संसार के समस्त मनुष्यों, क्षेत्रों, जातियों, धर्मों तथा सभ्यताओं का अब तक का प्राचीन और आधुनिक इतिहास यही बताता है कि जिस किसी भी समाज या धर्म ने यदि किसी भी प्रकार से व्यक्तिवाद या किसी संगठन आदि की अंधभक्ति की है तो उनका सदैव नाश ही हुआ है। क्योंकि व्यक्तिवाद एक व्यक्तिगत आत्मनिर्भरता पर बल देता है और उसका समर्थन करता है। साधारण अर्थ में कहें तो स्वार्थ के समर्थन की अथवा विशिष्ट समझे जाने वाले व्यक्तियों की महत्ता स्वीकार करने की प्रवृत्ति होती है। सनातन धर्म कहता है कि जिस किसी पर भी व्यक्तिवाद हावी हो जाता है वह अपने समक्ष अन्य किसी को भी पनपने नहीं देता और उनको अपने कुचक्रों में फांस कर उपहास का पात्र बना देता है। दूसरे शब्दों में कहें तो व्यक्तिवाद अपने अनुयायियों को न सिर्फ उपहास का पात्र बना देता है बल्कि उनको अपने मूल धर्म से भी भटका कर उन्हें सदैव खतरे में रखता है।
सनातन शास्त्र कहते हैं कि यदि कोई व्यक्ति स्वयं चाहता है कि कोई उसकी अंधभक्ति करे और उसकी चापलूसी के लिए नतमस्तक रहने वाले हमेशा उसी के इर्दगिर्द बने रहें, उसकी आज्ञा का पालन करते रहें और अंधभक्ति करते रहें, तो ऐसे व्यक्तिवादी लोगों का धार्मिक, अध्यात्मिक तथा देवीय शक्तियों से युक्त ओरा न तो शुद्ध होता है और नहीं उसमें शक्ति होती है। बल्कि जन्म के समय उसे जो प्राकृतिक तौर पर ओरा प्राप्त होता है उसे भी वह झूठ और फरेब के कारण नष्ट कर चुका होता है। ऐसे लोग आवश्यकता पड़ने पर अपने अनुयायियों और आसपास के उन तमाम चापलूस लोगों की तो क्या स्वयं तक की रक्षा नहीं कर पाते।
हमारे प्राचीन शास्त्रों में ही नहीं बल्कि अब तो आधुनिक मानव विज्ञान और समाजशास्त्र के पश्चिमी जानकार भी इस विषय पर यही कहते हैं कि आप ऐसे किसी भी व्यक्ति के पीछे जाओगे तो उसे मात्र एक भेड़चाल से अधिक कुछ नहीं कहा जायेगा। आपकी उन गलतियों के कारण न सिर्फ आपके स्वयं के भी चरित्र का पतन होता है, बल्कि आपकी आत्मा को भी पीढ़ा भोगनी पड़ेगी।
इसे हम आधुनिक इतिहास में उदाहरण के तौर पर देखें तो कुछ पश्चिमी समाजशास्त्रियों और इतिहासकारों ने साफ-साफ लिखा है कि भारत की आजादी के दौरान जिन हिंदुओं ने महात्मा गांधी को अपना आदर्श माना और उनके पीछे-पीछे भेड़चाल चलते रहे उन्हीं गांधी ने समय आने पर करीब-करीब 10 लाख से अधिक हिंदुओं को कत्ल करवा दिया। इतने लोगों का कत्ल होने के बाद भी गांधी ने उनके लिए कोई शब्द नहीं कहे।
इतिहास गवाह है कि महात्मा गांधी के पीछे चलने वाले वे सभी अंधभक्त मारे गये थे जो गांधीरूपी व्यक्तिवाद के उस मतिभ्रम में थे कि उनके आदर्श रूपी तथाकथित ‘महात्मा’ उन्हें यह आश्वासन दे चुके हैं कि देश का बंटवारा किसी भी कीमत पर नहीं होगा।
आज भी भारतीय राजनीति में भी हमें वही सब कुछ देखने को मिल रहा है। वर्तमान समय में देखें तो यहां भी राम मंदिर आंदोलन के बाद से लेकर आज तक की भारतीय राजनीति में गांधीवाद से कहीं अधिक बड़ा व्यक्तिवाद और कालनेमिवाद का जहर फैल चुका है, बावजूद इसके, हिंदू इस बात से अभी तक अंजान हैं कि वे जिसे ‘‘हिंदू हृदय सम्राट’’ समझ कर चल रहे हैं वास्तव में तो वह एक घोर ‘सैक्युलरवादी’’ है। लेकिन, बावजूद इसके आज भी व्यक्ति विशेष को अवतार मानने का मतिभ्रम पाले हुए आज के हिंदु कुछ अन्य सोच ही नहीं पा रहे हैं।
हिंदू तो हमेशा से भेड़ों के उस झुंड की तरह ही रहे हैं जो किसी के भी पीछे चलने को तैयार हो जाते हैं। कोई भी व्यक्तिवाद या संस्थावाद की लहर आती है और हिंदुओं को हांक कर ले जाती है। हिंदुओं के लिए हमेशा से यही समस्या रही है कि कोई भी आता है और उन्हें अपनी मिठी-मिठी बातों की चासनी में डूबो कर एक राजनीतिक अखाड़े के माध्यम से अपनी पार्टी का वोटर बनाकर मतलब निकलवा लेता है और बाद में उन्हें भूल जाता है।
समय आ गया है कि कम से कम वर्तमान दौर की राजनीति और संस्था आदि के विषय में हिंदुओं को यह सोचना चाहिए कि उनके हित में क्या है और उनका अपना कौन है? हिंदुओं को यह बात अच्छी तरह से सोचनी चाहिए कि आज भी भारत में ऐसी कोई राजनीति पार्टी, संस्था या कोई भी व्यक्तिवाद ऐसा नहीं है जो यह कह सके कि हां मैं सिर्फ और सिर्फ हिंदुओं के लिए ही हूं।
हमारे सामने आज ऐसे एक या दो नहीं बल्कि सैकड़ों उदाहरण हैं जिनसे यह बात साबित होती है कि हिंदुओं के हित के विषय में बात करने या सोचने वाला न तो कोई व्यक्ति है, न संस्था है और न ही कोई राजनीतिक पार्टी है। हिंदू हमेशा से अकेला ही था, आज भी अकेला ही है, और यदि यही हालात रहे तो आगे हिंदू बचेगा ही नहीं तो फिर कैसे कहा जा सकता है कि उसका क्या होने वाला है?
आज जो भी हिंदू किसी पार्टी, व्यक्ति या किसी संस्था को अपना आदर्श या अपना सब कुछ मान कर चल रहे हैं उनको इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि उनकी वही पार्टी, वही व्यक्ति और वही संस्था स्वयं चीख-चीख कर इस बात को बार-बार साक्ष्यों के साथ कह रही है कि – ‘‘न तो हम हिंदुत्ववादी हैं और न ही हिंदुत्व से हमारा कोई लेना-देना है। हम तो एक सेक्युलरवादी देश में सेक्युलरवादी राजनीति के सैक्युलर नेता के तौर पर राजनीति कर रहे हैं। लेकिन, हिंदू हैं कि हम पर बेवजह का दबाव बनाकर हमें हिंदुत्ववादी साबित करना चाहते हैं जो कि, हमारी प्रकृति के विरूद्ध है।’’
हमारे शास्त्रों में सीधे-सीधे कहा गया है कि- धर्मो रक्षति रक्षितः। यानी आप अपने धर्म की रक्षा करोगे तो धर्म भी आपकी रक्षा करेगा। अन्य कोई भी व्यक्ति न तो आपकी और न ही आपके धर्म की रक्षा करता है। हमारे सामने उदाहरण है कि भगवान राम को अपनी पत्नी की रक्षा के लिए स्वयं आगे आना पड़ा था और श्रीकृष्ण को भी स्वयं ही अपने धर्म की रक्षा के लिए हस्तक्षेप करना पड़ा।
हमारे तमाम धर्मग्रंथों में स्पष्ट रूप से लिखा है कि जो लोग धर्म के मार्ग पर चलते हुए स्वयं पर विश्वास रखते हैं और अन्य किसी भी व्यक्ति की चापलूसी से दूर रहते हैं या फिर स्वयं की चापलूसी करवाने से बचते हैं, ऐसे लोगों के साथ अदृश्य रूप में रह कर दैवीय शक्तियां उनकी रक्षा करती हैं और सही मार्ग भी दिखाती हैं।
जो लोग धर्म के मार्ग पर चलते हुए स्वयं पर विश्वास रखते हैं ऐसे लोगों के आस-पास एक विशेष उर्जा का संचार होता रहता है। उर्जा की उस मात्रा को सकारात्मक उर्जा कहा जाता है। जबकि दूसरी भाषा में कहें तो वे हमारे लिए दैवी शक्तियां या दिव्य शक्तियां होती हैं जो हमारे चारों तरफ एक ओरा बना कर रहती हैं और धर्म के मार्ग पर चलते समय ऐसी दिव्य शक्तियां हमारा मार्गदर्शन करती हैं।
धर्म के मार्ग पर चलते हुए ही पांच पांडवों ने महाभारत युद्ध में अपने आत्मविश्वास के दम पर उस संपूर्ण युद्ध को न सिर्फ जीता बल्कि स्वयं भी जीवित रहे। जबकि उनके प्रबल शत्रुओं में से कोई भी जीवित नहीं बचा। ऐसा इसलिए संभव हुआ क्योंकि वे सभी या तो अधर्मी थे या फिर दुर्योधनरूपी व्यक्तिवाद के लिए युद्ध लड़ रहे थे। ठीक वैसे ही आज के हिंदू भी अगर व्यक्तिवाद को छोड़ कर धर्म के आधार पर अपनी शक्तियों को प्रदर्शित करने का प्रयास करे तो राजनीतिक पार्टियों, संस्थाओं और व्यक्तिवाद को झक मार कर हिंदुओं के पीछे-पीछे चलना ही पड़ेगा।
राजनीति की वर्तमान दशा और दिशा और व्यक्तिवाद को देखें तो हमारे सामने उदाहण है वो नेता और पार्टियां जो मुस्लिम समाज के पीछे मात्र इसलिए चलने को विवश हैं क्योंकि मुस्लिम समाज उन्हें अपने जूते के नीचे रखता है। आज कोई भी राजनेता और पार्टियां ऐसी नहीं हैं जो मुस्लिम समाज के विरूद्ध कोई बयान दे सके या फिर उनके विरूद्ध कोई नीति या कानून पास कर सकें। आज की तमाम राजनीतिक पार्टियां, नेता और स्वयं ‘हिंदू हृदय सम्राट’’ तथा उनकी पार्टी सहित संपूर्ण संघ परिवार आज उनके पीछे-पीछे अपनी दूम हिलाता फिर रहा है, जबकि हिंदुओं के वोट लेकर बनी आज की सरकारें स्वयं हिंदुओं को ही सबसे तुच्छ प्राणी समझती जा रही है।
इस विषय को लेकर हिंदुओं से इतना ही कहा जा सकता है कि यदि आपको किसी की अंधभक्ति करने का इतना ही आनंद आता हो तो किसी पार्टी, संस्था या किसी भी व्यक्ति की नहीं बल्कि भगवान शिव, भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी आदि की कीजिए, ताकि आपका स्वयं का ओरा दिव्य और मजबूत बने और आपको कम से कम इस बात का एहसास तो रहे कि आप जिसकी पूजा या अंधभक्ति कर रहे हैं वास्तव में उसका लाभ इस शरीर को न सही, लेकिन कम से कम आपकी आत्मा को तो प्राप्त जरूर होगा।
– अजय सिंह चौहान