
ये है ओडिशा के कंधमाल जिले से पूर्णमासी जानी जी। इन्हें 2021 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। पूर्णमासी जानी जी कोंध जनजाति से संबंध रखती है। इन्हें कुई भाषा जो कि इनकी अपनी जनजातीय भाषा है के अलावा कोई भाषा नहीं आती, टूटी-फूटी ओड़िया बोल लेती है।
पूर्णमासी जानी जी के पास कोई बेसिक एजुकेशन नहीं है, बिल्कुल ही निरक्षर। लेकिन इन्होंने 50,000 से ज्यादा गीत/कविता गाये है। गाये क्या है इनको कम्पोज की है जो कुई,ओड़िया और संस्कृत में है। अभी तक इनके 15,000 गीत को लिपिबद्ध किया गया है और अन्य का कार्य जारी है। क्योंकि इन्हें लिखना-पढ़ना नहीं आता तो ये इसमें कुछ कर नहीं सकती।
इनके शिष्य लोग इनके गीतों को लिपिबद्ध करते हैं/कर रहे हैं। अभी तक छः बुक प्रकाशित हो चुके इनके गीतों के संग्रह का। और दो शिष्य इन्हीं गीतों को रिसर्च करके पीएचडी की डिग्री ले चुके हैं। अभी तो 35,000 से ऊपर गीत तो और लिपिबद्ध होने बाकी है इस हिसाब से और भी सोच लीजिए।
सबसे बड़ी बात है कि जनजाति महिला और घने जंगलों में रहने वाली और अपनी भाषा के अलावा कुछ और नहीं जानती.. अपने पुत्र-पुत्रियों की असमय काल के गाल में समा जाने के दुःख में अपने देवी के शरण में गई ताड़ीसारू पर्वत के ऊपर जहां इन्हें देवी माई का आशीर्वाद प्राप्त हुआ।
इन्हें कुई के अलावा और कोई भाषा न आते हुए ओड़िया और संस्कृत में गीतों की रचना करती है। और ये गीत जब-तब नहीं निकलते हैं.. जब ये ध्यान के गहरे तल में होती है तब इनके मुखारबिंद से अपने-आप गीत प्रस्फुटित होने लगते हैं, तब इनके सानिध्य में बैठे शिष्य इनको लिपिबद्ध करते हैं।
क्या ये आश्चर्य वाली बात नहीं है…?
एक अनपढ़,अशिक्षित,निरक्षर महिला बिना भाषा ज्ञान के जिनको ये जानती तक नहीं उसमें पद्य रचना कर रही है और ये पद्य जिनको आगे व्याख्या करके पीएचडी की डिग्री ली जा रही हो ?? ये आश्चर्य नहीं है ??
कल आदरणीय जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी का वीडियो देखा जिसमें वो एंकर से कह रहे हैं कि “मैं जन्म से दृष्टिहीन हूँ फिर भी सभी वेद कंठाग्र है मुझे.. डेढ़ लाख से अधिक पन्ने कंठस्थ है। अब और कौन सा चमत्कार देखना चाहती हो बेटी ?”
इसके अलावे जगद्गुरु रामभद्राचार्य को बहुभाषाविद कहा जाता है। वे 22 भाषाओं में पारंगत हैं। संस्कृत और हिंदी के अलावा अवधि, मैथिली सहित अन्य भाषाओं में कविता कहते हैं। अपनी रचनाएं रची हैं। अब तक उन्होंने 80 से अधिक पुस्तकों की रचना की है। इसमें दो संस्कृत और दो हिंदी के महाकाव्य भी शामिल हैं। तुलसीदास पर देश के सर्वश्रेष्ठ विशेषज्ञों में से उन्हें एक माना जाता है। जगद्गुरु रामभद्राचार्य न लिख सकते हैं। न पढ़ सकते हैं। न ही उन्होंने ब्रेल लिपि का प्रयोग किया है। वे केवल सुनकर शिक्षा हासिल की। बोलकर अपनी रचनाएं लिखवाते हैं। उनकी इस अप्रतिम ज्ञान के कारण भारत सरकार ने उन्हें वर्ष 2015 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया था।
ये मात्र मैं दो उदाहरण दे रहा हूँ जो काफी है भारतीय संस्कृति और इसके गहरे भाव को समझने के लिए –
क्या कभी साइंस के जानकार लोगों ने इसके ऊपर कुछ रिसर्च करने की सोची ?? क्या कभी मीडिया के लोगों ने किसी सुहानी शाह टाइप के लोगों के ट्रिक्स से इसे कम्पेयर करने की कोशिश करी ?? ये सुहानी जैसे कितने ही ट्रिक्स वाले 6/6 आंख के साथ और हायर साइंटिफिक मॉडर्न एजुकेशन डिग्री के साथ मार्केट में घूम रहे हैं क्यों नहीं ये ऐसे रचना कर सकते हैं, जिसके ऊपर रिसर्च हो? श्याम मानव जैसे लोग चादर और फादर कल्ट वालों के कुछ ऐसे ही उदाहरण सामने लाये न तब बात होगी! तब तो पता नहीं कहाँ ढुकल रहते हैं सो ये!
ये युग का ये समय काल कुछ अलग चल रहा है…. दुनिया भौंचकी हो के भारत की ओर देख रही है… और ये रूकने वाला नहीं है।
– साभार