अजय सिंह चौहान || शायद यह बात बहुत ही कम लोग जानते होंगे कि हमारे देश में एक ऐसा ऐतिहासिक और प्राचीन मंदिर भी है जिसमें मौजूद, लगभग सभी प्राचीन मूर्तियां खण्डित हैं, और तो और उन सभी मूर्तियों की नियमित रूप से पूजा-पाठ भी होती आ रही है।
जी हां, यह बिल्कुल सच है। और आपको यह जानकार हैरानी होगी कि इस मंदिर में रखी लगभग सभी प्राचीन मूर्तियां इस मंदिर की मूर्तियां कोई मामूली रूप से खंडित नहीं हैं, बल्कि, अधिकांश मूर्तियों के तो सिर ही नहीं हैं, यानी बिना सिर वाली मूर्तियां हैं। लेकिन, फिर भी उन खंडित मूर्तियों की पूजा उसी प्रकार से की जाती है जैसे कि अन्य मूर्तियों की होती है। यह मंदिर किसी और देश में नहीं बल्कि भारत में ही मौजूद है।
यह सच है कि खण्डित मूर्ति की पूजा-पाठ नहीं की जाती। लेकिन, उसके एक दम विपरीत इस मंदिर में इन बिना सिर वाली मूर्तियों को संरक्षित भी रखा गया है और इनकी पूजा-पाठ भी करीब-करीब 320 वर्षों से लगातार होती आ रही है।
खंडित मूर्तियों वाला यह मंदिर ‘अष्टभुजा धाम मंदिर’ के नाम से पहचाना जाता है। और यह ‘अष्टभुजा धाम मंदिर’ लखनऊ से करीब 170 किमी की दूरी पर स्थित प्रतापगढ़ के गोंडे गांव में स्थित है। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार यह मंदिर स्थल त्रेता युग से यहां स्थापित है। जबकि इस मंदिर की वर्तमान संरचना का निर्माण आज से करीब 900 वर्ष पहले हुआ था।
दरअसल इस ‘अष्टभुजा धाम मंदिर’ की इन खंडित और बिना सिर वाली मूर्तियों का रहस्य यह है कि इसकी सभी मूर्तियों के सिर औरंगजेब के आदेश पर काट दिए गये थे या फिर तोड़ दिए गये थे, और तब से लेकर आज तक वे सभी खंडित और बिना सिर वाली मूर्तियां यहां मौजूद भी हैं।
भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग के अनुसार सन 1699 में जब औरंगजेब ने सभी हिंदू मंदिरों को नष्ट करने का आदेश दिया था तब इस मंदिर में भी उसकी सेना ने लूटपाट के बाद इन्हें खंडित कर दिया था।
स्थानीय लोगों का कहना है कि जब औरंगजेब ने अपना शासन संभाला था उसके तुरंब बाद ही ‘अष्टभुजा धाम मंदिर’ के पुजारियों और अन्य स्थानीय लोगों ने इस मंदिर के भविष्य के विषय में सोचना शुरू कर दिया और इसके अस्तित्व को लेकर चिंतित हो रहे थे।
ऐसे में किसी ने सुझाव दिया कि क्यों न इस मंदिर के प्रवेश द्वार को किसी मस्जिद के द्वार की भांति तैयार करवा दिया जाय, ताकि जब औरंगजेब के सैनिक यहां आयें तो वे इसे मस्जिद समझ कर भ्रमित हो जायें और इसे दूर सेे ही देखकर चले जायें।
हालांकि, कई लोगों वह उपाय अच्छा नहीं लगा, लेकिन, इसके अलावा स्थानीय लोगों के पास दूसरा कोई रास्ता या उपाय भी नहीं बचा था। इसलिए आनन-फानन में इस मंदिर का अस्तित्व बचाने की खातिर उस उपाय को मान लिया गया और स्थानीय लोगों ने तथा पुजारियों ने मिल कर इस मंदिर के मुख्य द्वार को तुड़वा कर उसका आकार और डिजाइन एक दम मस्जिद के प्रवेश द्वार के आकार का तैयार करवा दिया।
और इसके कुछ ही दिनों बाद, हुआ भी वही, जिसका डर था। औरंगजेब के सैनिकों ने इस क्षेत्र के कुछ प्रसिद्ध मंदिरों की तलाश शुरू की और उन्हें लूटपाट के बाद नष्ट करना प्रारंभ किया तो वे प्रतापगढ़ के गोंडे गांव में स्थित इस ‘अष्टभुजा धाम मंदिर’ तक भी पहुंच ही गये। कहा जाता है कि जब वे यहां आये तो उन्हे यह मंदिर दूर से ही दिखाई दे गया था।
दूर से देखने पर उन सैनिकों को ‘अष्टभुजा धाम मंदिर’ का प्रवेश द्वार एक मस्जिद जैसा दिखाई दे रहा था इसलिए, औरंगजेब की सेना के करीब-करीब सभी सैनिक इसके सामने से गुजर चुके थे, लेकिन, अंत में उनमें से किसी सैनिक की नजर मंदिर के दरवाजे पर टंगी एक घंटी पर पड़ गयी। इसके बाद तो जाते-जाते उसमें से कुछ सैनिकों ने मंदिर में भारी उत्पात मचाया और इसमें स्थापित मूर्तियों में से अधिकतर के सिर काट दिए, और कुछ मूर्तियों के हाथ-पैर तोड़ कर उन्हें विभिन्न प्रकार से खंडित कर दिया था।
इतिहासकारों और पुरातत्वविद विभाग का मानना है कि इस मंदिर की वर्तमान इमारत का निर्माण 11वीं शताब्दी में हुआ था। यह मंदिर कोई बहुत बड़ा या भव्य आकार वाला नहीं है। लेकिन, मंदिर की दीवारों पर की गई नक्काशियां और अन्य कलाकृतियां देखने लायक हैं। इसकी बाहरी दिवारों पर उकेरी गई मूर्तियां और कलाकृतियां मध्य प्रदेश के खजुराहो मंदिरों से काफी हद तक मिलती-जुलती हैं।
गजेटियर के अनुसार सोमवंशी क्षत्रिय घराने के राजा द्वारा इस मंदिर का निर्माण करवाये जाने का अनुमान है।
यह मंदिर देवी दूर्गा का मंदिर है इसलिए इसे अष्टभुजा धाम मंदिर’ के नाम से पहचाना जाता है। स्थानीय लोगो के अनुसार मंदिर के गर्भगृह में मौजूद अष्टधातु की प्राचीन मूर्ति करीब 17 वर्ष पहले चोरी हो चुकी है इसलिए स्थानीय लोगो ने सामूहिक सहयोग से इस मंदिर में उस स्थान पर देवी दूर्गा की दूसरी मूर्ति की स्थापना की है।
अगर आप भी इस मंदिर में दर्शन करने जाना चाहते हैं तो बता दें कि यह मंदिर उत्तर प्रदेश के जिला प्रतापगढ़ शहर से मात्र 8 किमी की दूरी पर है। मंदिर तक पहुंचने के लिए प्रतापगढ़ रेलवे स्टेशन से उत्तर दिशा में इलाहबाद-फैजाबाद रोड़ पर चिलबिला चैराहे से होते हुए गौड़े ग्राम के लिए जाना होता है जहां यह मंदिर स्थित है।