अमृति देवी || आजकल यह चर्चा आम बात हो चुकी है कि लोगों के पास तीर्थ यात्राओं पर जाने के लिए वक्त ही नहीं है। और यदि कुछ लोग तीर्थ करने जाते भी हैं तो वे वहां तीर्थ करने के साथ साथ धुट्टियां बिताने और पिकनिक मनाने के लिए भी जाने लगे हैं। अगर तीर्थ यात्रा पर जाते भी हैं तो उनमें से हर कोई सच्चे मन से नहीं जा पाते। इसीलिए हमारे तीर्थों के प्रति आस्था की कमी के चलते उनके मन अशांत रहने लगे हैं।
हमारे पूर्वज जब किसी भी तीर्थ यात्रा में जाते थे तो उनका मानना होता था कि वहां जाकर उन्हें एक प्रकार से आलौकिक अनुभूति प्राप्त होती थी और उससे उनका जीवन सफल हो जाता था। लेकिन, आजकल के तीर्थ यात्रियों के मन में भक्ति कम दिखावा ज्यादा होने लगा है। इसी कारण कई तीर्थस्थानों पर धनवान और रसूखदार व्यक्तियों के लिए विशेष पूजा और दर्शन की व्यवस्थाएं भी होने लगी है। जबकि सामान्य लोग लंबी-लंबी लाइनों में खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार करते रहते हैं। तीर्थों में हो रहे इस प्रकार के भेद-भावों के कारण देश के लगभग हर बड़े-से-बड़े और प्रसिद्ध तीर्थ स्थल पर यह नजारा देखने को मिलने लगा है।
ऐसे में अगर हम और आप भी अगर किसी भी धार्मिक यात्रा पर जाएं तो कुछ बाते हैं जिनको जरूर याद रखना चाहिए, जिसमें सबसे पहले तो यह ध्यान रहे कि वह आपकी धार्मिक यात्रा है, ना कि कोई पर्यटकन या सैर-सपाटे से संबंधित यात्रा। ऐसी यात्राओं में सबसे पहले तो ध्यान रखें कि आप कभी भी घूमने और मौज मस्ती करने या फिर अपनी छुट्टियां बिताने नहीं, बल्कि भक्ति की धारा में डूबने के लिए जाते हैं।
वैसे हमारे देश में ऐसे कई ऐसे धार्मिक स्थल हैं जो धर्म के साथ-साथ पर्यटन के लिहाज से भी बराबर का स्थान और महत्व रखते हैं। इसलिए अक्सर ऐसे स्थानों पर जाने वाले लोग यही कहते हैं कि हम तो छुटियां बिताने या घूमने जा रहे हैं। यानी, आप भले ही ऐसे स्थानों पर घूमने जाएं, पर ध्यान रखें कि उस स्थान और उस यात्रा के प्रति अपने धर्म और अपने विश्वास को भी मन में बसा कर रखें और सच्ची श्रद्धा और आस्था के साथ आप यहां भी कुछ समय बितायें ताकि आपका मन भटकने से बचे।
किसी भी मंदिर या देवी-देवता के दर्शन और पूजन को शुद्ध, पवित्र और अत्यधिक विनम्र होकर किया जाना चाहिए, अन्यथा मन में हमेशा यही डर और आशंका बनी रहती है कि कहीं हमारे इस घृणीत कार्य से हमारी यात्रा अधूरी तो नहीं रह गई होगी, या फिर हमने जाने-अनजाने कहीं देवी-देवताओं का अपमान तो नहीं कर दिया।
ध्यान रखें कि आप किसी भी धार्मिक यात्रा पर अपने पापों की क्षमा मांगने के लिए जाते हैं, न कि पाप करने या उन देवी या देवताओं का अपमान करने के लिए। इसलिए कोशिश करें कि आप धार्मिक यात्रा में या फिर धार्मिक स्थानों पर बिल्कुल आस्थावान बन कर जायें। लेकिन साथ में यह भी ध्यान रखें कि आपके उन धार्मिक कर्मों और विचारों की आड़ में या फिर तीर्थस्थलों पर भारी भीड़ का कुछ अधर्मी या लूटेरे फायदा न उठा लें, इसलिए आस्था और विश्वास के साथ-साथ कुछ सावधानियां भी जरूरी होती है।
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धर्म और आस्था से जुड़े सभी स्थान अपने आप में दिव्य शक्ति और शांति की अनुभूति कराते हैं। यहां जो शांति और सुकून मिलता है वो कहीं और नहीं मिल सकता। ऐसे स्थानों पर आप बार-बार या हर-बार भी नहीं जा सकते हैं। ध्यान रहे कि ऐसे स्थानों पर जाते समय अपने परिवार के बच्चे भी साथ जायें तो इसमें सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि वहां आप बच्चों को अपने धर्म से संबंधित नियमों और कर्तव्यों और महत्वों का अनुभव करा सकते हैं।
किसी भी धार्मिक स्थान या तीर्थ स्थान पर आप कोशिश करें कि बच्चों को आगे रखें और उन्हें पूजा-पाठ का अवसर दें ताकि वे भी अपने दोस्तों से इस बात की चर्चा करके उन्हें भी इस बात के लिए प्रोत्साहित कर सकें। इसके अलावा, जब कभी भी उनको आवश्यकता पड़े या फिर उनके भविष्य में आने वाली किसी भी भटकाव या अन्य प्रकार की परिस्थतियों में वे ऐसे धार्मिक स्थानों पर आकर आत्मिक शांति और मन की स्थिरता के बारे में सोचेंगे तो आपको जरूर याद करेंगे और धन्यवाद भी देंगे।