी। उन्होंने कहा,” सारा गांव खादी की दृष्टि से स्वावलंबी बन जाये, ऐसा प्रयत्न करना चाहिए। गांव में ही बुनाई की व्यवस्था होनी चाहिए। “

विनोबा खादी को खेती की सहचरी मानते थे। उन्होंने कहा, ” खादी को खेती की सहचरी समझकर उसे किसान के जीवन का अविभाज्य अंग बनाना, यह है खादी का मूलाधार। “और, ” कोल्हू, गाय, अन्न, चरखे, करघे, बुनाई, सिलाई, रंगाई, सभी काम गांव में होने चाहिए।“ विनोबा कहते थे – चरखे को मैं वस्त्रपूर्णा देवी कहता हूँ। खेती अन्नपूर्णा है। उन्होंने कहा, ” खादी शरीर पर आती है, तो चित्त में फर्क पड़ता है। हमने क्रांति को पहना है, ऐसी भावना होती है। बाजार में आम तो बिकता ही है, लेकिन हमने बीज बोया, पानी दिया, परिश्रम किया, तो वृक्ष का फल लगा। वह आम अधिक मीठा लगता है। अपने परिश्रम का कपड़ा तैयार होगा तो ऐसी ही खुशी होगी। हमारा अनुभव है कि बच्चों में इससे इतना उत्साह आता है कि उसका वर्णन नहीं कर सकते। ” विनोबा ने कहा, ‘ मैं किसी का गुलाम नहीं रहूंगा और न किसी को गुलाम बनाऊंगा। ‘ इस प्रतिज्ञा की प्रतीक खादी है। स्वातंत्र्य-पूर्वकाल में खादी को बतौर ‘ आजादी की वर्दी ‘ की प्रतिष्ठा मिली। लेकिन उसका असली कार्य तो ग्राम -संकल्प द्वारा ग्राम -स्वावलम्बन सिद्ध कर ग्राम स्वराज्य की ओर बढ़ना है।

– डॉ. स्वप्निल यादव (लेखक बायोटेक्नोलॉजी के प्रोफेसर हैं)

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