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युवा पीढ़ी को संस्कारों की खुराक जरूरी…

admin 5 November 2022
Indian Youth and western culture
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भारत सहित पूरी दुनिया में तमाम घटनाएं ऐसी देखने एवं सुनने को मिलती रहती हैं जिससे यह सोचने के लिए विवश होना पड़ता है कि देश एवं दुनिया के युवा ऐसा क्यों कर रहे हैं? जब यह सुनने को मिलता है कि अमुक युवा ने शराब के नशे में अपनी पत्नी या परिवार के किसी अन्य सदस्य की हत्या कर दी या फिर नशे की हालत में पड़ोस की महिला के साथ दुष्कर्म किया। इस प्रकार की घटनाएं यदि बहुत ही मुश्किल से कहीं देखने-सुनने को मिलें तो राहत महसूस की जा सकती है किन्तु ऐसी घटनाएं अब आये दिन देश एवं दुनिया में देखने-सुनने को मिलती रहती हैं।

इस दृष्टि से यदि भारत की बात की जाये तो इसी देश में श्रवण कुमार जैसा पुत्र लोगों ने सुना है जो अपने अंधे माता-पिता को कांवड़ में बैठा करके तीर्थयात्रा के लिए चल पड़ा। सती सावित्री जैसी नारी जिसने अपने पति के प्राण वापस करने के लिए यमराज को मजबूर कर दिया। अब सवाल यह उठता है कि जब हमारा अतीत इतना शानदार एवं गौरवमयी रहा है तो अब इस प्रकार की स्थिति क्यों उत्पन्न हुई है?

दरअसल, उस समय की बात की जाये तो बच्चों की शिक्षा-दीक्षा गुरुकुलों में होती थी। गुरुकुलों में गुरुजन बच्चों की मानसिकता को भांप कर उसी के मुताबिक शिक्षा-दीक्षा दिया करते थे किन्तु मुगलों एवं अंग्रेजों के लंबे शासन काल में गुरुकुलों को साजिश के तहत समाप्त कर दिया गया और लार्ड मैकाले द्वारा विकसित शिक्षा पद्धति भारत पर थोप दी गई।

आधुनिक शिक्षा व्यवस्था ने भारत को क्या दिया, इस संबंध में बहुत अधिक विचार-विमर्श की आवश्यकता नहीं है। युवाओं को संस्कारी बनाना तो आधुनिक शिक्षा पद्धति के वश की बात एकदम नहीं है, ऊपर से संयुक्त परिवार भी बिखर गये जबकि यह सभी को पता है कि बच्चे संयुक्त परिवार में ही रहकर दुनियादारी की बातें जानते एवं सीखते थे।

दादा-दादी एवं नाना-नानी के ज्ञान के खजाने से परिपूर्ण बच्चे जब समाज में निकलते थे तो कदम-कदम पर उनमें संस्कार देखने को मिलता था किन्तु एकल परिवारों के दौर में अधिकांश बच्चों को न तो दादा-दादी का साथ मिल पा रहा है, न ही नाना-नानी का तो ऐसे में बच्चे संस्कारी बनें कैसे? रात में सोते-सोते दादा-दादी एवं नाना-नानी से बच्चे कहानियां सुनकर जितना ज्ञान अर्जित कर लिया करते हैं।

क्या आज की महंगी शिक्षा व्यवस्था में वह सब संभव है? कुल मिलाकर कहने का आशय यही है कि यदि समाज में सब कुछ अच्छा देखना-सुनना है तो युवा पीढ़ी को संस्कारों की खुराक देनी ही होगी। बिना इसके कुछ भी अच्छा होना संभव नहीं है। एक न एक दिन तो इस तरफ आना ही होगा। अतः यह काम जितना शीघ्र कर लिया जाये, उतना ही अच्छा होगा।

– जगदम्बा सिंह

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