सृष्टि की उत्पत्ति से ही स्तनधारी जीवों में प्रकृति सत्ता ने नाभि को जिस प्रकार संजोया है, वह अकल्पनीय, अद्वितीय एवं दुलर्भता लिए हुए रहस्यों से परिपूर्ण है। नाभि प्राणवायु का केंद्र है, जीवनदायिनी है। गर्भावस्था में गर्भनाल या नाल कोर्ड के द्वारा पूरे शरीर का पालन-पोषण जन्मनी के शरीर से निरंतर होता रहता है। जन्म के उपरांत जैसे ही नाल कोर्ड या गर्भनाल या स्टेम कोर्ड का संबंध मां के शरीर से हटता है तुरंत से ही जन्मा जीव स्वतः शारीरिक क्रियाएं करने लगता है।
परम सत्य ये है कि अगर आखिर तक कोई हमारे साथ है, तो वो हमारी सांसें हैं। सांस गई और हम गए, लेकिन हैरानी की बात ये है कि हम अपने इस जीवनदायिनी साथी से करीब-करीब अपरिचित ही रह जाते हैं। यहां तक कि हम ये नहीं जानते कि कैसे ली जानी चाहिए सांसें और कैसे हमारी सांसें हमारे मन, हमारी भावना, हमारी ऊर्जा और हमारे सेहत को प्रभावित करती हैं और नाभि से जुड़ी होती हैं।
अध्यात्म, योग और तंत्र साधना में नाभि यानि मणिपुर स्थल को सांसों का केंद्र माना गया है। नाभि को प्राण ऊर्जा का भंडार बताया गया है। योग तो 72,000 नाड़ियों की बात कहता है, जिससे होकर प्राण गति करती है, हमें हरा-भरा रखती है। ये हज़ारों नाड़ियां हमारे नाभि से आकर जुड़ी रहती हैं। मां के गर्भ में नाभि के जरिए ही हम अपनी जीवन ऊर्जा पाते हैं और हमारे जन्म के बाद भी नाभि ही ऊर्जा का केंद्र सुरक्षित बनी रहती है।
यहां यह बताना भी उपयुक्त होगा कि शरीर में नाभि के पीछे की ओर च्मबीवजप ळसंदक या नेवल बटन कहते हैं जिसमें आयुर्वेद के अनुसार 72000 रक्त धमनियां स्थित रहती हैं जिसके कारण पूरे शरीर में रक्त संचालन भी यहीं से होकर गुजरता है इसीलिए नाभि को भी शरीर के अन्य भागों के समान अद्भुत अंग माना गया है। यही एक ऐसा अंग है जो मरणोपरांत भी कई घंटे तक नाभि के चारों तरफ का हिस्सा गर्म रहता है।
योग की कपालभाति क्रिया भी एब्डोम्निल ब्रीदिंग हैं, बस इसमें सांसों की गति तेज या फोर्स गति से की जाती है। कपालभाति क्रिया का हर दिन अभ्यास हमें नेचुरल सांस लेने की प्रक्रिया से जोड़ता है और नाभि के करीब ले जाता है जिससे हम स्वस्थ रहते हैं। साफ है, जब कभी आप तनाव में हों तो आप अपनी सांसों को नाभि की ओर ले जाना न भूलें। जैसे-जैसे आप नाभि से सांस लेना शुरू करेंगे, वैसे-वैसे आप मन के तल से पहले इंद्रियों के तल और फिर ज्यादा गहरे अपने आत्मिक तल से जुड़ाव महसूस करेंगे क्योंकि नाभि आपकी ऊर्जा का केंद्र है। हर दिन बस 10 मिनट आप अपनी सांसों को नाभि से होकर होशपूर्वक गुजारें और महज कुछ पल में आपके अंदर की शांति ही अलग होगी।
आपने कई बार महसूस किया होगा कि छोटे बच्चे दिनभर भाग-दौड़ मचाए रहते हैं, लेकिन थकान उन्हें नहीं आती। आप उनके साथ भागें तो आप थक जायेंगे, लेकिन वो इस दौड़ का मज़ा लेते रहते हैं। शारीरिक रूप से हम छोटे बच्चों से मजबूत हैं, लेकिन आखिर फिर ऐसी कौन-सी बातें हैं जो हमें उनकी तरह ऊर्जावान नहीं रख पातीं? आपने अक्सर ध्यान दिया होगा कि जब बच्चे सो रहे होते हैं, तो उनकी सांसों की गति के साथ उनका पेट फूलता-सिकुड़ता रहता है। बच्चे सांस पेट के जरिए लेते हैं, जबकि हम बड़े लोग सांस लेते हुए छाती फुलाते-सिकुड़ाते हैं। बच्चे की सांस नाभि से होती आती है और यही उनकी भरपूर ऊर्जा का रहस्य है और यही सांस लेने का सही तरीका है।
Mud Bath: भारतीय चिकित्सा पद्धति में ‘मड थेरेपी’ प्राचीन काल से ही विद्यमान है
- नाभि में गाय का शुद्ध घी या तेल लगाने से बहुत सारी शारीरिक दुर्बलतायें दूर हो जाती हैं, जैसे आंखों का शुष्क हो जाना, नजर कमजोर हो जाना, शुष्क त्वचा और बालों के लिये इत्यादि। सोने से पहले 3 से 7 बूंदें शुद्ध घी और नारियल तेल नाभि में डालें और नाभि के आस-पास डेढ ईंच गोलाई में फैला दें।
- घुटने के दर्द में – सोने से पहले तीन से सात बूंद अरंडी का तेल नाभि में डालें और उसके आस-पास डेढ ईंच में फैला दें।
- शरीर में कंपन तथा जोड़ों में दर्द व शुष्क त्वचा के लिए – रात को सोने से पहले तीन से सात बूंद राई या सरसों का तेल नाभि में डालें और उसके चारों ओर डेढ़ ईंच में फैला दें।
- मुंह पर होने वाले पिम्पल के लिए – नीम का तेल तीन से सात बूंदें नाभि में डालें।
- नाभि पर सरसों का तेल लगाने से कई स्वास्थ्य और सौन्दर्य संबंधी लाभ भी होते हैं। इससे होठ मुलायम होते हैं। नाभि पर घी लगाने से पेट की अग्नि शांत होती है और कई प्रकार के रोगों को दूर करने में मदद मिलती है। इससे आँखों और बालों को भी लाभ होता है। शरीर में कंपन में भी राहत मिलती है।
नाभि में तेल डालने का कारण यह है कि हमारी नाभि को मालूम रहता है कि हमारी कौन सी रक्तवाहिनी सूख रही है, इसी से रक्तवाहिनी या धमनी में तेल का प्रवाह कर देती है। जब बालक छोटा होता है और उसका पेट दुखता है तब हम हींग और पानी या तेल का मिश्रण उसके पेट और नाभि के आस-पास लगाते थे और उसका दर्द तुरंत गायब हो जाता। घी और तेल नाभि में डालते समय ड्रापर का प्रयोग करें ताकि उसे डालने में आसानी रहे।
नाभि स्पंदन आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में रोग पहचानने के कई तरीकों में से एक है। इससे रोग की पहचान की जाती है। नाभि स्पंदन से यह पता लगाया जा सकता है कि शरीर का कौन सा अंग खराब हो रहा है या रोगग्रस्त हो रहा है। नाभि के संचालन और इसकी चिकित्सा के माध्यम से सभी प्रकार के रोग ठीक किए जा सकते हैं।
नाभि स्पंदन पद्धति के अनुसार यदि नाभि ठीक मध्यमा स्तर के बीच में चलती है तब महिलाएं गर्भधारण योग्य होती हैं लेकिन यदि यही मध्यमा स्तर से खिसक कर नीचे रीढ़ की तरफ चली जाए तो ऐसी महिलाएं गर्भधारण नहीं कर सकती हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि जिन महिलाओं की नाभि एकदम बीचो-बीच होती है वह बिल्कुल स्वस्थ बच्चे को जन्म देती हैं।
नाभि के खिसकने से मानसिक एवं आध्यात्मिक क्षमताएं कम हो जाती हैं। यदि गलत जगह पर खिसककर वह स्थायी हो जाए तो परिणाम अत्यधिक खराब हो सकते हैं। नाभि को यथा स्थान लाना एक कठिन कार्य है। थोड़ी सी गड़बड़ी नई बीमारीयों को जन्म दे सकती है। नाभि की नाड़ियों का संबंध शरीर के आंतरिक अंगों की सूचना प्रणाली से होता है इसलिए नाभि नाड़ी को यथा स्थल बैठाने के लिए इसके योग्य व जानकार चिकित्सकों का ही सहारा लिया जाना चाहिए। नाभि को यथा स्थान लाने के लिए रोगी को रात्रि में कुछ खाने को न दें। सुबह खाली पेट उपचार के लिए जाना चाहिए क्योंकि नाभि को सही स्थान पर खाली पेट ही लाया जा सकता है।
समुद्र शास्त्र में भी नाभि के आकार प्रकार के अनुसार महिला- पुरुष के व्यक्तित्व के बारे में बतलाया गया है। जिन महिलाओं की नाभि समतल होती है उन्हें जल्द गुस्सा आता है लेकिन पुरुष की नाभि समतल है तो बुद्धिमान और स्पष्टवादी होता है। जिनकी नाभि गहरी होती है, वे प्रेमी, रोमांटिक व मिलनसार होती हैं और इन्हें जीवन साथी सुन्दर मिलता है। जिन महिलाओं की नाभि लंबी होती है वे आत्म विश्वास से भरी हुई और आत्मनिर्भर होती हैं। जिनकी नाभि गोल होती है वे आशावादी, बुद्धिमान और दयालु होती हैं, ऐसी महिलाओं का वैवाहिक जीवन सुखमय गुजरता है। पतली नाभि वाले लोग कमजोर और नकारात्मक होते हैं। ऐसे लोग अक्सर काम को अधूरा छोड़ देते हैं और वे स्वभाव से चिड़चिड़े होते हैं।
विज्ञान ने नाभि के रहस्यमयी गुणों के साथ-साथ गर्भनाल या स्टेम कोर्ड या प्लेसंेटा कही जाने वाली स्टेम का गहन अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला है। इस गर्भनाल को अगर सुरक्षित रख लिया जाये तो पूरे जीवन में लगभग 200 लाइलाज कही जाने वाली या भयंकर बीमारियों का सफलतापूर्वक इलाज किया जा सकता है।
आज भी लगभग इसी पद्धति से विश्वभर में लगभग 80 बीमारियों का सफलतापूर्वक इलाज किया जा रहा है। विज्ञान की जानकारी के अनुसार लगभग 200 सेल्स या बैक्टीरिया से युक्त यह गर्भनाल भिन्न-भिन्न कोशिकाओं को बनाने के काम में लाई जा रही है। इस गर्भनाल को गर्भनाल बैंकों में सुरक्षित रखा जाता है। वह च्संबमदजं ठंदा के नाम से भी जाने जाते हैं जिनमें नाल के साथ-साथ जो खून नाल में होता है उसे निकाला जाता है और उसे लगभग -200 डिग्री से. के तापमान में पूरी उम्र के लिए सुरक्षित रखा जा सकता है परंतु नाल के खून को 600 वर्षों तक सुरक्षित रखा जा सकता है। भारत में लगभग 25 शहरों में च्संबमदजं ठंदा कार्यरत हैं। वैसे गर्भनाल को विश्व के किसी भी कोने में किसी भी प्लेसंटा बैंक ब्रांच में सुरक्षित रखा जा सकता है।
नाभि का महत्व इस बात से भी समझा जा सकता है कि लगभग सभी शारीरिक क्रियाएं विशेषकर सांसें नाभि से ही संचालित हैं। एक गायक भी अच्छा गायक तभी कहलाता है जब वह नाभि तक से गाता है। रामायण के अनुसार श्री रामजी द्वारा रावण के वध के समय उनकी नाभि पर ही तीर चलाया गया क्योंकि वहां प्राण वायु केंद्रित रहती हैं। इसलिए नाभि को सुरक्षित, स्वस्थ और उसके रहस्यों को समझ कर उसका अनुसरण करने से ही हम अपने जीवन को सफल और स्वस्थ बना सकेंगे और बनाए रख सकते हैं।
संकलन – श्वेता वहल